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देर आयद..... क्या दुरुस्त आयद

Dr. Yogesh mishr
Published on: 23 Dec 2014 12:46 PM IST
अपनी जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निवेशकों को आकर्षित करते हुए कहा ‘भारत में उनका स्वागत अब रेड टेपिज्म नहीं बल्कि रेड कार्पेट करेगा। पर ऐसा कहते समय मोदी को यह इल्म नहीं रहा होगा कि उनके महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान पर लालफीताशाही का शिकार हो जाएगा। पूरे शिद्दत से शुरु किए गए इस अभियान में नौकरशाही प्रधानमंत्री से कदमताल मिलाकर चलती हुई नहीं दिख रही है। शायद यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन पर 2 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योजना की शुरुआत की। दिल्ली के वाल्मीकी नगर की बस्ती में हाथ में झाडू ले सफाई को अंजाम दिया। इस योजना का श्रीगणेश तो प्रधानमंत्री ने कर दिया पर नौकरशाहों को यह तय करने में 2 महीने 16 दिन का समय लग गया कि यह अभियान पूरे देश में किस तरह से लागू किया जायेगा। 2 अक्टूबर, 2014 को शुरु हुए अभियान की गाइडलाइन 18 दिसंबर, 2014 को जारी हो सकी। तब भी उसमें इतने पेंच छूट गये अथवा छोड़ दिए गए कि वे प्रधानमंत्री के इस स्वप्निल परियोजना (ड्रीम प्रोजेक्ट) की मंशा को पूरा करने में खासे असहाय और निष्प्रभावी लग रहे हैं।

मोदी ने इस अभियान का जिस खास अंदाज में श्रीगणेश किया। उससे लोगों के मन में एक हिच टूटी, संकोच खत्म हुआ, हया मिटी। लम्बे समय से हिच झाडू को हाथ लगाने की और साफ सफाई के लिए खुद झाडू उठाने की। उम्मीद यह की जा रही थी कि मोदी के नौकरशाह उनके ही तेवर और कलेवर के साथ इस अभियान की गाइडलाइन लेकर आयेंगे। ऐसी गाइडलाइन ग्रामीण इलाके में अब तक सफाई और शौचालय बनाने की 1 फीसदी वार्षिक की दर को 15 गुना तेज किया जा सके। पर गाइडलाइन के बिना ही मोदी ने इस एक फीसदी दर को बढाकर 15 फीसदी करने की ठानी है। यही करके वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 जयंती पर उन्हें साल 2019 में सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं।

माना जा रहा था कि नया अभियान है।नई गाइडलाइन होगी। पुराने अभियानों से सबक लिया जायेगा। वो गलतियां नहीं दोहराई जायेंगी जो दुनिया में भारत को खुले में शौच करने का तीसरा सबसे मुकाम बनाती हैं। गौरतलब है कि बांग्लादेश में 97 फीसदी, नेपाल में 76 फीसदी, भूटान में 96 फीसदी, म्यांमार में 75 फीसदी, पाकिस्तान में 56 फीसदी, श्रीलंका में 93 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय है। जबकि भारत में यह आंकडा बेहद शर्मसार करने वाला है। यहां आज भी 66 फीसदी ग्रामीण खुले में शौच करने के लिए अभिशप्त हैं। यानी सिर्फ चालीस फीसदी ग्रामीणों के पास शौचालय है। एक फीसदी सालाना शौचालय बढाने का यह लक्ष्य वर्ष 1986 से अब तक तब हासिल हुआ है, जबकि एक लाख साठ हजार करोड़ रुपये 28 साल में इस मद में खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके शहरों में अभी भी 17 फीसदी लोग खुले में शौच करने जाते हैं। तकरीबन सभी राज्यों में सिर पर मैला ढोने की अमानुषिक प्रथा जारी है। लेकिन गाइडलाइन में इन लोगों के पुनर्वास और इस प्रथा को रोकने की कोई बात नहीं की गयी है।

यही नहीं, आमतौर पर जो भी गाइडलाइन जारी होती है उसमें कहा जाता है कि यह अमुक तारीख से लागू होगी पर स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन बनी भले दिसंबर में हो पर उसे 2 अक्टूबर से लागू समझा जाय, यह इबारत उसमें दर्ज की गयी है। यानी ढाई महीने तक कच्छप गति से चल रही नौकरशाही ने एक लाइन में अपने सात खून माफ करा लिए और देश की जनता की आंख में वही लालफीताशाही धूल झोंक दी।

नई गाइडलाइन में शौचालय बनाने के लिए दी जाने वाली धनराशि 12 हजार रुपये कर दी गयी है। इसमें 9 हजार रुपये केंद्र और 3 हजार रुपये राज्य सरकार को देना होगा। हांलांकि विशेष दर्जा प्राप्त और पूर्वोत्तर के राज्यों में राज्य का अंशदान सिर्फ 1200 रुपये होगा। यह बात दीगर है कि जिस अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भाजपा सुशासन दिवस मनाने की मुनादी पीट रही है, उन्होंने महसूस किया था कि पैसा देने से शौचालय नहीं बनता। यह व्यवहार परिवर्तन का मामला है। इसी तर्क के मद्देनजर उन्होंने इस योजना में मिलने वाली सब्सिडी बंद करके 500 रुपये की प्रोत्साहन धनराशि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले (बीपीएल) परिवारों को देने का फैसला लिया था। बाद में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने इस धनराशि को बढाकर 1200 रुपये कर दिया, आगे यह धनराशि 3200 रुपये कर दी गयी। लेकिन निर्मल भारत अभियान की शुरुआत में फिर शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार की धनराशि देने का प्रावधान किया। इसमें आधी धनराशि मनरेगा के तहत दी जाती थी। इस अभियान से पहले शौचालय निर्माण अथवा स्वच्छता से जुडी जो भी योजना होती थी, उसमें यह शर्त निहित थी कि सिर्फ निर्माण से ही नहीं उपयोग की आदत के बाद प्रोत्साहन राशि पंचायतों द्वारा प्रदान की जानी थी। लेकिन इस बार फिर नई गाइडलाइन में सिर्फ निर्माण के लिए धनराशि मुक्त करने का प्रावधान कर दिया गया है। जबकि यह प्रयोग राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में फेल हो चुका है।

ऐसा नहीं कि नौ दिन चले अढाई कोस की तर्ज पर बनी इस गाइडलाइन में कुछ नया नहीं है। नया और बेहतर यह है कि इस अभियान में पहली बार राज्यों को यह आजादी दी गयी है कि अगर किसी गांव के लोग अपने पैसे से शौचालय बना लेते हैं, तो वे चाहें तो जितने भी बी.पी.एल. परिवार हैं, उतने शौचालय बनाने के लिए निर्धारित धनराशि गांव के अन्य मद पर खर्च कर लें।

नई गाइडलाइन नें स्कूलों और आंगनबाडी केद्रों पर जो शौचालय ग्राम विकास अथवा पंचायत राज महकमे द्वारा बनाए जाते थे, उन्हें अब मानव संसाधन विकास तथा महिला और बाल विकास मंत्रालयों के हवाले कर दिया गया है। यही नहीं, यह भी फैसला किया गया है कि अब इस काम को हर राज्यों में पंचायत राज विभाग अथवा वह विभाग देखेगा जिसके जिम्मे स्वच्छता का काम होगा। स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन में अच्छा निगरानी तंत्र भी विकसित किया गया है। रैपिड एक्शन लर्निंग यूनिट (रालू) के नाम से निगरानी तंत्र राष्ट्रीय, राज्य और जिले स्तर पर बनेगा। जिसका काम पूरे देश में जारी स्वच्छता के कार्यक्रम का अध्ययन और विश्लेषण करना तो होगा ही साथ ही उसके प्रभावों का मूल्यांकन भी उसे ही करना होगा। जो अच्छी आदतें इस अभियान के तहत किसी भी इलाके या समुदाय में विकसित हो रही हैं, उसे त्वरित गति से प्रचारित और प्रसारित करने की जिम्मेदारी भी ‘रालू’ की होगी। इस निगरानी तंत्र की सफलता मोदी के अन्य अभियानों में इसे लागू किए जाने का सबब बनेगी।

अभी तक स्वच्छता अभियान की निगरानी और उसका मूल्यांकन साल के अंत में या फिर पांच साल बाद होता था। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित गांव में शौचालय बनाने के लक्ष्य को जिला प्रशासन को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना होगा। योजना का मूल्यांकन पल-पल करने के लिए ग्राम-विकास मंत्रालय के अधीन एक वेबसाइट बनाई गयी है। राज्य सरकारें हर महीने जो भी काम करें उसे इस वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। वेबसाइट में हर पंचायत का कालम है। कोई भी आदमी चाहे इसे खोलकर देख सकता है कि उसकी पंचायत में इस योजना के तहत क्या और कैसा काम हो रहा है। हो भी रहा है या नहीं हो रहा है ? मोबाइल और ‘व्हाएट्स ऐप’ का उपयोग कर कार्यों की असलियत का पता लग जायेगा। क्योंकि इन एप्लीकेशन्स के जरिए कार्यों की वास्तविक फोटो भी खींची और भेजी जा सकेगी। यही फोटो वेबसाइट पर भी अपलोड होगी। गलत सूचना की शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। जिले स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन का कार्यालय होगा, जिसका चेयरमैन जिलाधिकारी होगा। जिला परिषद अध्यक्ष को भी इसमें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी है। यह तंत्र ब्लाक स्तर तक खडा किया जाएगा। ‘रालू’ के माध्यम से सतत मूल्यांकन चलेगा। इसके अलावा भारत सरकार स्वतंत्र जांच एजेंसी भी भेजेगी। हर साल हर राज्य में हुए कार्यों का भौतिक सत्यापन भी कराया जाएगा।

कुल बजट का आठ फीसदी हिस्सा मोदी के इस अभियान के लिए निर्धारित किया गया है। जिले के स्तर पर पूरे बजट की तीन फीसदी धनराशि इस अभियान के लिए ऋण देने के वास्ते रखी जाएगी। ब्याजमुक्त इस राशि को 12 से 18 किश्तो में वापस करना होगा। माहवारी स्वच्छता अभियान को ‘मेन कंपोनेंट’ में जगह दी गयी है। गांवों में सैनेटरी सामग्री बनाने के लिए अगर स्वयं सहायता समूह चाहें तो उन्हें भी धनराशि दी जाएगी। सार्वजनिक स्थानों पर टायलेट बनाने और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी का निर्वाह औद्योगिक घराने ‘कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी’ (सी.एस.आर.) के मार्फत कर सकेंगे। विकलांगों और असहायों के लिए शौचालय के विशेष माडल तैयार किए जायेंगे। गांव के कचरा प्रबंधन के लिए अलग से धनराशि रखी गयी है जो 7 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक हो सकती है। यह धनराशि बी.पी.एल. परिवारों की संख्या पर निर्भर करेगी। इस अभियान को सफल बनाने के लिए ‘स्वच्छता दूत’ और ‘स्वच्छ सेना’ ग्राम स्तर पर तैयार किए जाएंगे।

देश में स्वच्छता पर अध्ययन और शोध के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुडकी, दिल्ली विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस-मुंबई, आईआईटी-चेन्नई और आईआईएम अहमदाबाद में चेयर बनेंगी। इन पांच चेयर्स का अध्यक्ष प्रोफेसर स्तर का विद्वान होगा। हर चेयर को पांच करोड़ रुपये प्रति वर्ष मिलेंगे। गाइडलाइन और स्वच्छता के लिए दिए जाने वाले इस साल के निर्मल ग्राम पुरस्कार यह तो बयान करते ही हैं की सरकार की नीयत ठीक है, क्योंकि पहली मर्तबा पूरी ईमानदारी और जांच परख कर पुरस्कार दिये गये हैं, यही वजह है कि 15 ऐसे राज्य हैं जहां एक भी गांव को इस पुरस्कार लायक नहीं समझा गया है। इसमें उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम और केरल भी शामिल हैं। जबकि आंध्रप्रदेश के 27, अरुणाचल के दो, बिहार के 1, गुजरात के 2, ओडिशा के 3, राजस्थान के 5,
कर्नाटक के 1, छत्तीसगढ़ का 1 गांव शामिल है। सबसे अधिक 355 पुरस्कार महाराष्ट्र के खाते में गये हैं। मेघालय को 43, मध्यप्रदेश को 34 और हिमाचल के 21 गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चुना गया है। जबकि इससे पहले जिन गांव को यह पुरस्कार दिए गये, उनके भौतिक सत्यापन में केन्द सरकार द्वारा भेजी टीमों ने ही उन्हें पुरस्कार लायक नही समझा। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने मेरी एक खबर पर निर्मल ग्राम पुरस्कार पाए गांवों की हकीकत की तहकीकत करायी तो उन्हें भी बेहद निराषा हाथ लगी।


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Dr. Yogesh mishr

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