TRENDING TAGS :
नये संकट में विहिप
दिनांक - ०४-०५-२००८
अयोध्या में राम मंदिर तामीर हो जाने का सपना देखने वालों के लिए यह बेहद निराश करने वाली खबर है ï। राम मंदिर निर्माण के लिए जनता द्वारा दान की गयी गाढ़ी कमाई अब पूरी तरह चुक गयी है। नतीजतन, राम मंदिर निर्माण के लिए सितम्बर १९९० में शुरू की गयी कार्यशालाओं के बन्द हो जाने और पगार नहीं मिल पाने के कारण उनके कारीगरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाने की खबरों के बीच विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्ीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने यह कहकर नये विवाद को जन्म दे दिया, ‘‘कार्यशालायें चलाते-चलाते श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कोष रिक्त हो गया है। न्यास के पास पिछले १८ वर्षों में तराशे गये पत्थरों पर जम गयी काई छुड़ाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। अब न्यास को फिर से हिन्दू समाज के आगे झोली फैलानी पड़ेगी।‘‘
विहिप द्वारा प्रायोजित और दिवंगत परमहंस रामचन्द्र दास की अध्यक्षता में गठित इस न्यास ने मन्दिर आन्दोलन के स्वर्णिम दिनों में शिला पूजन के मार्फत देश-विदेश के हिन्दुओं से व्यापक धन संग्रह किया था। तब कहा गया था, ‘‘हर हिन्दू परिवार सवा रूपये का भी सहयोग कर दे तो बहुत होगा।‘‘ बाद में बताया गया, ‘‘सवा आठ करोड़ रूपये इक्टठे हुए हैं।‘‘ यह धनराशि ओरियन्टल बैंक ऑफ कामर्स और भारतीय स्टेट बैंक की अयोध्या, फैजाबाद और नई दिल्ली के आरके पुरम स्थित शाखाओं में जमा की गयी थी। यह सवा आठ करोड़ रूपये उन बहुमूल्य एवं स्वर्ण जडित शिलााओं के अतिरिक्त थी, जिन्हें आस्थावान हिन्दुओं ने पूजित करके दिया था। इनमें से कुछ अभी भी अयोध्या के फकीरे राम मंदिर में सुरक्षा घेरे में रखी हैं। भाजपा के एक सांसद एक समय बागी होकर इसका हिसाब-किताब मांग विहिप की बोलती बन्द कर चुके हैं। नतीजतन विहिप पर मंदिर आन्दोलन से विश्वासघात का आरोप भी पुराना पड़ चुका है।
अब जब राम मंदिर की एक ईंट भी रखे बिना अशोक सिंघल ने न्यास के कंगाल होने और उसके पास फूटी कौड़ी भी न होने के संकेत दिये हैं तो इसे लेकर जितने मुंह उतनी बातें हैं। विहिप के सूत्र इस बारे में प्रतिरक्षात्मक टिप्पणियां कर रहे हैं। गोल-मोल जवाब दे रहे हैं। विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा न्यास की कंगाली को ही कार्यशालायें बन्द होने का एक मात्र कारण मानने से इंकार करते हुए ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक से कहते हैं, ‘‘सभी गड़बड़ी केन्द्र द्वारा अधिग्रहीत भूमि न देने के कारण हुई है। मंदिर के दो तलों के पत्थर तराशे जा चुके हैं। अब समस्या यह है कि वे रखे कहां जाये? ऐसे में कार्यशालायें चलाते रहने का कोई मतलब नहीं है।‘‘ हालांकि ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक से बातचीत में न्यास के कोषाध्यक्ष विष्णु हरि डालमिया बोलते हैं, ‘‘१८ साल से काम चल रहा था, इसमें धन तो खर्च हुआ ही होगा।‘‘ लेकिन कितना धन खर्च हुआ इस पर सब खामोशी ओढ़े हुए हैं। क्या इतना खर्च हुआ कि न्यास के पास फूटी कौड़ी भी न बचे इस सवाल के जवाब पर डालमिया बोले, ‘‘मुझे ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। लेकिन अशोक जी ने ऐसा कहा है तो ठीक ही कहा होगा।‘‘
पर अब न्यास के चुक जाने को लेकर विहिप पर उंगलियां उठने लगीं हैं। खुद विहिप के सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि मंदिर निर्माण की एक भी ईंट रखे बिना वह जनता के सामने पैसा लेने किस मुंह से जायें। समाजवादी विचार के संयोजक अशोक श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘विहिप न्यास की कंगाली की बात सिर्फ इसलिए कह रही है, ताकि देश के हिन्दुओं से फिर धन ऐंठ सकें। उसके नेता उसे मंदिर से इतर परिसम्प_x009e_िायां बनाने, विलासता पूर्ण जीवन बिताने और हवाई जहाजों में उडऩे में खर्च कर सकें । वे अयोध्या में कारसेवकपुरम, राम सेवकपुरम और दिल्ली में आरकेपुरम में विहिप की बढ़ती जाती परिसम्प_x009e_िायों का भी जिक्र करते हैं।‘‘लेकिन प्रवक्ता शरद शर्मा इसे खारिज करते हुए कहते हैं, ‘‘विहिप और न्यास अलग-अलग है। विहिप न्यास के धन का इस्तेमाल नहीं करती। ‘‘शरद यह भी जोड़ते हैं कि न्यास के धन का उसके कर्ता-धर्ता बकायदा ऑडिट कराते हैं। ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक ने अयोध्या फैजाबाद के लोगों से यह जानने की कोशिश की कि अगर विहिप या उसका न्यास मंदिर निर्माण के लिए फिर उनके आगे झोली फैलाये तो वे क्या करेंगे? रायशुमारी में लोगों का जवाब था कि अब वे अपनी जेब खाली करने को तैयार नहीं हैं। समाजसेवी शिव कुमार फैजाबाद एक शेर सुनाते हैं- ‘‘काबा किस मुंह से जाओगे गालिब, शर्म तुमको मगर नहीं आती।‘‘श्री राम जन्म भूमि साप्ताहिक के सम्पादक और अयोध्या की आवाज नामक संगठन के संयोजक महंत युगल किशोर शरण शास्त्री तो न्यास की तंगहाली की जांच कराने की मांग कर बैठते हैं। भले ही शिलायें तराशते हुए न्यास का कोष चुक गया हो, पर अशोक सिंघल की इस स्वीकारोक्ति ने विहिप को संकट में खड़ा कर दिया है। न्यास की तंगहाली के मार्फत विहिप पर निशाना साधा जाने लगा है। अब उसके सामने दोहरी चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हो गयी हैं। पहली, न्यास के लिए धन जुटाना ताकि हिन्दू आस्थाओं को संजोये रखा जा सके। दूसरी, विरोधियों द्वारा न्यास की धनराशि के अनाप-सनाप खर्च के विरोधियों के आरोपों का माकूल जवाब दिया जा सके। देखना यह जरूरी होगा कि पहली बार दोधारी तलवार पर चलने की मजबूरी विहिप को उबरने का मौका देती है?
-योगेश मिश्र
(साथ में अयोध्या से कृष्ण प्रताप सिंह)
-योगेश मिश्र
अयोध्या में राम मंदिर तामीर हो जाने का सपना देखने वालों के लिए यह बेहद निराश करने वाली खबर है ï। राम मंदिर निर्माण के लिए जनता द्वारा दान की गयी गाढ़ी कमाई अब पूरी तरह चुक गयी है। नतीजतन, राम मंदिर निर्माण के लिए सितम्बर १९९० में शुरू की गयी कार्यशालाओं के बन्द हो जाने और पगार नहीं मिल पाने के कारण उनके कारीगरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाने की खबरों के बीच विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्ीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने यह कहकर नये विवाद को जन्म दे दिया, ‘‘कार्यशालायें चलाते-चलाते श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कोष रिक्त हो गया है। न्यास के पास पिछले १८ वर्षों में तराशे गये पत्थरों पर जम गयी काई छुड़ाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। अब न्यास को फिर से हिन्दू समाज के आगे झोली फैलानी पड़ेगी।‘‘
विहिप द्वारा प्रायोजित और दिवंगत परमहंस रामचन्द्र दास की अध्यक्षता में गठित इस न्यास ने मन्दिर आन्दोलन के स्वर्णिम दिनों में शिला पूजन के मार्फत देश-विदेश के हिन्दुओं से व्यापक धन संग्रह किया था। तब कहा गया था, ‘‘हर हिन्दू परिवार सवा रूपये का भी सहयोग कर दे तो बहुत होगा।‘‘ बाद में बताया गया, ‘‘सवा आठ करोड़ रूपये इक्टठे हुए हैं।‘‘ यह धनराशि ओरियन्टल बैंक ऑफ कामर्स और भारतीय स्टेट बैंक की अयोध्या, फैजाबाद और नई दिल्ली के आरके पुरम स्थित शाखाओं में जमा की गयी थी। यह सवा आठ करोड़ रूपये उन बहुमूल्य एवं स्वर्ण जडित शिलााओं के अतिरिक्त थी, जिन्हें आस्थावान हिन्दुओं ने पूजित करके दिया था। इनमें से कुछ अभी भी अयोध्या के फकीरे राम मंदिर में सुरक्षा घेरे में रखी हैं। भाजपा के एक सांसद एक समय बागी होकर इसका हिसाब-किताब मांग विहिप की बोलती बन्द कर चुके हैं। नतीजतन विहिप पर मंदिर आन्दोलन से विश्वासघात का आरोप भी पुराना पड़ चुका है।
अब जब राम मंदिर की एक ईंट भी रखे बिना अशोक सिंघल ने न्यास के कंगाल होने और उसके पास फूटी कौड़ी भी न होने के संकेत दिये हैं तो इसे लेकर जितने मुंह उतनी बातें हैं। विहिप के सूत्र इस बारे में प्रतिरक्षात्मक टिप्पणियां कर रहे हैं। गोल-मोल जवाब दे रहे हैं। विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा न्यास की कंगाली को ही कार्यशालायें बन्द होने का एक मात्र कारण मानने से इंकार करते हुए ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक से कहते हैं, ‘‘सभी गड़बड़ी केन्द्र द्वारा अधिग्रहीत भूमि न देने के कारण हुई है। मंदिर के दो तलों के पत्थर तराशे जा चुके हैं। अब समस्या यह है कि वे रखे कहां जाये? ऐसे में कार्यशालायें चलाते रहने का कोई मतलब नहीं है।‘‘ हालांकि ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक से बातचीत में न्यास के कोषाध्यक्ष विष्णु हरि डालमिया बोलते हैं, ‘‘१८ साल से काम चल रहा था, इसमें धन तो खर्च हुआ ही होगा।‘‘ लेकिन कितना धन खर्च हुआ इस पर सब खामोशी ओढ़े हुए हैं। क्या इतना खर्च हुआ कि न्यास के पास फूटी कौड़ी भी न बचे इस सवाल के जवाब पर डालमिया बोले, ‘‘मुझे ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। लेकिन अशोक जी ने ऐसा कहा है तो ठीक ही कहा होगा।‘‘
पर अब न्यास के चुक जाने को लेकर विहिप पर उंगलियां उठने लगीं हैं। खुद विहिप के सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि मंदिर निर्माण की एक भी ईंट रखे बिना वह जनता के सामने पैसा लेने किस मुंह से जायें। समाजवादी विचार के संयोजक अशोक श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘विहिप न्यास की कंगाली की बात सिर्फ इसलिए कह रही है, ताकि देश के हिन्दुओं से फिर धन ऐंठ सकें। उसके नेता उसे मंदिर से इतर परिसम्प_x009e_िायां बनाने, विलासता पूर्ण जीवन बिताने और हवाई जहाजों में उडऩे में खर्च कर सकें । वे अयोध्या में कारसेवकपुरम, राम सेवकपुरम और दिल्ली में आरकेपुरम में विहिप की बढ़ती जाती परिसम्प_x009e_िायों का भी जिक्र करते हैं।‘‘लेकिन प्रवक्ता शरद शर्मा इसे खारिज करते हुए कहते हैं, ‘‘विहिप और न्यास अलग-अलग है। विहिप न्यास के धन का इस्तेमाल नहीं करती। ‘‘शरद यह भी जोड़ते हैं कि न्यास के धन का उसके कर्ता-धर्ता बकायदा ऑडिट कराते हैं। ‘आउटलुक‘ साप्ताहिक ने अयोध्या फैजाबाद के लोगों से यह जानने की कोशिश की कि अगर विहिप या उसका न्यास मंदिर निर्माण के लिए फिर उनके आगे झोली फैलाये तो वे क्या करेंगे? रायशुमारी में लोगों का जवाब था कि अब वे अपनी जेब खाली करने को तैयार नहीं हैं। समाजसेवी शिव कुमार फैजाबाद एक शेर सुनाते हैं- ‘‘काबा किस मुंह से जाओगे गालिब, शर्म तुमको मगर नहीं आती।‘‘श्री राम जन्म भूमि साप्ताहिक के सम्पादक और अयोध्या की आवाज नामक संगठन के संयोजक महंत युगल किशोर शरण शास्त्री तो न्यास की तंगहाली की जांच कराने की मांग कर बैठते हैं। भले ही शिलायें तराशते हुए न्यास का कोष चुक गया हो, पर अशोक सिंघल की इस स्वीकारोक्ति ने विहिप को संकट में खड़ा कर दिया है। न्यास की तंगहाली के मार्फत विहिप पर निशाना साधा जाने लगा है। अब उसके सामने दोहरी चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हो गयी हैं। पहली, न्यास के लिए धन जुटाना ताकि हिन्दू आस्थाओं को संजोये रखा जा सके। दूसरी, विरोधियों द्वारा न्यास की धनराशि के अनाप-सनाप खर्च के विरोधियों के आरोपों का माकूल जवाब दिया जा सके। देखना यह जरूरी होगा कि पहली बार दोधारी तलवार पर चलने की मजबूरी विहिप को उबरने का मौका देती है?
-योगेश मिश्र
(साथ में अयोध्या से कृष्ण प्रताप सिंह)
-योगेश मिश्र
Next Story