TRENDING TAGS :
Exclusive Interview- मुलायम सिंह यादव
दिनांक: 11.3.2००8
तमाम विपरीत धर्म वाले दलों के साथ गठबंधन की राजनीति कर संतुलन साधने की बाजीगरी दिखाने वाले मुलायम सिंह यादव भी इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं कि उनके नए गठबंधन यूएनपीए को लोकसभा में बहुमत के लिये जरूरी 267 सांसद किसी भी हालत में नहीं मिल सकते हैं। पर उनका भरोसा है कि उनका गठबंधन इतनी बड़ी ताकत होगा कि उसके सहयोग के बिना सरकार नहीं बनेगी लेकिन ऐसे में वे बिना किसी सील संकोच के सांप्रदायिक ताकतों के नेतृत्व वाली सरकार नहीं बनने देने के लिए किसी से हाथ मिलाने को तैयार होंगे। कांग्रेस से उनकी कोई बैठकर तफ्शील से बात-चीत होने की बात वे खारिज करते हैं पर यह मानने में कोई गुरेज उन्हें नहीं नजर आता कि चलते-फिरते चर्चा होती है। चर्चा हुई है। गठबंधन की राजनीति और तमाम सियासी सवालों पर उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र से हुई लंबी बातचीत के अंश :-
यूपीए और एनपीए के गठबंधन पहले से हैं तो फिर आप अपने तीसरे गठबंधन की जरूरत क्यों महसूस कर रहे हैं?
जरूरत इसलिए पड़ी है कि दोनों ने देश को चलाया। आमजनता को कोई लाभ नहीं पहुंचा। कोई भी गांव का आदमी, गरीब आदमी यहां तक कि शहर का आदमी नहीं कह सकता कि हमें कोई राहत मिली है। जहां तक किसान के कर्ज माफ करने की बात कही जा रही है। रूपया किसान का माफ नहीं हुआ है। यह रूपया बैंको को दिया जा रहा है। बैंको का जो कर्जा था वह लाभ पहुंचाने के लिए दिया जा रहा है। 6० हजार करोड़ कर्ज माफी की बात भले ही कही जा रही हो पर किसानों को अगर राहत मिलेगी तो सिर्फ सात हजार करोड़ रूपये की। बाकी सब मुनाफा बैंको का है। इस कर्ज माफी के मार्फत किसानों को आपस में बांट दिया गया है। मध्यम किसान, सीमांत किसान, उच्च किसान यह भेदभाव बहुत खतरनाक है। इसके खराब परिणाम आयेंगे। हमने 1989-9० में कर्जा माफ किया था तो सबको 1०-1० हजार रूपये की राहत मिली थी। इस समय तीन साल में कर्ज माफी की बात कही जा रही है जबकि हमने आज के मूल्यों के हिसाब से एक लाख रूपये तक का कर्जा तुरंत माफ किया था।
आपका गठबंधन कोई विकल्प देगा या महज सत्ता हासिल करने का माध्यम बनेगा?
हमतो किसान की बात लेकर निकले हैं। हमारे गठबंधन में किसान ही जुड़े हैं। चाहें चौटाला हों, मुलायम सिंह, चंद्रबाबू नायडू, बाबूलाल मरांडी और जितने भी नेता हैं, सब किसान हैं। अमर सिंह भी आजमगढ़ में किसान की तरह रहने लगे हैं। अपने पिताजी की तेरहवीं उन्होंने आजमगढ़ से की। हमारे गठबंधन के सभी नेताओं ने कहा कि किसान तो बर्बाद हो गया है तो हम किसान की और देश की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि किसान खुशहाल, सम्पन्न होगा तो देश खुशहाल, सम्पन्न होगा। लड़ाई हमारी देश की है जिसमें किसान को मुद्दा लेकर चले हैं। नतीजतन, साफ है कि हमारा गठबंधन नया विकल्प देगा। अगर सत्ता हासिल करने का लाभ होता है तो विपक्ष हमें उठाने क्यों दे रहा है।
भारत में मोटे तौर पर जो भी गठबंधन हैं वे सौदेबाजी और दबाव बनाने का उदाहरण बने हैं? गठबंधन में शामिल सभी बड़ी पार्टियां कहती रही हैं-हम देश के लिये जरूरी काम नहीं कर पाये। ऐसे में गठबंधन का औचित्य आपकी नजर में क्या है?
ऐसे में गठबंधन करने वाले दलों से यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर गठबंधन किया क्यों था। आपने ऐसी सरकार बनायी क्यों। राजीव गांधी की तरह सरकार बनाने से मना कर देते। राष्टï्रपति ने तो उनको पहले बुलाया था। राजीव गांधी ने तो कह दिया था कि हम गठबंधन की सरकार नही बनायेंगे। हमारा बहुमत नहीं है। सरकार बनायी है आपने फिर तोहमत मढऩे की जरूरत
आप अपने नए गठबंधन के मार्फत जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?
हमारा संदेश यह है कि हम सुविधा देंगे। किसी के बीच में कोई भेदभाव नही करेंगे। हम सेकुलर लोगों की कमजोरी है कि हम नहीं चाहते कि भाजपा की सरकार बनें। सांप्रदायिक दल की सरकार बने। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि कहीं ऐसा न हो कि सेकुलर दल की सरकार बन जाये। इसलिए हमने उन्हें समर्थन दिया। हमारा संदेश धर्म निरपेक्षता भी है।
गठबंधन की राजनीति के नये प्रभाव को देखते हुए क्या यह मान लिया जाये कि किसी भी पार्टी का कोई राष्टï्रीय प्रभाव नहीं रहा?
सही। बिल्कुल सही। दो बड़े दल-बीजेपी और कांग्रेस माने जाते हैं। इनका राष्टï्रीय स्तर पर कोई प्रभाव शेष नहीं है। मेरी समझ में यह नहीं आता है कि देश की 16 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले उप्र के बड़े दलों को क्षेत्रीय पार्टी क्यों कहा जाता है।
आपने खुद बसपा, कांग्रेस और राष्टï्रीय लोकदल के साथ गठबंधन के प्रयोग किये हैं। आप क्या इसके बाद भी यह समझते हैं कि गठबंधन की राजनीति के लिए कोई जगह शेष है?
ऐसे लोगों के लिए तो नहीं है जो अपनी पार्टी की ताकत से कई गुना ज्यादा ताकत या हिस्सेदारी मांगते हैं। उसके बाद चुनाव के ऐन टाइम पर धोखा दे देते हैं।
आपने बसपा के साथ भी मिली-जुली सरकार चलायी है। कैसा अनुभव रहा है?
बसपा कोई पार्टी नहीं है। वह जमघट है। जमावड़ा है। यहां धन पशुओं को राजनीतिज्ञ बनाया जाता है। इनके पास न कोई नीति है न कार्यक्रम। अब बसपा का कोई सवाल नहीं। बसपा तो घमंड में चूर है। स्पष्टï बहुमत आ गया है। भारी बहुमत नहीं। फिर भी उनके भाषण सुनिये आपको दंभ दिखेगा। कांग्रेस ने यह सरकार बनायी। इसका नुकसान उसे ही उठाना पड़ेगा। बसपा तो कांग्रेस का ही आधार खत्म करती है। हमें कोई दिक्कत नहीं है। बसपा का साथ छोडऩे के बाद भी हम लगातार बढ़े ही हैं।
क्या वजह थी कि आपके तीनों गठबंधन टूटे। उनसे आपने क्या सबक लिया?
सबक लिया है तभी तो हमने उन लोगों को चुना है जो पक्के साथी हैं। उन्हीं से समझौता किया है। चाहें ओमप्रकाश चौटाला हों, चाहें चंद्र बाबू नायडू हम लोग मिल-जुल कर काम करते रहे हैं। हम लोगों के बीच बहुत गहरे संबंध हैं। हम और नायडू आखिरी दम तक कोशिश करते रहे कि गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई सरकार बनें, पर कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं कि नहीं हो पाया। पर हमारे रिश्ते नहीं खत्म हुए। जो जहां समझा, वहां चला गया।
यूपीए और एनडीए के दो गठबंधन हमारे सामने हैं। आप किसे बेहतर मानते हैं और क्यों?
दोनों ठीक नहीं हैं। इसीलिए हमारी कोशिश है कि हम तीसरी ताकत बना लें। ताकि हमारे बिना सरकार न बनें।
दोनों में आखिर बेहतर कौन है?
बीजेपी गठबंधन से तो कोई सवाल ही नहीं उठता है। कांग्रेस हमको पसंद नहीं कर रही है। पर जरूरत पड़ी तो साफ है कि भाजपा गठबंधन के साथ जाया नहीं जा सकता। ऐसे में क्या विकल्प है। खुद समझा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा नीति गठबंधन में से हमारा कांग्रेस नीति गठबंधन का साथ देना विवशता भी है क्योंकि हम सेकुलर लोग कभी नही चाहेंगे कि सांप्रदायिक दलों की सरकार बने। पिछली बार भी हम लोगों ने इसी बात पर बिना मांगे समर्थन दिया था।
अभी आपके साथ जो भी सहयोगी घटक हैं। वे एनडीए के पार्टनर रह चुके हैं। मरांडी सरीखे नेता तो खुद भाजपा में ही थे। ऐसे में क्या यह नहीं समझना चाहिये कि जरूरत पड़ी तो आप भाजपा नीति गठबंधन को मदद कर देंगे?
हमारे घटक दल के लोग एनडीए में भले ही रह चुके हों लेकिन सरकार में शामिल नही रहे हैं।
क्या ऐसा संभव नहीं है कि बिना सरकार में शामिल हुये आप भी एनडीए गठबंधन की मदद कर दें? क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में वामदल और भाजपा दोनों थे। ऐसे किसी प्रयोग की उम्मीद आपको दिखती है क्या?
उस समय परिस्थितियां थीं। पर यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि जिन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी वे बहुत बड़े सेकुलर हो गये हैं। वे उच्च पद पर पहुंच गये इसलिए उन्हें सेकुलर कहा जा रहा है। हमने तो भाजपा को कभी कोई अवसर नहीं दिया। तो हमें अब वे लोग सांप्रदायिक कहने लगे हैं!
कहा जा रहा है कि कांग्रेस से आपके रिश्तों की पेंग इन दिनों बढ़ी है। चुनाव पूर्व गठबंधन की बातचीत चल रही है।
हमसे तो नहीं लेकिन हमारी पार्टी के अन्य नेताओं से कांग्रेस के लोगों ने रास्ता चलते बातचीत तो की है पर अभी बैठकर कोई सीरियस बातचीत नहीं हुई है। हमसे तो नहीं ही हुई है। वैसे यह फैसला अब हमारे गठबंधन पर निर्भर है।
गठबंधन सरकार के राजनीतिक धर्म के आधारभूत नियम आपकी राय में क्या होने चाहिये?
सबसे पहला राजनीतिक धर्म है जनता के वायदे को पूरा करना।
आपने पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड में कहा था कि भाजपा अगर समान नागरिक संहिता, धारा 37० और राम मंदिर मुद्दों को छोड़ दे तो उससे दोस्ती की जा सकती है। क्या अभी भी आप अपनी इस धारणा पर कायम हैं?
यह हमने झारखंड में ही नहीं लोकसभा में भी कहा है। पर बहुत पुरानी बात हो गयी है। लेकिन दोस्ती करने की बात नहीं की है। दूरियां जो बहुत बनी हुई हैं उसे कम होने की बात जरूर कही है। क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे नहीं। यही वजह है कि जब मैंने कश्मीर का मुद्दा, बाबरी मस्जिद का मुद्दा, मुसलमान का मुद्दा, 37० धारा छोडऩे की बात कहीं तो भाजपा के एक बड़े नेता, जिनका मैं नहीं बताना चाहूंगा, ने कहा अगर मुलायम सिंह की बातें मान लें तो मेरे पास क्या बचा?
लेकिन भाजपा ने एनडीए गठबंधन के समय आप द्वारा कहे जाने वाले सभी मुद्दे छोड़ दिये थे। तो क्या ऐसे में चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए आपकी ओर से मदद मिलने की एनडीए को कोई उम्मीद देखनी चाहिये?
यह गलत है। भाजपा ने छोड़ा नहीं था। एक दो नेताओं ने अपनी जुबान बंद कर ली थी। उनके नीचे सब कहते थे। आरएसएस भाजपा से जुड़ा हुआ संगठन है। भाजपा का वैचारिक आधार है वह भी तो कहता था। विहिप भी कहती थी।
राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नही करतीं। क्या आप उप्र में पांच साल तक इंतजार करेंगे?
हम इंतजार नही करेंगे। हमें विश्वास है कि पांच साल से पहले चली जायेगी। इन्हें स्पष्टï बहुमत का बहुत बड़ा घमंड है। भारी बहुमत तो है नहीं। आप देखियेगा कैसे यह घमंड चूर होता है। हालांकि यूपीकोका इसलिए लाया गया है कि हमारे विधायक भागें तो उन पर लगाया जा सके लेकिन जब वे भाग जायेंगे तो उन्हें सोचना चाहिये कि यूपीकोका तुमपे लगेगा या उन पे। मतलब साफ है कि उनकी सरकार ही नहीं रहेगी। दूसरी सरकार बन जाएगी तो उन पर भी तो यह कानून लगेगा। हमने कभी भी एक भी बीएसपी के कार्यकर्ता को परेशान नहीं किया लेकिन अब जो उत्पीडऩ है वह देखा और सहा नहीं जा रहा है।
भौगोलिक दृष्टिï से आपने प्रतिनिधित्व करने वाले गठबंधन को तो तैयार कर लिया है पर इन पर प्रादेशिक मांगों का दबाव पड़ेगा तो क्या आपको नहीं लगता कि लोकसभा चुनाव के बाद यह बिखर जाएगा?
ऐसा नहीं है। एक कार्यक्रम हम लोग बना रहे हैं जो सर्वसम्मति से बनेगा। उसी पर हम लोग चलेंगे।
राज ठाकरे और बाल ठाकरे ने उत्तर भारतीय लोगों को मुंबई से बाहर करने की मुहिम छेड़ रखी है। आपका क्या स्टैंड है?
इन दोनों की प्रतियोगिता है। अपनी-अपनी पार्टी मजबूत करने की। राज ठाकरे कुछ हैं नहीं। सिर्फ अखबारों में हैं। बाल ठाकरे इस मुद्दे को छोड़ चुके थे। अब देखा कि कहीं मेरा वोट न खिसक जाये तो वह भी बोलने लगे। इन दोनों का झगड़ा है ऐसे में उत्तर भारतीयों के साथ ज्यादती हो रही है। इसमें असली दोषी है वहां की सरकार। इस पार्टी की मान्यता चुनाव आयोग को रद्द कर देनी चाहिये।
-योगेश मिश्र
नोट:-रवीन्द्र जी इसको देख लीजिएगा। मैं बहुत थक गया हूं।
(योगेश मिश्र)
तमाम विपरीत धर्म वाले दलों के साथ गठबंधन की राजनीति कर संतुलन साधने की बाजीगरी दिखाने वाले मुलायम सिंह यादव भी इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं कि उनके नए गठबंधन यूएनपीए को लोकसभा में बहुमत के लिये जरूरी 267 सांसद किसी भी हालत में नहीं मिल सकते हैं। पर उनका भरोसा है कि उनका गठबंधन इतनी बड़ी ताकत होगा कि उसके सहयोग के बिना सरकार नहीं बनेगी लेकिन ऐसे में वे बिना किसी सील संकोच के सांप्रदायिक ताकतों के नेतृत्व वाली सरकार नहीं बनने देने के लिए किसी से हाथ मिलाने को तैयार होंगे। कांग्रेस से उनकी कोई बैठकर तफ्शील से बात-चीत होने की बात वे खारिज करते हैं पर यह मानने में कोई गुरेज उन्हें नहीं नजर आता कि चलते-फिरते चर्चा होती है। चर्चा हुई है। गठबंधन की राजनीति और तमाम सियासी सवालों पर उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र से हुई लंबी बातचीत के अंश :-
यूपीए और एनपीए के गठबंधन पहले से हैं तो फिर आप अपने तीसरे गठबंधन की जरूरत क्यों महसूस कर रहे हैं?
जरूरत इसलिए पड़ी है कि दोनों ने देश को चलाया। आमजनता को कोई लाभ नहीं पहुंचा। कोई भी गांव का आदमी, गरीब आदमी यहां तक कि शहर का आदमी नहीं कह सकता कि हमें कोई राहत मिली है। जहां तक किसान के कर्ज माफ करने की बात कही जा रही है। रूपया किसान का माफ नहीं हुआ है। यह रूपया बैंको को दिया जा रहा है। बैंको का जो कर्जा था वह लाभ पहुंचाने के लिए दिया जा रहा है। 6० हजार करोड़ कर्ज माफी की बात भले ही कही जा रही हो पर किसानों को अगर राहत मिलेगी तो सिर्फ सात हजार करोड़ रूपये की। बाकी सब मुनाफा बैंको का है। इस कर्ज माफी के मार्फत किसानों को आपस में बांट दिया गया है। मध्यम किसान, सीमांत किसान, उच्च किसान यह भेदभाव बहुत खतरनाक है। इसके खराब परिणाम आयेंगे। हमने 1989-9० में कर्जा माफ किया था तो सबको 1०-1० हजार रूपये की राहत मिली थी। इस समय तीन साल में कर्ज माफी की बात कही जा रही है जबकि हमने आज के मूल्यों के हिसाब से एक लाख रूपये तक का कर्जा तुरंत माफ किया था।
आपका गठबंधन कोई विकल्प देगा या महज सत्ता हासिल करने का माध्यम बनेगा?
हमतो किसान की बात लेकर निकले हैं। हमारे गठबंधन में किसान ही जुड़े हैं। चाहें चौटाला हों, मुलायम सिंह, चंद्रबाबू नायडू, बाबूलाल मरांडी और जितने भी नेता हैं, सब किसान हैं। अमर सिंह भी आजमगढ़ में किसान की तरह रहने लगे हैं। अपने पिताजी की तेरहवीं उन्होंने आजमगढ़ से की। हमारे गठबंधन के सभी नेताओं ने कहा कि किसान तो बर्बाद हो गया है तो हम किसान की और देश की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि किसान खुशहाल, सम्पन्न होगा तो देश खुशहाल, सम्पन्न होगा। लड़ाई हमारी देश की है जिसमें किसान को मुद्दा लेकर चले हैं। नतीजतन, साफ है कि हमारा गठबंधन नया विकल्प देगा। अगर सत्ता हासिल करने का लाभ होता है तो विपक्ष हमें उठाने क्यों दे रहा है।
भारत में मोटे तौर पर जो भी गठबंधन हैं वे सौदेबाजी और दबाव बनाने का उदाहरण बने हैं? गठबंधन में शामिल सभी बड़ी पार्टियां कहती रही हैं-हम देश के लिये जरूरी काम नहीं कर पाये। ऐसे में गठबंधन का औचित्य आपकी नजर में क्या है?
ऐसे में गठबंधन करने वाले दलों से यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर गठबंधन किया क्यों था। आपने ऐसी सरकार बनायी क्यों। राजीव गांधी की तरह सरकार बनाने से मना कर देते। राष्टï्रपति ने तो उनको पहले बुलाया था। राजीव गांधी ने तो कह दिया था कि हम गठबंधन की सरकार नही बनायेंगे। हमारा बहुमत नहीं है। सरकार बनायी है आपने फिर तोहमत मढऩे की जरूरत
आप अपने नए गठबंधन के मार्फत जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?
हमारा संदेश यह है कि हम सुविधा देंगे। किसी के बीच में कोई भेदभाव नही करेंगे। हम सेकुलर लोगों की कमजोरी है कि हम नहीं चाहते कि भाजपा की सरकार बनें। सांप्रदायिक दल की सरकार बने। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि कहीं ऐसा न हो कि सेकुलर दल की सरकार बन जाये। इसलिए हमने उन्हें समर्थन दिया। हमारा संदेश धर्म निरपेक्षता भी है।
गठबंधन की राजनीति के नये प्रभाव को देखते हुए क्या यह मान लिया जाये कि किसी भी पार्टी का कोई राष्टï्रीय प्रभाव नहीं रहा?
सही। बिल्कुल सही। दो बड़े दल-बीजेपी और कांग्रेस माने जाते हैं। इनका राष्टï्रीय स्तर पर कोई प्रभाव शेष नहीं है। मेरी समझ में यह नहीं आता है कि देश की 16 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले उप्र के बड़े दलों को क्षेत्रीय पार्टी क्यों कहा जाता है।
आपने खुद बसपा, कांग्रेस और राष्टï्रीय लोकदल के साथ गठबंधन के प्रयोग किये हैं। आप क्या इसके बाद भी यह समझते हैं कि गठबंधन की राजनीति के लिए कोई जगह शेष है?
ऐसे लोगों के लिए तो नहीं है जो अपनी पार्टी की ताकत से कई गुना ज्यादा ताकत या हिस्सेदारी मांगते हैं। उसके बाद चुनाव के ऐन टाइम पर धोखा दे देते हैं।
आपने बसपा के साथ भी मिली-जुली सरकार चलायी है। कैसा अनुभव रहा है?
बसपा कोई पार्टी नहीं है। वह जमघट है। जमावड़ा है। यहां धन पशुओं को राजनीतिज्ञ बनाया जाता है। इनके पास न कोई नीति है न कार्यक्रम। अब बसपा का कोई सवाल नहीं। बसपा तो घमंड में चूर है। स्पष्टï बहुमत आ गया है। भारी बहुमत नहीं। फिर भी उनके भाषण सुनिये आपको दंभ दिखेगा। कांग्रेस ने यह सरकार बनायी। इसका नुकसान उसे ही उठाना पड़ेगा। बसपा तो कांग्रेस का ही आधार खत्म करती है। हमें कोई दिक्कत नहीं है। बसपा का साथ छोडऩे के बाद भी हम लगातार बढ़े ही हैं।
क्या वजह थी कि आपके तीनों गठबंधन टूटे। उनसे आपने क्या सबक लिया?
सबक लिया है तभी तो हमने उन लोगों को चुना है जो पक्के साथी हैं। उन्हीं से समझौता किया है। चाहें ओमप्रकाश चौटाला हों, चाहें चंद्र बाबू नायडू हम लोग मिल-जुल कर काम करते रहे हैं। हम लोगों के बीच बहुत गहरे संबंध हैं। हम और नायडू आखिरी दम तक कोशिश करते रहे कि गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई सरकार बनें, पर कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं कि नहीं हो पाया। पर हमारे रिश्ते नहीं खत्म हुए। जो जहां समझा, वहां चला गया।
यूपीए और एनडीए के दो गठबंधन हमारे सामने हैं। आप किसे बेहतर मानते हैं और क्यों?
दोनों ठीक नहीं हैं। इसीलिए हमारी कोशिश है कि हम तीसरी ताकत बना लें। ताकि हमारे बिना सरकार न बनें।
दोनों में आखिर बेहतर कौन है?
बीजेपी गठबंधन से तो कोई सवाल ही नहीं उठता है। कांग्रेस हमको पसंद नहीं कर रही है। पर जरूरत पड़ी तो साफ है कि भाजपा गठबंधन के साथ जाया नहीं जा सकता। ऐसे में क्या विकल्प है। खुद समझा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा नीति गठबंधन में से हमारा कांग्रेस नीति गठबंधन का साथ देना विवशता भी है क्योंकि हम सेकुलर लोग कभी नही चाहेंगे कि सांप्रदायिक दलों की सरकार बने। पिछली बार भी हम लोगों ने इसी बात पर बिना मांगे समर्थन दिया था।
अभी आपके साथ जो भी सहयोगी घटक हैं। वे एनडीए के पार्टनर रह चुके हैं। मरांडी सरीखे नेता तो खुद भाजपा में ही थे। ऐसे में क्या यह नहीं समझना चाहिये कि जरूरत पड़ी तो आप भाजपा नीति गठबंधन को मदद कर देंगे?
हमारे घटक दल के लोग एनडीए में भले ही रह चुके हों लेकिन सरकार में शामिल नही रहे हैं।
क्या ऐसा संभव नहीं है कि बिना सरकार में शामिल हुये आप भी एनडीए गठबंधन की मदद कर दें? क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में वामदल और भाजपा दोनों थे। ऐसे किसी प्रयोग की उम्मीद आपको दिखती है क्या?
उस समय परिस्थितियां थीं। पर यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि जिन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी वे बहुत बड़े सेकुलर हो गये हैं। वे उच्च पद पर पहुंच गये इसलिए उन्हें सेकुलर कहा जा रहा है। हमने तो भाजपा को कभी कोई अवसर नहीं दिया। तो हमें अब वे लोग सांप्रदायिक कहने लगे हैं!
कहा जा रहा है कि कांग्रेस से आपके रिश्तों की पेंग इन दिनों बढ़ी है। चुनाव पूर्व गठबंधन की बातचीत चल रही है।
हमसे तो नहीं लेकिन हमारी पार्टी के अन्य नेताओं से कांग्रेस के लोगों ने रास्ता चलते बातचीत तो की है पर अभी बैठकर कोई सीरियस बातचीत नहीं हुई है। हमसे तो नहीं ही हुई है। वैसे यह फैसला अब हमारे गठबंधन पर निर्भर है।
गठबंधन सरकार के राजनीतिक धर्म के आधारभूत नियम आपकी राय में क्या होने चाहिये?
सबसे पहला राजनीतिक धर्म है जनता के वायदे को पूरा करना।
आपने पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड में कहा था कि भाजपा अगर समान नागरिक संहिता, धारा 37० और राम मंदिर मुद्दों को छोड़ दे तो उससे दोस्ती की जा सकती है। क्या अभी भी आप अपनी इस धारणा पर कायम हैं?
यह हमने झारखंड में ही नहीं लोकसभा में भी कहा है। पर बहुत पुरानी बात हो गयी है। लेकिन दोस्ती करने की बात नहीं की है। दूरियां जो बहुत बनी हुई हैं उसे कम होने की बात जरूर कही है। क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे नहीं। यही वजह है कि जब मैंने कश्मीर का मुद्दा, बाबरी मस्जिद का मुद्दा, मुसलमान का मुद्दा, 37० धारा छोडऩे की बात कहीं तो भाजपा के एक बड़े नेता, जिनका मैं नहीं बताना चाहूंगा, ने कहा अगर मुलायम सिंह की बातें मान लें तो मेरे पास क्या बचा?
लेकिन भाजपा ने एनडीए गठबंधन के समय आप द्वारा कहे जाने वाले सभी मुद्दे छोड़ दिये थे। तो क्या ऐसे में चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए आपकी ओर से मदद मिलने की एनडीए को कोई उम्मीद देखनी चाहिये?
यह गलत है। भाजपा ने छोड़ा नहीं था। एक दो नेताओं ने अपनी जुबान बंद कर ली थी। उनके नीचे सब कहते थे। आरएसएस भाजपा से जुड़ा हुआ संगठन है। भाजपा का वैचारिक आधार है वह भी तो कहता था। विहिप भी कहती थी।
राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नही करतीं। क्या आप उप्र में पांच साल तक इंतजार करेंगे?
हम इंतजार नही करेंगे। हमें विश्वास है कि पांच साल से पहले चली जायेगी। इन्हें स्पष्टï बहुमत का बहुत बड़ा घमंड है। भारी बहुमत तो है नहीं। आप देखियेगा कैसे यह घमंड चूर होता है। हालांकि यूपीकोका इसलिए लाया गया है कि हमारे विधायक भागें तो उन पर लगाया जा सके लेकिन जब वे भाग जायेंगे तो उन्हें सोचना चाहिये कि यूपीकोका तुमपे लगेगा या उन पे। मतलब साफ है कि उनकी सरकार ही नहीं रहेगी। दूसरी सरकार बन जाएगी तो उन पर भी तो यह कानून लगेगा। हमने कभी भी एक भी बीएसपी के कार्यकर्ता को परेशान नहीं किया लेकिन अब जो उत्पीडऩ है वह देखा और सहा नहीं जा रहा है।
भौगोलिक दृष्टिï से आपने प्रतिनिधित्व करने वाले गठबंधन को तो तैयार कर लिया है पर इन पर प्रादेशिक मांगों का दबाव पड़ेगा तो क्या आपको नहीं लगता कि लोकसभा चुनाव के बाद यह बिखर जाएगा?
ऐसा नहीं है। एक कार्यक्रम हम लोग बना रहे हैं जो सर्वसम्मति से बनेगा। उसी पर हम लोग चलेंगे।
राज ठाकरे और बाल ठाकरे ने उत्तर भारतीय लोगों को मुंबई से बाहर करने की मुहिम छेड़ रखी है। आपका क्या स्टैंड है?
इन दोनों की प्रतियोगिता है। अपनी-अपनी पार्टी मजबूत करने की। राज ठाकरे कुछ हैं नहीं। सिर्फ अखबारों में हैं। बाल ठाकरे इस मुद्दे को छोड़ चुके थे। अब देखा कि कहीं मेरा वोट न खिसक जाये तो वह भी बोलने लगे। इन दोनों का झगड़ा है ऐसे में उत्तर भारतीयों के साथ ज्यादती हो रही है। इसमें असली दोषी है वहां की सरकार। इस पार्टी की मान्यता चुनाव आयोग को रद्द कर देनी चाहिये।
-योगेश मिश्र
नोट:-रवीन्द्र जी इसको देख लीजिएगा। मैं बहुत थक गया हूं।
(योगेश मिश्र)
Next Story