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आतंकवाद वाली खबर के लिए इनपुट:-

Dr. Yogesh mishr
Published on: 29 July 2008 8:28 PM IST
यह शायद कभी नहीं हुआ कि देश के किसी इलाके में आतंकवादी अपने मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब रहे हों और उनका कोई न कोई ताल्लुक उप्र के किसी न किसी इलाके से सीधे तौर से न जुड़ा हो। हाल के बेंगलुरू और अहमदाबाद में हुए विस्फोट के साथ भी यह बात पूरी तरह साफ-साफ लागू होती है। इन दोनों शहरों में बदअमनी फैलाने वालों के रिश्ते उप्र से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। प्रतिबंधित संगठन सिमी के जिस कार्यकर्ता अब्दुल हलीम को रविवार देर रात गिरफ्तार किया गया। उसका संबंध गाजियाबाद के पिलखुआ कस्बे से है। हलीम वर्ष 2००2 के गुजरात दंगों में वांटेड है। पुलिस उसे काफी समय से खोज रही थी। हलीम 2००3 में पाकिस्तान गया जहां उसने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के आकाओं से मिलकर अयोध्या हमले की साजिश रची। फरार चल रहे सिमी के अध्यक्ष हुमाम अहमद सिद्दीकी से भी वह सीधे तौर पर जुड़ा है। हुमाम के मार्फत ही उसने पूर्वी उप्र के आजमगढ़, मऊ, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच में नेटवर्क मजबूत किया। हलीम पश्चिमी उप्र के मुजफ्फरनगर, बिजनौर, गाजियाबाद के 2० से ज्यादा युवकों को तीन-तीन के समूह में पाकिस्तान के बलूचिस्तान कैंप में प्रशिक्षण दिलाया। हलीम ने ही 5 जुलाई 2००5 को अयोध्या में हुए हमले के लिए जैश को उकसाने और फिर उसका ब्लू प्रिंट बनाने में खासी भूमिका निभायी थी। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, ‘‘हलीम की मदद से ही असलहे जम्मू-कश्मीर से लखनऊ, अंबेडकरनगर होते हुए अयोध्या पहुंचाए गए।’’

खुफिया सूत्रों की मानें तो लश्कर-ए-तोएबा और जैश-ए-मोहम्मद के कई प्रमुख आतंकवादियों का पश्चिमी उ.प्र. में न केवल आना-जाना रहा है बल्कि यह इलाका उनकी शरणस्थली भी रहा है। लगभग एक दशक पहले कश्मीर के आतंकवादियों द्वारा तीन ब्रिटिश नागरिकों का अपहरण करने के बाद उन्हें सहारनपुर में ही रखा गया था। लश्कर के एक कमाण्डर सालार उर्फ हामिद के अलावा इसी संगठन के मोहम्मद जकारिया का यहां आना-जाना रहा है। इतना ही नहीं, जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर की कर्मस्थली सहारनपुर रही है। अयोध्या हमले की जांच में इस तथ्य का खुलासा हुआ कि हमले के दौरान मारे गए 5 आतंकवादियों में से एक देवबंद गया था। वहां ठहरा था। बुलन्दशहर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्घनगर और अलीगढ़ पुलिस ने महिलाओं को भी आईएसआई के लिए काम करते गिरफ्ïतार किया है। गाजियाबाद पर आईएसआई की गिद्घ दृष्टिï है। यहां का पिलखुआ पाक नागरिकों और बंगलादेशियों के छिपने का सबसे महफूज ठिकाना साबित हो रहा है। यहां सबसे पहला मामला 14 जनवरी, 1994 को प्रकाश में आया। दिल्ली व पिलखुआ पुलिस ने पाक एजेन्ट अ_x008e_दुल करीम उर्फ टुंडा के छिपे होने की सूचना पर अशोक नगर के मकान नम्बर 192 पर छापा मारा। यहां से पुलिस ने आरडीएक्स व दूसरे विस्फोटक पदार्थ, डेटोनेटर बरामद किए। टुंडा पुलिस दबिश से पहले भागने में कामयाब रहा। 16 मार्च 1998 को पुलिस ने यहां से टुंडा के रिश्तेदार महमूद आलम को गिरफ्ïतार किया। वह यहां से आईएसआई के लिए चोरी छिपे काम कर रहा था। धौलाना का शमशाद अहमद व उसकी पत्नी अनवरी देवी वर्ष 1993 से अंाखमिचौली खेल रहे हैं। निवाड़ी से महमूदन, हापुड़ से अ_x008e_दुल कय्ïयूम, मोहम्मद नईम, विरासत अली, जकरिया उर्फ नूर मोहम्मद, रफीमुद्ïदीन अ_x008e_दुल्ला की पत्नी गुलाम जन्नत व पिलखुआ से सहौरी बेगम लापता हैं। पुलिस संशय में है कि ये लोग जिंदा भी हैं या नहीं। पुलिस आंकड़ों पर गौर करें तो आज भी दस पाकिस्तानी नागरिक इस इलाके में उनकी पकड़ से बाहर हैं। लश्कर के आतंकवादियों को छिपाए रखने के आरोप में बीते साल हापुड़ पुलिस ने सलीम हुसैन, कल्लन, रफीक अली व रहीश अली को गिरफ्ïतार किया। हालांकि पुलिस आतंकवादियों को नहीं पकड़ सकी। दबिश से पहले ही वे फरार हो गए। इसी दौरान एजाज अहमद के यहां मारी गई दबिश में आईएसआई एजेन्ट हरिनारायण शाह के कपड़े और सामान मिले। मुजफ्फरनगर के रहस्यमयी चमत्कारिक बाबा पर भी विदेश्ीा एजेन्सियों के लिए काम करने के आरोप लगे। बाबा पर पाकिस्तानी होते हुए भी हिन्दुस्तानी नागरिकता और वोटरलिस्ट में नाम डलवाने को लेकर जांच तो बैठाई गई। लेकिन नतीजा शिफर ही रहा। कश्मीर मुठभेड़ में मारे गए गाजी बाबा के तार राज्य के बिजनौर जिले से जुड़े थे। गाजी बाबा के साथ मरने वाले आतंकवादियों में बिजनौर के काजीवाला गांव के जहीर, गांवड़ी के शहाबुद्ïदीन और किरतपुर के मोहम्मद वारिश भी थे। खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘गाजी बाबा भी दो-तीन बार यहां की यात्रा कर चुका था।’’ गाजियाबाद मे जैश-ए-मोहम्मद के एरिया कमाण्डर मंसूर डार के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद शामली में संगठन से जुड़े दो छात्रों के पकड़े जाने से इस बात की पुष्टिï हुई कि पश्चिमी उ.प्र. में आतंकवादियों ने गहरी पैठ बना ली है। पाकिस्तान में बैठे इकबाल काणा के हाथों इस इलाके की बागडोर थी। केन्द्रीय गृहमन्त्री शिवराज पाटिल ने खुद यह स्वीकार किया, ‘‘हिज्ब-ए-इस्लामी, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा, हिजबुल मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठनों ने अपना नेटवर्क पश्चिमी उ.प्र. के कई हिस्सो में फैला लिया है।’’

खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘उ.प्र. के 36 जिलों में आईएसआई की गतिविधियां जारी हैं। 11 बड़े आतंकवादी संगठनों की राज्य में पैठ है।’’ इस रिपोर्ट में बताया गया, ‘‘पासबा-ए-अहले हदीश, अलमंसूरन (लश्कर-ए-तोएबा), अलफुरकान/खुदामुल इस्लाम (जैश-ए-मोहम्मद), हिजबुल मुजाहिद्ïदीन, हरकत-उल-मुजाहिद्ïदीन/जमीअतुल अंसार (हरकत-उल-अंसार), जमायत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रन्ट, जम्मू कश्मीर तहरीकुल मुजाहिदीन, जम्मू कश्मीर इख्तान-उल-मुसलमीन तथा अलबर्क तंजीब के एजेन्टों ने कामकाज उ.प्र. में तेज कर दिया है।’’

जांच एजेंसियां मानती हैं, ‘‘बांग्लादेश स्थित आतंकी संगठन हूजी इन दिनों सिमी का कवरफोर्स बन गया है। ताबड़तोड़ धमाके इसी गठजोड़ की देन हैं।’’ बारह राज्यों में सिमी के कार्यकर्ता हैं और उप्र के 36 शहरों में उसका नेटवर्क। सिमी फिलवक्त देश में हूजी का वर्क फोर्स बन गई है। हूजी के आतंकियों से गहरी सांठ-गांठ, आईएसआई से आर्थिक मदद और आतंकियों को खाद-पानी मुहैया कराना सिमी का काम है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक, ‘‘सिमी के लगभग बीस हजार सामान्य सदस्य और 4०० अंसार हैं। प्रदेश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले 26 से अधिक फरार आतंकवादी चुनौती बने हुए हैं।’’

आईएसआई ने दहशत फैलाने के लिए देश भर में 141 संगठन उतारे हैं। पहले नंबर पर हरकत-उल-अंसार है। जबकि जिस इंडियन मुजाहिदीन संगठन का नाम बेंगलुरू और अहमदाबाद विस्फोट में आया है वह आईएसआई की आतंकी सूची में 131वें स्थान पर है। ऐसे में यह कहना कि यह संगठन नया है, जायज नहीं होगा। आईएसआई की सूची वाले दो दर्जन संगठनों का काम सांप्रदायिकता भडक़ाना और शेष का काम दहशत फैलाकर तबाह करना है। दो संगठन दुख्तराने मिल्लत और शाहीन फोर्स केवल महिला आतंकवादियों के संगठन हैं। इन सभी संगठन के सदस्यों की संख्या एक लाख के आसपास है।

-योगेश मिश्र
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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