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कृष्ण सुदामा नहीं, अर्जुन कृष्ण की इबारत
तकरीबन नौ साल तक नरेंद्र दामोदर दास मोदी को अमरीका ने वीजा से वंचित रखा। वह भी तब जब वे इक ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री थे जिस राज्य के ढेर सारे लोग अमेरिका में न केवल संख्या के लिहाज से रह रहे हैं, बल्कि वे अमरेकी अर्थव्यवस्था और प्रशासन में खासी दखल भी रखते हंै। लेकिन उसी नरेंद्र मोदी का रेड कार्पेट वेलकम करने की स्थिति में आये अमेरिकी थिंक टैंक को अब जरुर यह सोचना पड़ रहा होगा कि आखिर नरेंद्र मोदी को वीजा से वंचित रखकर में क्या खोया ? अमेरिका में मोदी के भव्य स्वागत और भारत के इस राष्ट्राध्यक्ष के लिए की गयी अभूतपूर्व तैयारियां ने यह चुगली तो कर ही दी कि वह उसके लिए अनिवार्य नहीं अपरिहार्य हो गये हंै। पांच दिन के अमेरिका प्रवास में मोदी ने पहले प्रवासी भारतीयों को इस तरह ‘क्रेजी’ कर दिया कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से उनकी मुलाकात हुई तब तक वाशिंगटन समेत पूरा अमरीका मोदीमय हो चुका था।
‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत करके अमेरिका रवाना हुए मोदी बाजार में अपने लिए बाजार तलाश रहे अमेरिकी उद्योगपतियों के लिए एक मौन आमंत्रण यहीं से देकर चले थे। उन्होंने ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ से बातचीत में साफ कर दिया था, “व्यापार और विचारों के लिए भारत के दिल और द्वार दोनों खुले रहेंगे। दोनों देश मिलकर विकास की नयी परिभाषा लिख सकते हैं।” ऐसा कहकर मोदी दुनिया भर के लिए ‘मैनिफैक्चरिंग हब’ बने चीन के सामने एक चुनौती भी खड़ी कर रहे थे जो अमेरिका को रास आती है। आज दुनिया भर के तमाम देश अपने उत्पादों की ‘एसेंबलिंग’ की खातिर चीन को सबसे मुफीद देश मानते हैं कि यही वजह है कि फिनलैंड का नोकिया और ब्रिटेन की एप्पल आई फोन पर मेड इन चाइन या ‘असेंबल्ड इन चाइना’ लिखा मिलता है। मोदी चुनौतियों को चांस में बदलते हैं कि वो खुद कुबूल करते हैं कि चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा उन कहानियों से मिलती जो उन्होंने दशकों के अपने भारत भ्रमण के दौरान देखा और सुना है। मतलब साफ है कि मोदी चुनौतियों से निपटने की योजना (प्लानिंग) पर ज्यादा महत्व देते हैं। यही वजह है कि उनकी टीम हर टाॅस्क के लिए अलग होती है। किसी भी काम की हर उस बारीकी पर ध्यान देती है, जिसे आम तौर पर बड़े मंचों पर गैर जरुरी मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है या उन बारीकियों को दूसरे लोग इतने महत्व का मानते ही नहीं। यही फर्क है मोदी और उनके विरोधियों में। यही फर्क दिखा मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान।
दरअसल, बडे राजनयिक और वैश्विक मंचों पर इससे पहले आत्मीयता कहीं ना कहीं लोप नजर आती थी। वह ‘कनेक्शन मिसिंग’ था जो लोगों से जोड़ता है। आमतौर पर कृत्रिम हाथ मिलाने से शुरु होकर रस्मी प्रेसवार्ता से होते हुए प्लास्टिक मुस्कानों पर खत्म होने वाले विदेशी राजनयिक दौरों को मोदी ने नये अंदाज की परिभाषा दी। यही नया अंदाज मोदी को देश का अब तक का सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के मुकाम के करीब ले गया। मुकाम हासिल हुआ या नहीं इस पर बहस हो सकती है। बहस बाकी है।
इस बहस पर कोई भी कदम बढाने से पहले यह देखना जरुरी होगा कि मोदी की अमेरिका यात्रा की पटकथा (स्क्रिप्ट) और तैयारियां कैसी थी। मोदी ने अपनी यात्रा के पहले ही दिन अमरीकी प्रशासन को जता दिया कि उनकी लोकप्रियता सिर्फ अपने देश या फिर एशिया की सीमा की मोहताज नहीं है। मोदी का अमरीकी धरती पर नारों के साथ शंख ध्वनि से लेकर ‘प्ले कार्ड’ तक से स्वागत किया गया, उससे साफ हो गया कि मोदी अब वर्ष 2005 के समय से काफी आगे निकल चुके है।
मोदी की अमरीका यात्रा के पहले पड़ाव में न्यूयार्क के मेयर बिल डे ब्लासिओ से मुलाकात कर उन्होने अपनी प्राथमिकता जता दी। मोदी ने इस मुलाकात में न्यूयार्क के मेयर से अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी ‘क्लीन इंडिया’ की बात की। मोदी को पता है कि उन्हें भले ही राष्ट्रपति से मिलना है, पर मेयर से जिन बारीकियों पर बात हो सकती है, वह राष्ट्रपति से नहीं हो सकती। यह बात और है कि ‘क्लीन इंडिया’ के लिए शहरी नियोजन, शहरों के विकास और शहरों की सफाई का मुद्दा उनकी राष्ट्रपति से बातचीत से लेकर उनके संयुक्त संपादकीय तक का हिस्सा बना।
नरेन्द्र मोदी को पता है कि अमरीकियों का दिल जीतना है, तो उसकी दुखती नब्ज पर हाथ रखना जरुरी है। उसके जख्मों पर मरहम रखना जरुरी है यही वजह है कि अमरीका की सरजमीं पर पैर रखने के 24 घंटे के अंदर ही मोदी ‘वल्र्ड ट्रेड मेमोरियल’ गये, वहां लोगों को श्रद्धांजलि दी। मोदी ने अपने कार्यक्रम में इस जगह को इसलिए भी महत्व दिया क्योंकि वह जताना चाहते थे कि जिस आतंकवाद के नासूर से 40 साल से भारत जूझ रहा है, उसने पिछले ही दशक में अमरीका को भी घाव दिया है। मोदी ने अपने अगले पड़ाव यानी संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के मंच को अपने भाषण के दौरान एक सुपर लीडर की तरह इस्तेमाल किया। छोटे झगडों के लिए किसी से चिरौरी नही की, साथ ही कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता जैसी बातों को नकार कर यह साफ कर दिया कि भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है जिसे अपने देश की सीमाओं या फिर नीतियों पर किसी से कोई पाठ नहीं पढना है। इस प्लेटफार्म पर मोदी ने आतंकवाद की बात की। लोगों को समझाया कि आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद होता है, अच्छा या बुरा नहीं। मोदी ने अगर दक्षिण एशिया की बात की तो मोदी ने पश्चिम एशिया के सवाल पर भी चुप्पी नहीं साधी। मोदी ने अपने भाषण में इबोला जैसी महामारी का जिक्र कर यह साफ किया कि भारत को सिर्फ अपनी सीमा, अपनी चिंता नहीं, उसे विश्व की चिंता है। बाद में ओबामा से मुलाकात में उन्होंने 10 मिलयन डालर इबोला के लिए देने की घोषणा कर यह भी जता दिया कि भारत की चिंता महज बोलबचन तक सीमित नहीं है।
नरेन्द्र मोदी ने इसके बाद अपना ऐसा जलवा दिखाया कि उन्हें अमरीका में भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री का खिताब तक मिल गया। वह जगह थी न्यूयार्क का मैडिसन स्क्वायर। यहां पर मोदी के स्वागत में आये अप्रवासी भारतीयोें व अमरीकी भारतीयों के जोश से समझा जा सकता है कि मोदी ने भारत के सबसे बडे सेल्समैन की तरह काम किया। भारत के फायदों को गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र, जनसांख्यिकी लाभ और मांग इसकी मजबूतियां हैं। भारत की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष की आयु से कम है। चूंकि भारत के पास विशाल मांग है, इसलिए वहां उत्पादों के खपत की असीम संभावनाएं हैं।
‘भारत माता’ की जय घोष के साथ घूमते मंच पर मोदी के संबोंधन का सीधा प्रसारण किया गया। जिसमें साइबर और संचार प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक तकनीकी के प्रयोग की नयी इबारत लिखी गयी। सत्तर मिनट तक चले संबोधन में मोदी ने लोगों को नवरात्र की शुभकामनाएं दीं। गौरलतब है कि कार्यक्रम के अनुसार यह भाषण 35 मिनट का ही होना था। लेकिन दोगुने समय तक मोदी ने भाषण देकर घडी के सुइयों के मार्फत चलने वाले अमेरिकियों को समय का इल्म नहीं होने दिया। साथ ही वह सब कुछ हासिल किया जिसके लिए वह इस जगह पर गये थे।
अपने भाषण मे मोदी ने जो कुछ कहा उसमें सिर्फ अमरीकी भारतीयों के लिए नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में रह रहे भारतीयों के साथ ही साथ भारत के नागरिकों के लिए संदेश छुपा था। नवरात्रि की शुभकामना देते समय खुद के व्रत रखने का जिक्र करके अपनी हिंदूवादी छवि की याद दिलाना, भारत आकर काम करने के लिए आमंत्रण इस बाबत प्रेरित करने के वास्ते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नजीर यह बताती है कि उनकी यात्रा की तैयारियों में किसी भी बारीकी की तरफ से आंख मूंदने की कोई कोशिश नहीं की गयी।
नरेन्द्र मोदी ने अप्रवासी भारतियों को विश्वास दिलाया कि 21वीं शताब्दी भारत की होगी। वर्ष 2020 तक केवल भारत ही विश्व को वर्क फोर्स (मानव बल) मुहैया कराने की स्थिति में होगा। उन्होंने नर्सों एवं अध्यापकों की बढ़ती मांग का भी उल्लेख करते हुए कहा कि भारत इन क्षेत्रों में दुनिया भर के लिए निर्यातक बन सकता है। मोदी ने इस तरह विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) के साथ ही सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) में भी भारत की यूनिक सेलिंग प्रीपोजिषन (यूएसपी) का जमकर बखान किया। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अपने ट्वीटर एकाउंट मे भी मोदी ने आने वाले दिनों में कृषि और उत्पादन के अलावा जिस सेक्टर से भारतीय अर्थव्यवस्था को जिंदा कर संबल बनाने और तेजी से दौडाने का इरादा किया है वह सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) ही है।
नरेन्द्र मोदी को यह पता है कि ताली बजाने में दोनो हाथ लगते हंै। ऐसे में उन्होने अमरीका मे रह रहे भारतीयो की सबसे बडी समस्या का समाधान किया। मोदी ने ‘पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन’ (पीआईओ) कार्ड धारकों को आजीवन वीजा देने का बडा ऐलान कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने लंबी अवधि तक भारत में रहने वाले अनिवासी भारतीयों को पुलिस थाने के चक्करों से मुक्ति दिला दी। मोदी को अपने देश की शक्तियों का पता है, उन्हें पता है कि देश में पर्यटन की संभावना इतनी है कि भारत दुनिया का सबसे बडा पर्यटन का मुकाम (टूरिज्म डेस्टिनेशन) बन सकता है। यही वजह है कि उन्होंने पर्यटन के मकसद से भारत आने वाले अमेरिकी नागरिकों को दीर्घ अवधि वीजा देने का भी ऐलान किया। ऐसा इसलिये कि अगर अमरीकियों ने भारत को अपना स्वप्निल मुकाम (ड्रीम डिस्टिनेशन) बना लिया तो दुनिया के कई देश जैसे ब्रिटेन, फ्रांस समेत दो तिहाई यूरोपीय देशों को इस ‘ब्रांडिंग’ की जरुरत नहीं होगी कि भारत पर्यटन के लिहाज कितना उपयोगी है। यह वैश्विक ‘ट्रेंड’ है कि इन देशों के नागरिक बडे पैमाने पर अमरीकी नागरिकों का अनुसरण करते हैं। उन्होंने अमेरिकी भारतीयों को खुशखबरी सुनाने के अंदाज में कहा कि कुछ महीनों में भारतीय मूल के लोगों पर्सन आॅफ इंडियन ओरिजिन (पीआईओ) और ओवरसीज सिटीजनशिप आफ इंडिया (ओसीआई) को मिलाकर एक नई स्कीम बनायी जाएगी, जिससे इनकी दिक्कतें दूर हो सकें।
प्रधानमंत्री ने पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त करने की बात के बहाने नई राजनीति और भारत की नई दिशा की इबारत लिखी। इस इबारत में धारा पिछली सरकारों से एकदम उलट और अगर तकनीकी भाषा मे कहें तो ‘यूजर फ्रेंडली’ हैं। मोदी ने इसके लिए सिर्फ एक उदाहरण का इस्तेमाल किया। कांग्रेस का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि पूरे चुनाव में एक पार्टी यही बात कहती रही कि उसने ये-ये कानून बनाए।मोदी ने कहा कि मैंने इसका उलटा शुरू किया है। मैंने जितने बेकार कानून हैं, सबको खत्म करने का फैसला किया है। इतने पुराने पड़ चुके (आउडेटेट) कानून हैं कि कोई उनके जाल में गया तो बाहर नहीं निकल सकता। अगर हर दिन एक कानून खत्म कर सकूं तो मुझे बहुत आनंद होगा।
नरेन्द्र मोदी ने इस आयोजन का इस्तेमाल ना सिर्फ भारत की ब्रांडिंग के लिए किया बल्कि आने वाले समय में होने वाले निवेश की ‘इंटेट मीटिंग’ की तरह भी किया। जिसके तहत मोदी ने गंगा से लेकर ‘मेक इन इंडिया’ तक के अपने विकल्प अनिवासी भारतीयों को सुझाए और उनसे निवेश का आग्रह किया, वह भी इस अंदाज मे कि फायदा अमरीकी भारतीयों का होगा। मोदी ने पूरे दौरे में हिंदी का इस्तेमाल किया। ऐसा कर मोदी ने एक बार फिर हिंदी आंदोलन के नायक की जगह ली, साथ ही उस उम्मीद को हवा दी कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की उन विशिष्ट भाषाओं में जगह मिले जिसकी वह हकदार है। यानी हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की पांच राजकीय भाषाओं के साथ ही जगह मिले।
मोदी ने जब अमरीका की 11 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ से मुलाकात की तो उन्हें अपने आटोग्राफ वाले भारत की प्रसिद्ध तीन चाय के पैकेट उपहार में दिये। मोदी ने अपने पूरे दौरे पर उपहारों की सियासत का जमकर इस्तेमाल किया। उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति को मार्टिन लूथर किंग की एक फोटो उपहार में दी, तो वहीं गांधी की गीता को देकर उन्होंने शांति, धर्म और कूटनीति का संदेश दिया। मोदी की अमरीका यात्रा तब हुई जब भारत अमरीकी रिश्ते बेहद तनावपूर्ण स्थिति में थे। भारत के राजनयिक देवयानी से हुए दुव्र्यवहार के घाव हरे थे, तो अमरीका में भारतीय बौद्धिक संपदा कानून, भारत के श्रम कानून और विश्व व्यापार संगठन के मुद्दे पर भारत के स्टैंड को लेकर अमरीकी निवेशकों और प्रशासन में कमोबेश नाराजगी थी । साथ ही परमाणु करार के बाद सरकारों की ठंडक भी रिश्तों पर पाला मार रही थी। ऐसे में मोदी ने शिखर वार्ता की भट्ठी से इस ठंडक पर हमला किया, ऊष्मा दिया। ऐसे में भी उन्होंने भारत की ‘ब्रांडिंग’ की जो तरकीब निकाली वह फिलहाल सफल दिख रही है।
नरेन्द्र मोदी का भारतीय मुस्लिमों पर एक बार फिर भरोसा जताना इस छवि को फिर से मजबूत कर रहा है कि मोदी रिश्तों की नयी इबारत लिखने को तैयार हैं। वह धर्मनिरपेक्षता की अपनी परिभाषा पर आगे बढने को लगातार तैयार हैं। ऐसा कर मोदी ने भारतीय मुस्लिम समाज के प्रति अमरीकी इमीग्रेशन एजेंसी को भी एक संदेश दिया है, साथ ही भारत में यह बडा संदेश दिया है कि मुस्लिम और आतंकवादी होने में एक बड़ा फर्क है। मोदी को पता है कि आतंकवाद की जड़ भारत की सरहदों से दूर है। भले ही उसका कुछ असर दिखे पर यहां के मुस्लिम इस पेड को यहां नहीं लगने देंगे। मुस्लिम समाज को अगर इससे भरोसा होता है या फिर उसकी सोच कुछ भी सकारात्मक होती है तो भारतीय आतंकवाद की एक सबसे बडी समस्या का हल होगा। नासूर बन चुकी यह समस्या है-‘स्लीपिंग सेल’ और भारतीय मुस्लिम युवकों का इसमें शामिल होकर आतंकवाद के पौधे को पानी देने की कवायद।
इसके बाद हुई ओबामा से दो बार की भेंट ने यह साबित कर दिया कि ये भेंट एक याचक और दाता की नहीं थी। यह भेंट थी दुनिया के सबसे ताकतवर देश और दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक संप्रभु राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्षों की। ओबामा का ‘केम छो’ और मोदी को खुद मार्टिन लूथर किंग के मेमोरियल ले जाना भी इसे तस्दीक करता है कि ओबामा ने मोदी को ‘काउंटर पार्ट’ माना ना कि ‘एसोसिएट।’ मोदी और ओबामा ने अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक में दोनों देशों के संबंधों को नई ऊचाइयों पर ले जाने की प्रतिबद्धता जताई। असैन्य परमाणु करार को लागू करने में आ रही बाधाओं को दूर करने तथा आतंकवाद से लड़ने में परस्पर सहयोग करने की बात कही। दोनों नेताओं के बीच करीब दो घंटे तक चली लंबी बातचीत में मोदी-ओबामा के बीच कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों देशों के बीच अपने रक्षा सहयोग को 10 वर्ष और बढ़ाने पर सहमति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी कंपनियों को भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र में भागीदारी करने का निमंत्रण दिया। बैठक के बाद संयुक्त बयान में मोदी ने कहा भारत और अमेरिका स्वाभाविक वैश्विक साझेदार हैं। निकट भविष्य में भारत एक बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास और परिवर्तन की ओर बढ़ेगा। भारत में नीति और प्रक्रिया बदलने पर जोर दिया जा रहा है। इससे भारत में व्यापार के अनुकूल बेहतर माहौल बनेगा। भारत में आर्थिक अवसर बढ़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन पर आपसी संवाद बढ़ाने, आतंकवाद को लेकर खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रही चिंताओं को लेकर वैचारिक धरातल पर एक तरह की सोच के साथ ही साथ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति का मुद्दा लाकर चीन को एक बडा कूटनीतिक संकेत दिया। जबकि पश्चिमी एशिया में बढ़ रहे आतंकवाद का जिक्र करने के बाद भी मोदी का यह संदेश दे देना कि अगर इस्राइल जरुरी है, तो ईरान इराक भी जरुरी हैं। पश्चिम एशियाई देशो में शीतयुद्ध के दिन में इराक और इरान से भारत ने समानान्तर दोस्ती बनायी उसका फायदा लिया।
भारत के अमनपसंद लोगों के लिए लंबे समय से चिंता का सबब बने माफिया डान दाउद इब्राहिम को पकड़ने में अमेरिकी साझेदारी की तैयारी मोदी की एक ऐसी सफलता है, जिसका भारतीय जनमानस में व्यापक तौर पर स्वागत अवश्यम्भावी है। यह वोट के लिहाज से भी एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। बातचीत करने, मुद्दे उठाने और आम सहमति बनाने के क्रम में मोदी कहीं भी समर्पण करते हुए नहीं दिखे। यही वजह है कि मोदी देश की उन चिंताओं पर समझौता करने नहीं दिखे जिन्हें बाजार के दबाव में अमरीकी कंपनिया और प्रशासन भारत पर थोपना चाहती हैं। प्रधानमंत्री ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मुद्दे पर दोनों देश के बीच पूरी तरह सहमति नहीं बनने का संकेत देते हुए साफ कर दिया कि डब्ल्यूटीओ के मुद्दे पर दोनों देशों अपने नजरिये बिना किसी हिचक के सामने रखे। भारत व्यापार सरलीकरण का समर्थक तो है पर साथ ही यह चाहता है कि हमारी खाद्य सुरक्षा की चिंताओं का समाधान हो। उम्मीद है कि शीघ्र ही इस बारे में कोई रास्ता निकलेगा। मोदी विश्व व्यापार संगठन को लेकर भारतीय पक्ष को ना सिर्फ मजबूती से रखने में कामयाब हुए बल्कि अमरीकी राष्ट्रपति को यह कहने पर मजबूर किया कि इसका ऐसा हल निकाला जायेगा जो भारत के हित में भी हो।
भारतीय प्रधानमंत्री की कूटनीति मे यह खास बात है कि वो कूटनीति और राजनीति में व्यक्तिगत पुट को खासा महत्व देते हैं। चाहे वह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां को शाल भेंट करना हो, नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में 100 टन चंदन की लकड़ी देना हो या फिर अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को गीता का उपहार देना हो। इस बार भी मोदी ने इस पुट का हर जगह इस्तेमाल किया। परिवार, व्यापार और कूटनीतिक व्यवहार के ये दांव भारत के हक में किस हद तक हंै, यह बहस का मुद्दा और भविष्य के गर्भ में है। पर इतना तो जरुर है कि मोदी के जादू ने अमरीकियों को कायल कर दिया है।
‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत करके अमेरिका रवाना हुए मोदी बाजार में अपने लिए बाजार तलाश रहे अमेरिकी उद्योगपतियों के लिए एक मौन आमंत्रण यहीं से देकर चले थे। उन्होंने ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ से बातचीत में साफ कर दिया था, “व्यापार और विचारों के लिए भारत के दिल और द्वार दोनों खुले रहेंगे। दोनों देश मिलकर विकास की नयी परिभाषा लिख सकते हैं।” ऐसा कहकर मोदी दुनिया भर के लिए ‘मैनिफैक्चरिंग हब’ बने चीन के सामने एक चुनौती भी खड़ी कर रहे थे जो अमेरिका को रास आती है। आज दुनिया भर के तमाम देश अपने उत्पादों की ‘एसेंबलिंग’ की खातिर चीन को सबसे मुफीद देश मानते हैं कि यही वजह है कि फिनलैंड का नोकिया और ब्रिटेन की एप्पल आई फोन पर मेड इन चाइन या ‘असेंबल्ड इन चाइना’ लिखा मिलता है। मोदी चुनौतियों को चांस में बदलते हैं कि वो खुद कुबूल करते हैं कि चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा उन कहानियों से मिलती जो उन्होंने दशकों के अपने भारत भ्रमण के दौरान देखा और सुना है। मतलब साफ है कि मोदी चुनौतियों से निपटने की योजना (प्लानिंग) पर ज्यादा महत्व देते हैं। यही वजह है कि उनकी टीम हर टाॅस्क के लिए अलग होती है। किसी भी काम की हर उस बारीकी पर ध्यान देती है, जिसे आम तौर पर बड़े मंचों पर गैर जरुरी मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है या उन बारीकियों को दूसरे लोग इतने महत्व का मानते ही नहीं। यही फर्क है मोदी और उनके विरोधियों में। यही फर्क दिखा मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान।
दरअसल, बडे राजनयिक और वैश्विक मंचों पर इससे पहले आत्मीयता कहीं ना कहीं लोप नजर आती थी। वह ‘कनेक्शन मिसिंग’ था जो लोगों से जोड़ता है। आमतौर पर कृत्रिम हाथ मिलाने से शुरु होकर रस्मी प्रेसवार्ता से होते हुए प्लास्टिक मुस्कानों पर खत्म होने वाले विदेशी राजनयिक दौरों को मोदी ने नये अंदाज की परिभाषा दी। यही नया अंदाज मोदी को देश का अब तक का सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के मुकाम के करीब ले गया। मुकाम हासिल हुआ या नहीं इस पर बहस हो सकती है। बहस बाकी है।
इस बहस पर कोई भी कदम बढाने से पहले यह देखना जरुरी होगा कि मोदी की अमेरिका यात्रा की पटकथा (स्क्रिप्ट) और तैयारियां कैसी थी। मोदी ने अपनी यात्रा के पहले ही दिन अमरीकी प्रशासन को जता दिया कि उनकी लोकप्रियता सिर्फ अपने देश या फिर एशिया की सीमा की मोहताज नहीं है। मोदी का अमरीकी धरती पर नारों के साथ शंख ध्वनि से लेकर ‘प्ले कार्ड’ तक से स्वागत किया गया, उससे साफ हो गया कि मोदी अब वर्ष 2005 के समय से काफी आगे निकल चुके है।
मोदी की अमरीका यात्रा के पहले पड़ाव में न्यूयार्क के मेयर बिल डे ब्लासिओ से मुलाकात कर उन्होने अपनी प्राथमिकता जता दी। मोदी ने इस मुलाकात में न्यूयार्क के मेयर से अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी ‘क्लीन इंडिया’ की बात की। मोदी को पता है कि उन्हें भले ही राष्ट्रपति से मिलना है, पर मेयर से जिन बारीकियों पर बात हो सकती है, वह राष्ट्रपति से नहीं हो सकती। यह बात और है कि ‘क्लीन इंडिया’ के लिए शहरी नियोजन, शहरों के विकास और शहरों की सफाई का मुद्दा उनकी राष्ट्रपति से बातचीत से लेकर उनके संयुक्त संपादकीय तक का हिस्सा बना।
नरेन्द्र मोदी को पता है कि अमरीकियों का दिल जीतना है, तो उसकी दुखती नब्ज पर हाथ रखना जरुरी है। उसके जख्मों पर मरहम रखना जरुरी है यही वजह है कि अमरीका की सरजमीं पर पैर रखने के 24 घंटे के अंदर ही मोदी ‘वल्र्ड ट्रेड मेमोरियल’ गये, वहां लोगों को श्रद्धांजलि दी। मोदी ने अपने कार्यक्रम में इस जगह को इसलिए भी महत्व दिया क्योंकि वह जताना चाहते थे कि जिस आतंकवाद के नासूर से 40 साल से भारत जूझ रहा है, उसने पिछले ही दशक में अमरीका को भी घाव दिया है। मोदी ने अपने अगले पड़ाव यानी संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के मंच को अपने भाषण के दौरान एक सुपर लीडर की तरह इस्तेमाल किया। छोटे झगडों के लिए किसी से चिरौरी नही की, साथ ही कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता जैसी बातों को नकार कर यह साफ कर दिया कि भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है जिसे अपने देश की सीमाओं या फिर नीतियों पर किसी से कोई पाठ नहीं पढना है। इस प्लेटफार्म पर मोदी ने आतंकवाद की बात की। लोगों को समझाया कि आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद होता है, अच्छा या बुरा नहीं। मोदी ने अगर दक्षिण एशिया की बात की तो मोदी ने पश्चिम एशिया के सवाल पर भी चुप्पी नहीं साधी। मोदी ने अपने भाषण में इबोला जैसी महामारी का जिक्र कर यह साफ किया कि भारत को सिर्फ अपनी सीमा, अपनी चिंता नहीं, उसे विश्व की चिंता है। बाद में ओबामा से मुलाकात में उन्होंने 10 मिलयन डालर इबोला के लिए देने की घोषणा कर यह भी जता दिया कि भारत की चिंता महज बोलबचन तक सीमित नहीं है।
नरेन्द्र मोदी ने इसके बाद अपना ऐसा जलवा दिखाया कि उन्हें अमरीका में भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री का खिताब तक मिल गया। वह जगह थी न्यूयार्क का मैडिसन स्क्वायर। यहां पर मोदी के स्वागत में आये अप्रवासी भारतीयोें व अमरीकी भारतीयों के जोश से समझा जा सकता है कि मोदी ने भारत के सबसे बडे सेल्समैन की तरह काम किया। भारत के फायदों को गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र, जनसांख्यिकी लाभ और मांग इसकी मजबूतियां हैं। भारत की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष की आयु से कम है। चूंकि भारत के पास विशाल मांग है, इसलिए वहां उत्पादों के खपत की असीम संभावनाएं हैं।
‘भारत माता’ की जय घोष के साथ घूमते मंच पर मोदी के संबोंधन का सीधा प्रसारण किया गया। जिसमें साइबर और संचार प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक तकनीकी के प्रयोग की नयी इबारत लिखी गयी। सत्तर मिनट तक चले संबोधन में मोदी ने लोगों को नवरात्र की शुभकामनाएं दीं। गौरलतब है कि कार्यक्रम के अनुसार यह भाषण 35 मिनट का ही होना था। लेकिन दोगुने समय तक मोदी ने भाषण देकर घडी के सुइयों के मार्फत चलने वाले अमेरिकियों को समय का इल्म नहीं होने दिया। साथ ही वह सब कुछ हासिल किया जिसके लिए वह इस जगह पर गये थे।
अपने भाषण मे मोदी ने जो कुछ कहा उसमें सिर्फ अमरीकी भारतीयों के लिए नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में रह रहे भारतीयों के साथ ही साथ भारत के नागरिकों के लिए संदेश छुपा था। नवरात्रि की शुभकामना देते समय खुद के व्रत रखने का जिक्र करके अपनी हिंदूवादी छवि की याद दिलाना, भारत आकर काम करने के लिए आमंत्रण इस बाबत प्रेरित करने के वास्ते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नजीर यह बताती है कि उनकी यात्रा की तैयारियों में किसी भी बारीकी की तरफ से आंख मूंदने की कोई कोशिश नहीं की गयी।
नरेन्द्र मोदी ने अप्रवासी भारतियों को विश्वास दिलाया कि 21वीं शताब्दी भारत की होगी। वर्ष 2020 तक केवल भारत ही विश्व को वर्क फोर्स (मानव बल) मुहैया कराने की स्थिति में होगा। उन्होंने नर्सों एवं अध्यापकों की बढ़ती मांग का भी उल्लेख करते हुए कहा कि भारत इन क्षेत्रों में दुनिया भर के लिए निर्यातक बन सकता है। मोदी ने इस तरह विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) के साथ ही सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) में भी भारत की यूनिक सेलिंग प्रीपोजिषन (यूएसपी) का जमकर बखान किया। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अपने ट्वीटर एकाउंट मे भी मोदी ने आने वाले दिनों में कृषि और उत्पादन के अलावा जिस सेक्टर से भारतीय अर्थव्यवस्था को जिंदा कर संबल बनाने और तेजी से दौडाने का इरादा किया है वह सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) ही है।
नरेन्द्र मोदी को यह पता है कि ताली बजाने में दोनो हाथ लगते हंै। ऐसे में उन्होने अमरीका मे रह रहे भारतीयो की सबसे बडी समस्या का समाधान किया। मोदी ने ‘पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन’ (पीआईओ) कार्ड धारकों को आजीवन वीजा देने का बडा ऐलान कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने लंबी अवधि तक भारत में रहने वाले अनिवासी भारतीयों को पुलिस थाने के चक्करों से मुक्ति दिला दी। मोदी को अपने देश की शक्तियों का पता है, उन्हें पता है कि देश में पर्यटन की संभावना इतनी है कि भारत दुनिया का सबसे बडा पर्यटन का मुकाम (टूरिज्म डेस्टिनेशन) बन सकता है। यही वजह है कि उन्होंने पर्यटन के मकसद से भारत आने वाले अमेरिकी नागरिकों को दीर्घ अवधि वीजा देने का भी ऐलान किया। ऐसा इसलिये कि अगर अमरीकियों ने भारत को अपना स्वप्निल मुकाम (ड्रीम डिस्टिनेशन) बना लिया तो दुनिया के कई देश जैसे ब्रिटेन, फ्रांस समेत दो तिहाई यूरोपीय देशों को इस ‘ब्रांडिंग’ की जरुरत नहीं होगी कि भारत पर्यटन के लिहाज कितना उपयोगी है। यह वैश्विक ‘ट्रेंड’ है कि इन देशों के नागरिक बडे पैमाने पर अमरीकी नागरिकों का अनुसरण करते हैं। उन्होंने अमेरिकी भारतीयों को खुशखबरी सुनाने के अंदाज में कहा कि कुछ महीनों में भारतीय मूल के लोगों पर्सन आॅफ इंडियन ओरिजिन (पीआईओ) और ओवरसीज सिटीजनशिप आफ इंडिया (ओसीआई) को मिलाकर एक नई स्कीम बनायी जाएगी, जिससे इनकी दिक्कतें दूर हो सकें।
प्रधानमंत्री ने पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त करने की बात के बहाने नई राजनीति और भारत की नई दिशा की इबारत लिखी। इस इबारत में धारा पिछली सरकारों से एकदम उलट और अगर तकनीकी भाषा मे कहें तो ‘यूजर फ्रेंडली’ हैं। मोदी ने इसके लिए सिर्फ एक उदाहरण का इस्तेमाल किया। कांग्रेस का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि पूरे चुनाव में एक पार्टी यही बात कहती रही कि उसने ये-ये कानून बनाए।मोदी ने कहा कि मैंने इसका उलटा शुरू किया है। मैंने जितने बेकार कानून हैं, सबको खत्म करने का फैसला किया है। इतने पुराने पड़ चुके (आउडेटेट) कानून हैं कि कोई उनके जाल में गया तो बाहर नहीं निकल सकता। अगर हर दिन एक कानून खत्म कर सकूं तो मुझे बहुत आनंद होगा।
नरेन्द्र मोदी ने इस आयोजन का इस्तेमाल ना सिर्फ भारत की ब्रांडिंग के लिए किया बल्कि आने वाले समय में होने वाले निवेश की ‘इंटेट मीटिंग’ की तरह भी किया। जिसके तहत मोदी ने गंगा से लेकर ‘मेक इन इंडिया’ तक के अपने विकल्प अनिवासी भारतीयों को सुझाए और उनसे निवेश का आग्रह किया, वह भी इस अंदाज मे कि फायदा अमरीकी भारतीयों का होगा। मोदी ने पूरे दौरे में हिंदी का इस्तेमाल किया। ऐसा कर मोदी ने एक बार फिर हिंदी आंदोलन के नायक की जगह ली, साथ ही उस उम्मीद को हवा दी कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की उन विशिष्ट भाषाओं में जगह मिले जिसकी वह हकदार है। यानी हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की पांच राजकीय भाषाओं के साथ ही जगह मिले।
मोदी ने जब अमरीका की 11 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ से मुलाकात की तो उन्हें अपने आटोग्राफ वाले भारत की प्रसिद्ध तीन चाय के पैकेट उपहार में दिये। मोदी ने अपने पूरे दौरे पर उपहारों की सियासत का जमकर इस्तेमाल किया। उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति को मार्टिन लूथर किंग की एक फोटो उपहार में दी, तो वहीं गांधी की गीता को देकर उन्होंने शांति, धर्म और कूटनीति का संदेश दिया। मोदी की अमरीका यात्रा तब हुई जब भारत अमरीकी रिश्ते बेहद तनावपूर्ण स्थिति में थे। भारत के राजनयिक देवयानी से हुए दुव्र्यवहार के घाव हरे थे, तो अमरीका में भारतीय बौद्धिक संपदा कानून, भारत के श्रम कानून और विश्व व्यापार संगठन के मुद्दे पर भारत के स्टैंड को लेकर अमरीकी निवेशकों और प्रशासन में कमोबेश नाराजगी थी । साथ ही परमाणु करार के बाद सरकारों की ठंडक भी रिश्तों पर पाला मार रही थी। ऐसे में मोदी ने शिखर वार्ता की भट्ठी से इस ठंडक पर हमला किया, ऊष्मा दिया। ऐसे में भी उन्होंने भारत की ‘ब्रांडिंग’ की जो तरकीब निकाली वह फिलहाल सफल दिख रही है।
नरेन्द्र मोदी का भारतीय मुस्लिमों पर एक बार फिर भरोसा जताना इस छवि को फिर से मजबूत कर रहा है कि मोदी रिश्तों की नयी इबारत लिखने को तैयार हैं। वह धर्मनिरपेक्षता की अपनी परिभाषा पर आगे बढने को लगातार तैयार हैं। ऐसा कर मोदी ने भारतीय मुस्लिम समाज के प्रति अमरीकी इमीग्रेशन एजेंसी को भी एक संदेश दिया है, साथ ही भारत में यह बडा संदेश दिया है कि मुस्लिम और आतंकवादी होने में एक बड़ा फर्क है। मोदी को पता है कि आतंकवाद की जड़ भारत की सरहदों से दूर है। भले ही उसका कुछ असर दिखे पर यहां के मुस्लिम इस पेड को यहां नहीं लगने देंगे। मुस्लिम समाज को अगर इससे भरोसा होता है या फिर उसकी सोच कुछ भी सकारात्मक होती है तो भारतीय आतंकवाद की एक सबसे बडी समस्या का हल होगा। नासूर बन चुकी यह समस्या है-‘स्लीपिंग सेल’ और भारतीय मुस्लिम युवकों का इसमें शामिल होकर आतंकवाद के पौधे को पानी देने की कवायद।
इसके बाद हुई ओबामा से दो बार की भेंट ने यह साबित कर दिया कि ये भेंट एक याचक और दाता की नहीं थी। यह भेंट थी दुनिया के सबसे ताकतवर देश और दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक संप्रभु राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्षों की। ओबामा का ‘केम छो’ और मोदी को खुद मार्टिन लूथर किंग के मेमोरियल ले जाना भी इसे तस्दीक करता है कि ओबामा ने मोदी को ‘काउंटर पार्ट’ माना ना कि ‘एसोसिएट।’ मोदी और ओबामा ने अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक में दोनों देशों के संबंधों को नई ऊचाइयों पर ले जाने की प्रतिबद्धता जताई। असैन्य परमाणु करार को लागू करने में आ रही बाधाओं को दूर करने तथा आतंकवाद से लड़ने में परस्पर सहयोग करने की बात कही। दोनों नेताओं के बीच करीब दो घंटे तक चली लंबी बातचीत में मोदी-ओबामा के बीच कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों देशों के बीच अपने रक्षा सहयोग को 10 वर्ष और बढ़ाने पर सहमति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी कंपनियों को भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र में भागीदारी करने का निमंत्रण दिया। बैठक के बाद संयुक्त बयान में मोदी ने कहा भारत और अमेरिका स्वाभाविक वैश्विक साझेदार हैं। निकट भविष्य में भारत एक बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास और परिवर्तन की ओर बढ़ेगा। भारत में नीति और प्रक्रिया बदलने पर जोर दिया जा रहा है। इससे भारत में व्यापार के अनुकूल बेहतर माहौल बनेगा। भारत में आर्थिक अवसर बढ़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन पर आपसी संवाद बढ़ाने, आतंकवाद को लेकर खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रही चिंताओं को लेकर वैचारिक धरातल पर एक तरह की सोच के साथ ही साथ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति का मुद्दा लाकर चीन को एक बडा कूटनीतिक संकेत दिया। जबकि पश्चिमी एशिया में बढ़ रहे आतंकवाद का जिक्र करने के बाद भी मोदी का यह संदेश दे देना कि अगर इस्राइल जरुरी है, तो ईरान इराक भी जरुरी हैं। पश्चिम एशियाई देशो में शीतयुद्ध के दिन में इराक और इरान से भारत ने समानान्तर दोस्ती बनायी उसका फायदा लिया।
भारत के अमनपसंद लोगों के लिए लंबे समय से चिंता का सबब बने माफिया डान दाउद इब्राहिम को पकड़ने में अमेरिकी साझेदारी की तैयारी मोदी की एक ऐसी सफलता है, जिसका भारतीय जनमानस में व्यापक तौर पर स्वागत अवश्यम्भावी है। यह वोट के लिहाज से भी एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। बातचीत करने, मुद्दे उठाने और आम सहमति बनाने के क्रम में मोदी कहीं भी समर्पण करते हुए नहीं दिखे। यही वजह है कि मोदी देश की उन चिंताओं पर समझौता करने नहीं दिखे जिन्हें बाजार के दबाव में अमरीकी कंपनिया और प्रशासन भारत पर थोपना चाहती हैं। प्रधानमंत्री ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मुद्दे पर दोनों देश के बीच पूरी तरह सहमति नहीं बनने का संकेत देते हुए साफ कर दिया कि डब्ल्यूटीओ के मुद्दे पर दोनों देशों अपने नजरिये बिना किसी हिचक के सामने रखे। भारत व्यापार सरलीकरण का समर्थक तो है पर साथ ही यह चाहता है कि हमारी खाद्य सुरक्षा की चिंताओं का समाधान हो। उम्मीद है कि शीघ्र ही इस बारे में कोई रास्ता निकलेगा। मोदी विश्व व्यापार संगठन को लेकर भारतीय पक्ष को ना सिर्फ मजबूती से रखने में कामयाब हुए बल्कि अमरीकी राष्ट्रपति को यह कहने पर मजबूर किया कि इसका ऐसा हल निकाला जायेगा जो भारत के हित में भी हो।
भारतीय प्रधानमंत्री की कूटनीति मे यह खास बात है कि वो कूटनीति और राजनीति में व्यक्तिगत पुट को खासा महत्व देते हैं। चाहे वह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां को शाल भेंट करना हो, नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में 100 टन चंदन की लकड़ी देना हो या फिर अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को गीता का उपहार देना हो। इस बार भी मोदी ने इस पुट का हर जगह इस्तेमाल किया। परिवार, व्यापार और कूटनीतिक व्यवहार के ये दांव भारत के हक में किस हद तक हंै, यह बहस का मुद्दा और भविष्य के गर्भ में है। पर इतना तो जरुर है कि मोदी के जादू ने अमरीकियों को कायल कर दिया है।
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