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मायावती बहुजन से सर्वजन
दिनांक : ०8.०4.2००8
तेजी, तैश और तुर्शी कभी व्यक्तित्व की पहचान थे। अब केवल तेजी बची है। पहले का गुस्सा मुस्कान में बदल गया है।
अब मनुवाद की बात करने से कतराती हैं।
पहले बसपा विधायकों को जमीन पर बिठाती थीं। अब उनके लिये कुर्सियां आ गई हैं।
राजनैतिक दूरदर्शिता बढ़ी है। मगर महीन अक्षर पढऩे के लिए चश्मा लगाने लगी हैं।
पहले दफ्तर में आपाधापी थी, अब कारपोरेट कल्चर का बोलबाला है।
किसी बात की समीक्षा करते हुए केवल बोलती नहीं, सुनती भी हैं। नोट्ïस लेती हैं। लोगों को उत्साहित करती हैं।
कान का कच्चापन कम हुआ है और बालियां भी।
पहले बात-बात में सरकार को कुर्बान करने पर आमादा हो जाती थीं, अब परवाह करने लगी हैं।
बालों का शिल्प बदल गया है।
तू तड़ाक बंद है। तुम कहने लगी हैं।
हालांकि राखी के रिश्ते उनके बदल गये हैं।
चुस्ती-फुर्ती बढ़ गई है। प्रशासन में भी।
काजू, अखरोट न पहले खाती थीं, न अब।
कुरमुरी भिन्डी पसंदीदा डिश है। धूल से एलर्जी है। कोई खुश्बू भी बर्दाश्त नहीं।
कारपेट होटल में भी नहीं होना चाहिये।
गाढ़े रंगों की पसंद हल्के शेड्ïस पर आकर ठहर गई है।
ज्योतिषियों पर भरोसा करने लगी हैं।
आईएएस अफसरों से अधिक आईपीएस अफसर उनकी पसंद और भरोसे के पात्र हैं।
अभी तक उनकी एक मूर्ति थी, अब अपनी छह मूर्तियां लगवा रही हैं।
अपनी छवि के प्रति मायावती और अधिक सतर्क हुई हैं। यही वजह है कि ‘बहनजी’ ‘मायावती’ और ‘कुमारी बहनजी मायावती’ सरीखे नाम मुंबई के निर्माता एसोसिएशन द्वारा पंजीकृत करा लेने के बाद भी हिदायत है कि सिनेमाई पर्दे पर उनकी जिंदगी का एक-एक शॉट बिना उनके देखे उतारा न जाये।
सचिवों की फौज पर भरोसा कायम है। 11 आईएएस, दो पीसीएस अफसर, 12 निजी सचिव और विशेष कार्याधिकारी बदस्तूर काम में जुटे हैं।
नौकरशाहों में दो ही दलित हैं।
-योगेश मिश्र
तेजी, तैश और तुर्शी कभी व्यक्तित्व की पहचान थे। अब केवल तेजी बची है। पहले का गुस्सा मुस्कान में बदल गया है।
अब मनुवाद की बात करने से कतराती हैं।
पहले बसपा विधायकों को जमीन पर बिठाती थीं। अब उनके लिये कुर्सियां आ गई हैं।
राजनैतिक दूरदर्शिता बढ़ी है। मगर महीन अक्षर पढऩे के लिए चश्मा लगाने लगी हैं।
पहले दफ्तर में आपाधापी थी, अब कारपोरेट कल्चर का बोलबाला है।
किसी बात की समीक्षा करते हुए केवल बोलती नहीं, सुनती भी हैं। नोट्ïस लेती हैं। लोगों को उत्साहित करती हैं।
कान का कच्चापन कम हुआ है और बालियां भी।
पहले बात-बात में सरकार को कुर्बान करने पर आमादा हो जाती थीं, अब परवाह करने लगी हैं।
बालों का शिल्प बदल गया है।
तू तड़ाक बंद है। तुम कहने लगी हैं।
हालांकि राखी के रिश्ते उनके बदल गये हैं।
चुस्ती-फुर्ती बढ़ गई है। प्रशासन में भी।
काजू, अखरोट न पहले खाती थीं, न अब।
कुरमुरी भिन्डी पसंदीदा डिश है। धूल से एलर्जी है। कोई खुश्बू भी बर्दाश्त नहीं।
कारपेट होटल में भी नहीं होना चाहिये।
गाढ़े रंगों की पसंद हल्के शेड्ïस पर आकर ठहर गई है।
ज्योतिषियों पर भरोसा करने लगी हैं।
आईएएस अफसरों से अधिक आईपीएस अफसर उनकी पसंद और भरोसे के पात्र हैं।
अभी तक उनकी एक मूर्ति थी, अब अपनी छह मूर्तियां लगवा रही हैं।
अपनी छवि के प्रति मायावती और अधिक सतर्क हुई हैं। यही वजह है कि ‘बहनजी’ ‘मायावती’ और ‘कुमारी बहनजी मायावती’ सरीखे नाम मुंबई के निर्माता एसोसिएशन द्वारा पंजीकृत करा लेने के बाद भी हिदायत है कि सिनेमाई पर्दे पर उनकी जिंदगी का एक-एक शॉट बिना उनके देखे उतारा न जाये।
सचिवों की फौज पर भरोसा कायम है। 11 आईएएस, दो पीसीएस अफसर, 12 निजी सचिव और विशेष कार्याधिकारी बदस्तूर काम में जुटे हैं।
नौकरशाहों में दो ही दलित हैं।
-योगेश मिश्र
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