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6700 करोड़ कमा कर दे रहे हैं 64 रुपये के फटेहाल दिहाड़ी मजदूर
लखनऊ , 2 अक्टूबर- प्रदेश सरकार को 6700 करोड़ का विशाल राजस्व कमाकर देने वाले निबंधन विभाग का पूरा दारोमदार वहां के 64 रुपये के दिहाड़ी मजदूरों के कंधों पर है। वर्ष 1985 में 200 करोड़ रुपये वाले राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य को बढ़ाकर अब धीरे-धीरे वर्ष 2008 में 6700 करोड़ कर दिया गया है लेकिन अभी तक यहां पर कार्यरत 64 रुपये के मजदूरों के वेतन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी और न ही विभाग में आज तक कोई नयी भर्ती की गयी और न ही नये पदों का सृजन किया गया। यहां काम करके प्रदेश सरकार को करोड़ों का राजस्व देने वाले मजदूर आज भी फटेहाल हैं। उनका पुरासाहाल लेने वाला कोई नहीं है।
प्रदेश की सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली प्रदेश की बसपा सरकार ने भी उनकी नहीं सुनी। जबकि इस सरकार से उन सबको बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि उनके मामले की सुनवाई राज्य सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र ने ही पहले की है। लिहाजा उनको लग रहा था कि श्री मिश्र उनके दर्द को भलीभांति समझेंगे और उसका निवारण करेंगे। विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि श्री मिश्र वर्ष 1998 में उच्च न्यायालय में निबंधन विभाग के दैनिक कर्मियों के विनियमितीकरण की पैरवी भी कर चुके हैं। परन्तु अब सरकार में महत्वपूर्ण पद पर रहने के बावजूद श्री मिश्र उन लोगों के लिये कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं, यह उनकी समझ से परे है।
गौरतलब है कि मीडिया द्वारा इस संबंध में खबरों के प्रकाशन के बाद पांच माह पूर्व 3 अप्रैल 2008 को राज्य सरकार की नींद टूटी थी तब सतीश चंद्र मिश्र ने आनन-फानन में प्रमुख सचिव स्तर की बैठक कर प्रदेश के समस्त विभागों में कार्यरत दैनिक कर्मचारियों का विनियमितीकरण 90 दिन के अंदर करने की घोषणा की थी। इस कार्य में कट आफ डेट की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को ही सौंपी गयी थी। इसके बाद लगने लगा था कि इन दैनिक कर्मचारियों की जिंदगी में भी उजाला आयेगा लेकिन अब तीन माह से अधिक की कट आफ डेट भी गुजर चुकी है लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसके चलते अब दैनिक कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट गया। इनका कहना है कि निबंधन विभाग के दैनिक कर्मी स्नातक, स्नातकोत्तर तथा वकालत जैसी उच्च शिक्षा लिये हुये हैं और वह 64 रुपये की दैनिक मजदूरी करने को बाध्य हैं जबकि अनपढ़ लोग भी 150 रुपये की दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। इनका कहना है कि वह और उनका परिवार अब भुखमरी के कगार पर आ गये हैं लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है। राज्य निबंधन विभाग के लिपिक संघ के प्रदेश संगठन मंत्री अरुण निगम का कहना है कि सबके हित की बात करने वाली प्रदेश सरकार का ध्यान इन कर्मचारियों की ओर नहीं जा रहा है जिसके लिये इस बार यहां के दिहाड़ी मुस्लिम मजदूरों ने ईद न मनाने का निर्णय लिया है। अब देखना है कि मुस्लिम के हितों की बात करने वाली सरकार इन मुस्लिमों के लिये कुछ कदम उठाती है या फिर यह बात केवल हवाई ही साबित होगी।
प्रदेश की सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली प्रदेश की बसपा सरकार ने भी उनकी नहीं सुनी। जबकि इस सरकार से उन सबको बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि उनके मामले की सुनवाई राज्य सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र ने ही पहले की है। लिहाजा उनको लग रहा था कि श्री मिश्र उनके दर्द को भलीभांति समझेंगे और उसका निवारण करेंगे। विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि श्री मिश्र वर्ष 1998 में उच्च न्यायालय में निबंधन विभाग के दैनिक कर्मियों के विनियमितीकरण की पैरवी भी कर चुके हैं। परन्तु अब सरकार में महत्वपूर्ण पद पर रहने के बावजूद श्री मिश्र उन लोगों के लिये कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं, यह उनकी समझ से परे है।
गौरतलब है कि मीडिया द्वारा इस संबंध में खबरों के प्रकाशन के बाद पांच माह पूर्व 3 अप्रैल 2008 को राज्य सरकार की नींद टूटी थी तब सतीश चंद्र मिश्र ने आनन-फानन में प्रमुख सचिव स्तर की बैठक कर प्रदेश के समस्त विभागों में कार्यरत दैनिक कर्मचारियों का विनियमितीकरण 90 दिन के अंदर करने की घोषणा की थी। इस कार्य में कट आफ डेट की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को ही सौंपी गयी थी। इसके बाद लगने लगा था कि इन दैनिक कर्मचारियों की जिंदगी में भी उजाला आयेगा लेकिन अब तीन माह से अधिक की कट आफ डेट भी गुजर चुकी है लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसके चलते अब दैनिक कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट गया। इनका कहना है कि निबंधन विभाग के दैनिक कर्मी स्नातक, स्नातकोत्तर तथा वकालत जैसी उच्च शिक्षा लिये हुये हैं और वह 64 रुपये की दैनिक मजदूरी करने को बाध्य हैं जबकि अनपढ़ लोग भी 150 रुपये की दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। इनका कहना है कि वह और उनका परिवार अब भुखमरी के कगार पर आ गये हैं लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है। राज्य निबंधन विभाग के लिपिक संघ के प्रदेश संगठन मंत्री अरुण निगम का कहना है कि सबके हित की बात करने वाली प्रदेश सरकार का ध्यान इन कर्मचारियों की ओर नहीं जा रहा है जिसके लिये इस बार यहां के दिहाड़ी मुस्लिम मजदूरों ने ईद न मनाने का निर्णय लिया है। अब देखना है कि मुस्लिम के हितों की बात करने वाली सरकार इन मुस्लिमों के लिये कुछ कदम उठाती है या फिर यह बात केवल हवाई ही साबित होगी।
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