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स्वप्निल निवेष का मुकाम
‘अच्छे दिन आने’ का जुमला जो नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान उछाला था, उसका अहसास वैश्विक स्तर पर होने लगा है। यही वजह है कि ‘टाइम मैगजीन’ के इस साल के ‘पर्सन ऑफ द इयर’ के ‘रीडर्स पोल’ जीतने के बावजूद फाइनलिस्ट में जगह ना बना पाने, ‘मेक इंन इंडिया’, जनधन योजना, स्वच्छ भारत जैसे बडे अभियान लांच करने के बावजूद विपक्ष के निशाने पर रहने वाले मोदी को आखिर एक बडी राहत मिली है। राहत भी ऐसी जो नरेंद्र मोदी को एक दशक तक भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से बेहतर पायदान पर खड़ा कर रही है। राहत देने वाली एजेंसी भी ऐसी है जिसकी एक हां और ना से देश में होने वाले निवेश की धारा बदल जाती है। यह एजेंसी दुनिया भर में निवेश को लेकर रेटिंग करने वाली ‘स्टैंडर्ड एंड पुअर्स’ है, जिसे आम तौर पर ‘एसएंडपी’ कहा जाता है। यह एजेंसी बताती है कि कौन देष विकास के किस पायदान पर खड़ा है। कौन किस तरह आगे जायेगा। इस एजेंसी की हां निवेषकों की रज़ा है, जबकि न निवेषकों के मुंह फेरने में देर नहीं लगाता है।
ब्हरहाल, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, यानी एस एंड पी, ने भारत को मुस्कुराने की वजह दे दी है। यह वजह भी कम खास नहीं है। दुनिया भर के देशों की रेटिंग करने वाली इस एजेंसी ने दो साल में पहली बार भारत को खुश कर दिया। सिर्फ खुश ही नहीं किया बल्कि भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र का अकेला ऐसा देश बता दिया जहां पर निवेश को लेकर पूरी दुनिया की कंपनियां अपने पैसे को सुरक्षित मान सकती हैं।
छरअसल, दुनिया की इस सबसे बडी रेटिंग एजेंसी की मुहर के बाद निवेशक वहां आने को लेकर अपनी आशंकाओं का अंत मान लेते हैं। वजह यह है कि यह एजेंसी अपनी रिपोर्ट देने से पहले उस देश की सरकार और कंपनियों के तमाम ऐसे पैमानों को जांचती परखती है जिसके चलते उस देश में निवेशकों के धन को लेकर जोखिम खत्म हो जाय। यानी ‘रिस्क मैनेजमेंट’ का पूरा ख्याल रखा जाता है। इसे खत्म करने के लिए अतीत और भविष्य का आंकलन कर यह देखा जाता है कि उस देश की सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाये हैं, इस बात को भी जांचा परखा जाता है। इसके अलावा निवेशक के लिए आय के क्या स्त्रोत है, अगर हैं तो वे स्त्रोत क्या वास्तविकता हैं या फिर निवेश को आमंत्रित करने के लिए उन्हें कृत्रिम ढंग से बनाया गया है। रेटिंग एजेंसी देश के पशुधन, मीट, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, पोल्ट्री, मत्स्य, कृषि उसमें भी दलहन, सब्जी फल, चीनी, गन्ना और गन्ना आधारित उद्योग, चाय काफी का उत्पादन जैसे बारीकियों पर भी ध्यान देती है, जबकि औद्योगिक जगत में सरकारी नीतियों, श्रम कानूनों, निवेशकों के लिए सरकारों की नीतियों के बदलाव को लेकर भी एस एंड पी अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।
एजेंसी ने एशिया प्रशांत की सभी अर्थव्यवस्थाओं को साल 2014 में राह से भटकी हुई और लक्ष्यों से काफी दूर बताते हुए उनकी गति को थका हारा और परेशान बताया है। इस बार की रिपोर्ट में एस. एंड पी. ने दुनिया के एशिया प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ भारत को ही ऐसी जगह माना है, जहां पर निवेशक अपने पैसे लगा सकते है। भारत इस क्षेत्र का सबसे सुरक्षित और निवेश की दृष्टि से सबसे अच्छा गंतव्य (डेस्टिनेशन) है। यह रिपोर्ट जापान में नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन को समर्थन करती दिखती है, जिसमें उन्होंने भरोसा दिलाया था कि उनकी सरकार किसी भी निवेशक का एक भी पैसा देश में डूबने नहीं देंगे। अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत सरकार ने धीमी पर सधी शुरुआत के बाद अर्थव्यवस्था की पटरी पर देश की गाड़ी को तेजी से आगे बढाया है। अगर एस. एंड पी. की इस रिपोर्ट को ही आधार माना जाय तो नरेन्द्र मोदी की यह अब तक की सबसे बडी तारीफ है। क्योंकि भले ही ताजातरीन रिपोर्ट में भारत को निवेश का सबसे सुरक्षित मुकाम बताया गया हो पर सितंबर महीने में ही इसी एजेंसी ने भारत को लेकर उसकी नकारत्मक और लगातार गिर रही ‘रेटिंग’ को ‘स्टेबल’ की श्रेणी में ड़ाल दिया था।
रिपोर्ट नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के ठीक एक दिन पहले लांच किये गये ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये आश्वासन और जगाये गये भरोसा को पुख्ता करती है। रिपोर्ट के नतीजे उन प्रयासों की सराहना भी हैं, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने जापान यात्रा में निवेशकों को भरोसा दिलाय कि भारत में निवेशकों के लिए अब ‘रेड टेप’ के बजाय ‘रेड कार्पेट’ की नीति आ गयी है। मोदी ने कहा कि न्यूनतम लागत में उत्पादन के लिए भारत से ज्यादा अच्छी जगह कोई नहीं है। क्योंकि भारत में श्रम सस्ता है। मानव संसाधन प्रचुर है और देश की सरकार निवेश के अनूकूल माहौल बनाने में जुटी है। नतीजतन , जापानी उद्योगों को अब और कहीं देखने की जरूरत नहीं है। भारत के ‘साफ्टवेयर’ की प्रतिभा और जापान के ‘हार्डवेयर’ की दक्षता मिलकर चमत्कार कर सकते हैं। अपने संदेश में मोदी ने यह भी साफ किया कि भारत मे निवेश करके जापान दुनिया में ‘मेड इन जापान’ का झण्डा बुलंद भी रख सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ का फायदा भी उठा सकता है । इन सबके मद्देनजर भारत में चल रहे उदारीकरण का हवाला देते हुए निवेशकों के लिये पिटारा खोल दिया। उन्होंने ब्रांडिग कुछ ऐसी की कि किसी भी निवेशक की आंखे चैंधिया जाय। मसलन, भारत के पचास शहर अपने यहां मेट्रो ट्रेन चाहते हैं, भारत के चारो कोनों को बुलेट ट्रेन से जोडा जायेगा। 200 स्मार्ट सिटी निवेशकों का इंतजार कर रही हैं। ऐसे में कौन सा निवेशक भारत की तरफ आकर्षित नहीं होगा। ऐसे में नरेन्द्र मोदी का यह जुमला और उसके अमली जामा पहनाने के लिये लगाया गया अमला दुनिया भर के निवेशकों से पहले ही एस. एंड पी. के पसंद का सबब बन गया। शायद यही वजह है कि इस बार की रिपोर्ट निवेश के लिए भारत को स्वप्निल मुकाम (ड्रीम डेस्टिनेशन) बता रही है। एस. एंड पी. वही एजेंसी है जिसने दो साल पहले तत्कालीन यूपीए सरकार की नींद उड़ा दी थी, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह को खुद मोर्चा संभालना पडा था, यह कहने के लिये की देश में सभी निवेशकों के पैसे सुरक्षित हैं। वर्ष 2012 में इसी एजेंसी ने भारत को नकारात्मक अंक दिये थे। वजह, संप्रग सरकार के नीतियों को लेकर अनिर्णय की स्थिति, भ्रष्टाचार, घोटाले और टैक्स को लेकर भारत की उलझाऊ नीतियां थीं। इसके ठीक उलट आयी इसी एजेंसी की सबसे नयी रिपोर्ट को मोदी सरकार की कोशिशों की सबसे बडी सराहना के तौर पर देखा जाना चाहिए। वह भी तब जब एस. एंड पी. ने चीन की अर्थव्यवस्था को धीमी होती अर्थव्यवस्था बताया है। साथ ही जापान की अर्थव्यवस्था को एस. एंड पी. ने तकनीकी मंदी का शिकार करार दिया है। एस. एंड पी. ने साफ कर दिया है कि व्यापार आधारित अर्थव्यवस्थाओं को इन दिनों बाह्य मांग की कमी से दो चार होना पड़ रहा है, ऐसे में चीन और जापान की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है और हाल के दिनों में इनका उबरना आसान नहीं है।
भारत एशिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। एस. एंड पी. ने साफ लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब मंदी के शिकंजे से दूर दिख रही है। एस. एंड पी. की ये टिप्पणी यूं ही नहीं आयी हंै। इसके पीछे मोदी सरकार के कुछ बडे फैसलों का असर साफ दिख रहा है। मोदी ने जिस तरह से लालफीताशाही को खत्म करने, और नियमों की दीवार में व्यवहारिकता की सेंध लगाने की उम्मीद जगायी है, उससे एस. एंड पी. जैसी एजेंसी भी भरोसा करने लगी है। इसके साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ ने मोदी की भविष्य की योजनाओं पर से भी पर्दा हटा दिया है। साथ ही ये भरोसा भी दिया है कि सरकार पुराने श्रम कानूनों को ही सिर्फ तरजीह देने के बजाय निवेशक के हितों का भी ध्यान रखेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीका समेत कई देशों में ऐलान किया था कि उन्हें कानून बनाने के बजाय गैर जरूरी कानून खत्म करने में ज्यादा खुशी होती है। नरेंद्र मोदी ने ना सिर्फ विदेश में यह कहकर तालियां बटोरी बल्कि एस. एंड पी. के ‘माइनस’ को ‘प्लस’ में बदलने का भी जुगाड़ कर लिया।
पश्चिमी देश बहुत दिनों से भारत से कानूनों में कई तरह के बदलाव की मांग कर रहे थे। मोदी सरकार ने अपने प्रचंड बहुमत,लोकप्रियता और परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए उन मांगों को बडे हद तक पूरा कर दिया। जैसे डीजल पर सब्सिडी खत्म कर उसे बाजार के हवाले करना, बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर नीतियो को उदार बनाना और सरकारी खर्च में कटौती करना। मोदी सरकार ने चालाकी दिखाते हुए डीजल को बाजार के हवाले कर दिया। इस समय डीजल की कीमत करीब 80 डालर प्रति बैरल है। जो कि समान्य और औसत डीजल मूल्य से करीब 20 से 25 डालर प्रति बैरल कम है। ऐसे में डीजल मूल्य बाजार के हवाले कर मोदी ने जहां पश्चिमी देशों को लंबी मांग को माना वहीं डीजल पेट्रोल की सस्ती दरों की वाहवाही भी लूट ली है। यानी आम के आम गुठलियो के दाम। यह बात और है कि कई बार कुछ समय बाद गुठली कसैली लगने लगती है।
मोदी की जनधन योजना का असर भले ही अभी देश की अर्थव्यवस्था पर ना दिख रहा हो पर देश की आर्थिक रेटिंग सुधारने में इस योजना का बडा योगदान होगा। भारत के 10 करोड़ लोगों के पहली बार खाते खुलवाने की इस बड़ी योजना ने जहां आम लोगों को फायदा पहुंचाया है, वहीं सब्सिडी के लीक होने की संभावना को भी कम कर मोदी सरकार ने देश की ‘रेटिंग’ को सुधारा है। साथ ही इस योजना में जमा पांच हजार करोड़ रुपये ने देश की आधारभूत संचरना सुधारने की योजनाओं को बल दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह तो साफ है कि वो चैखानों में नहीं सोचते। परंपरागत चैखानों से अलग सोच का ही नतीजा है कि नरेंद्र मोदी ने 64 साल पुराने योजना आयोग को खत्म करने की पहल शुरु कर दी है। दरअसल, सोवियत रुस के प्रभाव और सोवियत संघ माडल की यह संस्था कहीं ना कहीं आज की अर्थव्यवस्था में पुरानी पड़कर अपनी चमक खोने सी लगी थी। इसकी बिगडती साख के साथ ही विश्व की ‘रेटिंग’ एजेंसियों के खांचे इसे हजम नहीं कर पा रहे थे।
मोदी सरकार के जनधन योजना के पासे, योजना आयोग के खात्मे की डगर पर बढे कदम और ‘मेक इन इंडिया’ के शेर ने मोदी को ‘रेटिंग’ के जंगल का शहंशाह बना दिया है। यानी अगर अर्थ की भाषा में बात करें तो मोदी डिविडेंट का फायदा भारत की आर्थिक रेटिंग के सेंसेक्स बाजार को हुआ है।
ब्हरहाल, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, यानी एस एंड पी, ने भारत को मुस्कुराने की वजह दे दी है। यह वजह भी कम खास नहीं है। दुनिया भर के देशों की रेटिंग करने वाली इस एजेंसी ने दो साल में पहली बार भारत को खुश कर दिया। सिर्फ खुश ही नहीं किया बल्कि भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र का अकेला ऐसा देश बता दिया जहां पर निवेश को लेकर पूरी दुनिया की कंपनियां अपने पैसे को सुरक्षित मान सकती हैं।
छरअसल, दुनिया की इस सबसे बडी रेटिंग एजेंसी की मुहर के बाद निवेशक वहां आने को लेकर अपनी आशंकाओं का अंत मान लेते हैं। वजह यह है कि यह एजेंसी अपनी रिपोर्ट देने से पहले उस देश की सरकार और कंपनियों के तमाम ऐसे पैमानों को जांचती परखती है जिसके चलते उस देश में निवेशकों के धन को लेकर जोखिम खत्म हो जाय। यानी ‘रिस्क मैनेजमेंट’ का पूरा ख्याल रखा जाता है। इसे खत्म करने के लिए अतीत और भविष्य का आंकलन कर यह देखा जाता है कि उस देश की सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाये हैं, इस बात को भी जांचा परखा जाता है। इसके अलावा निवेशक के लिए आय के क्या स्त्रोत है, अगर हैं तो वे स्त्रोत क्या वास्तविकता हैं या फिर निवेश को आमंत्रित करने के लिए उन्हें कृत्रिम ढंग से बनाया गया है। रेटिंग एजेंसी देश के पशुधन, मीट, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, पोल्ट्री, मत्स्य, कृषि उसमें भी दलहन, सब्जी फल, चीनी, गन्ना और गन्ना आधारित उद्योग, चाय काफी का उत्पादन जैसे बारीकियों पर भी ध्यान देती है, जबकि औद्योगिक जगत में सरकारी नीतियों, श्रम कानूनों, निवेशकों के लिए सरकारों की नीतियों के बदलाव को लेकर भी एस एंड पी अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।
एजेंसी ने एशिया प्रशांत की सभी अर्थव्यवस्थाओं को साल 2014 में राह से भटकी हुई और लक्ष्यों से काफी दूर बताते हुए उनकी गति को थका हारा और परेशान बताया है। इस बार की रिपोर्ट में एस. एंड पी. ने दुनिया के एशिया प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ भारत को ही ऐसी जगह माना है, जहां पर निवेशक अपने पैसे लगा सकते है। भारत इस क्षेत्र का सबसे सुरक्षित और निवेश की दृष्टि से सबसे अच्छा गंतव्य (डेस्टिनेशन) है। यह रिपोर्ट जापान में नरेन्द्र मोदी के उस आश्वासन को समर्थन करती दिखती है, जिसमें उन्होंने भरोसा दिलाया था कि उनकी सरकार किसी भी निवेशक का एक भी पैसा देश में डूबने नहीं देंगे। अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत सरकार ने धीमी पर सधी शुरुआत के बाद अर्थव्यवस्था की पटरी पर देश की गाड़ी को तेजी से आगे बढाया है। अगर एस. एंड पी. की इस रिपोर्ट को ही आधार माना जाय तो नरेन्द्र मोदी की यह अब तक की सबसे बडी तारीफ है। क्योंकि भले ही ताजातरीन रिपोर्ट में भारत को निवेश का सबसे सुरक्षित मुकाम बताया गया हो पर सितंबर महीने में ही इसी एजेंसी ने भारत को लेकर उसकी नकारत्मक और लगातार गिर रही ‘रेटिंग’ को ‘स्टेबल’ की श्रेणी में ड़ाल दिया था।
रिपोर्ट नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के ठीक एक दिन पहले लांच किये गये ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये आश्वासन और जगाये गये भरोसा को पुख्ता करती है। रिपोर्ट के नतीजे उन प्रयासों की सराहना भी हैं, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने जापान यात्रा में निवेशकों को भरोसा दिलाय कि भारत में निवेशकों के लिए अब ‘रेड टेप’ के बजाय ‘रेड कार्पेट’ की नीति आ गयी है। मोदी ने कहा कि न्यूनतम लागत में उत्पादन के लिए भारत से ज्यादा अच्छी जगह कोई नहीं है। क्योंकि भारत में श्रम सस्ता है। मानव संसाधन प्रचुर है और देश की सरकार निवेश के अनूकूल माहौल बनाने में जुटी है। नतीजतन , जापानी उद्योगों को अब और कहीं देखने की जरूरत नहीं है। भारत के ‘साफ्टवेयर’ की प्रतिभा और जापान के ‘हार्डवेयर’ की दक्षता मिलकर चमत्कार कर सकते हैं। अपने संदेश में मोदी ने यह भी साफ किया कि भारत मे निवेश करके जापान दुनिया में ‘मेड इन जापान’ का झण्डा बुलंद भी रख सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ का फायदा भी उठा सकता है । इन सबके मद्देनजर भारत में चल रहे उदारीकरण का हवाला देते हुए निवेशकों के लिये पिटारा खोल दिया। उन्होंने ब्रांडिग कुछ ऐसी की कि किसी भी निवेशक की आंखे चैंधिया जाय। मसलन, भारत के पचास शहर अपने यहां मेट्रो ट्रेन चाहते हैं, भारत के चारो कोनों को बुलेट ट्रेन से जोडा जायेगा। 200 स्मार्ट सिटी निवेशकों का इंतजार कर रही हैं। ऐसे में कौन सा निवेशक भारत की तरफ आकर्षित नहीं होगा। ऐसे में नरेन्द्र मोदी का यह जुमला और उसके अमली जामा पहनाने के लिये लगाया गया अमला दुनिया भर के निवेशकों से पहले ही एस. एंड पी. के पसंद का सबब बन गया। शायद यही वजह है कि इस बार की रिपोर्ट निवेश के लिए भारत को स्वप्निल मुकाम (ड्रीम डेस्टिनेशन) बता रही है। एस. एंड पी. वही एजेंसी है जिसने दो साल पहले तत्कालीन यूपीए सरकार की नींद उड़ा दी थी, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह को खुद मोर्चा संभालना पडा था, यह कहने के लिये की देश में सभी निवेशकों के पैसे सुरक्षित हैं। वर्ष 2012 में इसी एजेंसी ने भारत को नकारात्मक अंक दिये थे। वजह, संप्रग सरकार के नीतियों को लेकर अनिर्णय की स्थिति, भ्रष्टाचार, घोटाले और टैक्स को लेकर भारत की उलझाऊ नीतियां थीं। इसके ठीक उलट आयी इसी एजेंसी की सबसे नयी रिपोर्ट को मोदी सरकार की कोशिशों की सबसे बडी सराहना के तौर पर देखा जाना चाहिए। वह भी तब जब एस. एंड पी. ने चीन की अर्थव्यवस्था को धीमी होती अर्थव्यवस्था बताया है। साथ ही जापान की अर्थव्यवस्था को एस. एंड पी. ने तकनीकी मंदी का शिकार करार दिया है। एस. एंड पी. ने साफ कर दिया है कि व्यापार आधारित अर्थव्यवस्थाओं को इन दिनों बाह्य मांग की कमी से दो चार होना पड़ रहा है, ऐसे में चीन और जापान की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है और हाल के दिनों में इनका उबरना आसान नहीं है।
भारत एशिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। एस. एंड पी. ने साफ लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब मंदी के शिकंजे से दूर दिख रही है। एस. एंड पी. की ये टिप्पणी यूं ही नहीं आयी हंै। इसके पीछे मोदी सरकार के कुछ बडे फैसलों का असर साफ दिख रहा है। मोदी ने जिस तरह से लालफीताशाही को खत्म करने, और नियमों की दीवार में व्यवहारिकता की सेंध लगाने की उम्मीद जगायी है, उससे एस. एंड पी. जैसी एजेंसी भी भरोसा करने लगी है। इसके साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ ने मोदी की भविष्य की योजनाओं पर से भी पर्दा हटा दिया है। साथ ही ये भरोसा भी दिया है कि सरकार पुराने श्रम कानूनों को ही सिर्फ तरजीह देने के बजाय निवेशक के हितों का भी ध्यान रखेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीका समेत कई देशों में ऐलान किया था कि उन्हें कानून बनाने के बजाय गैर जरूरी कानून खत्म करने में ज्यादा खुशी होती है। नरेंद्र मोदी ने ना सिर्फ विदेश में यह कहकर तालियां बटोरी बल्कि एस. एंड पी. के ‘माइनस’ को ‘प्लस’ में बदलने का भी जुगाड़ कर लिया।
पश्चिमी देश बहुत दिनों से भारत से कानूनों में कई तरह के बदलाव की मांग कर रहे थे। मोदी सरकार ने अपने प्रचंड बहुमत,लोकप्रियता और परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए उन मांगों को बडे हद तक पूरा कर दिया। जैसे डीजल पर सब्सिडी खत्म कर उसे बाजार के हवाले करना, बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर नीतियो को उदार बनाना और सरकारी खर्च में कटौती करना। मोदी सरकार ने चालाकी दिखाते हुए डीजल को बाजार के हवाले कर दिया। इस समय डीजल की कीमत करीब 80 डालर प्रति बैरल है। जो कि समान्य और औसत डीजल मूल्य से करीब 20 से 25 डालर प्रति बैरल कम है। ऐसे में डीजल मूल्य बाजार के हवाले कर मोदी ने जहां पश्चिमी देशों को लंबी मांग को माना वहीं डीजल पेट्रोल की सस्ती दरों की वाहवाही भी लूट ली है। यानी आम के आम गुठलियो के दाम। यह बात और है कि कई बार कुछ समय बाद गुठली कसैली लगने लगती है।
मोदी की जनधन योजना का असर भले ही अभी देश की अर्थव्यवस्था पर ना दिख रहा हो पर देश की आर्थिक रेटिंग सुधारने में इस योजना का बडा योगदान होगा। भारत के 10 करोड़ लोगों के पहली बार खाते खुलवाने की इस बड़ी योजना ने जहां आम लोगों को फायदा पहुंचाया है, वहीं सब्सिडी के लीक होने की संभावना को भी कम कर मोदी सरकार ने देश की ‘रेटिंग’ को सुधारा है। साथ ही इस योजना में जमा पांच हजार करोड़ रुपये ने देश की आधारभूत संचरना सुधारने की योजनाओं को बल दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह तो साफ है कि वो चैखानों में नहीं सोचते। परंपरागत चैखानों से अलग सोच का ही नतीजा है कि नरेंद्र मोदी ने 64 साल पुराने योजना आयोग को खत्म करने की पहल शुरु कर दी है। दरअसल, सोवियत रुस के प्रभाव और सोवियत संघ माडल की यह संस्था कहीं ना कहीं आज की अर्थव्यवस्था में पुरानी पड़कर अपनी चमक खोने सी लगी थी। इसकी बिगडती साख के साथ ही विश्व की ‘रेटिंग’ एजेंसियों के खांचे इसे हजम नहीं कर पा रहे थे।
मोदी सरकार के जनधन योजना के पासे, योजना आयोग के खात्मे की डगर पर बढे कदम और ‘मेक इन इंडिया’ के शेर ने मोदी को ‘रेटिंग’ के जंगल का शहंशाह बना दिया है। यानी अगर अर्थ की भाषा में बात करें तो मोदी डिविडेंट का फायदा भारत की आर्थिक रेटिंग के सेंसेक्स बाजार को हुआ है।
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