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साक्षात्कार : रीता बहुगुणा जोशी
दिनांक : 13-०5-2००8
पार्टी के निरंतर छीजते आधार को बचाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी इन दिनों दोहरी चुनौतियां ‘फेस’ कर रही हैं। एक ओर उन पर तोहमत लगाकर कई कांग्रेसी नेताओं ने मायावती का दामन थाम लिया है तो दूसरी ओर कई नेता मायावती के संपर्क में हैं। मायावती की बहुजन से सर्वजन की यात्रा देश भर में कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा रही है। राज्य में तकरीबन आठ फीसदी के आसपास वोटों तक सिमटी कांग्रेस के लिए मायावती के निरंतर बढ़ते कद से निपटना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में उसे किसी मजबूत हमसफर की तलाश है। मुलायम और कांग्रेस के बीच निरंतर बढ़ती निकटता और कांग्रेस के प्रति लगातार मुलायम होते सपा सुप्रीमो के वक्तव्य और कर्तव्य बताते हैं कि दोस्ती का हाथ बढ़े तो थाम लिया जाएगा। अपनी हैसियत बरकरार रखने के लिए कांग्रेस मुलायम सिंह यादव से किस तरह हाथ मिलायेगी? हाथ मिलायेगी या नहीं? कितना मुफीद होगा यह गठबंधन? इन सवालों के साथ ही साथ लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर राज्य इकाई की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र से हुई बातचीत का संक्षिप्त _x008e_यौरा:-
लोकसभा चुनाव की क्या तैयारियां हैं?
लोकसभा चुनाव विधानसभा चुनाव के बीच ज्यादा अंतर नहीं है। विधान सभा में हमारा प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। हम यह उम्मीद नहीं कर हे थे कि हम बहुत अच्छी टैली लाएगें। लेकिन पचास सीटों और पंद्रह फीसदी वोटों की उम्मीद कर रहे थे। हम हताश हुए। हमारे काडर में निराशा पनपी। और मायावती की पांच साल की सरकार ने और निराश किया। जिन मुद्दों को हमने मुलायम के खिलाफ उठाए वे कारगर तो हुए लेकिन जातिवादी राजनीति के चलते लोगों ने बेहतर उम्मीदवारों को लोगों ने नहीं बल्कि जातीय उम्मीदवारों को चुना। जातिवाद राज्य में टूट नहीं रहा हैं। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल स्थिति है। हमारे यहां नेताओं की कमी नहीं है पर संगठन उतना ठीक नहीं है। कार्यकर्ता को लगता है कांगे्रस जीतने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में जब चुनाव आता है तो हमारे कार्यकर्_x009e_ाा किसी और नेता के साथ जुड़ जाते हैं. जिसे आप आंतरिक विश्वासघात कह सकते हैं। ऐसे में जरूरत ‘मोराल’ बढ़ाने की है। यह काम सोनिया गांधी ने किया है। कर भी रही हैं। कमेटी बनी है। राहुल गांधी उसके सदस्य बनाए गए हैं। वे लोगों से, कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। हमें खुशी है कि हमने कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा कर दिया है। लोगों को जता दिया कि कांग्रेस ही इस देश को बचाएगी। जमीन पर लडऩे को हम तैयार हैं। हिसाब मांगों अभियान में लोगों का उत्साह है। नये परिसीमन के हिसाब से हमने काम शुरू कर दिया है। हर लोकसभा सीट पर हमारे नेता जाकर उम्मीदवारों का नाम तय करनें के काम को अंजाम दे रहे हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम चुनाव से काफी पहले अपने उम्मीदवार घोषित कर दें ताकि उम्मीदवार को जनता के बीच जाने और नाराज लोगों को मनाने का समय मिल सके। हमने आंदोलन चलाया तो मुलायम की सरकार गई। उनका पिछड़ा आधार खिसका। वह वोट मायावती को मिले। अब मायावती सरकार ‘टोटल फेल्योर’ है। हम आंदोलन कर रहे है। इस बार वह वोट हमें मिलेगा।
यह कैसे कह सकती हैं कि मुलायम का वोट खिसका वह भी तब जब पिछले दो विधान सभा चुनावों में उन्हें 25 फीसदी वोट मिले हैं?
मुलायम की सरकार को हटाने में हम कामयाब हुए। माहौल बना।
लेकिन इसका फायदा तो आप को हुआ नही?
जब हम सवाल उठाते हैं ‘गुड गवर्नेंस’ का तो वोट शिफ्ट होता है। वोटों का ध्रुवीकरण होता है। यहां जातीय समीकरण टूटते हैं। जातीय समीकरण के टूटने का मुनाफा अब तक चाहे जिसे हुआ हो पर भविष्य में हमे होगा। क्योंकि हम मायावती पर ‘अटैक’ कर रहे हैं। मुलायम के ’बैड गवर्नेंस’ कोअभी लोग भूले नहीं हैं। अगर हम अच्छे उमीदवार दे देते हैं तो लोग हमे वोट देने के इच्छुक हैं।
ऐसे समय जब आपके नेता आपको छोड़ कर जा रहे हैं आप उम्मीद कर रही हैं कि जनता आपके साथ रहेगी?
कौन जा रहा है। कौन गया।
अखिलेश दास गए। दो और सासंद जाने की तैयारी में हैं?
अखिलेश दास की जमीन आप हमें बता दो। वह मास लीडर नहीं हैं। उन्हें मंत्री नहीं बनाना चाहिए था। वह भूल थी हमारी समझ में इसे वजह से हटाए भी गए। लोकसभा जीते हुए सु_x008e_बारामी रेड्डïी को हटाया गया। उन्होंने तो पार्टी नहीं छोड़ी। अखिलेश अहसान फरामोश है।
संगठन में काम करके क्या यह नहीं लगता कि कांग्रेस अपने बुते पर राज्य में खड़ी नहीं हो सकती?
व्यक्तित्व एक बड़ा मुद्दा है। सौभाग्य से राज्य में जो भी सियासत दां हैं। उनमें राहुल गांधी का व्यक्तित्व सबसे बड़ा है।
कैसे भरोसा किया जाए? क्योंकि बीते विस चुनाव में उन्होंने कैंपेन किया। रोड शो किया। लेकिन न तो वोटों की तादाद बढ़ी, न ही सीटें, बल्कि घटी?
बहुत नहीं घटा। यदि वह नहीं होते, उन्होंने कैंपेन नहीं किया होता तो यह गिरावट बहुत होती। उस समय राहुल जी पूरे वक्त नहीं निकले थे सिर्फ चुनाव के वक्त निकले थे। इसलिए लोग देखने तो निकले। वह जांच रहे थे कि इनकी ‘सिरियसनेस’ कितनी है। विपक्ष कहने लगा था कि ये चुनाव के वक्त पर निकले हैं चुनाव के बाद वापस चले जाएंगे। पर वे लगातार बने हुए हैं। जनता के बीच है। वह यह संदेश दे रहें हैं कि राज्य का विकास, गरीब का हित जो भी पार्टियां आईं उनके एजेंडे में नहीं था। ना ही है।
बढ़ती मंहगाई के बाद भी आप यह दावा कर रहीं हैं कि आपकी पार्टी गरीबों का भला करेंगी?
करना पड़ेगा क्योंकि जो लाखों करोड़ रूपये सामाजिक क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी ने जिए हैं। वह किसके भले के लिए। यह गरीबों को लिए ही है। आजादी के बाद से आज तक सोशल सेक्टर, वह चाहे अंत्योंदय हो, बीपीएल स्कीम हो, नरेगा हो, मीड डे मील हो, बढ़ा कर पेंशन का सवाल हो, सर्वशिक्षा अभियान हो, में इतना रूपया कभी नहीं आया। हम पिटे तो मंहगाई के नाम पर पिटे। पूरी दुनिया में रेट बढ़ रहे हैं। ‘ग्लोबल प्राइज राइस’ से हम हिट हो गए हैं। पर इसके लिए राज्य सरकार भी जिम्मदार है। क्योंकि किसान का सामान पुराने रेट पर ही बिक रहा है। बिचौलिया मुनाफा कमा रहा है।
आज आप मायावती को कोस रही हैं कभी आपका पार्टी उनके सहारे चुनावी बैतरणी पार करने की फिराक में थी। आपकी नेता सोनिया उनके घर गई। मनमोहन सिंह ने उनके हालिया जन्मदिन पर विदेश से बधाई दी?
इसकी वजह आप जो कह रहे हैं वह नहीं है बल्कि हम मानते हैं कि लोकतंत्र में उत्कृष्टïता रहनी चाहिए। पिछले दिनों दुश्मनियां होने लगीं। हमारे पिता के जमाने में वैचारिक विरोध होता था व्यक्तिगत विरोध नही होता था। राहुल, सोनिया और मनमोहन सिंह पुराने ट्रेंड को स्थापित करना चाहते हैं।
पर मुलायम के साथ आपकी सरकार थी लेकिन कभी उन्हें मुबारकबाद नहीं दी?
मायावती सेंट्रिक महिला हैं। इसलिए छोटी-छोटी बातों से खुश होती हैं। यही वजह है कि प्रेस कांफ्रेस करके उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने फोन करके हमें मुबारकबाद दी। वे छोटी चीजों को ज्यादा अहमित देती हैं। बड़ी चीजों को कम महत्व देती हैं। ऐसे में अगर केंद्रीय योजनाएं ठीक से चलानी हैं , राज्य का विकास करना है तो मुख्यमंत्री को इन छोटी-छोटी बातों से खुश रखने में क्या गलत है।
राज्य की राजनीति जातियों में बंटी है। आपके पास किसी जाति का वोट नहीं है। ऐसे में अकेले चुनाव लड़ कर क्या हासिल होगा?
इस समय लोग सभी पार्टियों से त्रस्त हैं। लोग अच्छे उम्मीदवार देखना चाहते हैं। ऐसे में हम अच्छे उम्मीदवार, मजबूत उम्मीदवार देने में कामयाब होंगे तो परिणाम हमारे पक्ष में होगा। बीस दिन पहले हम टिकट देते हैं तो लाख डेढ लाख वोट हमारा उम्मीदवार पाता है। थोड़ा वक्त दे देते हैं तो अच्छे प्रमाण मिलेंगे।
मुलायम को लेकर कुछ कांग्रेस में चल रहा है क्या? क्योंकि आप लोग एक दूसरे के प्रति नरम नजर आने लगे हैं?
हमसे बहुत लोग यह पूछते हैं। पर साफ कर दूं कि अब वे सरकार में नहीं है। ऐसे में वह निशाने पर नहीं हो सकते हैं। अनावश्यक अटैक क्यों करे। वह पावर में नहीं है। कहीं भी उनकी सरकार नहीं है। पर राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं हैं। अगर हम फिरकापरस्त ताकतों को बाहर रखने के लिए एक यूपीए का फ्रंट बना सकते हैं तो आप इस बात को असंभव मत समझिये।
क्या उम्मीद की जानी चाहिए चाहिए कि चुनाव पूर्व कोई गठबंधन बनेगा?
मुलायम अकेले अपनी ताकत से कुछ नहीं कर सकते। हमें ताकत दें तो हम दस गुना अधिक करके दिखा सकते हैं।
किसी फार्मूले पर काम हो रहा है क्या?
हमको यह देखना पडेगा कि किस मुद्दे पर वोटों का बंटवारा रोकना चाहते हैं। ।
पार्टी के निरंतर छीजते आधार को बचाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी इन दिनों दोहरी चुनौतियां ‘फेस’ कर रही हैं। एक ओर उन पर तोहमत लगाकर कई कांग्रेसी नेताओं ने मायावती का दामन थाम लिया है तो दूसरी ओर कई नेता मायावती के संपर्क में हैं। मायावती की बहुजन से सर्वजन की यात्रा देश भर में कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा रही है। राज्य में तकरीबन आठ फीसदी के आसपास वोटों तक सिमटी कांग्रेस के लिए मायावती के निरंतर बढ़ते कद से निपटना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में उसे किसी मजबूत हमसफर की तलाश है। मुलायम और कांग्रेस के बीच निरंतर बढ़ती निकटता और कांग्रेस के प्रति लगातार मुलायम होते सपा सुप्रीमो के वक्तव्य और कर्तव्य बताते हैं कि दोस्ती का हाथ बढ़े तो थाम लिया जाएगा। अपनी हैसियत बरकरार रखने के लिए कांग्रेस मुलायम सिंह यादव से किस तरह हाथ मिलायेगी? हाथ मिलायेगी या नहीं? कितना मुफीद होगा यह गठबंधन? इन सवालों के साथ ही साथ लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर राज्य इकाई की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र से हुई बातचीत का संक्षिप्त _x008e_यौरा:-
लोकसभा चुनाव की क्या तैयारियां हैं?
लोकसभा चुनाव विधानसभा चुनाव के बीच ज्यादा अंतर नहीं है। विधान सभा में हमारा प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। हम यह उम्मीद नहीं कर हे थे कि हम बहुत अच्छी टैली लाएगें। लेकिन पचास सीटों और पंद्रह फीसदी वोटों की उम्मीद कर रहे थे। हम हताश हुए। हमारे काडर में निराशा पनपी। और मायावती की पांच साल की सरकार ने और निराश किया। जिन मुद्दों को हमने मुलायम के खिलाफ उठाए वे कारगर तो हुए लेकिन जातिवादी राजनीति के चलते लोगों ने बेहतर उम्मीदवारों को लोगों ने नहीं बल्कि जातीय उम्मीदवारों को चुना। जातिवाद राज्य में टूट नहीं रहा हैं। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल स्थिति है। हमारे यहां नेताओं की कमी नहीं है पर संगठन उतना ठीक नहीं है। कार्यकर्ता को लगता है कांगे्रस जीतने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में जब चुनाव आता है तो हमारे कार्यकर्_x009e_ाा किसी और नेता के साथ जुड़ जाते हैं. जिसे आप आंतरिक विश्वासघात कह सकते हैं। ऐसे में जरूरत ‘मोराल’ बढ़ाने की है। यह काम सोनिया गांधी ने किया है। कर भी रही हैं। कमेटी बनी है। राहुल गांधी उसके सदस्य बनाए गए हैं। वे लोगों से, कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। हमें खुशी है कि हमने कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा कर दिया है। लोगों को जता दिया कि कांग्रेस ही इस देश को बचाएगी। जमीन पर लडऩे को हम तैयार हैं। हिसाब मांगों अभियान में लोगों का उत्साह है। नये परिसीमन के हिसाब से हमने काम शुरू कर दिया है। हर लोकसभा सीट पर हमारे नेता जाकर उम्मीदवारों का नाम तय करनें के काम को अंजाम दे रहे हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम चुनाव से काफी पहले अपने उम्मीदवार घोषित कर दें ताकि उम्मीदवार को जनता के बीच जाने और नाराज लोगों को मनाने का समय मिल सके। हमने आंदोलन चलाया तो मुलायम की सरकार गई। उनका पिछड़ा आधार खिसका। वह वोट मायावती को मिले। अब मायावती सरकार ‘टोटल फेल्योर’ है। हम आंदोलन कर रहे है। इस बार वह वोट हमें मिलेगा।
यह कैसे कह सकती हैं कि मुलायम का वोट खिसका वह भी तब जब पिछले दो विधान सभा चुनावों में उन्हें 25 फीसदी वोट मिले हैं?
मुलायम की सरकार को हटाने में हम कामयाब हुए। माहौल बना।
लेकिन इसका फायदा तो आप को हुआ नही?
जब हम सवाल उठाते हैं ‘गुड गवर्नेंस’ का तो वोट शिफ्ट होता है। वोटों का ध्रुवीकरण होता है। यहां जातीय समीकरण टूटते हैं। जातीय समीकरण के टूटने का मुनाफा अब तक चाहे जिसे हुआ हो पर भविष्य में हमे होगा। क्योंकि हम मायावती पर ‘अटैक’ कर रहे हैं। मुलायम के ’बैड गवर्नेंस’ कोअभी लोग भूले नहीं हैं। अगर हम अच्छे उमीदवार दे देते हैं तो लोग हमे वोट देने के इच्छुक हैं।
ऐसे समय जब आपके नेता आपको छोड़ कर जा रहे हैं आप उम्मीद कर रही हैं कि जनता आपके साथ रहेगी?
कौन जा रहा है। कौन गया।
अखिलेश दास गए। दो और सासंद जाने की तैयारी में हैं?
अखिलेश दास की जमीन आप हमें बता दो। वह मास लीडर नहीं हैं। उन्हें मंत्री नहीं बनाना चाहिए था। वह भूल थी हमारी समझ में इसे वजह से हटाए भी गए। लोकसभा जीते हुए सु_x008e_बारामी रेड्डïी को हटाया गया। उन्होंने तो पार्टी नहीं छोड़ी। अखिलेश अहसान फरामोश है।
संगठन में काम करके क्या यह नहीं लगता कि कांग्रेस अपने बुते पर राज्य में खड़ी नहीं हो सकती?
व्यक्तित्व एक बड़ा मुद्दा है। सौभाग्य से राज्य में जो भी सियासत दां हैं। उनमें राहुल गांधी का व्यक्तित्व सबसे बड़ा है।
कैसे भरोसा किया जाए? क्योंकि बीते विस चुनाव में उन्होंने कैंपेन किया। रोड शो किया। लेकिन न तो वोटों की तादाद बढ़ी, न ही सीटें, बल्कि घटी?
बहुत नहीं घटा। यदि वह नहीं होते, उन्होंने कैंपेन नहीं किया होता तो यह गिरावट बहुत होती। उस समय राहुल जी पूरे वक्त नहीं निकले थे सिर्फ चुनाव के वक्त निकले थे। इसलिए लोग देखने तो निकले। वह जांच रहे थे कि इनकी ‘सिरियसनेस’ कितनी है। विपक्ष कहने लगा था कि ये चुनाव के वक्त पर निकले हैं चुनाव के बाद वापस चले जाएंगे। पर वे लगातार बने हुए हैं। जनता के बीच है। वह यह संदेश दे रहें हैं कि राज्य का विकास, गरीब का हित जो भी पार्टियां आईं उनके एजेंडे में नहीं था। ना ही है।
बढ़ती मंहगाई के बाद भी आप यह दावा कर रहीं हैं कि आपकी पार्टी गरीबों का भला करेंगी?
करना पड़ेगा क्योंकि जो लाखों करोड़ रूपये सामाजिक क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी ने जिए हैं। वह किसके भले के लिए। यह गरीबों को लिए ही है। आजादी के बाद से आज तक सोशल सेक्टर, वह चाहे अंत्योंदय हो, बीपीएल स्कीम हो, नरेगा हो, मीड डे मील हो, बढ़ा कर पेंशन का सवाल हो, सर्वशिक्षा अभियान हो, में इतना रूपया कभी नहीं आया। हम पिटे तो मंहगाई के नाम पर पिटे। पूरी दुनिया में रेट बढ़ रहे हैं। ‘ग्लोबल प्राइज राइस’ से हम हिट हो गए हैं। पर इसके लिए राज्य सरकार भी जिम्मदार है। क्योंकि किसान का सामान पुराने रेट पर ही बिक रहा है। बिचौलिया मुनाफा कमा रहा है।
आज आप मायावती को कोस रही हैं कभी आपका पार्टी उनके सहारे चुनावी बैतरणी पार करने की फिराक में थी। आपकी नेता सोनिया उनके घर गई। मनमोहन सिंह ने उनके हालिया जन्मदिन पर विदेश से बधाई दी?
इसकी वजह आप जो कह रहे हैं वह नहीं है बल्कि हम मानते हैं कि लोकतंत्र में उत्कृष्टïता रहनी चाहिए। पिछले दिनों दुश्मनियां होने लगीं। हमारे पिता के जमाने में वैचारिक विरोध होता था व्यक्तिगत विरोध नही होता था। राहुल, सोनिया और मनमोहन सिंह पुराने ट्रेंड को स्थापित करना चाहते हैं।
पर मुलायम के साथ आपकी सरकार थी लेकिन कभी उन्हें मुबारकबाद नहीं दी?
मायावती सेंट्रिक महिला हैं। इसलिए छोटी-छोटी बातों से खुश होती हैं। यही वजह है कि प्रेस कांफ्रेस करके उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने फोन करके हमें मुबारकबाद दी। वे छोटी चीजों को ज्यादा अहमित देती हैं। बड़ी चीजों को कम महत्व देती हैं। ऐसे में अगर केंद्रीय योजनाएं ठीक से चलानी हैं , राज्य का विकास करना है तो मुख्यमंत्री को इन छोटी-छोटी बातों से खुश रखने में क्या गलत है।
राज्य की राजनीति जातियों में बंटी है। आपके पास किसी जाति का वोट नहीं है। ऐसे में अकेले चुनाव लड़ कर क्या हासिल होगा?
इस समय लोग सभी पार्टियों से त्रस्त हैं। लोग अच्छे उम्मीदवार देखना चाहते हैं। ऐसे में हम अच्छे उम्मीदवार, मजबूत उम्मीदवार देने में कामयाब होंगे तो परिणाम हमारे पक्ष में होगा। बीस दिन पहले हम टिकट देते हैं तो लाख डेढ लाख वोट हमारा उम्मीदवार पाता है। थोड़ा वक्त दे देते हैं तो अच्छे प्रमाण मिलेंगे।
मुलायम को लेकर कुछ कांग्रेस में चल रहा है क्या? क्योंकि आप लोग एक दूसरे के प्रति नरम नजर आने लगे हैं?
हमसे बहुत लोग यह पूछते हैं। पर साफ कर दूं कि अब वे सरकार में नहीं है। ऐसे में वह निशाने पर नहीं हो सकते हैं। अनावश्यक अटैक क्यों करे। वह पावर में नहीं है। कहीं भी उनकी सरकार नहीं है। पर राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं हैं। अगर हम फिरकापरस्त ताकतों को बाहर रखने के लिए एक यूपीए का फ्रंट बना सकते हैं तो आप इस बात को असंभव मत समझिये।
क्या उम्मीद की जानी चाहिए चाहिए कि चुनाव पूर्व कोई गठबंधन बनेगा?
मुलायम अकेले अपनी ताकत से कुछ नहीं कर सकते। हमें ताकत दें तो हम दस गुना अधिक करके दिखा सकते हैं।
किसी फार्मूले पर काम हो रहा है क्या?
हमको यह देखना पडेगा कि किस मुद्दे पर वोटों का बंटवारा रोकना चाहते हैं। ।
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