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सडक़ पर साहिबान
दिनांक : ०1.०4. 2००8
जब आईएएस एसोसिएशन की बैठक में अपने खिलाफ माहौल होने की आशंका के बावजूद नीरा यादव ने बैठक बुलाने का फैसला किया था। तब तक उन्हें इस बात का शायद ही अंदेशा रहा होगा कि विरोध की हवायें उनके लिये ऐसा बवंडर बन जायेंगी, जिससे उन्हें उस कैडर से ही विदाई लेनी पड़ेगी जिसकी अध्यक्षता के लिये वे पहले से हारी हुई लड़ाई लड़ रही थीं। मगर 48 घंटों के भीतर उन्हें उस सच के हाथों पराजित होना पड़ा जिसे झुठलाने की कोशिश वे पिछले 11 साल पहले से कर रहीं थीं। जब संवर्ग की एक जमात ने उन्हें गुप्त मतदान के मार्फत महाभ्रष्टïों की सूची में रखा था।
राज्य की नौकरशाही में निरंतर बढ़ रहे भ्रष्टïाचार को लेकर यूं तो यदा-कदा आवाजें उठती रही हैं। पर 1996 में आईएएस अफसरों ने एकजुट होकर अपने ही संवर्ग के तीन महाभ्रष्टïों को एसोसिएशन की सामान्य सभा में वोटिंग के मार्फत चुना। जिनमें अखंड प्रताप सिंह, बृजेंद्र और नीरा यादव प्रमुख थे। हालांकि इस चुनाव की वैधानिकता को लेकर कई सवाल खड़े हुये। क्योंकि इस चयन में युवा तुर्क अफसरों ने यह सीमा खींच रखी थी कि कम से कम सौ वोट पाने वालों के नाम का खुलासा होगा। पर ऐसा न होने की स्थिति में भी अफसरों ने मतदान के मार्फत छांटे गये तीन महाभ्रष्टïों की सूची तत्कालीन मुख्य सचिव को कार्रवाई के लिये भेज दी। उस समय भले ही इस तरह के चयन को लेकर संवर्ग के अफसरों को सिरफिरा कहा जा रहा था पर बीते 12 सालों पर गौर करें तो तीनों अफसरों की अकूत संप_x009e_िा, बेनामी संप_x009e_िा और इन पर सीबीआई से लेकर विभागीय, सतर्कताऔर आर्थिक अनुसंधान शाखा की जांचों की फेहरिश्त बताती है कि वह चयन बेवजह और बेजा नहीं था। पर यह जरूर है कि तब से लगातार देश के इस सबसे बड़े संवर्ग में भ्रष्टïाचार, कदाचार और अराजकता का घुन इस तरह लग गया है कि तकरीबन 5०० के कॉडर स्ट्रेंथ में से 5० ऐसे लोग बचे होंगे जिन्हें लेकर ईमानदारी की दुहाई दी जा सकती है। यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि तकरीबन आधा दर्जन अफसर सीबीआई जांच की जद में हैं। महाभ्रष्टïों के साथ ही इनमें देवद_x009e_ा, राजीव कुमार, आरके शर्मा, डीएस बग्गा, राकेश बहादुर के नाम भी हैं। गौरतलब है कि बग्गा, सिंह और यादव सेवामुक्त हो चुके हैं। पिछले विधानसभा सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था, ‘‘आईएएस संवर्ग के 22 अफसरों के खिलाफ सतर्कता जांचें लंबित हैं।’’ अगर सतर्कता आयोग की फाइलें पलटें तो उसकी जांच की जद में आये अफसरों की तादाद चार दर्जन से अधिक है। इनमें कुछ को विभागीय कार्रवाई से छोटे-मोटे दंड देकर राहत दे दी गयी या फिर जोड़-जुगाड़ के चलते उन्हें राहत मिल गयी।
राज्य में ब्यूरोक्रेसी के राजनीतिकरण का प्रस्थान बिन्दु स_x009e_ार का दशक था। अस्सी के दशक में ब्यूरोक्रेसी की शक्ल बदली। धीरे-धीरे राजनीतिकरण ने जातिवाद का दामन थाम लिया। तबादलों की मार ने नौकरशाहों को नेताओं के आगे झुकने को विवश किया। चूंकि राज्य की राजनीति मुलायम और मायावती के बीच दो पाटों में बंटी है तो ऐसे में नौकरशाही को भी इन दोनों नेताओं के रहमोकरम का इंतजार रहता है। वे भी इनके आम और खास होते, बनते दिखते हैं। कृषि उत्पादन आयुक्त अनीस अंसारी के खिलाफ सरकारी मकान के व्यवसायिक उपयोग का मामला उठता है तो वे स्पष्टïीकरण देने में यह लिखना नहीं भूलते हैं कि, ‘‘मैं अल्पसंख्यक समुदाय से आता हूँ। चीफ सेक्रेटरी बनने की लाइन में हूं। इसलिए सांप्रदायिक व जातिवादी ताकतें मुझे महत्वपूर्ण पद से हटवाना चाहती हैं।’’
संवर्ग की इन दुश्वारियों और निरंतर गिर रही साख को बचाने के लिये युवा तुर्क आईएएस अफसरों ने जो अभियान चलाया था उसे बेवजह नहीं कहा जा सकता था। लेकिन इन लोगों ने भी तमाम नियमों और परंपराओं की अनदेखी की। एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर संघ का वरिष्ठïतम सदस्य होता है बशर्ते वह मुख्य सचिव के पद पर काबिज न हो अथवा उस सदस्य ने खुद मना न कर दिया हो। आईएएस एसोसिएशन के सचिव संजय भूसरेड्ïडी कहते हैं, ‘‘बैठक निरस्त होने के बावत 25 फरवरी को ही सबको बता दिया गया था।’’ लेकिन नये अध्यक्ष विनोद मल्होत्रा और चंद्रभानु मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। पर 1979 बैच के अफसर विजय शंकर पांडे की अध्यक्षता में संजय भूसरेडडी द्वारा बुलाई गयी कार्यकारिणी, जो निरस्त कर दी गयी थी, की पूर्व निर्धारित तिथि पर ही संपन्न की गयी बैठक को लेकर व्यापक प्रतिक्रिया हुई। नीरा यादव ने इस झमले से निजात पाने के लिए स्वेच्छिक सेवा निवृ_x009e_िा लेना मुफीद समझा। इस तरह नीरा यादव को पदच्युत करने की मुहिम इस संवर्ग से ही बेदखल करवाने में कामयाब हो गयी। पर भूसरेड्ïडी को हटाया जाना इसलिए भी नहीं भाया क्योंकि वे भी ईमानदार अफसरों में ही शुमार किये जाते हैं। पिछले चार वर्षों से निर्विरोध सचिव चयनित होते आ रहे हैं। हालांकि विनोद मल्होत्रा ने निरस्त कार्यकारिणी की बैठक में ही अपने चयन को जायज नहीं ठहराया। सूत्रों के मुताबिक, ‘‘महाभ्रष्टï की सूची में होने के चलते नीरा यादव को हटाकर अध्यक्ष बनाये जाने की सूचना देने जब लोग गये तो मेहरोत्रा ने अपने संवर्ग के अफसरों को प्रस्ताव स्वीकार करने की जगह ढेर सारी नसीहत दी।’’ अब जब नीरा यादव स्वैच्छिक सेवानिवृ_x009e_िा ले चुकी हैं तो ऐसे में महाभ्रष्टïों के चयन के अभियानकर्ताओं के मनोबल जरूर ऊंचे हैं पर जिस तरह उन्होंने मुख्य सचिव को तीन पेज की चिट्ïठी भी इस्तीफे के साथ थमायी है। उससे साफ है कि नीरा यादव संवर्ग की तमाम अनियमिततायें भी खोलना चाहती हैं। उनके खत से झलकता है, ‘‘वह बाहर रहकर जदï्ïदोजहद जारी रखेंगी।’’ ऐसे में जिस संवर्ग को नेताओं की तमाम ज्यादतियों से निपटने के लिये अपनी ऊर्जा लगानी चाहिये। वह खुद अपने ही लोगों से दो-दो हाथ करने पर अमादा है।
-योगेश मिश्र
जब आईएएस एसोसिएशन की बैठक में अपने खिलाफ माहौल होने की आशंका के बावजूद नीरा यादव ने बैठक बुलाने का फैसला किया था। तब तक उन्हें इस बात का शायद ही अंदेशा रहा होगा कि विरोध की हवायें उनके लिये ऐसा बवंडर बन जायेंगी, जिससे उन्हें उस कैडर से ही विदाई लेनी पड़ेगी जिसकी अध्यक्षता के लिये वे पहले से हारी हुई लड़ाई लड़ रही थीं। मगर 48 घंटों के भीतर उन्हें उस सच के हाथों पराजित होना पड़ा जिसे झुठलाने की कोशिश वे पिछले 11 साल पहले से कर रहीं थीं। जब संवर्ग की एक जमात ने उन्हें गुप्त मतदान के मार्फत महाभ्रष्टïों की सूची में रखा था।
राज्य की नौकरशाही में निरंतर बढ़ रहे भ्रष्टïाचार को लेकर यूं तो यदा-कदा आवाजें उठती रही हैं। पर 1996 में आईएएस अफसरों ने एकजुट होकर अपने ही संवर्ग के तीन महाभ्रष्टïों को एसोसिएशन की सामान्य सभा में वोटिंग के मार्फत चुना। जिनमें अखंड प्रताप सिंह, बृजेंद्र और नीरा यादव प्रमुख थे। हालांकि इस चुनाव की वैधानिकता को लेकर कई सवाल खड़े हुये। क्योंकि इस चयन में युवा तुर्क अफसरों ने यह सीमा खींच रखी थी कि कम से कम सौ वोट पाने वालों के नाम का खुलासा होगा। पर ऐसा न होने की स्थिति में भी अफसरों ने मतदान के मार्फत छांटे गये तीन महाभ्रष्टïों की सूची तत्कालीन मुख्य सचिव को कार्रवाई के लिये भेज दी। उस समय भले ही इस तरह के चयन को लेकर संवर्ग के अफसरों को सिरफिरा कहा जा रहा था पर बीते 12 सालों पर गौर करें तो तीनों अफसरों की अकूत संप_x009e_िा, बेनामी संप_x009e_िा और इन पर सीबीआई से लेकर विभागीय, सतर्कताऔर आर्थिक अनुसंधान शाखा की जांचों की फेहरिश्त बताती है कि वह चयन बेवजह और बेजा नहीं था। पर यह जरूर है कि तब से लगातार देश के इस सबसे बड़े संवर्ग में भ्रष्टïाचार, कदाचार और अराजकता का घुन इस तरह लग गया है कि तकरीबन 5०० के कॉडर स्ट्रेंथ में से 5० ऐसे लोग बचे होंगे जिन्हें लेकर ईमानदारी की दुहाई दी जा सकती है। यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि तकरीबन आधा दर्जन अफसर सीबीआई जांच की जद में हैं। महाभ्रष्टïों के साथ ही इनमें देवद_x009e_ा, राजीव कुमार, आरके शर्मा, डीएस बग्गा, राकेश बहादुर के नाम भी हैं। गौरतलब है कि बग्गा, सिंह और यादव सेवामुक्त हो चुके हैं। पिछले विधानसभा सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था, ‘‘आईएएस संवर्ग के 22 अफसरों के खिलाफ सतर्कता जांचें लंबित हैं।’’ अगर सतर्कता आयोग की फाइलें पलटें तो उसकी जांच की जद में आये अफसरों की तादाद चार दर्जन से अधिक है। इनमें कुछ को विभागीय कार्रवाई से छोटे-मोटे दंड देकर राहत दे दी गयी या फिर जोड़-जुगाड़ के चलते उन्हें राहत मिल गयी।
राज्य में ब्यूरोक्रेसी के राजनीतिकरण का प्रस्थान बिन्दु स_x009e_ार का दशक था। अस्सी के दशक में ब्यूरोक्रेसी की शक्ल बदली। धीरे-धीरे राजनीतिकरण ने जातिवाद का दामन थाम लिया। तबादलों की मार ने नौकरशाहों को नेताओं के आगे झुकने को विवश किया। चूंकि राज्य की राजनीति मुलायम और मायावती के बीच दो पाटों में बंटी है तो ऐसे में नौकरशाही को भी इन दोनों नेताओं के रहमोकरम का इंतजार रहता है। वे भी इनके आम और खास होते, बनते दिखते हैं। कृषि उत्पादन आयुक्त अनीस अंसारी के खिलाफ सरकारी मकान के व्यवसायिक उपयोग का मामला उठता है तो वे स्पष्टïीकरण देने में यह लिखना नहीं भूलते हैं कि, ‘‘मैं अल्पसंख्यक समुदाय से आता हूँ। चीफ सेक्रेटरी बनने की लाइन में हूं। इसलिए सांप्रदायिक व जातिवादी ताकतें मुझे महत्वपूर्ण पद से हटवाना चाहती हैं।’’
संवर्ग की इन दुश्वारियों और निरंतर गिर रही साख को बचाने के लिये युवा तुर्क आईएएस अफसरों ने जो अभियान चलाया था उसे बेवजह नहीं कहा जा सकता था। लेकिन इन लोगों ने भी तमाम नियमों और परंपराओं की अनदेखी की। एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर संघ का वरिष्ठïतम सदस्य होता है बशर्ते वह मुख्य सचिव के पद पर काबिज न हो अथवा उस सदस्य ने खुद मना न कर दिया हो। आईएएस एसोसिएशन के सचिव संजय भूसरेड्ïडी कहते हैं, ‘‘बैठक निरस्त होने के बावत 25 फरवरी को ही सबको बता दिया गया था।’’ लेकिन नये अध्यक्ष विनोद मल्होत्रा और चंद्रभानु मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। पर 1979 बैच के अफसर विजय शंकर पांडे की अध्यक्षता में संजय भूसरेडडी द्वारा बुलाई गयी कार्यकारिणी, जो निरस्त कर दी गयी थी, की पूर्व निर्धारित तिथि पर ही संपन्न की गयी बैठक को लेकर व्यापक प्रतिक्रिया हुई। नीरा यादव ने इस झमले से निजात पाने के लिए स्वेच्छिक सेवा निवृ_x009e_िा लेना मुफीद समझा। इस तरह नीरा यादव को पदच्युत करने की मुहिम इस संवर्ग से ही बेदखल करवाने में कामयाब हो गयी। पर भूसरेड्ïडी को हटाया जाना इसलिए भी नहीं भाया क्योंकि वे भी ईमानदार अफसरों में ही शुमार किये जाते हैं। पिछले चार वर्षों से निर्विरोध सचिव चयनित होते आ रहे हैं। हालांकि विनोद मल्होत्रा ने निरस्त कार्यकारिणी की बैठक में ही अपने चयन को जायज नहीं ठहराया। सूत्रों के मुताबिक, ‘‘महाभ्रष्टï की सूची में होने के चलते नीरा यादव को हटाकर अध्यक्ष बनाये जाने की सूचना देने जब लोग गये तो मेहरोत्रा ने अपने संवर्ग के अफसरों को प्रस्ताव स्वीकार करने की जगह ढेर सारी नसीहत दी।’’ अब जब नीरा यादव स्वैच्छिक सेवानिवृ_x009e_िा ले चुकी हैं तो ऐसे में महाभ्रष्टïों के चयन के अभियानकर्ताओं के मनोबल जरूर ऊंचे हैं पर जिस तरह उन्होंने मुख्य सचिव को तीन पेज की चिट्ïठी भी इस्तीफे के साथ थमायी है। उससे साफ है कि नीरा यादव संवर्ग की तमाम अनियमिततायें भी खोलना चाहती हैं। उनके खत से झलकता है, ‘‘वह बाहर रहकर जदï्ïदोजहद जारी रखेंगी।’’ ऐसे में जिस संवर्ग को नेताओं की तमाम ज्यादतियों से निपटने के लिये अपनी ऊर्जा लगानी चाहिये। वह खुद अपने ही लोगों से दो-दो हाथ करने पर अमादा है।
-योगेश मिश्र
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