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आसियान से भी जगी आस

Dr. Yogesh mishr
Published on: 2 Dec 2014 12:30 PM IST
रामचरित मानस की एक चैपाई है - ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।’ गोस्वामी तुलसीदास जी ने ये चैपाई तो भगवान राम के परिपेक्ष्य में लिखी थी पर आज के परिदृश्य में ये लाइन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दौरों पर एक दम सटीक बैठ रही हैं। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरे को सभी अपने नजरिये से देख रहे हैं। विपक्षी नरेंद्र मोदी पर हमले कर रहे है। लालू प्रसाद यादव ने तो उन्हें एनआरआई प्रधानमंत्री तक कह डाला। वहीं समर्थक इसे विकास के रास्ते की पैमाइश करने वाला फीता बता रहे है। मोदी को पता है वो क्या कर रहे हैं ? तभी तो नये-नये प्रयोग करने में चूक नहीं रहे। झारखंड के डाल्टनगंज जैसे आदिवासी इलाके में अपने भाषण की शुरुआत वो आस्ट्रेलिया दौरे से करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी कहते हैं, ‘‘मैं ऑस्ट्रेलिया गया। वहां की यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मिला। किस काम के लिए मिला। मैंने कहा कि हमारे किसान खेती करते हैं, मूंग, अरहर और चने की खेती करते हैं, लेकिन एक एकड़ भूमि में जितनी पैदावार होनी चाहिए, उतनी नहीं होती। भूमि तो बढ़ नहीं सकती, लेकिन उतनी ही भूमि में परिवार चलाना है, तो प्रति एकड़ हमारा उत्पादन कैसे बढ़े। हमने वहां के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर उस काम को आगे बढ़ाने का तय किया है, जिसके कारण मेरे भारत के छोटे किसान, गरीब किसान कम जमीन हो, तो भी ज्यादा उत्पादन कर सकें, ताकि उनके परिवार को दुख की नौबत न आए। यह काम मैंने ऑस्ट्रेलिया जाकर किया है।’’ झारखंड की गरीब जनता के बीच वह बता आए कि उनका विदेश दौरा दरसअल कूटनीति के नफीस विद्वानों के लिए नहीं, गरीब लोगों के लिए था। अब जनता को यह भले ही पता हो ना हो कि आस्ट्रेलिया दुनिया के नक्शे के किस कोने में है पर यह जरुर पता है कि उनके प्रधानमंत्री कहीं भी जायें उनकी फ्रिक से वाबस्ता रहे हंै। मोदी की राजनीति में केले के छिलका भी हिस्सा रखता है। ऐसा केला का छिलका जिस पर अच्छे-अच्छे दिग्गज सियासी विरोधी फिसल जायें, ऐसा फिसलें कि उठ ही ना पायें। तभी तो वो अपने इस सियासी पारी में केले का भी इस्तेमाल करने से हिचक नहीं रहे हंै। आदिवासी इलाके की रैली में प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘‘हमारे देश में केले का उत्पादन होता है। केला एक ऐसा फल है, जो गरीब भी कभी-कभी खा सकता है, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से उनके अंदर ज्यादा विटामिन कैसे आएं, ज्यादा लौह तत्व आएं, ताकि केला माताएं-बहनें खाएं तो प्रसूति के समय जो बच्चा पैदा हो, वह ताकतवर पैदा हो। हमारे बच्चे केला खाएं तो उनकी आंखों में जो कमी आ जाती है, छोटी आयु में आंखों की ताकत कम हो जाती है, अगर केले में विटामिन ‘ए’ ज्यादा हो तो हमारे बच्चों को विटामिन ‘ए’ मिल जाए, लोहा भी मिल जाए, यह रिसर्च करने का काम ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी के साथ आगे बढ़ाने का फैसला किया है। यह काम गरीबों के लिए किया है।’’ मोदी विदेशी दौरे की मार्केटिंग कर रहे हंै, बेहद भदेस अंदाज में। देश के सबसे गरीब और पिछडे इलाके में वो अपने विदेशी दौरे को भी बेच रहे है। ताली बटोर रहे हैं।
उन्होंने अपनी हर यात्रा को जनता से जोड़ दिया है। मसलन, जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सिकल सेल एनीमिया’ की बीमारी को लेकर शिन्या यामानाका से मुलाकात की। शिन्या यामानाका को स्टेम सेल में शोध के लिए वर्ष 2012 का नोबेल पुरस्कार मिला था। यह बीमारी भारत के आदिवासी इलाकों में पाई जाती है। नरेंद्र मोदी ने अपनी उस मुलाकात को झारखंड की जनता के बीच इस तरह पेश किया कि उनका विदेश दौरों पर जाना कितना जरूरी है। कहने लगते हैं कि मैं जापान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त विजेता वैज्ञानिक से मिलने गया। मैंने कहा कि मेरे हिन्दुस्तान में जो मेरे आदिवासी भाई बहन हैं, वह सदियों से पारिवारिक बीमारी के शिकार हैं। अगर मां-बाप को बीमारी है, तो बच्चों को बीमारी हो जाती है और आज दुनिया में इसकी कोई दवाई नहीं है, तो आप इस दिशा में शोध का काम कीजिए, भारत खर्चा करने के लिए तैयार है, जिसके कारण मेरे आदिवासी परिवारों को इस बीमारी से मुक्त किया जा सके।

डाल्टनगंज की रैली से लौटती भीड़ यह भूल चुकी होगी कि महंगाई से लेकर काले धन पर प्रधानमंत्री ने तो कुछ बोला नहीं, वह यही बात कर रही होगी कि प्रधानमंत्री को यह भी पता है कि केले में कौन-सा विटामिन है, लोहा कैसे बढ़ाया जा सकता है, वह हमारे बच्चों के स्वास्थ्य की बात करते हैं, आदिवासियों की बीमारी ठीक कर देने की बात करते हैं। अब आप करते रहिए उनके विदेश दौरे की आलोचना। वह डाल्टनगंज की जनता को बता आए कि केला और खानदानी बीमारी की दवा ढूंढने के लिए विदेश-विदेश घूम रहे थे। प्रधानमंत्री उस भीड़ के लिये वैज्ञानिक, डाॅक्टर रिसर्चर सब बन जाते हैं।

मोदी को पता है कि उन पर सबकी निगाह है। तभी तो नरेंद्र मोदी अपना हर कदम गुणा-गणित बिठाकर और सारे जमा-जोड़ करने के बाद ही उठा रहे हंै। विदेशी दौरों को भी वो इस तरह नियोजित कर रहे हैं, ‘दुश्मन कम और दोस्त ज्यादा हों।’ वो चीन से दोस्ती का हाथ बढाते हैं पर भारत को घेरने के लिये चीन के मोतियों के हार के मुकाबले वह अपने हार बना रहे हैं। तभी तो नेपाल, भूटान के बाद वो मालदीव से लेकर श्रीलंका तक और म्यांमार-वियतनाम से लेकर जापान और आस्ट्रेलिया तक अपनी पैठ बनाकर चीन को यह संकेत देने में जुटे हैं कि बात आंख मिलाकर होगी ना कि झुकाकर या फिर दिखाकर। मोदी ने अपने छह महीने के कार्यकाल में यह साबित कर दिया कि वो गुजराल सरकार की ‘लुकईस्ट’ विदेश नीति के कागजी तौर पर कायल नही बल्कि उसे अब ‘एक्ट ईस्ट’ बनाकर उस पर अमल में जुट गये हैं। यही वजह कि अपने कार्यकाल के पहले छह महीने में ही उन्होंने 28 से किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री के लिये अछूत पडे आस्ट्रेलिया और 33 साल से अनदेखे फिजी को विदेश नीति का नया या फिर यूं कहें कि फिर से मरकज बनाया। यही वजह है कि आस्ट्रेलिया जाते और आते समय मोदी म्यांमार और फिजी में रुकते हैं।
वैसे भी मोदी ने इससे पहले म्यांमार को संकेत दे दिये थे कि भारत की विदेश नीति में म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण जगह रखता है। अब तक के संबंधों की बात की जाय तो भारत के ढीले-ढाले रवैये के चलते उसकी छवि पर असर पड़ा है। चीन द्विपक्षीय व्यापारिक लक्ष्य पूरे करता है और भारत केवल वादा करता है। भारत की इस छवि का ही यह असर है कि चीन अगर हर वर्ष सात अरब डालर व्यापार के चलते म्यांमार का सबसे बड़ा साझेदार है, वहीं भारत दो अरब डालर के साथ इस मामले में छठे नंबर पर है। म्यांमार में जितनी भी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं, नब्बे फीसदी पर चीन काबिज है। प्रधानमंत्री से पहले म्यांमार गयी देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भरोसा दिया था कि भारत अपनी इस छवि को बदलेगा। वैसे भी कूटनीतिक सूत्रों का मानना था कि पिछले तीन चार वर्ष में म्यांमार में राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में काफी बदलाव आए हैं। हालांकि चीन अब भी उसका नजदीकी मित्र है। लेकिन बदलते हालात में म्यांमार के बदलने का डर उसे भी सता रहा है। दरअसल, म्यांमार से संबंध सुधारने में दोनों देशों को फायदा है। म्यांमार में गैस का अपार भंडार जो भारत की ऊर्जा जरूरत के लिए सस्ती गैस की उपलबध्ता की संभावना की तरफ इशारा करता है।

मोदी जब म्यांमार से उड़े तो आस्ट्रेलिया का भारतीय प्रधानमंत्री का 28 साल का इंतजार खत्म हुआ। मोदी ने आस्ट्रेलिया में 4 शहरों की यात्रा की। महात्मा गांधी की मूर्ति का अनावरण और मोदी को मिला प्रोटोकाल यह दर्शाने के लिये काफी है कि भारत और भारतीयता को कितना बडा मुकाम इस यात्रा के दौरान हासिल हुआ। मोदी सिडनी से एयर इंडिया के विशेष विमान से करीब 30 मिनट की उड़ान के बाद रात कैनबरा जा धमके। जहां डिफेंस एस्टेब्लिशमेंट फेयरबेम में विदेश मंत्री जूली बिशप ने मोदी की अगवानी की थी। सामान्य तौर पर जब विदेशी मेहमान रात को पहुंचते हैं, तो उनका इस स्तर से स्वागत करने का चलन नहीं है।

आस्ट्रेलिया से अपने आपसी संबंधी को नई ऊंचाई पर ले जाने के मकसद से सामाजिक सुरक्षा, सजायाफ्ता कैदियों के हस्तांतरण, कला एवं संस्कृति, पर्यटन और नशीली दवाओं के कारोबार पर अंकुश लगाने संबंधी पांच समझौतों पर भारत ने हस्ताक्षर किए। आस्ट्रेलिया ने घोषणा की कि वह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने का इच्छुक है। तो यह एक बडी उपलब्धि होगी। क्योंकि यूरेनियम के जरिये भारत अपनी ऊर्जा की कमी को दूर करना चाहता है। अगर आस्ट्रेलिया अपने प्रतिबंध को खत्म कर यूरेनियम देने को तैयार हो तो ये भारत के लिये बडी बात होगी।

आस्ट्रेलिया दौरे के दौरान मोदी और टोनी एबट ने रक्षा, साइबर, नौ वहन सुरक्षा, आतंकवाद से निपटने और चरमपंथी समूहों में विदेशी लड़ाकों के शामिल होने से सुरक्षा सहयोग तंत्र पर सहमति जताई जिसे द्विपक्षीय संबंधों में मील का पत्थर माना जा रहा है।

भारतीय प्रधानमंत्री और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के बीच हुई शिखर वार्ता में कुल पांच समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। वार्ता के बाद एबट ने माना, ‘भारत सुपरपावर के रूप में उभर रहा है। ये समझौते दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे।’ आस्ट्रेलिया ने साथ ही ऊर्जा सुरक्षा पर भी भारत को सहयोग देने का वादा करते हुए असैन्य परमाणु समझौते को जल्दी ही अंतिम रूप देने पर जोर दिया गया। इससे आस्ट्रेलिया से भारत को यूरेनियम के निर्यात का रास्ता साफ हो जाएगा। मोदी ने कहा कि इस द्विपक्षीय वार्ता में भारत कृषि और उससे जुड विकास कार्यों पर आस्ट्रेलिया के साथ काम करेगा। दोनों देश आतंकवाद रोकने, क्रिकेट, हाकी और योग के विकास पर भी मिलकर काम करेंगे। मोदी ने ऐलान किया कि वर्ष 2015 में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम आस्ट्रेलिया में होगा। दोनों देश आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे।

आस्ट्रेलिया में मोदी ने 40 राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात की। ‘जी-20’ की बैठक का कूटनीतिक फायदा जितना मोदी ने उठाया उतना किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने नहीं उठाया होगा। चाहे काले धन को

‘जी-20’ के आधिकारिक घोषणा पत्र में शामिल कराना हो या फिर दुनिया की 75 फीसदी सकल घरेलू उत्पात (जीडीपी) और 85 फीसदी व्यापार को नियंत्रित करने वाले आसियान देशों में भारत के महत्व को साबित करना हो। चाहे ‘मेक इन इंडिया’ को आसियान में स्थापित कर उसकी ‘मार्केटिंग’ करना हो या फिर कर चोरी रोकने के लिये ‘ट्रांसफर प्राइसिंग’ के रुके मुद्दे को ठंडे बस्ते से निकाल कर मुख्य धारा में लाना हो। बीजिंग यानी चीन के राजनयिकों ने अपने घरेलू बजार को आस्ट्रेलिया के निर्यात के खोल दिया, वह भी ‘जीरो एक्सपोर्ट टैरिफ’ पर। जबकि मोदी ने वर्ष 2015 तक इसे हासिल करने का एबाट को भरोसा दिलाया। अगर यह सम्भव होता है, तो दोनों देशों को लाभ मिलेगा। यह बात और है कि इस मुद्दे पर भी चीन भारत से एक दिन ही सही आगे निकल गया।

आस्ट्रेलिया के बाद मोदी फिजी गए, जहां पर 33 साल से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं पहुंचा था। मोदी ने अपने समकक्ष फ्रैंक बैनीमरामा के साथ वार्ता की और फिजी के लिए कुल आठ करोड़ डालर मदद का भी ऐलान किया। उन्होंने संसद में ‘डिजीटल फिजी’ के निर्माण का भरोसा दिलाया। संसदीय चुनाव के बाद वह फिजी की संसद को संबोधित करने वाले पहले विदेशी नेता भी बन गए हैं । मोदी ने इस आत्मीयता को राष्ट्रीयता की षक्ल अपने ब्लाग में कुछ यूं दी, ‘मुझे यह बताया गया कि फिजी की संसद को पहली बार विश्व के किसी नेता ने सम्बोधित किया है। यह एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि वैष्विक समुदाय की नजरों में भारत के 125 करोड़ लोगों के प्रति कितना सम्मान है। मोदी ने फिजी यात्रा के आसियान देशों के लिए आगमन पर वीजा की सुविधा की घोषणा की। इस दौरान उन्होंने मार्स आर्बिटर मिशन में फिजी की ओर से दी गई मदद की भी चर्चा की। मोदी ने कहा कि भारत पुनः ‘विश्वगुरु’ होने की तरफ अग्रसर है। इससे पहले मोदी ने प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनीमरामा के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। जिसके बाद भारत और फिजी के बीच तीन मुद्दों पर समझौते किए गए। भारत ने सह-उत्पादन विद्युत संयंत्र के लिए फिजी के लिए 70 मिलियन यूएसडी लाइन आफ क्रेडिट की घोषणा की। वहीं लघु व्यवसाय और ग्रामीण उद्यमों के विकास के लिए 5 मिलियन डालर के कोष की घोषणा की। 849000 की आबादी वाले फिजी में 37 फीसद लोग भारतीय मूल के हैं। फिजी में उनकी विदाई भी शानदार ढंग से की गई। मोदी ने अपने दौरे के अंत करने वाली कुछ पंक्तियों में असीम संभावनाओं को समेट कुछ यूं लिखा कि मेरा यादगार दौरा खत्म हो गया पर मेरी नयी यात्रा शुरु हुई है।
Dr. Yogesh mishr

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