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पानी की मार से बेहाल बुंदेलखंड
सूखे से लगातार झुलसता रहा बुंदेलखंड इन दिनों में रिकार्ड बारिश से जार-बेजार है। किसानों के खिले चेहरे मुरझाने लगे हैं। खरीफ की फसल को लेकर चटख हुई उम्मीदों पर पानी फिरता लग रहा है। किश्तों में हुई मूसलाधार बारिश गरीबों पर कहर बनकर फूटी है। कच्चे मकान ढह जाने से सैकड़ों गरीब परिवार सडक़ पर आ गये हैं। उधर धूल के गुबार से अटे रहे तालाबों, पोखरों में उफनता पानी कहीं-कहीं समस्या का बायस बन पड़ा है।
परंपरागत खेती को बेहतर मानने वाले लामा गांव के किसान और तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे जगन्नाथ सिंह परमार ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘बारिश का जो मिजाज सामने आया है। उससे अनावृष्टिï के बाद अतिवृष्टिï के चलते तबाही का मंजर दिख रहा है। खरीफ की फसल को लेकर निराशापूर्ण हालात उत्पन्न हो गये हैं। खेतों में लबालब पानी भरा है। मिट्ïटी गहराई तक गीली हो गई है। हल चलाना मुश्किल हो गया है। लोग खेत जोत-बो नहीं पा रहे हैं। जिन्होंने बीच में आसमान साफ होने पर जुताई-बुआई कर दी है। उनका बीज जमने की संभावना नगण्य है।’’ बीते पांच साल में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग किस कदर तरसे थे यह पिछले महीनों में हुई पानी की लूट की घटना से समझी जा सकती है। पर इस साल बुंदेलों के आसमान पर मानसून मेहरबान है।
खेतों में गंगा की धारा की तरह मचलते पानी को देख इस गंगा को यहीं ठहर जाने का मनुहार करती महिलाएं पानी के बिना दरक गए बुंदेलखंड के उस इलाके में धान की रोपाई कर रही हैं। जहां बादल झूम कर बरसे हैं। पानी की यह खुशी खेतों में खाद डालते 7० बीघे के काश्तकार राम सागर को देखकर समझी जा सकती है। राम सागर पानी से सनी मिट्ïटी को लिबास बना खेतों को समतल करने में जुटे हैं। वे पानी की हर एक बूंद की नियामत को सहेज लेना चाहते हैं। रामसागर कहते हैं, ‘‘बहुत अंतर पड़ा है। पिछले साल फसल हुई नहीं। तीन-चार दिन तक ट्ïयूबवेल चलते थे, तब भी पानी नहीं हो पाता था। इस बार काम बढिय़ा चल रहा है।’’ राम सागर ही नहीं, तेज हवाओं के साथ उमड़-घुमड़ कर आने वाले बादल ये संदेश देते हैं कि मानो कुदरत ने अपनी सारी नजरें यहीं इनायत की हैं। इनके इस संदेश को इंसानों के साथ यहां के मवेशियों ने भी सुना। लिहाजा पानी की तलाश में जो गांव छोड़ गए थे। उनकी खुशी अब गांव के ही ताल तलैया में तैरती दिख रही है। प्यासी धरती भी वर्षों की अपनी प्यास बुझाने के बाद अब यहां के लोगों, पौधों और जानवरों की प्यास बुझा रही है। किसान अयोध्या प्रसाद कहते हैं, ‘‘पानी से खूब आजादी है। जानवर चर रहे हैं। पानी पी रहे हैं। खेती हो रही है। खूब खुशी है। अगर पानी नहीं होता तो क्या खेती होती?’’ बारिश ने सिर्फ बुंदेलखंड को हरा-भरा नहीं किया बल्कि पानी की कमी से बीमार हो गई मिट्ïटी को दुरूस्त भी कर रही है। मिट्ïटी में उर्वरकता की कमी वर्ष 2००1, 2००5 में एनआई के जांच से पता चलता है। मिट्ïटी में जो आर्गेनिक कार्बन ०.8 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए वह घटकर ०.3 प्रतिशत के आसपास रह गई है। इसी तरह उपल_x008e_ध फास्फेट 4० किग्रा प्रति हेक्टेयर से घटकर 2० किग्रा प्रति हेक्टेयर, पोटाश 25० किग्रा से 15० किग्रा प्रति हेक्टेयर, गंधक 15 पीपीएम से 1० पीपीएम के आसपास, जस्ता 1.2 पीपीएम से ०.6 पीपीएम तक पहुंच गया है। पर इस बारिश को देख मिट्ïटी की गुणव_x009e_ाा की जांच करने वाले कहते हैं, ‘‘खेतों में उगने वाले खर पतवार से इसमें कुछ सुधार आएगा।’’ भूमि परीक्षण प्रयोगशाला, हमीरपुर के अध्यक्ष मोहम्मद हबीब कहते हैं, ‘‘खर पतवार की जुताई करके अगर हम फिर से मिट्ïटी में मिला देते हैं तो पानी उसको सड़ाकर उसमें जीवांश कार्बन का प्रतिशत तो बढ़ाएगा ही।’’
बादलों से निकलकर मोती जैसी पानी की बूंदे जब अपने नाजुक हाथों से धरती को सहलाती हैं तो मानो सारी कायनात गुनगुना उठती है। कुछ ऐसा ही हुआ है सूखे की त्रासदी झेल रहे बुंदेलखंड में, जहां बारिश से न सिर्फ हर पौधे मुस्करा रहे हैं बल्कि यहां के लोग भी अपने आने वाले शबाबी दिनों के ख्वाबों में खो गये हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि पानी की ये नियामत इन्हें हर साल मिलती रहे। जिससे इनके ख्वाब न टूट सकें। इस इलाके में जून से लेकर अब तक तकरीबन 6०० मिमी वर्षा हो चुकी है। यही वजह है कि इतने साल बाद बारिश की ये खुशी हर जगह नहीं दिखती। क्योंकि बुंदेलखंड के पहाड़ी इलाकों में चार तरह की मिट्ïटी पायी जाती है। जिसमें मार और काबर जमीन पर धान की खेती होती है पर यह बहुत थोड़ी है। ज्यादातर दलहन और तिलहन जिस पड़ुआ और राकड़ जमीन पर होती है उसके लिए पानी खरीफ कीफसल को न लगने देने का सबब बन रहा है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह कहते हैं, ‘‘बीते चार सालों से सूखे के चलते भुखमरी का सामना कर रहे किसानों को लगा था कि फसलों की बुआई कर अब तक हुई बर्बादी की कुछ भरपाई कर लेंगे। पर लगातार हो रही बारिश ने उनके हाथ बांध रखे हैं। 3०-4० फीसदी किसान ही धान रोप पाए हैं। अरहर, बाजरा, ज्वार, मूंग और उड़द की बुआई का समय भी निकल गया।’’
मतलब साफ है कि लगातार हो रही बारिश की एक बूंद अब यहां के लोगों को निराश कर रही है। अपने खेत की मेड़ पर उदास बैठे दौलत सिंह के खेत में जब बारिश की पहली बूंद गिरी तो सूख चुकी आस हरी हो गयी। हल और फावड़े की धार ठीक करने लगे। पर पहली बूंद ऐसी है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। लिहाजा, अब उनकी यह आस उसमें डूबती नजर आ रही है। दौलत सिंह बताते हैं, ‘‘पानी से बर्बाद हो गया। खेत में पानी ही पानी है। सावन आ गया। बीज रखा है घर में। बो नहीं पाये।’’ यह कहानी अकेले दौलत सिंह की नहीं बल्कि इस इलाके के ज्यादातर किसानों की है। बीते वर्षों में पानी न बरसने से कृषि उत्पादन में भारी गिरावट हुई। बुंदेलखंड में 14 लाख 5० हजार हेक्टेयर में ही खेती होती है। इसमें भी कुल 18 फीसदी जमीन ही सिंचित है। पिछले साल रबी की फसल बहुत कम हुई थी पर इस साल बारिश अच्छी हो रही है। जिससे इनकी उम्मीद जगी थी। कि खरीफ की अच्छी फसल से रबी की कमी पूरी हो जाएगी। पर जून से लेकर अब तक लगभग 6०० मिमी बारिश हो चुकी है, जिससे ये खरीफ के बीज खेतों में नहीं लगा पा रहे हैं। किसान राजेंद्र सिंह बताते हैं , ‘‘उड़द, तिल, मूंग, मूंगफली लाके रखे हैं। पर मानसून निकल नहीं रहा है। लिहाजा सब रखा रह गया। बीज का पैसा भी नहीं निकल पाएगा।’’
बारिश ने सिर्फ किसानों की उम्मीदों पर ही पानी नहीं फेरा है। बल्कि समय से मानसून आ जाने से काम की आस में गांव रह गये इन खेतिहर मजदूरों को भी बेपानी कर दिया है जो अब खाली बैठे रेडियो सुन रहे हैं। या फिर बारिश के पानी से बने छोटे-छोटे ताल तलैया में कांटा डाल मछली पकडऩे का घंटों इंतजार कर रहे हैं।खेतिहर मजदूर अवधेश कुमार की दिक्कत कुछ यूं है, ‘‘पहले सूखा था तो बाहर काम करने गए थे। अबकी पानी देख उम्मीद थी अपनी खेती किसानी करेंगे। लेकिन इतना पानी बरसा कि कोई काम नहीं हो पा रहे हैं।’’
यहां के किसानों को लगातार हो रही बारिश से खरीफ की फसल न बो पाने का जरूर थोड़ा दुख है। पर इससे कहीं ज्यादा दर्द बिना किसी योजना के अपनी जेब भरने के लिए खुदे तालाब और टूटी बंधियों से पानी बह जाने का है। क्योंकि इसी बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा पानी की प्यास से धरती जो फटी है। रजनीश कुमार बताते हैं, ‘‘वाटर लेवल ऊपर आया है और दस फीट करीब बढ़ गया है लेकिन देखिये अब कब तक रहेगा।’’ पानी की इस कीमत को यहां के राजाओं ने भी बखूबी समझा था। जिसकी बानगी चरखारी के तालाबों में दीखती है। आल्हा के एक-एक बोल चंदेल राजाओं की वीरता के ओज से भरे हुए हैं। लेकिन इनकी रवानगी वीरता से कहीं ज्यादा यहां की चट्ïटानी जमीन पर चंदेल राजाओं के पानी उस बंदोबस्त से है जिसके किनारे आज भी इनकी जिंदगी मुस्कराती है। किशोरीलाल कहते हैं, ‘‘ये तालाब न होते तो चंदेलों की शौर्य गाधा गाने वाली जुबां न होती। महोबा वीरान होता। इसके जलस्तर बढऩे से पूरे शहर का जलस्तर बढ़ा हुआ है।’’ महोबा, बांदा, हमीरपुर के तीन जिलों में ही 252 छोटी-बड़ी बंधियां हैं। जिनमें 17 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि सिंचित होती है। लेकिन इन बंधियों के रखरखाव के लिए सिर्फ तीन लाख का ही बजट है। नतीजतन सभी बंधी टूट चुकी हैं। जिसकी वजह से इतने साल बाद कुदरत ने जो बूंदें दीं वह बह गयीं। महोबा सिंचाई के अधिशासी अभियंता एसके गुप्ता बताते हैं, ‘‘बंधियों का रखरखाव पिछले दो तीन साल से फंड न मिल पाने के कारण नहीं हो पा रहा है। बस यह होता है कि भाई जब कभी कोई बंधी में खराबी आयी तो उनका इलाज कर दिया जाता है। बड़ी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं बंधियां इनकी पुर्नस्थापना की योजना बनायी जा रही है।’’हालांकि महोबा के मनोज कहते हैं, ‘‘ सरकारी जल प्रबंधन शून्य है। अगर ये प्राचीनकालीन तालाब न होते तो यहां की जनता मर गयी होती। ये जो तालाब हैं उससे यहां का जीवन चलता है। सरकारी तंत्र बिल्कुल शून्य है।’’
सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने 9००० करोड़ रूपये से मलहम लगाने की घोषणा की। यहां तक कि कृत्रिम बारिश कराने की बात भी कही जा रही थी। पर यहां पहले से मौजूद इन बंधियों को थोड़े से पैसे में अगर ठीक कर लिया गया होता तो आने वाले सालों में भी बुंदेलखंड के किसानों की झोली खुशियों से भरी रहती। हम अपने सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लापरवाह तो हैं ही लेकिन अपने प्राकृतिक नियामत के प्रति भी बेहद गार जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि पिछले पांच साल के सूखे की वजह से खंड-खंड हो गये बुंदेलखंड पर जब बादल मेहरबान हुए तो उससे बरसने वाली जिंदगी की बूंदों को हम सहेज कर नहीं रख पाये। जिसके कारण आने वाले दिनों में यहां के लोगों को आसमान की ओर फिर एक बार टकटकी लगानी पड़ सकती है।
बारिश के अपने सुख-दुख के बीच बुंदेलखंड के लोग कर्जमाफी के उस सरकारी बारिश में भी उलझे हैं। जिसकी घोषणा से इन्हें सबसे ज्यादा राहत पहुंची थी। लेकिन अब इनके अनपढ़ होने का लाभ उठा रहे दलालों की इतनी दास्तां यहां बिखरी पड़ी है जिसे सुनकर आप हैरत में पड़ सकते हैं। इस इलाके के बैंकों ने जमा का लक्ष्य भले ही न पूरा किया हो पर कर्ज देने के अपने सभी कोरम समय से पहले पूरा कर लिया था। यही वजह है कि इस घोषणा के बाद कर्ज माफी की लंबी लिस्ट में यहां के भोले-भाले किसान उलझे दिख रहे हैं। फूट-फूट कर रो रहे पहलवान सिंह को कर्ज नें जिंदगी भर का आंसू दिया है। क्योंकि गुजरे बरस इसी कर्ज के बोझ तल बेटेे शत्रुघ्न की जिंदगी दब गयी। पर कर्ज साबुत खड़ा है। कर्ज की स्याह छाया आज भी घर के हर उदास चेहरे पर दिखायी पड़ती है फिर भी इन सबके बीच सरकार की कर्ज माफी की घोषणा ने इस गहरे जख्म के भरने की कुछ उम्मीद जगायी थी। लेकिन बैंकों के रवैये और दलालों की चाल इनके आंख का आंसू थमने नहीं दे रहा। पहलवान सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे भाई चले गये। अब चार बच्चों का गुजर-बसर हमसे नहीं हो पाता। बैंक वाले भगा देते हैं। हमारा कर्जामाफी लिस्ट में नाम नहीं है।’’ केंद्र सरकार की कर्जमाफी योजना आयी तो भूख और प्यास की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों को सबसे ज्यादा राहत का एहसास हुआ। क्योंकि चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा के चार जिलों में ही तकरीबन 45००० से ज्यादा किसान क्रेडिट कार्ड हैं। जिन पर करोड़ों रूपये का कर्ज दिया गया है। इनमें से ही एक राजन सिंह हैं जो कर्ज माफी की मुनादी के बाद बारिश के इस अनमोल समय में भी खेती का काम छोड़ बैंक का चक्कर लगाने लगे थे। लेकिन कई बार जाने के बाद भी जब निराशा हाथ लगी तो फिर अपने खेत में लौट आए हैं। राजन सिंह कहते हैं, ‘‘ मैंने अंतिम सूची मे नाम भी देखा। नाम था लेकिन वल्दियत नहीं थी। तो मैं क्या जानूं कि मेरा नाम है क्योंकि राजन सिंह नाम के कई लोग हैं।’’ कर्ज की चक्की में पिसने को अभिशप्त बुंदेलखंड के वाशिंदों से मिलने पर कई बेनजीर नजीरें मिलती हैं। हाथ में बैंक के पासबुक और किसान क्रेडिट कार्ड दिखाते कई किसानों का दर्द कर्ज माफी के सरकारी नियम कानून न समझ पाने को लेकर है। कभी अपने सरजमीं पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले बुंदेलों को सबसे ज्यादा पराजय बैंक के कर्जों से मिली है। तभी तो इससे बंजर हो चुकी इनकी जिंदगी इतनी बारिश के बाद भी हरी-भरी होती नजर नहीं आ रही है। बारिश की वजह से बुंदेलखंड के लोगों की उम्मीदों की फसल लहलहाने से पहले ही खत्म हो गई लगती है। लेकिन सरकारी बारिश में इनकी उनींदी आंखों में कर्ज मुक्ति के जो सपने तैरने लगे थे वह भी बिखरते नजर आ रहे हैं। क्योंकि सरकार की कर्ज माफी की घोषणा का असर इन तो नहीं पहुंच पा रहा है। बुंदेलों के दर्द पर घडिय़ाली आंसू बहाने वाली सूबे की सरकार अगर इनके इतिहास से सबक सीखा होता तो पांच साल बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते बुंदेलखंड में इतनी बारिश के बाद अगले पांच साल का इंतजाम कर लिया होता।
परंपरागत खेती को बेहतर मानने वाले लामा गांव के किसान और तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे जगन्नाथ सिंह परमार ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘बारिश का जो मिजाज सामने आया है। उससे अनावृष्टिï के बाद अतिवृष्टिï के चलते तबाही का मंजर दिख रहा है। खरीफ की फसल को लेकर निराशापूर्ण हालात उत्पन्न हो गये हैं। खेतों में लबालब पानी भरा है। मिट्ïटी गहराई तक गीली हो गई है। हल चलाना मुश्किल हो गया है। लोग खेत जोत-बो नहीं पा रहे हैं। जिन्होंने बीच में आसमान साफ होने पर जुताई-बुआई कर दी है। उनका बीज जमने की संभावना नगण्य है।’’ बीते पांच साल में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग किस कदर तरसे थे यह पिछले महीनों में हुई पानी की लूट की घटना से समझी जा सकती है। पर इस साल बुंदेलों के आसमान पर मानसून मेहरबान है।
खेतों में गंगा की धारा की तरह मचलते पानी को देख इस गंगा को यहीं ठहर जाने का मनुहार करती महिलाएं पानी के बिना दरक गए बुंदेलखंड के उस इलाके में धान की रोपाई कर रही हैं। जहां बादल झूम कर बरसे हैं। पानी की यह खुशी खेतों में खाद डालते 7० बीघे के काश्तकार राम सागर को देखकर समझी जा सकती है। राम सागर पानी से सनी मिट्ïटी को लिबास बना खेतों को समतल करने में जुटे हैं। वे पानी की हर एक बूंद की नियामत को सहेज लेना चाहते हैं। रामसागर कहते हैं, ‘‘बहुत अंतर पड़ा है। पिछले साल फसल हुई नहीं। तीन-चार दिन तक ट्ïयूबवेल चलते थे, तब भी पानी नहीं हो पाता था। इस बार काम बढिय़ा चल रहा है।’’ राम सागर ही नहीं, तेज हवाओं के साथ उमड़-घुमड़ कर आने वाले बादल ये संदेश देते हैं कि मानो कुदरत ने अपनी सारी नजरें यहीं इनायत की हैं। इनके इस संदेश को इंसानों के साथ यहां के मवेशियों ने भी सुना। लिहाजा पानी की तलाश में जो गांव छोड़ गए थे। उनकी खुशी अब गांव के ही ताल तलैया में तैरती दिख रही है। प्यासी धरती भी वर्षों की अपनी प्यास बुझाने के बाद अब यहां के लोगों, पौधों और जानवरों की प्यास बुझा रही है। किसान अयोध्या प्रसाद कहते हैं, ‘‘पानी से खूब आजादी है। जानवर चर रहे हैं। पानी पी रहे हैं। खेती हो रही है। खूब खुशी है। अगर पानी नहीं होता तो क्या खेती होती?’’ बारिश ने सिर्फ बुंदेलखंड को हरा-भरा नहीं किया बल्कि पानी की कमी से बीमार हो गई मिट्ïटी को दुरूस्त भी कर रही है। मिट्ïटी में उर्वरकता की कमी वर्ष 2००1, 2००5 में एनआई के जांच से पता चलता है। मिट्ïटी में जो आर्गेनिक कार्बन ०.8 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए वह घटकर ०.3 प्रतिशत के आसपास रह गई है। इसी तरह उपल_x008e_ध फास्फेट 4० किग्रा प्रति हेक्टेयर से घटकर 2० किग्रा प्रति हेक्टेयर, पोटाश 25० किग्रा से 15० किग्रा प्रति हेक्टेयर, गंधक 15 पीपीएम से 1० पीपीएम के आसपास, जस्ता 1.2 पीपीएम से ०.6 पीपीएम तक पहुंच गया है। पर इस बारिश को देख मिट्ïटी की गुणव_x009e_ाा की जांच करने वाले कहते हैं, ‘‘खेतों में उगने वाले खर पतवार से इसमें कुछ सुधार आएगा।’’ भूमि परीक्षण प्रयोगशाला, हमीरपुर के अध्यक्ष मोहम्मद हबीब कहते हैं, ‘‘खर पतवार की जुताई करके अगर हम फिर से मिट्ïटी में मिला देते हैं तो पानी उसको सड़ाकर उसमें जीवांश कार्बन का प्रतिशत तो बढ़ाएगा ही।’’
बादलों से निकलकर मोती जैसी पानी की बूंदे जब अपने नाजुक हाथों से धरती को सहलाती हैं तो मानो सारी कायनात गुनगुना उठती है। कुछ ऐसा ही हुआ है सूखे की त्रासदी झेल रहे बुंदेलखंड में, जहां बारिश से न सिर्फ हर पौधे मुस्करा रहे हैं बल्कि यहां के लोग भी अपने आने वाले शबाबी दिनों के ख्वाबों में खो गये हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि पानी की ये नियामत इन्हें हर साल मिलती रहे। जिससे इनके ख्वाब न टूट सकें। इस इलाके में जून से लेकर अब तक तकरीबन 6०० मिमी वर्षा हो चुकी है। यही वजह है कि इतने साल बाद बारिश की ये खुशी हर जगह नहीं दिखती। क्योंकि बुंदेलखंड के पहाड़ी इलाकों में चार तरह की मिट्ïटी पायी जाती है। जिसमें मार और काबर जमीन पर धान की खेती होती है पर यह बहुत थोड़ी है। ज्यादातर दलहन और तिलहन जिस पड़ुआ और राकड़ जमीन पर होती है उसके लिए पानी खरीफ कीफसल को न लगने देने का सबब बन रहा है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह कहते हैं, ‘‘बीते चार सालों से सूखे के चलते भुखमरी का सामना कर रहे किसानों को लगा था कि फसलों की बुआई कर अब तक हुई बर्बादी की कुछ भरपाई कर लेंगे। पर लगातार हो रही बारिश ने उनके हाथ बांध रखे हैं। 3०-4० फीसदी किसान ही धान रोप पाए हैं। अरहर, बाजरा, ज्वार, मूंग और उड़द की बुआई का समय भी निकल गया।’’
मतलब साफ है कि लगातार हो रही बारिश की एक बूंद अब यहां के लोगों को निराश कर रही है। अपने खेत की मेड़ पर उदास बैठे दौलत सिंह के खेत में जब बारिश की पहली बूंद गिरी तो सूख चुकी आस हरी हो गयी। हल और फावड़े की धार ठीक करने लगे। पर पहली बूंद ऐसी है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। लिहाजा, अब उनकी यह आस उसमें डूबती नजर आ रही है। दौलत सिंह बताते हैं, ‘‘पानी से बर्बाद हो गया। खेत में पानी ही पानी है। सावन आ गया। बीज रखा है घर में। बो नहीं पाये।’’ यह कहानी अकेले दौलत सिंह की नहीं बल्कि इस इलाके के ज्यादातर किसानों की है। बीते वर्षों में पानी न बरसने से कृषि उत्पादन में भारी गिरावट हुई। बुंदेलखंड में 14 लाख 5० हजार हेक्टेयर में ही खेती होती है। इसमें भी कुल 18 फीसदी जमीन ही सिंचित है। पिछले साल रबी की फसल बहुत कम हुई थी पर इस साल बारिश अच्छी हो रही है। जिससे इनकी उम्मीद जगी थी। कि खरीफ की अच्छी फसल से रबी की कमी पूरी हो जाएगी। पर जून से लेकर अब तक लगभग 6०० मिमी बारिश हो चुकी है, जिससे ये खरीफ के बीज खेतों में नहीं लगा पा रहे हैं। किसान राजेंद्र सिंह बताते हैं , ‘‘उड़द, तिल, मूंग, मूंगफली लाके रखे हैं। पर मानसून निकल नहीं रहा है। लिहाजा सब रखा रह गया। बीज का पैसा भी नहीं निकल पाएगा।’’
बारिश ने सिर्फ किसानों की उम्मीदों पर ही पानी नहीं फेरा है। बल्कि समय से मानसून आ जाने से काम की आस में गांव रह गये इन खेतिहर मजदूरों को भी बेपानी कर दिया है जो अब खाली बैठे रेडियो सुन रहे हैं। या फिर बारिश के पानी से बने छोटे-छोटे ताल तलैया में कांटा डाल मछली पकडऩे का घंटों इंतजार कर रहे हैं।खेतिहर मजदूर अवधेश कुमार की दिक्कत कुछ यूं है, ‘‘पहले सूखा था तो बाहर काम करने गए थे। अबकी पानी देख उम्मीद थी अपनी खेती किसानी करेंगे। लेकिन इतना पानी बरसा कि कोई काम नहीं हो पा रहे हैं।’’
यहां के किसानों को लगातार हो रही बारिश से खरीफ की फसल न बो पाने का जरूर थोड़ा दुख है। पर इससे कहीं ज्यादा दर्द बिना किसी योजना के अपनी जेब भरने के लिए खुदे तालाब और टूटी बंधियों से पानी बह जाने का है। क्योंकि इसी बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा पानी की प्यास से धरती जो फटी है। रजनीश कुमार बताते हैं, ‘‘वाटर लेवल ऊपर आया है और दस फीट करीब बढ़ गया है लेकिन देखिये अब कब तक रहेगा।’’ पानी की इस कीमत को यहां के राजाओं ने भी बखूबी समझा था। जिसकी बानगी चरखारी के तालाबों में दीखती है। आल्हा के एक-एक बोल चंदेल राजाओं की वीरता के ओज से भरे हुए हैं। लेकिन इनकी रवानगी वीरता से कहीं ज्यादा यहां की चट्ïटानी जमीन पर चंदेल राजाओं के पानी उस बंदोबस्त से है जिसके किनारे आज भी इनकी जिंदगी मुस्कराती है। किशोरीलाल कहते हैं, ‘‘ये तालाब न होते तो चंदेलों की शौर्य गाधा गाने वाली जुबां न होती। महोबा वीरान होता। इसके जलस्तर बढऩे से पूरे शहर का जलस्तर बढ़ा हुआ है।’’ महोबा, बांदा, हमीरपुर के तीन जिलों में ही 252 छोटी-बड़ी बंधियां हैं। जिनमें 17 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि सिंचित होती है। लेकिन इन बंधियों के रखरखाव के लिए सिर्फ तीन लाख का ही बजट है। नतीजतन सभी बंधी टूट चुकी हैं। जिसकी वजह से इतने साल बाद कुदरत ने जो बूंदें दीं वह बह गयीं। महोबा सिंचाई के अधिशासी अभियंता एसके गुप्ता बताते हैं, ‘‘बंधियों का रखरखाव पिछले दो तीन साल से फंड न मिल पाने के कारण नहीं हो पा रहा है। बस यह होता है कि भाई जब कभी कोई बंधी में खराबी आयी तो उनका इलाज कर दिया जाता है। बड़ी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं बंधियां इनकी पुर्नस्थापना की योजना बनायी जा रही है।’’हालांकि महोबा के मनोज कहते हैं, ‘‘ सरकारी जल प्रबंधन शून्य है। अगर ये प्राचीनकालीन तालाब न होते तो यहां की जनता मर गयी होती। ये जो तालाब हैं उससे यहां का जीवन चलता है। सरकारी तंत्र बिल्कुल शून्य है।’’
सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने 9००० करोड़ रूपये से मलहम लगाने की घोषणा की। यहां तक कि कृत्रिम बारिश कराने की बात भी कही जा रही थी। पर यहां पहले से मौजूद इन बंधियों को थोड़े से पैसे में अगर ठीक कर लिया गया होता तो आने वाले सालों में भी बुंदेलखंड के किसानों की झोली खुशियों से भरी रहती। हम अपने सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लापरवाह तो हैं ही लेकिन अपने प्राकृतिक नियामत के प्रति भी बेहद गार जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि पिछले पांच साल के सूखे की वजह से खंड-खंड हो गये बुंदेलखंड पर जब बादल मेहरबान हुए तो उससे बरसने वाली जिंदगी की बूंदों को हम सहेज कर नहीं रख पाये। जिसके कारण आने वाले दिनों में यहां के लोगों को आसमान की ओर फिर एक बार टकटकी लगानी पड़ सकती है।
बारिश के अपने सुख-दुख के बीच बुंदेलखंड के लोग कर्जमाफी के उस सरकारी बारिश में भी उलझे हैं। जिसकी घोषणा से इन्हें सबसे ज्यादा राहत पहुंची थी। लेकिन अब इनके अनपढ़ होने का लाभ उठा रहे दलालों की इतनी दास्तां यहां बिखरी पड़ी है जिसे सुनकर आप हैरत में पड़ सकते हैं। इस इलाके के बैंकों ने जमा का लक्ष्य भले ही न पूरा किया हो पर कर्ज देने के अपने सभी कोरम समय से पहले पूरा कर लिया था। यही वजह है कि इस घोषणा के बाद कर्ज माफी की लंबी लिस्ट में यहां के भोले-भाले किसान उलझे दिख रहे हैं। फूट-फूट कर रो रहे पहलवान सिंह को कर्ज नें जिंदगी भर का आंसू दिया है। क्योंकि गुजरे बरस इसी कर्ज के बोझ तल बेटेे शत्रुघ्न की जिंदगी दब गयी। पर कर्ज साबुत खड़ा है। कर्ज की स्याह छाया आज भी घर के हर उदास चेहरे पर दिखायी पड़ती है फिर भी इन सबके बीच सरकार की कर्ज माफी की घोषणा ने इस गहरे जख्म के भरने की कुछ उम्मीद जगायी थी। लेकिन बैंकों के रवैये और दलालों की चाल इनके आंख का आंसू थमने नहीं दे रहा। पहलवान सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे भाई चले गये। अब चार बच्चों का गुजर-बसर हमसे नहीं हो पाता। बैंक वाले भगा देते हैं। हमारा कर्जामाफी लिस्ट में नाम नहीं है।’’ केंद्र सरकार की कर्जमाफी योजना आयी तो भूख और प्यास की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों को सबसे ज्यादा राहत का एहसास हुआ। क्योंकि चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा के चार जिलों में ही तकरीबन 45००० से ज्यादा किसान क्रेडिट कार्ड हैं। जिन पर करोड़ों रूपये का कर्ज दिया गया है। इनमें से ही एक राजन सिंह हैं जो कर्ज माफी की मुनादी के बाद बारिश के इस अनमोल समय में भी खेती का काम छोड़ बैंक का चक्कर लगाने लगे थे। लेकिन कई बार जाने के बाद भी जब निराशा हाथ लगी तो फिर अपने खेत में लौट आए हैं। राजन सिंह कहते हैं, ‘‘ मैंने अंतिम सूची मे नाम भी देखा। नाम था लेकिन वल्दियत नहीं थी। तो मैं क्या जानूं कि मेरा नाम है क्योंकि राजन सिंह नाम के कई लोग हैं।’’ कर्ज की चक्की में पिसने को अभिशप्त बुंदेलखंड के वाशिंदों से मिलने पर कई बेनजीर नजीरें मिलती हैं। हाथ में बैंक के पासबुक और किसान क्रेडिट कार्ड दिखाते कई किसानों का दर्द कर्ज माफी के सरकारी नियम कानून न समझ पाने को लेकर है। कभी अपने सरजमीं पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले बुंदेलों को सबसे ज्यादा पराजय बैंक के कर्जों से मिली है। तभी तो इससे बंजर हो चुकी इनकी जिंदगी इतनी बारिश के बाद भी हरी-भरी होती नजर नहीं आ रही है। बारिश की वजह से बुंदेलखंड के लोगों की उम्मीदों की फसल लहलहाने से पहले ही खत्म हो गई लगती है। लेकिन सरकारी बारिश में इनकी उनींदी आंखों में कर्ज मुक्ति के जो सपने तैरने लगे थे वह भी बिखरते नजर आ रहे हैं। क्योंकि सरकार की कर्ज माफी की घोषणा का असर इन तो नहीं पहुंच पा रहा है। बुंदेलों के दर्द पर घडिय़ाली आंसू बहाने वाली सूबे की सरकार अगर इनके इतिहास से सबक सीखा होता तो पांच साल बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते बुंदेलखंड में इतनी बारिश के बाद अगले पांच साल का इंतजाम कर लिया होता।
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