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लालबत्ती धारी....... जलवा. जलाल. जम्हूरियत.....
उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार के ताकतवर मंत्री और अल्पसंख्यक चेहरे माने जाने वाले एक नेता के यहां नवनियुक्त सलाहकार पहुंचे । उन्होंने अपना परिचय देते हुए बताया कि राज्य सरकार ने उन्हें कबीना मंत्री के महकमे में सलाहकार नियुक्त कर दिया है। बडे अदब से कबीना मंत्री ने उन्हें समझाया....हम मंत्री हैं। जिसे वज़ीर कहते हैं। वज़ीर का काम सलाह देना है, हम खुद सलाह देने का काम करते हैं। ऐसे में हमें सलाहकार की क्या जरुरत है। टका सा मुंह लेकर नवनियुक्त सलाहकार ने अपना विभाग बदलवा लिया। इस तरह की दिक्कत से अखिलेश यादव सरकार के हर महकमे का मंत्री दो चार हो रहा है। यह बात दीगर है कि इस तरह से साफगोई से कहने की ताकत किसी में नहीं है। उसे दर्जा प्राप्त मंत्री को यह समझाने में खासी दिक्कत पेश आ रही है कि महकमा उनके सुख सुविधाओं का बंदोबस्त करने में असहाय है। बावजूद इसके सरकार लगातार विभागो में सलाहकार और निगमों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की तैनाती बंद करने का नाम नहीं ले रही है। हद तो यह हो गयी है कि सूबे में जितने मंत्री हैं उससे तकरीबन दोगने नेता दर्जा प्राप्त मंत्री का ओहदा लेकर दौडते भागते नज़र आ रहे हैं। तादाद बढने का सबब है कि दर्जा प्राप्त मंत्रियों के लियहसेवानिवृत निजी सहायक और अपर निजी सहायकों की सेवा लेने का फैसला मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अगुवाई वाली एक बैठक में लेना पडा। किसी की समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर लालबत्ती बांटने के समीकरण और फार्मूले क्या तय कियहगयहहैं। क्योंकि कई-कई जिलो में तीन-चार लोग भी लालबत्ती का सुख उठा रहे हैं, तो कई मंडल के कार्यकर्ता इस सुख से वंचित हैं। अकेले मेरठ जिले में चार लालबत्ती धारी हैं, जिनमें तीन मुस्लिम और एक जाट हैं। जौनपुर में दर्जा प्राप्त 5 राज्यमंत्री हैं। इनमें सतईराम यादव, कुंवर वीरेंद्र प्रताप सिंह, संगीता यादव, हनुमान सिंह और राजनारायण बिंद का नाम शामिल है। इसमें राजनारायण बिंद भाजपा से कल्याण सिंह के साथ सपा में आये थे। गोरखपुर और बस्ती मंडल में करीब आधा दर्जन सपा नेताओं को लाल बत्ती थमाकर रुतबा बढाया गया है। लालबत्ती पाने वाले डा.के.सी.पांडेय पर पशुतस्करी के आरोप भी लग चुके हैं। बुंदेलखंड सपा-बसपा-भाजपा और कांग्रेस के सियासी पहलवानों का सबसे बडा अखाडा है। पर इस सरकार में वहां से कोई भी मंत्री और दर्जा प्राप्त मंत्री के रुतबे का हकदार नहीं हो पाया है जबकि तमाम ऐसे लोगों को भी लालबत्ती से नवाजा गया है जो ना केवल दलबदलू हैं बल्कि पार्टी के लिये उनकी कोई उपयोगिता भी आलाकमान को छोड़ किसी नेता और कार्यकर्ता के नज़र मे नहीं आ रही है। इसमें रंजना वाजपेयी और अनुराधा चौधरी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। इलाहाबाद यूनीवर्सिटी की प्रोफेसर रही रंजना वाजपेयी हांलांकि पिछली मुलायम सरकार में महिला आयोग की अध्यक्ष थीं पर सरकार जाते ही उन्होंने बसपा की ओर रुख कर लिया था। पांच साल सत्ता का सुख भोगा और अब फिर घरवापसी कर ली। भाग्यशाली रहीं कि बसपा छोड़ सपा में शामिल होते ही योजना आयोग के सदस्य के तौर पर राज्य मंत्री का दर्जा पा गयीं। वह अपनी लालबत्ती का उपयोग अपने बेटे हर्ष वाजपेयी का भविष्य संवारने के लियहकरती दिखायी पड़ रही हैं। कई मौकों पर वह अपने बेटे के साथ कार्यक्रमों में भी पहुंचती हैं। कभी रालोद मुखिया अजित सिंह की हमकदम रही अनुराधा चौधरी सपा में आते ही बिजनौर से लोकसभा का टिकट पा गयीं लेकिन टिकट कटा तो उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के उपाध्यक्ष पद देकर लाल बत्ती से नवाजा गया। इसके अलावा मेरठ शहर से विधानसभा चुनाव हारे अयूब अंसारी को लाल बत्ती थमाना, प्रोन्नत होकर आईएएस बने तपेंद्र प्रसाद का वीआरएस लेकर सपा में शामिल होते ही प्रशासनिक सुधार विभाग में सलाहकार बनाया जाना अबूझ पहेली ही है। वह खुद को मेजा क्षेत्र का बताते हैं। वहां के लोग भी उनको नहीं जानते। ऐसे में उनका सपा के हित में क्या उपयोग यहयक्षप्रशन सुलझाने में इलाकायी सपाई सर खपा रहे हैं। इसी के साथ ही साथ पसमांदा समाज के नेता अनीस मंसूरी को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से हटाकर होमगार्ड विभाग में सलाहकार बनाया जाना, सुरभि शुक्ला को राज्य शैक्षिक एवं अनुसंधान परिषद की चेयरमैन बनाना फिर हटा देना और फिर महिला आयोग में उपाध्यक्ष बनाने के एक माह बाद फिर राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद का चेयरमैन बनाया जाना यह बताने के लियहपर्याप्त है कि आखिर किस तरह और किन किन लोगों को लाल बत्तियों से नवाजा जा रहा है। बिरजू महराज के उत्तराधिकारियों में रेडिया जॉकी नावेद सिद्दीकी का नाम जोड़ दिया गया है। आर्य समाजी परिवार से ताल्लुक रखने वाले मंदिर मूर्तियों के रखरखाव और सलाह का काम कर रहे हैं। व्यापारियों की लडाई लड़ने वाले संदीप बंसल को संस्कृति बचाने की जिम्मेदारी दी गयी है। संदीप बंसल की एक खासियत ये भी है कि जब जिस पार्टी की सत्ता होती है वो उसी पार्टी का रंग खुद पर और अपने संगठन पर चढा लेते है। सपा बसपा भाजपा किसी का भेद नहीं करते। रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर का चेयरमैन राजनीति विज्ञान में पीएचडी की डिग्री धारी डा कुलदीप उज्जवल चौधरी को बनाया गया है।
लालबत्तियों के बांटने में इस तरह के तमाम विरोधाभास अब साफ तौर देखे जा सकते हैं। मतलब साफ है कि लाल बत्ती बांटने के खेल में योग्यता और विशेषज्ञता का ख्याल ही नहीं रखा गया। यही वजह है कि एक तरफ यहलालबत्ती धारी सरकार के लियहसरदर्द साबित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ अपने ओहदे और रुतबे से असंतुष्ट दिख रहे हैं। कइयों की असंतोष की वजह जायज भी है। मसलन, सी.पी.राय को मद्यनिषेद विभाग के मार्फत लाल बत्ती थमाई गयी है। लखनऊ को छोड़कर सूबे में उसका कहीं दूसरा कोई कार्यालय ही नहीं है। आबकारी राजस्व बढाकर अपना कोष भरने का काम करने वाली सरकार मद्यनिषेध का महकमा जाहिरा तौर पर अखरेगा ही।
इलाहाबाद मे उज्जवल रमण सिंह को बीज विकास निगम का चेयरमैन बनाकर लाल बत्ती का गौरव प्रदान किया गया। वह मौजूदा सपा सासंद रेवती रमण सिंह के बेटे हैं। पिछली सपा सरकार में पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं। लेकिन सपा की बयार के बीच भी वो पिछला चुनाव बसपा के नौसिखियहसे हार गये। पिता सपा के बडे नेता हैं तो उन्हें लाल बत्ती से नवाजा जाना तय था। हांलांकि उज्जवल शालीन छवि के नेता हैं और सपा के कई विधायक इस बात से चिढ गयहकि हारे हुए नेता का रुतबा किस आधार पर बढाया गया। वैसे तो इलाहाबाद के प्रशासन पर रेवती रमण सिंह का सिक्का चलता है लेकिन अब उनके मुकाबिल पार्टी के विधायक विजय मिश्र और पूर्व सांसद अतीक अहमद भी दखल रखने लगे हैं। लिहाजा कार्यकर्ताओं में खींचतान बढ़ गयी है। सो लालबत्ती धारी उज्जवल की बात सुनने से प्रशासन भी कतराने लगा है। हाल ही में एक लाल बत्ती वाले नेता का दिलचस्प वाकया सुनने को मिला। यह साहब हैं-श्रीप्रकाश राय उर्फ लल्लन राय। लल्लन राय ने इलाहाबाद के सर्किट हाउस में अफसरों की बैठक बुला ली। जिलाधिकारी राजशेखर ने उसी बीच किसी अफसर को तलब किया। पता चला अफसर मंत्री जी की मीटिंग में हैं। वे जैसे ही मीटिंग से लौटे डीएम साहब फट पडे। बेचारे अफसर की सांस अटक गयी। रामपूजन पटेल वैसे तो पुराने नेता हैं केंद्र में मंत्री भी रहे। उन्हें भी सपा सरकार ने लालबत्ती से नवाजा है लेकिन वह अपनी लालबत्ती गाडी का इस्तेमाल सिर्फ निजी कार्यक्रमों में जाने के लिये ही करते है। ऐसे में वह पार्टी का कितना भला करेंगे यह सवाल सपाई हलके मे गूंजने लगा है।
रामवृक्ष यादव जब से यमुना पार के एक इसाई धर्मप्रचारक के संरक्षण दाता बन गयहहैं तबसे उनकी लालबत्ती का औचित्य भी पार्टी कार्यकर्ताओं को नहीं समझ आ रहा है। कुछ ऐसा ही मामला इंदुप्रकाश मिश्र का है, सुल्तानपुर के लम्हुआ क्षेत्र के निवासी इंदु इलाहाबाद में पेट्रोल पंप चलाते हैं। कुछ बड़े लोगों से संपर्क के चलते वो लम्हुआ से सपा का विधानसभा टिकट भी पा गये थे। संतोष पांडेय समर्थकों के विरोध के चलते उनका टिकट कटा लेकिन वह राज्यमंत्री का दर्जा पा गये। सपा के हित में काम करना तो दूर सपाइयो की ईष्या का कारण बने हुए हैं। नरेंद्र भाटी ने आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में गलत सूचना देकर किस तरह सरकार की किरकिरी करायी यहकिसी से छुपा नहीं है।पश्चिम उत्तर प्रदेश में आसु मलिक के आर्थिक उत्थान की कहानी और उनके काफिले का रुतबा इलाकाई सपा नेताओं के लिये रश्क का सबब है। पूछा जा रहा है कि एक मामूली फोटोग्राफर फर्श से अर्श पर पहुंच गया। सरकार ने उदारता दिखाते हुए आल इंडिया इत्तेहाद ए मिल्लत कांउसिल के अध्यक्ष तौकीर रज़ा खां को लाल बत्ती धारी बनाया। रज़ा को यह रास नहीं आया, वह सपा के फ्रिक्रमंद होने का लबादा उतार कर आम आदमी बन गये। आम आदमी बने तो इसी सपा सरकार पर तोहमत जड़ दी कि सपा सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है। अब सरकार उनके नश्तर का इलाज ढूंढ रही है।
सुल्तानपुर का डाक बंगला सुरभि शुक्ला के समर्थकों से इस कदर भरा रहता है कि वहां के केयरटेकर को तो जो दिक्कत होती है उसे वह बर्दाश्त करने के लिये मजबूर है लेकिन वहां ठहरने वालों को भी उनके रुतबे के रसूख से डराते हुए सुरभि शुक्ला के समर्थक आसानी से मिल जायेंगे। आपराधिक इतिहास रखने वाले मो. अब्बास श्रम विभाग में सलाहकार बने हैं। दर्जा प्राप्त मंत्री की हनक का नशा उनके खजूरी निवासी ससुराल वालों पर इस कदर सवार हुआ कि उन्होंने दुस्साहस की सारी सीमायें लांघते हुए बीते 8 दिसंबर को दबिश डालने आयी पुलिस टीम को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। पुलिस का कसूर सिर्फ इतना था कि वह दहेज के मुकदमे में अदालत के देश पर मो. अब्बास के साले हुसैन पुत्र तुफैल को गिरफ्तार करने उसके घर गयी थी। पुलिस कर्मियों को पीटने वालों में मो अब्बास का पुत्र भी शामिल था। पिटाई के शिकार पुलिस कर्मियों को करीब छह घंटे तक अपने ही थाने में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने में मशक्कत करनी पडी। प्राविधिक एवं तकनीकी शिक्षा परिषद का अध्यक्ष बनकर दर्जा प्राप्त मंत्री के मार्फत अपना रसूख बढाने वाले विश्राम सिंह यादव के काफिले में बीते 5 जनवरी को शामिल पुलिस जीप पर पुलिस के स्थान पर सपाई सवार थे। मीडिया के पहुंचने पर सपाई जीप लेकर फरार हो गये। मामला लालबत्ती धारी से जुड़ा था इसलिये पुलिस ने जांच करने के स्थान पर रफा दफा करने में भलाई समझी।
लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बनाकर शिवकुमार राठौड़ को लालबत्ती थमाई गयी। लालबत्ती पाते ही अपने रसूख का इस्तेमाल कर एक अबला की जमीन पर अपना बोर्ड लगा दिया। मामला उछला तो सदशयता बरतते हुए खुद ही जाकर थाने में ये रिपोर्ट लिखवायी कि कोई उनके नाम का दुरुपयोग कर रहा है। लेकिन अबला के मददगारों ने उनकी इस सदाशयता की पोल खोलते हुए एक आडियो रिकार्डिंग जारी की जिसमें जमीन को लेकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री अनाप शनाप बातें कह रहे हैं। मंत्री का नाम एक ऐसी बेशकीमती व्यवसायिक जमीन से भी जोड़ा जा रहा है जिसे बेचकर आगरा विकास प्राधिकरण तकरीबन 200 करोड़ कमा सकता था पर केवल 22 करोड़ रुपये में इसे नीलाम करने पर प्राधिकरण को विवश होना पड़ा।
दर्जा प्राप्त मंत्रियों की फौज कुछ इस कदर बढी कि जनहित याचिका करने वालों को अदालत की चौखट पर पहुंचना पडा। सच्चिदानंद सच्चे ने इस बाबत एक जनहित याचिका दाखिल की जिस पर इलाहाबाच हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति अशोक पाल सिंह ने 18 जुलाई 2007 के शासनादेश के तहत तैनात कियहगयहकिसी व्यक्ति को लाल बत्ती या बेकन लाइट ना दियहजाने का आदेश निर्गत किया। हांलांकि अपर महाधिवक्ता ज़फरयाब जिलानी यह कहकर राज्य सरकार का बचाव किया ” इस शासनादेश के तहत स्थानीय निकाय संगठनों, निगमों के चेयरमैन ,अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सलाहकारों को दर्जा दिया गया है लेकिन उन्हें मिलने वाला मानदेय और सुविधायें संवैधानिक पद धारकों से कम हैं। ” हकीकत ठीक इसके उलट है। विधायक को मंहगाई और अन्य भत्ते मिलाकर 65 हजार रुपयहमासिक मिलते हैं इसके अलावा डेढ लाख रुपयहके ट्रेन और वायुयान के कूपन तथा टेलीफोन-मोबाइल खर्च के लिये अधिकतम 6 हजार रुपये मासिक मिलते हैं। जबकि दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री को 40 हजार और उपमंत्री को 35 हजार बतौर वेतन हासिल होता है। हर महीने 10हजार और 7500 रुपये जलपान भत्ते के मद में देने के साथ ही साथ सचिवालय के किसी भवन में एक कार्यालय एक निजी सचिव व्यैक्तिक सहायक और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी मिलते हैं। रेलगाडी और हवाई जहाज की यात्रायें मुफ्त हैं। इसके अलावा चिकित्सा प्रतिपूर्ति, टेलीफोन-मोबाइल और पर्सनल स्टाफ के खर्च निगम अथवा विभाग वहन करता है।
इस समय देश में बत्ती धारी गाडियों के खिलाफ माहौल है। लाल और नीली बत्तियों के खिलाफ सर्वोच्च अदालत तल्ख टिप्पणी कर रही है। सूबे में हाईकोर्ट के आदेश पर लाल और नीली बत्तियां उतारी जा रही हैं। इसके उलट यूपी में भी राज्यमंत्रियों की लाल बत्ती उतरने का नाम नहीं ले रही। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की हिदायत के बाद उनके गाडी के काफिले की लंबाई कम होने का नाम नहीं ले रही।
आमआदमी पार्टी की सियासी जीत ने नेताओं के वीआईपी कल्चर के खिलाफ अभियान चलाकर बड़ा जनादेश हासिल कर लिया। फिर भी उत्तर प्रदेश के बत्ती बहादुर वीआईपी तामझाम से बाज नहीं आ रहे। रसूखदारों को मिली सुरक्षा में हर महीने 23 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। राज्य में इसी तरह तकरीबन 2 हजार लोगों को वीआईपी सुरक्षा मुहैया करायी गयी है। जिसमें तकरीबन 6 हजार सुरक्षाकर्मी लगे हुए हैं। इस में 100 श्रेणीबद्ध लोगों की सुरक्षा शामिल नहीं है। 830 लोगों को दी गयी सुरक्षा की रिपोर्ट यह चुगली करती है कि उन्हें बिना किसी जांच पड़ताल के सीधे सुरक्षा प्रदान कर दी गयी है। वहीं 288 ऐसे वीआईपी लोगों को सुरक्षा दी गयी है जिनके दामन पर अपराध के दाग है। यानी पुलिस जिनको ढूंढती वह पुलिस को हमराह बना कर चल रहे हैं। गौरतलब सूबे में पुलिस के पांच लाख स्वीकृत पद हैं। जिनमें से आधे से ज्यादा पद रिक्त हैं। उत्तर प्रदेश की 20 करोड आबादी के सुरक्षा के लियहहैं महज 5 लाख पुलिस कर्मी यानी एक लाख की आबादी के लियहमहज 225 पुलिस कर्मी। देश में पुलिस मानको की ही माने तो एक लाख की आबादी के लियहछ सौ से ज्यादा पुलिस कर्मी होने चाहिये। यानी यूपी की दो तिहाई आबादी से ज्यादा लोगों के लियहमानकों के हिसाब से पुलिस है ही नहीं।उत्तर प्रदेश का पुलिस बल अब पांच लाख की स्वीकृत पोस्ट के साथ दुनिया के सबसे बडे दलों में शुमार है। सच्चाई यह भी है उत्तर प्रदेश में करीब 60 फीसदी पद अब तक खाली हैं। यूपी में प्रति एक लाख की आबादी पर 71 ही पुलिस कर्मी हैं। यह अनुपात सिर्फ बिहार से ज्यादा है जहां पर प्रति एक लाख 64 ही पुलिस कर्मी है,देश का औसत 133 पुलिसकर्मियों का है। परंतु इस सच्चाई से आंख मूंदते हुए सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को व्यक्तिगत कामकाज के लिये इस्तेमाल करना बत्ती बहादुरों के रुतबे का चलन हो गया है।
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि बत्ती बहादुर अपनी सुरक्षा के लियहअपनी बिरादरी के ही सुरक्षा कर्मियों पर ही भरोसा जताते हैं। उन्हें दूसरी जाति के सुरक्षा कर्मियो पर पता नहीं क्यों ऐतबार नहीं होता ? यह बत्ती बहादुरों की सुरक्षा मे लगे सुरक्षाकर्मियों से तस्दीक किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में बत्तियों का चलन नया नहीं है। संविधान की रोक से पहले 100 मंत्री बनाकर कल्याण सिंह ने सूबे का नाम देश भर में रौशन किया था। रोक लगी तो दर्जाप्राप्तों का नया तरीका निकाला गया। मायावती सरकार मे बत्तियों की फौज कम बडी नहीं थी। कहने वाले तो कहते हैं कि मायावती सरकार में बत्ती नज़राना शुक्रराना और हर्जाना का जरिया थी।
अदालत के आदेश के पहले तक समाजवादी पार्टी सरकार धडल्ले से लोगों को बत्तीधारी बना रही थी। बत्ती बहादुरों की इस महागाथा के पीछे सबसे बड़ा कारण लोकसभा चुनाव की दस्तक को देखा जा रहा है। खून पसीने से एक एक सीट जीतने वाले सपाई विधायकों और उनके समर्थको का जिगर चाक हो रहा है। माना जा रहा है कि सपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और जनता की नाराजगी मोल लेकर बनाये गये ये बत्ती बहादुर लोकसभा में साइकिल को दिल्ली पहुंचा देंगे। कितने पास यह तो सरकार को ही तय करना है।
लालबत्तियों के बांटने में इस तरह के तमाम विरोधाभास अब साफ तौर देखे जा सकते हैं। मतलब साफ है कि लाल बत्ती बांटने के खेल में योग्यता और विशेषज्ञता का ख्याल ही नहीं रखा गया। यही वजह है कि एक तरफ यहलालबत्ती धारी सरकार के लियहसरदर्द साबित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ अपने ओहदे और रुतबे से असंतुष्ट दिख रहे हैं। कइयों की असंतोष की वजह जायज भी है। मसलन, सी.पी.राय को मद्यनिषेद विभाग के मार्फत लाल बत्ती थमाई गयी है। लखनऊ को छोड़कर सूबे में उसका कहीं दूसरा कोई कार्यालय ही नहीं है। आबकारी राजस्व बढाकर अपना कोष भरने का काम करने वाली सरकार मद्यनिषेध का महकमा जाहिरा तौर पर अखरेगा ही।
इलाहाबाद मे उज्जवल रमण सिंह को बीज विकास निगम का चेयरमैन बनाकर लाल बत्ती का गौरव प्रदान किया गया। वह मौजूदा सपा सासंद रेवती रमण सिंह के बेटे हैं। पिछली सपा सरकार में पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं। लेकिन सपा की बयार के बीच भी वो पिछला चुनाव बसपा के नौसिखियहसे हार गये। पिता सपा के बडे नेता हैं तो उन्हें लाल बत्ती से नवाजा जाना तय था। हांलांकि उज्जवल शालीन छवि के नेता हैं और सपा के कई विधायक इस बात से चिढ गयहकि हारे हुए नेता का रुतबा किस आधार पर बढाया गया। वैसे तो इलाहाबाद के प्रशासन पर रेवती रमण सिंह का सिक्का चलता है लेकिन अब उनके मुकाबिल पार्टी के विधायक विजय मिश्र और पूर्व सांसद अतीक अहमद भी दखल रखने लगे हैं। लिहाजा कार्यकर्ताओं में खींचतान बढ़ गयी है। सो लालबत्ती धारी उज्जवल की बात सुनने से प्रशासन भी कतराने लगा है। हाल ही में एक लाल बत्ती वाले नेता का दिलचस्प वाकया सुनने को मिला। यह साहब हैं-श्रीप्रकाश राय उर्फ लल्लन राय। लल्लन राय ने इलाहाबाद के सर्किट हाउस में अफसरों की बैठक बुला ली। जिलाधिकारी राजशेखर ने उसी बीच किसी अफसर को तलब किया। पता चला अफसर मंत्री जी की मीटिंग में हैं। वे जैसे ही मीटिंग से लौटे डीएम साहब फट पडे। बेचारे अफसर की सांस अटक गयी। रामपूजन पटेल वैसे तो पुराने नेता हैं केंद्र में मंत्री भी रहे। उन्हें भी सपा सरकार ने लालबत्ती से नवाजा है लेकिन वह अपनी लालबत्ती गाडी का इस्तेमाल सिर्फ निजी कार्यक्रमों में जाने के लिये ही करते है। ऐसे में वह पार्टी का कितना भला करेंगे यह सवाल सपाई हलके मे गूंजने लगा है।
रामवृक्ष यादव जब से यमुना पार के एक इसाई धर्मप्रचारक के संरक्षण दाता बन गयहहैं तबसे उनकी लालबत्ती का औचित्य भी पार्टी कार्यकर्ताओं को नहीं समझ आ रहा है। कुछ ऐसा ही मामला इंदुप्रकाश मिश्र का है, सुल्तानपुर के लम्हुआ क्षेत्र के निवासी इंदु इलाहाबाद में पेट्रोल पंप चलाते हैं। कुछ बड़े लोगों से संपर्क के चलते वो लम्हुआ से सपा का विधानसभा टिकट भी पा गये थे। संतोष पांडेय समर्थकों के विरोध के चलते उनका टिकट कटा लेकिन वह राज्यमंत्री का दर्जा पा गये। सपा के हित में काम करना तो दूर सपाइयो की ईष्या का कारण बने हुए हैं। नरेंद्र भाटी ने आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में गलत सूचना देकर किस तरह सरकार की किरकिरी करायी यहकिसी से छुपा नहीं है।पश्चिम उत्तर प्रदेश में आसु मलिक के आर्थिक उत्थान की कहानी और उनके काफिले का रुतबा इलाकाई सपा नेताओं के लिये रश्क का सबब है। पूछा जा रहा है कि एक मामूली फोटोग्राफर फर्श से अर्श पर पहुंच गया। सरकार ने उदारता दिखाते हुए आल इंडिया इत्तेहाद ए मिल्लत कांउसिल के अध्यक्ष तौकीर रज़ा खां को लाल बत्ती धारी बनाया। रज़ा को यह रास नहीं आया, वह सपा के फ्रिक्रमंद होने का लबादा उतार कर आम आदमी बन गये। आम आदमी बने तो इसी सपा सरकार पर तोहमत जड़ दी कि सपा सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है। अब सरकार उनके नश्तर का इलाज ढूंढ रही है।
सुल्तानपुर का डाक बंगला सुरभि शुक्ला के समर्थकों से इस कदर भरा रहता है कि वहां के केयरटेकर को तो जो दिक्कत होती है उसे वह बर्दाश्त करने के लिये मजबूर है लेकिन वहां ठहरने वालों को भी उनके रुतबे के रसूख से डराते हुए सुरभि शुक्ला के समर्थक आसानी से मिल जायेंगे। आपराधिक इतिहास रखने वाले मो. अब्बास श्रम विभाग में सलाहकार बने हैं। दर्जा प्राप्त मंत्री की हनक का नशा उनके खजूरी निवासी ससुराल वालों पर इस कदर सवार हुआ कि उन्होंने दुस्साहस की सारी सीमायें लांघते हुए बीते 8 दिसंबर को दबिश डालने आयी पुलिस टीम को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। पुलिस का कसूर सिर्फ इतना था कि वह दहेज के मुकदमे में अदालत के देश पर मो. अब्बास के साले हुसैन पुत्र तुफैल को गिरफ्तार करने उसके घर गयी थी। पुलिस कर्मियों को पीटने वालों में मो अब्बास का पुत्र भी शामिल था। पिटाई के शिकार पुलिस कर्मियों को करीब छह घंटे तक अपने ही थाने में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने में मशक्कत करनी पडी। प्राविधिक एवं तकनीकी शिक्षा परिषद का अध्यक्ष बनकर दर्जा प्राप्त मंत्री के मार्फत अपना रसूख बढाने वाले विश्राम सिंह यादव के काफिले में बीते 5 जनवरी को शामिल पुलिस जीप पर पुलिस के स्थान पर सपाई सवार थे। मीडिया के पहुंचने पर सपाई जीप लेकर फरार हो गये। मामला लालबत्ती धारी से जुड़ा था इसलिये पुलिस ने जांच करने के स्थान पर रफा दफा करने में भलाई समझी।
लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बनाकर शिवकुमार राठौड़ को लालबत्ती थमाई गयी। लालबत्ती पाते ही अपने रसूख का इस्तेमाल कर एक अबला की जमीन पर अपना बोर्ड लगा दिया। मामला उछला तो सदशयता बरतते हुए खुद ही जाकर थाने में ये रिपोर्ट लिखवायी कि कोई उनके नाम का दुरुपयोग कर रहा है। लेकिन अबला के मददगारों ने उनकी इस सदाशयता की पोल खोलते हुए एक आडियो रिकार्डिंग जारी की जिसमें जमीन को लेकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री अनाप शनाप बातें कह रहे हैं। मंत्री का नाम एक ऐसी बेशकीमती व्यवसायिक जमीन से भी जोड़ा जा रहा है जिसे बेचकर आगरा विकास प्राधिकरण तकरीबन 200 करोड़ कमा सकता था पर केवल 22 करोड़ रुपये में इसे नीलाम करने पर प्राधिकरण को विवश होना पड़ा।
दर्जा प्राप्त मंत्रियों की फौज कुछ इस कदर बढी कि जनहित याचिका करने वालों को अदालत की चौखट पर पहुंचना पडा। सच्चिदानंद सच्चे ने इस बाबत एक जनहित याचिका दाखिल की जिस पर इलाहाबाच हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति अशोक पाल सिंह ने 18 जुलाई 2007 के शासनादेश के तहत तैनात कियहगयहकिसी व्यक्ति को लाल बत्ती या बेकन लाइट ना दियहजाने का आदेश निर्गत किया। हांलांकि अपर महाधिवक्ता ज़फरयाब जिलानी यह कहकर राज्य सरकार का बचाव किया ” इस शासनादेश के तहत स्थानीय निकाय संगठनों, निगमों के चेयरमैन ,अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सलाहकारों को दर्जा दिया गया है लेकिन उन्हें मिलने वाला मानदेय और सुविधायें संवैधानिक पद धारकों से कम हैं। ” हकीकत ठीक इसके उलट है। विधायक को मंहगाई और अन्य भत्ते मिलाकर 65 हजार रुपयहमासिक मिलते हैं इसके अलावा डेढ लाख रुपयहके ट्रेन और वायुयान के कूपन तथा टेलीफोन-मोबाइल खर्च के लिये अधिकतम 6 हजार रुपये मासिक मिलते हैं। जबकि दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री को 40 हजार और उपमंत्री को 35 हजार बतौर वेतन हासिल होता है। हर महीने 10हजार और 7500 रुपये जलपान भत्ते के मद में देने के साथ ही साथ सचिवालय के किसी भवन में एक कार्यालय एक निजी सचिव व्यैक्तिक सहायक और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी मिलते हैं। रेलगाडी और हवाई जहाज की यात्रायें मुफ्त हैं। इसके अलावा चिकित्सा प्रतिपूर्ति, टेलीफोन-मोबाइल और पर्सनल स्टाफ के खर्च निगम अथवा विभाग वहन करता है।
इस समय देश में बत्ती धारी गाडियों के खिलाफ माहौल है। लाल और नीली बत्तियों के खिलाफ सर्वोच्च अदालत तल्ख टिप्पणी कर रही है। सूबे में हाईकोर्ट के आदेश पर लाल और नीली बत्तियां उतारी जा रही हैं। इसके उलट यूपी में भी राज्यमंत्रियों की लाल बत्ती उतरने का नाम नहीं ले रही। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की हिदायत के बाद उनके गाडी के काफिले की लंबाई कम होने का नाम नहीं ले रही।
आमआदमी पार्टी की सियासी जीत ने नेताओं के वीआईपी कल्चर के खिलाफ अभियान चलाकर बड़ा जनादेश हासिल कर लिया। फिर भी उत्तर प्रदेश के बत्ती बहादुर वीआईपी तामझाम से बाज नहीं आ रहे। रसूखदारों को मिली सुरक्षा में हर महीने 23 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। राज्य में इसी तरह तकरीबन 2 हजार लोगों को वीआईपी सुरक्षा मुहैया करायी गयी है। जिसमें तकरीबन 6 हजार सुरक्षाकर्मी लगे हुए हैं। इस में 100 श्रेणीबद्ध लोगों की सुरक्षा शामिल नहीं है। 830 लोगों को दी गयी सुरक्षा की रिपोर्ट यह चुगली करती है कि उन्हें बिना किसी जांच पड़ताल के सीधे सुरक्षा प्रदान कर दी गयी है। वहीं 288 ऐसे वीआईपी लोगों को सुरक्षा दी गयी है जिनके दामन पर अपराध के दाग है। यानी पुलिस जिनको ढूंढती वह पुलिस को हमराह बना कर चल रहे हैं। गौरतलब सूबे में पुलिस के पांच लाख स्वीकृत पद हैं। जिनमें से आधे से ज्यादा पद रिक्त हैं। उत्तर प्रदेश की 20 करोड आबादी के सुरक्षा के लियहहैं महज 5 लाख पुलिस कर्मी यानी एक लाख की आबादी के लियहमहज 225 पुलिस कर्मी। देश में पुलिस मानको की ही माने तो एक लाख की आबादी के लियहछ सौ से ज्यादा पुलिस कर्मी होने चाहिये। यानी यूपी की दो तिहाई आबादी से ज्यादा लोगों के लियहमानकों के हिसाब से पुलिस है ही नहीं।उत्तर प्रदेश का पुलिस बल अब पांच लाख की स्वीकृत पोस्ट के साथ दुनिया के सबसे बडे दलों में शुमार है। सच्चाई यह भी है उत्तर प्रदेश में करीब 60 फीसदी पद अब तक खाली हैं। यूपी में प्रति एक लाख की आबादी पर 71 ही पुलिस कर्मी हैं। यह अनुपात सिर्फ बिहार से ज्यादा है जहां पर प्रति एक लाख 64 ही पुलिस कर्मी है,देश का औसत 133 पुलिसकर्मियों का है। परंतु इस सच्चाई से आंख मूंदते हुए सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को व्यक्तिगत कामकाज के लिये इस्तेमाल करना बत्ती बहादुरों के रुतबे का चलन हो गया है।
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि बत्ती बहादुर अपनी सुरक्षा के लियहअपनी बिरादरी के ही सुरक्षा कर्मियों पर ही भरोसा जताते हैं। उन्हें दूसरी जाति के सुरक्षा कर्मियो पर पता नहीं क्यों ऐतबार नहीं होता ? यह बत्ती बहादुरों की सुरक्षा मे लगे सुरक्षाकर्मियों से तस्दीक किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में बत्तियों का चलन नया नहीं है। संविधान की रोक से पहले 100 मंत्री बनाकर कल्याण सिंह ने सूबे का नाम देश भर में रौशन किया था। रोक लगी तो दर्जाप्राप्तों का नया तरीका निकाला गया। मायावती सरकार मे बत्तियों की फौज कम बडी नहीं थी। कहने वाले तो कहते हैं कि मायावती सरकार में बत्ती नज़राना शुक्रराना और हर्जाना का जरिया थी।
अदालत के आदेश के पहले तक समाजवादी पार्टी सरकार धडल्ले से लोगों को बत्तीधारी बना रही थी। बत्ती बहादुरों की इस महागाथा के पीछे सबसे बड़ा कारण लोकसभा चुनाव की दस्तक को देखा जा रहा है। खून पसीने से एक एक सीट जीतने वाले सपाई विधायकों और उनके समर्थको का जिगर चाक हो रहा है। माना जा रहा है कि सपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और जनता की नाराजगी मोल लेकर बनाये गये ये बत्ती बहादुर लोकसभा में साइकिल को दिल्ली पहुंचा देंगे। कितने पास यह तो सरकार को ही तय करना है।
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