TRENDING TAGS :
सरकार के तुगलकी फरमान
कभी तुगलक वंश के एक शासक मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद और दौलताबाद से दिल्ली ले जाकर कहावतों में अपने नाम के लिए जगह बना ली थी। इन दिनों सरकार का व्यापार कर महकमा भी इसी तरह के तुगलकी फरमान से हलकान है। मूल्य संवर्धित कराधान प्रणाली (वैट) लागू होने के साथ न केवल विभाग का नाम बदल दिया गया बल्कि उसके ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन हो रहा है। वह भी तब, जब महज दो साल बाद 2०1० में केंद्र द्वारा जीएसटी (गुड्ïस एंड सर्विस टैक्स) लाये जाने की तैयारी जोरों पर है। इस तैयारी में राज्य के हुक्मरान शिरकत करने दिल्ली आने-जाने भी लगे हैं। बावजूद इसके जीएसटी की तैयारी की जगह वाणिज्य कर विभाग के पुर्नगठन को एक दो नहीं बल्कि आठ अलग-अलग आदेश अब तक जारी हो चुके हैं।
प्रमुख सचिव, कर एवं निबंधन गोविन्दन नायर द्वारा वाणिज्य कर आयुक्त को जारी किए गए आदेशों के मुताबिक, ‘‘सदस्य सेटिलमेंट कमीशन के छह नये पद होंगे जो अभी तक 16 थे। अपर आयुक्त गे्रड-2 की संख्या 2 से 77 कर दी गई। इसमें 56 पद अपील के रखे गए हैं। जबकि ग्रेड-एक में पदों की संख्या 14 से 24 कर दी गई है। संयुक्त आयुक्त की संख्या 125 से बढक़र 157 तथा उप आयुक्तों की संख्या 317 से बढक़र 544 करने के साथ ही साथ सहायक आयुक्त की संख्या 792 से बढक़र 1०39 की गई है। वाणिज्य कर अधिकारियों की संख्या 1०56 से बढ़ाकर 135०, तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की संख्या 7०49 से बढ़ाकर 1०438, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की संख्या 3544 से बढक़र 4287 कर दी गई है।’’ विभागीय जानकारों का कहना है,‘‘ नवसृजित पदों में डिप्टी कमिश्रर व उससे ऊपर के पद प्रोन्नत से भरे जाएंगे। जबकि वाणिज्य कर अधिकारी व असिस्टेंट कमिश्रर के पद नियमानुसार प्रोन्नत व कमीशन के माध्यम से भरे जाएंगे। ’’ जोनों की संख्या 14 से 2० करने, 2० टैक्स आडिट इकाइयां खोलने, 45 फार्म सेल, 198 नये सेक्टर, 9 संभागीय कार्यालय एवं कारपोरेट सर्किल खोले जाने की संस्तुति हो चुकी है। 95 नए सचल दल बनाने के साथ ही 46 जांच चौकियां समाप्त करने के भी आदेश जारी किए जा चुके हैं। कैबिनेट में किए गए इन फैसलों के साथ ही साथ करदाताओं को प्रशिक्षित करने के लिए मुख्य प्रशिक्षण संस्थान के रीजनल सेक्टर के रूप में दो नए केंद्र स्थापित करने को भी मंजूरी दी गई है। वैट को अमली जामा पहनाने के लिए व्यापार कर महकमे के 46 चेकपोस्टों को खत्म करने के साथ ही साथ राज्य के विभिन्न महकमों के 596 चेकपोस्टों की जगह 37 चेकपोस्टों से काम चलाने का खाका तैयार किया गया है। उल्लेखनीय है कि इस समय राज्य में ट्रांसपोर्ट विभाग के 56, आबकारी विभाग के 29, वन विभाग के 38० व वाणिज्य कर विभाग के 83 चेक पोस्ट हैं। इन चेकपोस्टों से लगभग 4०० करोड़ रूपये का राजस्व मिल रहा है।
मुलायम सिंह यादव व्यापारियों के वोट हथियाने के लिए वैट लागू न करने को ही सबसे बड़ा हथियार बनाया था। जब मायावती ने इसे लागू किया तो वैश्य बिरादरी को साधने और उसके गुस्से को काफूर करने के लिए इस बिरादरी के दो नेताओं को राष्टï्रीय महासचिव का पद थमाना पड़ा। बसपा में पहले से काम कर रहे इस समाज के नीरज बोरा के कद में काम काज के लिहाज से इजाफा करते हुए दो अन्य लोगों को लालब_x009e_ाी से नवाजना पड़ा। यह बात दीगर है कि उप्र में वैट लागू होने के बाद राजस्व बढऩे के बजाय विवाद ही बढ़ रहे हैं। व्यापारियों को होने वाली परेशानी के अलावा ले-देकर इसकी मार उपभोक्ता को ही झेलनी पड़ रही है। पुराने साफ्टवेयर रद न किए जाने की वजह से वाणिज्य कर विभाग से डुप्लीकेट ‘टिन’ नंबर जारी हो रहे हैं। गौरलब है कि वैट की गणना के लिए ‘व्यॉस’ साफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाने लगा है लेकिन व्यापार कर के जमाने में इस्तेमाल हो रहे ‘लीडर-ई’साफ्टवेयर का इस्तेमाल बंद करने की जगह एक निश्चित नंबर के बाद इसको लॉक किया गया। नतीजतन, गाजियाबाद में करीब ढ़ाई हजार, कानपुर में सात सौ से अधिक, गोरखपुर 1००, लखनऊ में 5० और वाराणसी में 1०० से अधिक डुप्लीकेट टिन (ट्रेडर्स आइडेंटिफिकेशन नंबर) नंबर जारी हो गए। डुप्लीकेट टिन नंबरों को पकडऩे की कोई तकनीक महकमे के पास नहीं है। ऐसे में इस तरह के टिन नंबर हासिल करने वाले व्यापारी धड़ल्ले से इनवाइस जारी कर रहे हैं।
वैट लागू होने के छह महीने बाद भी वाणिज्य कर महकमा इस कानून को ठीक से लागू कराने के लिए संसाधन नहीं जुटा सका। नतीजतन, सरकार द्वारा वि_x009e_ाीय वर्ष 2००7-०8 के लिए निर्धारित किये गये लक्ष्य से विभाग 23 अरब पीछे रह गया। 17 हजार 314 करोड़ के लक्ष्य के स्थान पर साल भर में 15 हजार 33 करोड़ रूपये ही जुटा जा सके जो लक्ष्य का 86.8 फीसदी है। हालाकि अप्रैल 2००7 से लेकर दिसंबर 2००7 के नौ महीनों में की गयी वसूली में पिछले साल के मुकाबले मात्र पांच फीसदी की ही वृद्घि हुई है। शासन को प्रेषित वाणिज्य कर विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘वैट के तहत वसूल की गयी राशि पिछले साल के मुकाबले 11.3 फीसदी अधिक है।’’ पहले व्यापार कर के नाम से ख्यात आज का वाणिज्य कर महकमा देश में वैट लागू करने वाले राज्यों में सबसे पीछे है। दिल्ली और मुंबई में वैट की पहली शुरूआत हुई पर उप्र ने इस साल के शुरूआती दिन से वैट लागू किया। लंबे समय तक वैट को लेकर तैयारी में जुटे इस राज्य की आज की हालत यह है कि सभी 94 सेंटर कंम्प्यूटर से नहीं जुड़ पाये हैं। समाधान योजनाओं पर वाणिज्य कर महकमा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है। वैट के मामले में भले ही कर्नाटक के फार्मूले को हूबहू स्वीकार कर लिया गया हो पर कई बड़े उद्योगों को मिलने वाली राहत के मामले में विभाग के कुछ अफसर फाइलों पर इस फार्मूले से इतर फैसले की जद्ïदोजहद में जुटे हुए हैं। यही वजह है कि कर असमानता समाप्त नहीं हो पाई है। जिन वस्तुओं पर कर घटा, उनकी दर में कमी का एहसास उपभोक्ता तक नहीं हो पा रहा है। अन्य प्रदेशों में वैट लगने के बाद कुछ चीजों के दाम बढ़े तो कुछ में कमी आई जबकि राज्य में वैट लगने के बाद सभी चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ते ही जा रहे हैं। आटा, मैदा, बेसन जैसी कई चीजों पर वैट नहीं हैं पर उनके दाम तो रिकार्ड बनाने की ओर बढ़ चले हैं। वजह यह नहीं कि वैट की दर अधिक है बल्कि यह है कि बिक्री के हर स्तर पर तय कुल बिक्री मूल्य (एमआरपी) पर वैट वसूला जा रहा है। और तो और उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचने पर हर स्तर पर वसूले जाने वाले कर का बोझ भी उपभोक्ता को सहना पड़ रहा है। साल भर चले प्रशिक्षण के बाद भी कई अधिकारी हाल में हुए विभागीय परीक्षा में फेल हो गए। उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल के संयुक्त मंत्री राजेंद्र गुप्ता कहते हैं,‘‘ जब प्रशिक्षण पाया और पढ़ा लिखा अधिकारी वैट की जटिलता नहीं समझ पा रहा है तो अनपढ़ व्यापारी कैसे समझेगा’’
सवाल यह उठता है कि जब वाणिज्य कर महकमे के पास जीएसटी लागू करने की मजबूरी है तो फिर वैट के लिहाज से विभाग में रद्दोबदल क्यों किए जा रहे हैं? क्या जीएसटी लागू करते समय यह दोहरी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी? जीएसटी में सेवाकर भी समाहित होगा नतीजतन अधिक अफसरों की जरूरत होगी। इसका ख्याल क्यों नहीं रखा जा रहा है? जबकि वैट केवल माल पर लगने वाला टैक्स है। जीएसटी में सर्विस टैक्स भी समाहित है। यही नहीं, 36 अधिकारियों का एक ‘स्पेशल सब ग्रुप’ जीएसटी के लागू करने की स्थितियों के अध्ययन में भी जुटा है।
-योगेश मिश्र
प्रमुख सचिव, कर एवं निबंधन गोविन्दन नायर द्वारा वाणिज्य कर आयुक्त को जारी किए गए आदेशों के मुताबिक, ‘‘सदस्य सेटिलमेंट कमीशन के छह नये पद होंगे जो अभी तक 16 थे। अपर आयुक्त गे्रड-2 की संख्या 2 से 77 कर दी गई। इसमें 56 पद अपील के रखे गए हैं। जबकि ग्रेड-एक में पदों की संख्या 14 से 24 कर दी गई है। संयुक्त आयुक्त की संख्या 125 से बढक़र 157 तथा उप आयुक्तों की संख्या 317 से बढक़र 544 करने के साथ ही साथ सहायक आयुक्त की संख्या 792 से बढक़र 1०39 की गई है। वाणिज्य कर अधिकारियों की संख्या 1०56 से बढ़ाकर 135०, तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की संख्या 7०49 से बढ़ाकर 1०438, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की संख्या 3544 से बढक़र 4287 कर दी गई है।’’ विभागीय जानकारों का कहना है,‘‘ नवसृजित पदों में डिप्टी कमिश्रर व उससे ऊपर के पद प्रोन्नत से भरे जाएंगे। जबकि वाणिज्य कर अधिकारी व असिस्टेंट कमिश्रर के पद नियमानुसार प्रोन्नत व कमीशन के माध्यम से भरे जाएंगे। ’’ जोनों की संख्या 14 से 2० करने, 2० टैक्स आडिट इकाइयां खोलने, 45 फार्म सेल, 198 नये सेक्टर, 9 संभागीय कार्यालय एवं कारपोरेट सर्किल खोले जाने की संस्तुति हो चुकी है। 95 नए सचल दल बनाने के साथ ही 46 जांच चौकियां समाप्त करने के भी आदेश जारी किए जा चुके हैं। कैबिनेट में किए गए इन फैसलों के साथ ही साथ करदाताओं को प्रशिक्षित करने के लिए मुख्य प्रशिक्षण संस्थान के रीजनल सेक्टर के रूप में दो नए केंद्र स्थापित करने को भी मंजूरी दी गई है। वैट को अमली जामा पहनाने के लिए व्यापार कर महकमे के 46 चेकपोस्टों को खत्म करने के साथ ही साथ राज्य के विभिन्न महकमों के 596 चेकपोस्टों की जगह 37 चेकपोस्टों से काम चलाने का खाका तैयार किया गया है। उल्लेखनीय है कि इस समय राज्य में ट्रांसपोर्ट विभाग के 56, आबकारी विभाग के 29, वन विभाग के 38० व वाणिज्य कर विभाग के 83 चेक पोस्ट हैं। इन चेकपोस्टों से लगभग 4०० करोड़ रूपये का राजस्व मिल रहा है।
मुलायम सिंह यादव व्यापारियों के वोट हथियाने के लिए वैट लागू न करने को ही सबसे बड़ा हथियार बनाया था। जब मायावती ने इसे लागू किया तो वैश्य बिरादरी को साधने और उसके गुस्से को काफूर करने के लिए इस बिरादरी के दो नेताओं को राष्टï्रीय महासचिव का पद थमाना पड़ा। बसपा में पहले से काम कर रहे इस समाज के नीरज बोरा के कद में काम काज के लिहाज से इजाफा करते हुए दो अन्य लोगों को लालब_x009e_ाी से नवाजना पड़ा। यह बात दीगर है कि उप्र में वैट लागू होने के बाद राजस्व बढऩे के बजाय विवाद ही बढ़ रहे हैं। व्यापारियों को होने वाली परेशानी के अलावा ले-देकर इसकी मार उपभोक्ता को ही झेलनी पड़ रही है। पुराने साफ्टवेयर रद न किए जाने की वजह से वाणिज्य कर विभाग से डुप्लीकेट ‘टिन’ नंबर जारी हो रहे हैं। गौरलब है कि वैट की गणना के लिए ‘व्यॉस’ साफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाने लगा है लेकिन व्यापार कर के जमाने में इस्तेमाल हो रहे ‘लीडर-ई’साफ्टवेयर का इस्तेमाल बंद करने की जगह एक निश्चित नंबर के बाद इसको लॉक किया गया। नतीजतन, गाजियाबाद में करीब ढ़ाई हजार, कानपुर में सात सौ से अधिक, गोरखपुर 1००, लखनऊ में 5० और वाराणसी में 1०० से अधिक डुप्लीकेट टिन (ट्रेडर्स आइडेंटिफिकेशन नंबर) नंबर जारी हो गए। डुप्लीकेट टिन नंबरों को पकडऩे की कोई तकनीक महकमे के पास नहीं है। ऐसे में इस तरह के टिन नंबर हासिल करने वाले व्यापारी धड़ल्ले से इनवाइस जारी कर रहे हैं।
वैट लागू होने के छह महीने बाद भी वाणिज्य कर महकमा इस कानून को ठीक से लागू कराने के लिए संसाधन नहीं जुटा सका। नतीजतन, सरकार द्वारा वि_x009e_ाीय वर्ष 2००7-०8 के लिए निर्धारित किये गये लक्ष्य से विभाग 23 अरब पीछे रह गया। 17 हजार 314 करोड़ के लक्ष्य के स्थान पर साल भर में 15 हजार 33 करोड़ रूपये ही जुटा जा सके जो लक्ष्य का 86.8 फीसदी है। हालाकि अप्रैल 2००7 से लेकर दिसंबर 2००7 के नौ महीनों में की गयी वसूली में पिछले साल के मुकाबले मात्र पांच फीसदी की ही वृद्घि हुई है। शासन को प्रेषित वाणिज्य कर विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘वैट के तहत वसूल की गयी राशि पिछले साल के मुकाबले 11.3 फीसदी अधिक है।’’ पहले व्यापार कर के नाम से ख्यात आज का वाणिज्य कर महकमा देश में वैट लागू करने वाले राज्यों में सबसे पीछे है। दिल्ली और मुंबई में वैट की पहली शुरूआत हुई पर उप्र ने इस साल के शुरूआती दिन से वैट लागू किया। लंबे समय तक वैट को लेकर तैयारी में जुटे इस राज्य की आज की हालत यह है कि सभी 94 सेंटर कंम्प्यूटर से नहीं जुड़ पाये हैं। समाधान योजनाओं पर वाणिज्य कर महकमा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है। वैट के मामले में भले ही कर्नाटक के फार्मूले को हूबहू स्वीकार कर लिया गया हो पर कई बड़े उद्योगों को मिलने वाली राहत के मामले में विभाग के कुछ अफसर फाइलों पर इस फार्मूले से इतर फैसले की जद्ïदोजहद में जुटे हुए हैं। यही वजह है कि कर असमानता समाप्त नहीं हो पाई है। जिन वस्तुओं पर कर घटा, उनकी दर में कमी का एहसास उपभोक्ता तक नहीं हो पा रहा है। अन्य प्रदेशों में वैट लगने के बाद कुछ चीजों के दाम बढ़े तो कुछ में कमी आई जबकि राज्य में वैट लगने के बाद सभी चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ते ही जा रहे हैं। आटा, मैदा, बेसन जैसी कई चीजों पर वैट नहीं हैं पर उनके दाम तो रिकार्ड बनाने की ओर बढ़ चले हैं। वजह यह नहीं कि वैट की दर अधिक है बल्कि यह है कि बिक्री के हर स्तर पर तय कुल बिक्री मूल्य (एमआरपी) पर वैट वसूला जा रहा है। और तो और उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचने पर हर स्तर पर वसूले जाने वाले कर का बोझ भी उपभोक्ता को सहना पड़ रहा है। साल भर चले प्रशिक्षण के बाद भी कई अधिकारी हाल में हुए विभागीय परीक्षा में फेल हो गए। उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल के संयुक्त मंत्री राजेंद्र गुप्ता कहते हैं,‘‘ जब प्रशिक्षण पाया और पढ़ा लिखा अधिकारी वैट की जटिलता नहीं समझ पा रहा है तो अनपढ़ व्यापारी कैसे समझेगा’’
सवाल यह उठता है कि जब वाणिज्य कर महकमे के पास जीएसटी लागू करने की मजबूरी है तो फिर वैट के लिहाज से विभाग में रद्दोबदल क्यों किए जा रहे हैं? क्या जीएसटी लागू करते समय यह दोहरी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी? जीएसटी में सेवाकर भी समाहित होगा नतीजतन अधिक अफसरों की जरूरत होगी। इसका ख्याल क्यों नहीं रखा जा रहा है? जबकि वैट केवल माल पर लगने वाला टैक्स है। जीएसटी में सर्विस टैक्स भी समाहित है। यही नहीं, 36 अधिकारियों का एक ‘स्पेशल सब ग्रुप’ जीएसटी के लागू करने की स्थितियों के अध्ययन में भी जुटा है।
-योगेश मिश्र
Next Story