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अमर पर माया का वार
दिनांक : 28.०4.2००8
विधानसभा चुनाव के दौरान मायावती ने लोगों को मुलायम और अमरसिंह को जेल भेजने की बात कहकर लामबंद की थी। पर चुनाव परिणामों के बाद अपनी पहली रैली में मायावती ने यह कहकर, ‘‘मरे को क्या मारना’’ अपने पुराने कहे से पल्ला छुड़ा लिया था। लेकिन अब जब सपाइयों पर शिकंजे कसे जा रहे हैं तो साफ है कि मायावती का यह कहना सिर्फ राजनीतिक बयान था। रोज-बरोज वे किसी न किसी सपा समर्थक की गर्दन नापती नजर आती हैं। कभी अमिताभ बच्चन, कभी शिवपाल सिंह यादव तो कभी अमरङ्क्षसह उनके निशाने पर रहते हैं। यह बात दीगर है कि उनको सजा देने के लिए मायावती की सरकार उनके ही किसी न किसी कारनामे को हथियार बनाती है। इन दिनों समाजवादी पार्टी के महासचिव अमरङ्क्षसह की गर्दन लखनऊ विकास प्राधिकरण के एक भू आवंटन के मामले में माया सरकार के हाथों में नजर आ रही है। इस आवंटन के लिए अमरसिंह ने जाने-माने अंग्रेजी अखबार के डायरेक्टर के पैड पर 25.3.1993 को 35 वर्गमीटर के दुर्बल आय वर्ग स्कीम के तहत भूखंड आवंटन करने का आवेदन किया था। गौरतलब है कि उस समय राज्य में मुलायम सरकार थी। तकरीबन एक साल बाद 28.3.1994 को मुलायम के सचिव पीएल पुनिया ने प्राधिकरण के अध्यक्ष अनिल गुप्ता को अमरसिंह के आवेदन पर कार्य करने को कहा। 26.6.1994 को दुर्बल आय वर्ग स्कीम के तहत ई-5/445 नंबर का भूखंड आवंटित हुआ। 15 दिन बाद अमरसिंह ने प्राधिकरण उपाध्यक्ष को इत्तला दी कि इस भूखंड के आवंटन के कागजात खो गये हैं। साथ ही यह भी निवेदन कर डाला कि उन्हें गोमतीनगर की किसी योजना में 2०० वर्गमीटर का भूखंड आवंटित किया जाय। 26.7.1994 को विपुल खंड में 288 वर्गमीटर का भूखंड उन्हें थमा दिया गया। पर फिर 16.8.1994 को अमरसिंह ने प्राधिकरण से कहा, ‘‘मेरी जरूरत इस भूखंड से पूरी नहीं होती है। 4००-5०० वर्गमीटर भूखंड की आवश्यकता है।’’ 26.9.1994 को उनकी जरूरत स्वीकारते हुए विपुल खंड में 2/13 नंबर का 354.25 वर्गमीटर भूखंड उन्हें आवंटित हुआ। जिसके लिए उन्होंने दस लाख रूपये भी जमा किये। मुलायम की पिछली सरकार में इस जमीन पर अमरसिंह ने एक आलीशान बंगला तामीर करवाया। अपने सखा अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या के नाम पर बने इस बंगले के गृह प्रवेश में बच्चन का पूरा कुनबा हाजिर हुआ था। पर मायावती सरकार ने अमरसिंह के दुर्बल आय वर्ग स्कीम में भूखंड मांगने के आवेदन-पत्र सहित पूरे मामले की जांच शुरू करा दी है। जांच प्रमुख सचिव स्तर के दलित ईमानदार अफसर एसआर लाखा के हवाले है। इस जांच में मायावती की रूचि इसलिए भी है क्योंकि वह एक तीर से दो निशाने साध सकती हैं। अमरसिंह ने जब भूखंड का आवेदन दिया था, तब वे केंद्रीय कांग्रेस पार्टी के इलेक्टेड मेम्बर हुआ करते थे। मायावती सपा, अमरसिंह और कांग्रेस तीनों से इस बहाने हिसाब-किताब चुकता करने में कामयाब हो सकती हैं। हालांकि अमरसिंह के वकील प्रदीप राय कहते हैं, ‘‘अमरसिंह ने कोई गलती नहीं की। आखिर उन्होंने निर्बल आय वर्ग में प्लाट आवंटित नहीं कराया। वह लिखते रहे कि मैं हिंदुस्तान टाइम्स का डायरेक्टर हूं। 15०० प्लाट ऐसे हैं जिन्हें मायावती ने दोबारा आवंटित किया है। क्या वह अपने प्लाटों की जांच करायेंगी?’’ पीएल पुनिया बताते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री के सचिव के तौर पर मेरा रोल सिर्फ इतना था कि जो भी आवेदन आए उसे संबंधित विभाग में भेज दिया जाय। भेजते समय मुख्यमंत्री सचिवालय का अफसर चिट्ïठी पर हस्ताक्षर करता है। मैं न तो आवंटन करने वाला हूँ। न ही मैं आवंटन जारी किया है। मेरा कोई दोष नहीं है।’’ सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, ‘‘मामूली मामलों में जांच बिठा दी गई है। खुद सैकड़ों करोड़ रूपये कमीशन खोरी में निगल गयीं। उसकी क्यों नहीं जांच कराई जाती है।’’ पर इस मामले की फाइल हर जगह से नदारद है। इसलिए सरकार को भी अपने विरोधियों की नकेल कसने में लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं।
-योगेश मिश्र
विधानसभा चुनाव के दौरान मायावती ने लोगों को मुलायम और अमरसिंह को जेल भेजने की बात कहकर लामबंद की थी। पर चुनाव परिणामों के बाद अपनी पहली रैली में मायावती ने यह कहकर, ‘‘मरे को क्या मारना’’ अपने पुराने कहे से पल्ला छुड़ा लिया था। लेकिन अब जब सपाइयों पर शिकंजे कसे जा रहे हैं तो साफ है कि मायावती का यह कहना सिर्फ राजनीतिक बयान था। रोज-बरोज वे किसी न किसी सपा समर्थक की गर्दन नापती नजर आती हैं। कभी अमिताभ बच्चन, कभी शिवपाल सिंह यादव तो कभी अमरङ्क्षसह उनके निशाने पर रहते हैं। यह बात दीगर है कि उनको सजा देने के लिए मायावती की सरकार उनके ही किसी न किसी कारनामे को हथियार बनाती है। इन दिनों समाजवादी पार्टी के महासचिव अमरङ्क्षसह की गर्दन लखनऊ विकास प्राधिकरण के एक भू आवंटन के मामले में माया सरकार के हाथों में नजर आ रही है। इस आवंटन के लिए अमरसिंह ने जाने-माने अंग्रेजी अखबार के डायरेक्टर के पैड पर 25.3.1993 को 35 वर्गमीटर के दुर्बल आय वर्ग स्कीम के तहत भूखंड आवंटन करने का आवेदन किया था। गौरतलब है कि उस समय राज्य में मुलायम सरकार थी। तकरीबन एक साल बाद 28.3.1994 को मुलायम के सचिव पीएल पुनिया ने प्राधिकरण के अध्यक्ष अनिल गुप्ता को अमरसिंह के आवेदन पर कार्य करने को कहा। 26.6.1994 को दुर्बल आय वर्ग स्कीम के तहत ई-5/445 नंबर का भूखंड आवंटित हुआ। 15 दिन बाद अमरसिंह ने प्राधिकरण उपाध्यक्ष को इत्तला दी कि इस भूखंड के आवंटन के कागजात खो गये हैं। साथ ही यह भी निवेदन कर डाला कि उन्हें गोमतीनगर की किसी योजना में 2०० वर्गमीटर का भूखंड आवंटित किया जाय। 26.7.1994 को विपुल खंड में 288 वर्गमीटर का भूखंड उन्हें थमा दिया गया। पर फिर 16.8.1994 को अमरसिंह ने प्राधिकरण से कहा, ‘‘मेरी जरूरत इस भूखंड से पूरी नहीं होती है। 4००-5०० वर्गमीटर भूखंड की आवश्यकता है।’’ 26.9.1994 को उनकी जरूरत स्वीकारते हुए विपुल खंड में 2/13 नंबर का 354.25 वर्गमीटर भूखंड उन्हें आवंटित हुआ। जिसके लिए उन्होंने दस लाख रूपये भी जमा किये। मुलायम की पिछली सरकार में इस जमीन पर अमरसिंह ने एक आलीशान बंगला तामीर करवाया। अपने सखा अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या के नाम पर बने इस बंगले के गृह प्रवेश में बच्चन का पूरा कुनबा हाजिर हुआ था। पर मायावती सरकार ने अमरसिंह के दुर्बल आय वर्ग स्कीम में भूखंड मांगने के आवेदन-पत्र सहित पूरे मामले की जांच शुरू करा दी है। जांच प्रमुख सचिव स्तर के दलित ईमानदार अफसर एसआर लाखा के हवाले है। इस जांच में मायावती की रूचि इसलिए भी है क्योंकि वह एक तीर से दो निशाने साध सकती हैं। अमरसिंह ने जब भूखंड का आवेदन दिया था, तब वे केंद्रीय कांग्रेस पार्टी के इलेक्टेड मेम्बर हुआ करते थे। मायावती सपा, अमरसिंह और कांग्रेस तीनों से इस बहाने हिसाब-किताब चुकता करने में कामयाब हो सकती हैं। हालांकि अमरसिंह के वकील प्रदीप राय कहते हैं, ‘‘अमरसिंह ने कोई गलती नहीं की। आखिर उन्होंने निर्बल आय वर्ग में प्लाट आवंटित नहीं कराया। वह लिखते रहे कि मैं हिंदुस्तान टाइम्स का डायरेक्टर हूं। 15०० प्लाट ऐसे हैं जिन्हें मायावती ने दोबारा आवंटित किया है। क्या वह अपने प्लाटों की जांच करायेंगी?’’ पीएल पुनिया बताते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री के सचिव के तौर पर मेरा रोल सिर्फ इतना था कि जो भी आवेदन आए उसे संबंधित विभाग में भेज दिया जाय। भेजते समय मुख्यमंत्री सचिवालय का अफसर चिट्ïठी पर हस्ताक्षर करता है। मैं न तो आवंटन करने वाला हूँ। न ही मैं आवंटन जारी किया है। मेरा कोई दोष नहीं है।’’ सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, ‘‘मामूली मामलों में जांच बिठा दी गई है। खुद सैकड़ों करोड़ रूपये कमीशन खोरी में निगल गयीं। उसकी क्यों नहीं जांच कराई जाती है।’’ पर इस मामले की फाइल हर जगह से नदारद है। इसलिए सरकार को भी अपने विरोधियों की नकेल कसने में लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं।
-योगेश मिश्र
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