TRENDING TAGS :
तेज हुए सियासी तरकश
दिनांक-17-०3-2००8
लोकसभा चुनाव की तिथियां भले ही चुनाव आयोग की फाइलों में ही न उकेरी जा सकी हंो पर उ_x009e_ार प्रदेश में इस चुनाव के मद्ïदेनजर सभी सियासी दल अपने-अपने तरकश तेज करने में लग गये हैं। इसकी बड़ी वजह चुनाव आयोग का वह फरमान है जिसमें नये परिसीमन के तहत चुनाव कराये जाने का संकल्प जताया गया है। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की अमेठी और बुंदेलखंड की झांसी को छोडक़र बाकी सभी लोकसभा सीटों पर परिसीमन की गाज कुछ इस तरह गिरी है कि अपनी सीटों को अभेद्य सुरक्षा कवच मानने वाले पार्टी सुप्रीमो तक बेचैन दिख रहे हैं।
तैयारियों में सबसे मुस्तैद और सतर्क बसपा दिख रही है। पार्टी की केन्द्रीय चुनाव समिति ने तो लोकसभा चुनाव के लिए ‘मायावती को प्रधानमंत्री बनाओ’ अभियान के नाम से एक आडियो कैसेट भी तैयार कर ली है। रैलियों में इसके गीत- ‘हमें तो लूट लिया टाटा, बाटा, बिड़ला वालों ने, रिलायंस वालों ने बजाज वालों ने’ गूंजने लगे हैं। महाराष्टï्र के उल्हासनगर के डा. सुरेश गंवई बताते हैं, ‘‘ इसका वीडियो कैसेट भी तैयार हो रहा है।’’ मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की बसपाई गणित भी कमजोर नहीं है। अगर वह अपने विधानसभा के प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब हुई तो प्रदेश में 4० सीटें मिल सकती हैं । एनडीए और यूपीए की दावेदारी में 4०-5० सांसदों वाली पार्टी को अहमियत मिलना लाजमी है। सूत्रों की मानें तो, ‘‘मायावती की नजर 6० सांसद लोकसभा में भेजने की है।’’ इसी के मद्ïदेनजर वे अपने अश्वमेघ के घोड़े को दक्षिण भारतीय राज्यों में दौड़ा रही हंै। इन इलाकों में ईसाई दलितों और गुर्जरों के लिए आरक्षण और उप्र के सर्वसमाज के फार्मूले को अन्य राज्यों में लागू करना इसी रणनीति का हिस्सा है। मायावती ने अब तक तकरीबन 5० सीटों पर प्रभारी के रूप में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। गैर-परंपरागत क्षेत्रों में वे तमाम दलों के असंतुष्टï नेताओं को साध रही हैं। चुनाव आते-आते अगर मायावती के कुनबे में कांग्रेस के किसी दिग्गज नेता का खानदान, भाजपा के किसी महत्वपूर्ण नेता का सांसद सिपहसालार दिखे तो हैरत नहीं होनी चाहिए। सूत्रों पर भरोसा करें तो, ‘‘मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल के खिलाफ अगर माफिया बृजेश सिंह ताल ठोंकता नजर आये तो यह भी रणनीति का हिस्सा होगा।’’ यह बात दीगर है कि मायावती के वोट बैंक में सेंधमारी के लिए राम विलास पासवान की लोजपा और दलित नेता उदितराज की इंडियन जस्टिस पार्टी भी अपने तरकश तेज करती हुई गाहे-बगाहे दिख जाती है।
मायावती के सियासी गुलदस्ते में राजपूत वोट भी जुटाने की कवायद चल रही है। इसके लिए राजपूतों की सभा में मायावती को ‘असली क्षत्राणी’ से नवाजा जा रहा है। ठाकुर नेताओं को हाथी पर बिठाने की तैयारी हो रही है। अमर सिंह के सिपहसालार रहे सीएन सिंह और भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह को जबाब देने के लिए कांग्रेसी विधायक रहे बाहुबली लल्ला भय्या को बसपा खेमे में लाकर खड़ा कर दिया गया है। कई और ठाकुर नेता बसपा के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं।
लेकिन जिस तरह मायावती के अफसर कारिन्दे यादवों के पीछे पड़े हैं, उससे मुलायम सिंह यादव को खुद-ब-खुद बढ़त हासिल हो रही है। जिस तरह दलित वोटों पर मायावती का एकाधिकार है, कुछ-कुछ उसी तरह उत्पीडऩ के इस दौर में यादव वोटों पर मुलायम सिंह का प्रभुत्व दिख रहा है। पर तमाम कोशिशों के बावजूद मायावती उनके मुस्लिम वोटबैंक पर सेंध लगाने में कामयाब नहीं हो सकी हैं। मुलायम 27 फीसदी जनाधार वाले पिछड़ी जातियों की एकजुटता में लगे हैं। उन्हें समझा रहे हैं, ‘‘पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक होने के बाद भी सपा को छोडक़र सभी सरकारों ने उनकी उपेक्षा की। नौकरियों और सत्ता में समुचित भागीदारी नहीं दी। सपा ने ही उनके मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए हर प्रयास किया है। विश्वकर्मा, प्रजापति, सविता, चौरसिया, साहू, भुर्जी, चौहान जातियों के लोगों को मंत्री बनाया।’’ यद्यपि वैट लागू करना माया सरकार की मजबूरी थी लेकिन मुलायम इसे लेकर भी व्यापारियों को अपना बनाने में लग गये हैं। तीसरे मोर्च की शक्ल में मुलायम सिंह यादव ओम प्रकाश चौटाला, चंद्रबाबू नायडू, फारूख अ_x008e_दुल्ला को लेकर यूएनपीए की रैलियां करने में जुटे हैं। फारूख के मार्फत अल्पसंख्यकों को तथा चौटाला के माध्यम से जाटों को रिझाने की कोशिश हो रही है। बीते विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद तकरीबन 3० फीसदी वोट हासिल किये थे जबकि मायावती को 34 फीसदी मत मिले थे। पर मायावती और मुलायम की सियासी रणनीति यह है कि वे गैर-कांग्रेसवाद का विकल्प बनें। दोनों कांग्रेस और भाजपा से बराबर दूरी बनाये हुए भी दिखना चाहते हैं। हालांकि कई कानूनी एवं अदालती पचड़ों के चलते इन दोनों नेताओं को केन्द्र की रहमोकरम की दरकार है। तभी कभी कांग्रेस पर हत्या का कुचक्र रचने का आरोप जड़ती हुई मायावती अगले हफ्ते संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ भोज में भी शरीक हो जाती हैं। मुलायम सिंह की पार्टी के कई नेता कांग्रेस के दूसरी पायदान के नेताओं के साथ गलबहियां करते दिखते हैं पर यह विवशता सिर्फ बसपा और सपा सुप्रीमो की हो, यह अर्धसत्य है। कड़वी सच्चाई यह है कि कांग्रेस को भी राज्य में अपनी खोयी जमीन पाने के लिए किसी वटवृक्ष की दरकार है। तभी तो जिस दिन राज्य में कांग्रेस मायावती से हिसाब मांगो अभियान की शुरूआत करती है, उसी दिन बसपा सुप्रीमो को भोज का आमंत्रण मिल जाता है। राज्य को विशेष पैकेज देने के नाम पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ी करने वाली मायावती को प्रधानमंत्री मनमोहन इतनी बड़ी धनराशि थमा देते हैं ताकि उसका मुंह बंद रह सके। मुलायम और मायावती से ‘तुम्ही से मुह_x008e_बत, तुम्ही से लड़ाई’ रिश्ता रखने वाली कांग्रेस न तो दलित नेताओं को तरजीह दे पा रही है, न ही पिछड़े वर्ग के रहनुमाओं को। तभी तो राज्य इकाई के अध्यक्ष और सदन के नेता दोनों कुर्सियों पर ब्राह्मïण नेता बैठा दिये गये हैं। हद तो यह है कि संगठनों के सभी शीर्ष पदों पर इसी जाति के लोग काबिज हैं। बहन मायावती के मुकाबले जिस ‘छोटी बहन’ रीता बहुगुणा जोशी को कांग्रेस ने उतारा है, वह खुद ही इलाहाबाद के एक जमीन घोटाले की चपेट में आ गयी हैं। लोकसभा चुनाव की सबसे सुस्त तैयारी सन्निपात में पड़ी कांग्रेस में देखने को मिल रही है। प्रदेश अध्यक्ष का जब गोरखपुर के लिए दौरा लगता है तो महासचिव डा. सैय्यद जमाल और जिला अध्यक्ष संजीव सिंह दोनों नदारद रहते हैं।
मंत्री बनने के बाद कांग्रेस के सांसद महावीर प्रसाद, अखिलेश दास, श्रीप्रकाश जायसवाल से उम्मीद थी कि इनके इलाकों में कांग्रेस संगठन मजबूत होगा पर वहां भी हालत खराब है। राज्य में कांग्रेस का पूरा संघर्ष सिर्फ बयानों तक सीमित रह गया है। महासचिव राहुल गांधी समय तो दे रहे हैं पर उनकी कोशिशें कांग्रेसी फेफड़े में आक्सीजन भरने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, ‘‘उप्र के राजनीतिक अखाड़े में तो सिर्फ कांग्रेस और बसपा ही है।’’ राहुल गांधी के मार्फत स_x009e_ाा संजीवनी की तलाश कितनी परवान चढ़ी, यह विधानसभा चुनाव में हुए रोड शो और दौरों के परिणाम से समझी जा सकती है। सांसदी बचाने के चक्कर में कभी मुलायम के सखा रहे बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस के बैनर तले उतरने की मुनादी पीट रहे हैं पर हाथी की सवारी से भी उन्हें परहेज नहीं। मेनका गांधी अपने लिए आंवला में जमीन तलाश रही हैं तो पीलीभीत का अपना पुस्तैनी क्षेत्र बेटे वरूण को सौंपने की कोशिश में हैं। इन दोनों इलाकों में बिना पार्टी नाम के उनके बैनर और पोस्टर अभी से दिखने लगे हैं।
लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बाद भाजपा द्वारा कराये गए सर्वे के मुताबिक, ‘‘उप्र में वह अधिकतम 2० और न्यूनतम छह सीटें जीत सकती है।’’ पार्टी के नौ सांसद हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के संन्यास की घोषणा और कलराज मिश्र के हाशिये पर जाने से बसपा मेें गये ब्राह्मïणों के मन में कोई आकर्षण पैदा नहीं कर पायी। बलिया लोकसभा उपचुनाव में जमानत ज_x008e_त होने के बाद भाजपा को बड़ी चुनौती से रूबरू होना पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसमें गुजरात प्रयोग दोहराना, आतंकवाद और मुख्यमंत्री मायावती होंगी। प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित गर्व से कहते हैं, ‘‘गुजरात के नतीजों से उत्साह बढ़ा हैं।’’ विहिप के केन्द्रीय मंत्री पुरूषो_x009e_ाम नारायण सिंह के मुताबिक,‘‘हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान पर लौटने में विलम्ब नहीं करना चाहिए।’’ प्रदेश प्रभारी अरूण जेटली कहते हैं, ‘‘उप्र में पार्टी की स्थिति सुधारना जटिल चुनौती है।’’ लेकिन राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य व पूर्व सांसद डा. राम विलास वेदांती इससे निपटने का रास्ता बताते हैं, ‘‘पार्टी कमान मोदी जैसे प्रखर हिन्दूवादी और रामभक्त नेता को सौंप दी जाये।’’ भाजपा के एक वरिष्ठï नेता के मुताबिक, ‘‘न_x008e_बे के दशक में हिन्दुत्व के प्रयोग के परिणाम ने तीन बार राज्य और केन्द्र की स_x009e_ाा दिलायी लेकिन सपा और बसपा के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा।’’ मतलब साफ है कि भाजपा चुनाव में राम जन्मभूमि आंदोलन की उर्वर भूमि में आतंकवाद के मार्फत हिन्दुत्व के एजेण्डे और महंगाई को हथियार बनाते हुए उतरेगी।
-योगेश मिश्र
लोकसभा चुनाव की तिथियां भले ही चुनाव आयोग की फाइलों में ही न उकेरी जा सकी हंो पर उ_x009e_ार प्रदेश में इस चुनाव के मद्ïदेनजर सभी सियासी दल अपने-अपने तरकश तेज करने में लग गये हैं। इसकी बड़ी वजह चुनाव आयोग का वह फरमान है जिसमें नये परिसीमन के तहत चुनाव कराये जाने का संकल्प जताया गया है। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की अमेठी और बुंदेलखंड की झांसी को छोडक़र बाकी सभी लोकसभा सीटों पर परिसीमन की गाज कुछ इस तरह गिरी है कि अपनी सीटों को अभेद्य सुरक्षा कवच मानने वाले पार्टी सुप्रीमो तक बेचैन दिख रहे हैं।
तैयारियों में सबसे मुस्तैद और सतर्क बसपा दिख रही है। पार्टी की केन्द्रीय चुनाव समिति ने तो लोकसभा चुनाव के लिए ‘मायावती को प्रधानमंत्री बनाओ’ अभियान के नाम से एक आडियो कैसेट भी तैयार कर ली है। रैलियों में इसके गीत- ‘हमें तो लूट लिया टाटा, बाटा, बिड़ला वालों ने, रिलायंस वालों ने बजाज वालों ने’ गूंजने लगे हैं। महाराष्टï्र के उल्हासनगर के डा. सुरेश गंवई बताते हैं, ‘‘ इसका वीडियो कैसेट भी तैयार हो रहा है।’’ मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की बसपाई गणित भी कमजोर नहीं है। अगर वह अपने विधानसभा के प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब हुई तो प्रदेश में 4० सीटें मिल सकती हैं । एनडीए और यूपीए की दावेदारी में 4०-5० सांसदों वाली पार्टी को अहमियत मिलना लाजमी है। सूत्रों की मानें तो, ‘‘मायावती की नजर 6० सांसद लोकसभा में भेजने की है।’’ इसी के मद्ïदेनजर वे अपने अश्वमेघ के घोड़े को दक्षिण भारतीय राज्यों में दौड़ा रही हंै। इन इलाकों में ईसाई दलितों और गुर्जरों के लिए आरक्षण और उप्र के सर्वसमाज के फार्मूले को अन्य राज्यों में लागू करना इसी रणनीति का हिस्सा है। मायावती ने अब तक तकरीबन 5० सीटों पर प्रभारी के रूप में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। गैर-परंपरागत क्षेत्रों में वे तमाम दलों के असंतुष्टï नेताओं को साध रही हैं। चुनाव आते-आते अगर मायावती के कुनबे में कांग्रेस के किसी दिग्गज नेता का खानदान, भाजपा के किसी महत्वपूर्ण नेता का सांसद सिपहसालार दिखे तो हैरत नहीं होनी चाहिए। सूत्रों पर भरोसा करें तो, ‘‘मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल के खिलाफ अगर माफिया बृजेश सिंह ताल ठोंकता नजर आये तो यह भी रणनीति का हिस्सा होगा।’’ यह बात दीगर है कि मायावती के वोट बैंक में सेंधमारी के लिए राम विलास पासवान की लोजपा और दलित नेता उदितराज की इंडियन जस्टिस पार्टी भी अपने तरकश तेज करती हुई गाहे-बगाहे दिख जाती है।
मायावती के सियासी गुलदस्ते में राजपूत वोट भी जुटाने की कवायद चल रही है। इसके लिए राजपूतों की सभा में मायावती को ‘असली क्षत्राणी’ से नवाजा जा रहा है। ठाकुर नेताओं को हाथी पर बिठाने की तैयारी हो रही है। अमर सिंह के सिपहसालार रहे सीएन सिंह और भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह को जबाब देने के लिए कांग्रेसी विधायक रहे बाहुबली लल्ला भय्या को बसपा खेमे में लाकर खड़ा कर दिया गया है। कई और ठाकुर नेता बसपा के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं।
लेकिन जिस तरह मायावती के अफसर कारिन्दे यादवों के पीछे पड़े हैं, उससे मुलायम सिंह यादव को खुद-ब-खुद बढ़त हासिल हो रही है। जिस तरह दलित वोटों पर मायावती का एकाधिकार है, कुछ-कुछ उसी तरह उत्पीडऩ के इस दौर में यादव वोटों पर मुलायम सिंह का प्रभुत्व दिख रहा है। पर तमाम कोशिशों के बावजूद मायावती उनके मुस्लिम वोटबैंक पर सेंध लगाने में कामयाब नहीं हो सकी हैं। मुलायम 27 फीसदी जनाधार वाले पिछड़ी जातियों की एकजुटता में लगे हैं। उन्हें समझा रहे हैं, ‘‘पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक होने के बाद भी सपा को छोडक़र सभी सरकारों ने उनकी उपेक्षा की। नौकरियों और सत्ता में समुचित भागीदारी नहीं दी। सपा ने ही उनके मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए हर प्रयास किया है। विश्वकर्मा, प्रजापति, सविता, चौरसिया, साहू, भुर्जी, चौहान जातियों के लोगों को मंत्री बनाया।’’ यद्यपि वैट लागू करना माया सरकार की मजबूरी थी लेकिन मुलायम इसे लेकर भी व्यापारियों को अपना बनाने में लग गये हैं। तीसरे मोर्च की शक्ल में मुलायम सिंह यादव ओम प्रकाश चौटाला, चंद्रबाबू नायडू, फारूख अ_x008e_दुल्ला को लेकर यूएनपीए की रैलियां करने में जुटे हैं। फारूख के मार्फत अल्पसंख्यकों को तथा चौटाला के माध्यम से जाटों को रिझाने की कोशिश हो रही है। बीते विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद तकरीबन 3० फीसदी वोट हासिल किये थे जबकि मायावती को 34 फीसदी मत मिले थे। पर मायावती और मुलायम की सियासी रणनीति यह है कि वे गैर-कांग्रेसवाद का विकल्प बनें। दोनों कांग्रेस और भाजपा से बराबर दूरी बनाये हुए भी दिखना चाहते हैं। हालांकि कई कानूनी एवं अदालती पचड़ों के चलते इन दोनों नेताओं को केन्द्र की रहमोकरम की दरकार है। तभी कभी कांग्रेस पर हत्या का कुचक्र रचने का आरोप जड़ती हुई मायावती अगले हफ्ते संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ भोज में भी शरीक हो जाती हैं। मुलायम सिंह की पार्टी के कई नेता कांग्रेस के दूसरी पायदान के नेताओं के साथ गलबहियां करते दिखते हैं पर यह विवशता सिर्फ बसपा और सपा सुप्रीमो की हो, यह अर्धसत्य है। कड़वी सच्चाई यह है कि कांग्रेस को भी राज्य में अपनी खोयी जमीन पाने के लिए किसी वटवृक्ष की दरकार है। तभी तो जिस दिन राज्य में कांग्रेस मायावती से हिसाब मांगो अभियान की शुरूआत करती है, उसी दिन बसपा सुप्रीमो को भोज का आमंत्रण मिल जाता है। राज्य को विशेष पैकेज देने के नाम पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ी करने वाली मायावती को प्रधानमंत्री मनमोहन इतनी बड़ी धनराशि थमा देते हैं ताकि उसका मुंह बंद रह सके। मुलायम और मायावती से ‘तुम्ही से मुह_x008e_बत, तुम्ही से लड़ाई’ रिश्ता रखने वाली कांग्रेस न तो दलित नेताओं को तरजीह दे पा रही है, न ही पिछड़े वर्ग के रहनुमाओं को। तभी तो राज्य इकाई के अध्यक्ष और सदन के नेता दोनों कुर्सियों पर ब्राह्मïण नेता बैठा दिये गये हैं। हद तो यह है कि संगठनों के सभी शीर्ष पदों पर इसी जाति के लोग काबिज हैं। बहन मायावती के मुकाबले जिस ‘छोटी बहन’ रीता बहुगुणा जोशी को कांग्रेस ने उतारा है, वह खुद ही इलाहाबाद के एक जमीन घोटाले की चपेट में आ गयी हैं। लोकसभा चुनाव की सबसे सुस्त तैयारी सन्निपात में पड़ी कांग्रेस में देखने को मिल रही है। प्रदेश अध्यक्ष का जब गोरखपुर के लिए दौरा लगता है तो महासचिव डा. सैय्यद जमाल और जिला अध्यक्ष संजीव सिंह दोनों नदारद रहते हैं।
मंत्री बनने के बाद कांग्रेस के सांसद महावीर प्रसाद, अखिलेश दास, श्रीप्रकाश जायसवाल से उम्मीद थी कि इनके इलाकों में कांग्रेस संगठन मजबूत होगा पर वहां भी हालत खराब है। राज्य में कांग्रेस का पूरा संघर्ष सिर्फ बयानों तक सीमित रह गया है। महासचिव राहुल गांधी समय तो दे रहे हैं पर उनकी कोशिशें कांग्रेसी फेफड़े में आक्सीजन भरने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, ‘‘उप्र के राजनीतिक अखाड़े में तो सिर्फ कांग्रेस और बसपा ही है।’’ राहुल गांधी के मार्फत स_x009e_ाा संजीवनी की तलाश कितनी परवान चढ़ी, यह विधानसभा चुनाव में हुए रोड शो और दौरों के परिणाम से समझी जा सकती है। सांसदी बचाने के चक्कर में कभी मुलायम के सखा रहे बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस के बैनर तले उतरने की मुनादी पीट रहे हैं पर हाथी की सवारी से भी उन्हें परहेज नहीं। मेनका गांधी अपने लिए आंवला में जमीन तलाश रही हैं तो पीलीभीत का अपना पुस्तैनी क्षेत्र बेटे वरूण को सौंपने की कोशिश में हैं। इन दोनों इलाकों में बिना पार्टी नाम के उनके बैनर और पोस्टर अभी से दिखने लगे हैं।
लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बाद भाजपा द्वारा कराये गए सर्वे के मुताबिक, ‘‘उप्र में वह अधिकतम 2० और न्यूनतम छह सीटें जीत सकती है।’’ पार्टी के नौ सांसद हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के संन्यास की घोषणा और कलराज मिश्र के हाशिये पर जाने से बसपा मेें गये ब्राह्मïणों के मन में कोई आकर्षण पैदा नहीं कर पायी। बलिया लोकसभा उपचुनाव में जमानत ज_x008e_त होने के बाद भाजपा को बड़ी चुनौती से रूबरू होना पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसमें गुजरात प्रयोग दोहराना, आतंकवाद और मुख्यमंत्री मायावती होंगी। प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित गर्व से कहते हैं, ‘‘गुजरात के नतीजों से उत्साह बढ़ा हैं।’’ विहिप के केन्द्रीय मंत्री पुरूषो_x009e_ाम नारायण सिंह के मुताबिक,‘‘हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान पर लौटने में विलम्ब नहीं करना चाहिए।’’ प्रदेश प्रभारी अरूण जेटली कहते हैं, ‘‘उप्र में पार्टी की स्थिति सुधारना जटिल चुनौती है।’’ लेकिन राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य व पूर्व सांसद डा. राम विलास वेदांती इससे निपटने का रास्ता बताते हैं, ‘‘पार्टी कमान मोदी जैसे प्रखर हिन्दूवादी और रामभक्त नेता को सौंप दी जाये।’’ भाजपा के एक वरिष्ठï नेता के मुताबिक, ‘‘न_x008e_बे के दशक में हिन्दुत्व के प्रयोग के परिणाम ने तीन बार राज्य और केन्द्र की स_x009e_ाा दिलायी लेकिन सपा और बसपा के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा।’’ मतलब साफ है कि भाजपा चुनाव में राम जन्मभूमि आंदोलन की उर्वर भूमि में आतंकवाद के मार्फत हिन्दुत्व के एजेण्डे और महंगाई को हथियार बनाते हुए उतरेगी।
-योगेश मिश्र
Next Story