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व्यापार नहीं रिश्तों का आधार
-हम भारत की कीमत पर किसी से दोस्ती नहीं कर सकते- ब्लादिमीर पुतिन।
-रुस और भारत के रिश्ते सरकार और राजनेताओं के नहीं, दोनों देश की जनता के दिल के रिश्ते हैं- नरेंद्र मोदी
इन दोनों देश के दोनों नेताओं के ये बयान आपसी रिश्तों की वह बानगी पेश करते हैं, जो यह बताने के लिये पर्याप्त है कि व्यापार और उसका आकार इनके बीच के रिश्तों का कोई आधार नहीं हो सकता। इन दोनों देश के बीच के रिश्ते सचमुच वहां की जनता के दिलों से जुड़ते हंै, तभी तो हर गाढ़े संकट में भारत के साथ साये की तरह सोवियत संघ और अब रूस खड़ा रहा है। एक समय था कि दोनों देशों की भाषायें इन देशों की सीमाओं में परिचय की मोहताज नहीं थी, निःसंदेह इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में बच्चा भी जानता है कि रूस भारत का महानतम मित्र है। जबकि राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि समय बदला है, लेकिन भारत के साथ हमारी दोस्ती में कोई बदलाव नहीं आया है।
भारत और रूस के बीच संबंधों पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि दोनों देशों के रिश्ते हमेषा प्रगाढ़ रहे हैं। आजादी से पहले ही भारतीय नेताओं की रूस से नजदीकी रही है। वर्ष 1955 में जवाहर लाल नेहरू रूस गए। शीतयुद्ध के दौरान भारत को सामरिक मामलों में रूस का सहयोग मिलाता रहा। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमरीका ने पाकपरस्ती दिखाई थी, तो रुस यानी तत्कालीन सोवियत संघ ने हिंद महासागर में जहाजी बेड़ा उतारकर भारत को बडी राहत दी थी। वर्ष 1991 सोवियत रूस के टूटने के बाद हालात बदलने लगे और इन बदले हालातों में भारत और अमेरिका की नजदीकियां बढ़ने लगीं। साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति रहते व्लादिमीर पुतिन ने द्विपक्षीय सामरिक समझौता किया। इसके बाद करीब एक दशक तक भारत लगातार रूस से हथियार खरीदने वाला अग्रणी देश बना रहा। लेकिन दोनों देशों की नीतियां एक दशक में सिर्फ एक दूसरे की पोषक नहीं रह सकती। विश्व बदला तो नीतियां भी तनिक बदलीं। परिणाम यह निकला कि जहां भारत रूस से हथियारों की लगभग नब्बे प्रतिशत खरीद को सत्तर प्रतिशत तक ले आया। भारत ने हथियारों के लिए अमेरिका, इज्राइल और फ्रांस से बड़े सौदे किए। जिससे रूस में नाराजगी पैदा होने लगी।
रूस ने भी चीन को हथियारों और गैस-आपूर्ति का सबसे बड़ा साझेदार बना लिया। दूसरी तरफ रूस और पाकिस्तान के बीच रक्षा संबंध और रूस द्वारा पाकिस्तान को एमआई-35 हेलीकॉप्टर बेचने से भारत में असहजता पैदा हुई। फिर भी भारतीय युद्धपोत विक्रमादित्य, कुडनकुलम का परमाणु ऊर्जा केंद्र, ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र, एसयू 30 युद्धक विमान, टी-90 टैंक जैसे कारक भारत-रूस मैत्री की इस असहजता को नाराजगी में नहीं बदलने देते।
हाल ही में रूस का साइबेरिया एक्सप्रेस के नाम से प्रसिद्ध समझौता चीन के साथ हुआ। इसके तहत रुस चीन को तीस वर्ष तक गैस की आपूर्ति करेगा। चार सौ अरब अमेरिकी डॉलर के इस समझौते के जरिये रूस चीन का विश्व में सबसे बड़ा सामरिक साझेदार बन गया है। बदली परिस्थितियों पर भारत की नजर है, लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र का खूबसूरत पहलू है कि सरकारों के बदलने के बावजूद रूस के प्रति भारत में जो स्वाभाविक झुकाव और विश्वसनीय अपनेपन का भाव है, उसे आहत नहीं किए जाने की नीति कायम है। भारत को इस बात का भी इल्म है कि रुस और भारत शीतयुद्ध के जमाने से काफी आगे निकल चुके है। ऐसे में रिश्तों की नफासत नजाकत में पड़ने के बजाय अब व्यवहारिकता पर ध्यान देना होगा। तभी तो नेपाल से चीन तक और जापान से अमरीका तक घूमकर विदेश नीति का मोदी ने लोहा मनवाया। दिल्ली में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की तब भी मोदी ने रूस को बेहद अहम बताया पर उस बयान में भी अपनी कूटनीतिक चपलता का परिचय दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ किया कि दोस्तों के विकल्पों के बावजूद रूस भारत के लिए बेहद अहम है। दरअसल, प्रधानमंत्री ने पुतिन को सबसे अच्छा दोस्त बताने के साथ यह भी जता दिया कि भारत से रुस का बराबरी का रिश्ता है। जाहिर है और पुरानी कहावत भी है कि दोस्ती बराबरी में ही होती है। मोदी का विकल्पों के बावजूद का जुमला इसी बराबरी की दरकार था। साथ ही यह भी साफ संदेश था कि रुस का पाक परस्त होना भारत को बहुत परेशान नहीं कर रहा है।
अभी स्थिति यह है कि रूस के अधिकांश विश्वविद्यालयों में हिंदी के अलावा तमिल, गुजराती, मराठी, बांग्ला, संस्कृत और पालि पढ़ाई जाती है। वहां के लोगों में भारतीय नृत्य विशषेकर भारतनाट्यम, योग और आयुर्वेद के प्रति गहरा झुकाव है। रूस के दस देशों में भारतीय संस्कृति का विराट महोत्सव पिछले वर्ष ही मनाया गया और भारत के कलाकार, विशेषकर फिल्में वहां अपार लोकप्रिय हैं। वहां के मेडिकल कॉलेजों में साढ़े चार हजार से अधिक भारतीय आसान शर्तों और कम पैसे में पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि बीच में भगवद्गीता और इस्कॉन (हरे कृष्णा) पर प्रतिबंध के मामले उठे, लेकिन रूस सरकार ने उसे बुद्धिमता से भारतीय पक्ष में सुलझाया। चेचन्या में इस्लामी आतंकवादियों पर रूस की कड़ी कार्रवाई का भारत में सामान्यतः स्वागत ही हुआ था और यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप के बाद भले ही समूचा पश्चिमी विश्व रूस के विरुद्ध हो गया हो तथा अमेरिका के नेतृत्व में प्रतिबंधों की आक्रामकता रूस के विरुद्ध शुरू हुई, पर भारत ने असाधारण स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय देते हुए रूस के विरुद्ध पश्चिमी खेमे से स्वयं को संबद्ध नहीं किया। साथ ही भारत ने क्रीमिया और उक्रेन मसले पर रूस पर प्रतिबंध के समर्थन में हामी नहीं भरी।
रूस ने भी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में भारत का सहयोग करने का वायदा किया है। राष्ट्रपति पुतिन के इस दौरे के दौरान भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाने के लिए 16 करारों पर हस्ताक्षर किए गये हैं। पुतिन की इस यात्रा के दौरान हुए करार के तहत रूस भारत को 20 साल में 12 नए न्यूक्लियर रिएक्टर देगा। इसके अलावा तमिलनाडु के कुडनकुलम में लगाई जाने वाली तीसरी और चैथी परमाणु ऊर्जा यूनिट के लिए भी रूस और भारत के बीच करार हुए हैं। भारत में रूस द्वारा हेलीकॉप्टर बनाए जाने के लिए भी एक करार किया गया है। पुतिन की भारतीय यात्रा के दौरान रूस से हीरा खरीद के लिए 130 अरब का करार, एस्सार-रोसनेट के बीच 1 करोड़ टन क्रूड एक्सपोर्ट करार और नेषनल माइनिंग डेवलपमेन्ट काउंसिल (एनएमडीसी) और एक्रान के साथ पोटाश खनन समझौता भी हुआ है।
अगर भारत और रूस के संबंधों को कारोबारी नजरिए से देखें तो इसमें अपार संभावनाएं हैं। भारत और रूस के बीच 2011 में 8.87 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था, जो 2013 में बढ़कर 10.01 अरब डॉलर हो गया। वहीं 2013 में अमेरिका के साथ भारत का 63.7 अरब डॉलर का और चीन के साथ 65.47 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। तुलनात्मक रुप से देखें तो भारत और रूस के बीच बहुत कम स्तर पर कारोबार होता है। खासकर तब, जब भारत-रूस के बीच 2.1 अरब डॉलर के खान से निकले हीरे की आपूर्ति, बारह एटमी बिजलीघरों को स्थापित करने, पांचवीं पीढ़ी के रूस के लड़ाकू हेलिकॉप्टर और उसके द्वारा निर्यात किए जाने वाले सैन्य साजो-सामान अब भारत में बनाए जाने पर समझौते हो रहे हों। पुतिन के बयानों से लगता है कि गैस, तेल और नाभिकीय ऊर्जा विपणन के क्षेत्र में उन्हें यूरोप से अधिक भरोसेमंद और टिकाऊ बाजार एशिया लगने लगा है।
रूस पहली बार आयुध प्रौद्योगिकी और आयुध उद्योग के क्षेत्र में संयुक्त रूप से उत्पादन के लिए राजी हुआ है। पिछले पांच वर्षों से भारत इस तरह का प्रस्ताव देता आया है। 18 जून, 2014 को रूसी उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज से भेंट के बाद स्पष्ट किया कि हम साझा सैन्य उत्पादन भारत में करने को तैयार हैं। ऐसा नहीं है कि रूसी हथियार कंपनियां पहली बार किसी देश में संयुक्त उत्पादन के लिए तैयार हुई हों। अक्टूबर, 2013 में ईरान और रूस हवाई सुरक्षा के क्षेत्र में साझा उपक्रम लगाने के वास्ते समझौता कर चुके थे। ईरान में रूस को बवार-373 मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करना था, जिसे रोकने के लिए अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्रों ने काफी दबाव बना रखा था।
‘मनमोहनॉमिक्स’ से ‘मोदीनॉमिक्स’ की ओर स्थानांतरित होती हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ की ओर एकतरफा न चल पड़े, इसके खतरे मंडराते रहेंगे। यों, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस पर जो प्रतिबंध लगा है, उस कूटनीति में वह पड़ना नहीं चाहता। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? वर्ष 2014 में भारत को 1.9 अरब डॉलर की सैन्य सामग्री निर्यात कर ‘नंबर वन सप्लायर’ बनने वाला अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि उसके निवाले को रूस छीन ले जाए। रूस को भारत को किए जाने वाले हथियार निर्यात के क्षेत्र में इजराइल से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है।
दक्षिण एशिया में रूस की अभी जो रणनीति बन रही है, वह 2015 को दृष्टि में रख कर बन रही है। अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों के हटने के बाद 2015 में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान की धुरी कितनी सशक्त होगी, और इसमें भारत कितना फिट बैठेगा, इस बात को अभी से ध्यान में रखने की जरूरत है। फरवरी 1989 में सोवियत सेना की अफगानिस्तान से वापसी के बाद भी मास्को चुप नहीं बैठा रहा। तब रूस लगातार अहमद शाह मसूद, अब्दुल रशीद दोस्तम, हाजी अब्दुल कादिर जैसे ‘नार्दर्न अलायंस’ के नेताओं की जमीन पुख्ता करने के लिए रणनीति बनाता रहा। सितंबर, 1996 में अफगानिस्तान में ‘नार्दर्न अलायंस’ के सक्रिय होने के बाद रूस ने तुर्की, भारत, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, चीन की एक धुरी तैयार की थी, जिसका मकसद तालिबान की सत्ता को समाप्त करना था। उन दिनों अलकायदा तालिबान की मदद कर रहा था, जिसके गढ़ पाकिस्तान के कबीलाई इलाके थे। अमेरिका की अपनी रणनीति थी, जिसमें वह परोक्ष रूप से पाकिस्तान को अपने पाले में किए हुए था। यही कारण था कि वर्ष 1989 में जलालाबाद पर कब्जा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को आदेश देने पड़े थे। इस कार्रवाई के लिए इस्लामाबाद में उन दिनों तैनात अमेरिकी राजदूत राबर्ट बी. ओक्ले ने सारी रणनीति बनाई थी।
पाकिस्तान को अमेरिकी दबदबे से बाहर निकालना रूस के लिए बड़ी चुनौती रही है। यह वर्ष 1990 के दिनों की बात है, जब सोवियत संघ ने पाकिस्तान में एक हजार मेगावाट के एटमी बिजलीघर लगाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे बेनजीर भुट्टो और बाद में वर्ष 1992 में नवाज शरीफ ने ठुकरा दिया। पर कुछ दशक बाद यानी वर्ष 2011 रूस-पाकिस्तान संबंधों के प्रगाढ़ होने का साल रहा। उस साल सेंट पीटर्सबर्ग में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक हुई, जिसमें रूस ने पाकिस्तान को पूर्ण सदस्यता दिए जाने का प्रस्ताव रखा था। वर्ष 2011 में ही रूस ने पाक सीमाओं पर नाटो हमले की भर्तसना की। पश्चिमी देशों को लग गया कि मास्को और इस्लामाबाद के बीच बिरयानी पक रही है। रूस ने पाकिस्तान को हथियार बिक्री पर प्रतिबंध आयद किया था, जिसे हटा लिया। इससे इस्लामाबाद को एमआइ-35 मल्टीरोल हेलिकॉप्टर की बिक्री आसान हो गई। यह संभव है कि रूस, भारत पर दबाव बनाने के वास्ते पाकिस्तान की तरफ मुखातिब हुआ हो। 20 नवंबर को रूसी रक्षामंत्री सर्गे शोइगू इस्लामाबाद आए और पाकिस्तान से ऐतिहासिक रक्षा समझौता कर गए। रूस, पाक एयरलाइंस ‘पीआइए’ को सुखोई व्यावसायिक विमान लीज पर दे चुका है। थार और मुजफ्फराबाद के गुड्डू बिजली संयंत्रों की उत्पादन-क्षमता बढ़ाने में रूस लगा हुआ है।वह पाकिस्तान के इस्पात कारखानों का उत्पादन दस लाख टन से बढ़ा कर तीस लाख टन करने के लिए तकनीकी सहयोग दे रहा है। वॉयस ऑफ रशिया के अनुसार, वर्ष 1996 से 2010 तक रूस पाकिस्तान को सिर्फ सत्तर एमआइ-17 ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर दे पाया था। जबकि भारत में तोप से लेकर पोत तक, और सैनिक साज-सामान पचहत्तर प्रतिशत रूस से आयात हुआ है। पुतिन जानते हैं कि पाकिस्तान को इतना सहयोग देने के बावजूद रूस के खजाने में कुछ आना नहीं है। मुफ्तखोरी पाकिस्तान की फितरत बन चुकी है, इसलिए रूस अधिक से अधिक इस सहयोग का रणनीतिक इस्तेमाल कर सकता है। तभी तो वर्ष 2012 में पुतिन ने घोषणा की कि चुनाव के बाद मैं पाकिस्तान की यात्रा करूंगा। लेकिन पुतिन अब तक पाकिस्तान नहीं पधारे। पुतिन को पता है कि रूस का असल व्यापार तो भारत से होना है। तभी वो भारत को भी शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनाना चाहते हैं। चाहते ही नहीं, यह कहते भी है कि अब भारत सदस्य बन जाय, हमने बाधाएं दूर कर दी हैं।
पुतिन ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ को यूरोपीय संघ के मुकाबले खड़ा करना चाहते हैं। क्या इसके लिए पुतिन दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर भी देख रहे हैं? यह पुतिन की विवशता है कि उन्हें एशिया में व्यापार और शक्ति के विस्तार के लिए भारत का साथ चाहिए। शायद इसलिए रूस, ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के तराने को भूल नहीं पाता!
भारत में इस समय सत्रह परमाणु बिजलीघर चालू हैं। वर्ष 2030 तक पच्चीस से तीस परमाणु बिजलीघर बनाने का कार्यक्रम संप्रग सरकार तय कर चुकी थी। इस साल अप्रैल में कूडनकूलम की तीसरी और चैथी इकाई के लिए मुंबई में हस्ताक्षर किए गए। अब पुतिन ने कहा है कि हम भारत में एटमी बिजलीघर की पच्चीस यूनिटें लगा सकते हैं। तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान - पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन (तापी) में रूस की सरकारी कंपनी गाजप्रोम के जुड़ जाने से पुतिन अपनी ऊर्जा कूटनीति का इस इलाके में विस्तार करेंगे।
अभी भारत रूस के बीच प्रतिवर्ष करीब 10 अरब डालर का व्यापार होता है, जो रूस और चीन के बीच होने वाले व्यापार का बारहवां हिस्सा है। ऐसे में दोनों देशों की कोशिश आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने की होनी चाहिए और ऐसा हो भी रहा है। दोनों देशों के बीच तेल, गैस, रक्षा, निवेश, स्वास्थ्य क्षेत्र आदि के लिए महत्वपूर्ण 16 समझौते हुए। दोनों देशों ने तेल व गैस शोधन में साझेदारी बढ़ाने का फैसला किया है। भारत में औद्योगिक नगरों व स्मार्ट सिटी बसाने में रूस सहयोग करेगा। इसके अलावा रूस 30 से 50 लाख टन तेल भारत को बेचेगा, ऐसा प्रस्ताव भी आया है। हाइड्रोकार्बन व हीरों के व्यापार को बढ़ाने के लिए दोनों देश नए पथ पर आगे बढ़े हैं। लेकिन इस बीच कहानी में ट्विस्ट भी आ गया है। पुतिन की षिष्ट मंडल (डेलिगेशन) में सर्गेई एक्सिनोव नाम के एक व्यक्ति शामिल थे, जो रूस के हड़पे हुए क्रिमिया के नेता हैं। भारत में इनकी मौजूदगी ने दुनिया भर में हेडलाइन बटोरी और अमेरिका को नाराज भी कर दिया है। क्रीमिया के नेता सर्गेई अक्सयोनोव ने इस वर्ष मार्च में यूक्रेन को छोड़कर रूसी संघ में शामिल होने का फैसला किया था। वह भारतीय निवेश पाने की लालसा से पहली विदेश यात्रा पर आए थे। क्रीमिया के रूसी संघ में शामिल होने के बाद पश्चिमी देशों ने दोनों के खिलाफ विभिन्न प्रतिबंध लगा दिए हैं।
कुल मिलाकर बात यह सामने आ रही है कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार व आर्थिक सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, जिनका अधिकतम लाभ उठाना भारत और रूस दोनों के लिए हितकारी होगा। पश्चिम से प्रतिबंध का सामना कर रहे रूस को भारतीय सहयोग की आवश्यकता है, वहीं भारत को भी कई क्षेत्रों में रूसी सहयोग की जरूरत होती ही रहती है। पुतिन को रुसी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का वाला फौलादी नेता माना जाता है। मोदी को भारत के दूसरे सुधार कार्यक्रम लागू करने हैं, वहीं उन्हें देश को नयी तरक्कियों की तरफ ले जाना है। रुबल का दाम लगातार गिर रहा है और रुसी अर्थव्यवस्था अभी भी पूरी तरह स्थिर नहीं है। ऐसे में दोनो नेताओं को पास ही नहीं लाती, एक दूसरे का स्वाभाविक हामी भी बनाती है।
-रुस और भारत के रिश्ते सरकार और राजनेताओं के नहीं, दोनों देश की जनता के दिल के रिश्ते हैं- नरेंद्र मोदी
इन दोनों देश के दोनों नेताओं के ये बयान आपसी रिश्तों की वह बानगी पेश करते हैं, जो यह बताने के लिये पर्याप्त है कि व्यापार और उसका आकार इनके बीच के रिश्तों का कोई आधार नहीं हो सकता। इन दोनों देश के बीच के रिश्ते सचमुच वहां की जनता के दिलों से जुड़ते हंै, तभी तो हर गाढ़े संकट में भारत के साथ साये की तरह सोवियत संघ और अब रूस खड़ा रहा है। एक समय था कि दोनों देशों की भाषायें इन देशों की सीमाओं में परिचय की मोहताज नहीं थी, निःसंदेह इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में बच्चा भी जानता है कि रूस भारत का महानतम मित्र है। जबकि राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि समय बदला है, लेकिन भारत के साथ हमारी दोस्ती में कोई बदलाव नहीं आया है।
भारत और रूस के बीच संबंधों पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि दोनों देशों के रिश्ते हमेषा प्रगाढ़ रहे हैं। आजादी से पहले ही भारतीय नेताओं की रूस से नजदीकी रही है। वर्ष 1955 में जवाहर लाल नेहरू रूस गए। शीतयुद्ध के दौरान भारत को सामरिक मामलों में रूस का सहयोग मिलाता रहा। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमरीका ने पाकपरस्ती दिखाई थी, तो रुस यानी तत्कालीन सोवियत संघ ने हिंद महासागर में जहाजी बेड़ा उतारकर भारत को बडी राहत दी थी। वर्ष 1991 सोवियत रूस के टूटने के बाद हालात बदलने लगे और इन बदले हालातों में भारत और अमेरिका की नजदीकियां बढ़ने लगीं। साल 2000 में रूस के राष्ट्रपति रहते व्लादिमीर पुतिन ने द्विपक्षीय सामरिक समझौता किया। इसके बाद करीब एक दशक तक भारत लगातार रूस से हथियार खरीदने वाला अग्रणी देश बना रहा। लेकिन दोनों देशों की नीतियां एक दशक में सिर्फ एक दूसरे की पोषक नहीं रह सकती। विश्व बदला तो नीतियां भी तनिक बदलीं। परिणाम यह निकला कि जहां भारत रूस से हथियारों की लगभग नब्बे प्रतिशत खरीद को सत्तर प्रतिशत तक ले आया। भारत ने हथियारों के लिए अमेरिका, इज्राइल और फ्रांस से बड़े सौदे किए। जिससे रूस में नाराजगी पैदा होने लगी।
रूस ने भी चीन को हथियारों और गैस-आपूर्ति का सबसे बड़ा साझेदार बना लिया। दूसरी तरफ रूस और पाकिस्तान के बीच रक्षा संबंध और रूस द्वारा पाकिस्तान को एमआई-35 हेलीकॉप्टर बेचने से भारत में असहजता पैदा हुई। फिर भी भारतीय युद्धपोत विक्रमादित्य, कुडनकुलम का परमाणु ऊर्जा केंद्र, ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र, एसयू 30 युद्धक विमान, टी-90 टैंक जैसे कारक भारत-रूस मैत्री की इस असहजता को नाराजगी में नहीं बदलने देते।
हाल ही में रूस का साइबेरिया एक्सप्रेस के नाम से प्रसिद्ध समझौता चीन के साथ हुआ। इसके तहत रुस चीन को तीस वर्ष तक गैस की आपूर्ति करेगा। चार सौ अरब अमेरिकी डॉलर के इस समझौते के जरिये रूस चीन का विश्व में सबसे बड़ा सामरिक साझेदार बन गया है। बदली परिस्थितियों पर भारत की नजर है, लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र का खूबसूरत पहलू है कि सरकारों के बदलने के बावजूद रूस के प्रति भारत में जो स्वाभाविक झुकाव और विश्वसनीय अपनेपन का भाव है, उसे आहत नहीं किए जाने की नीति कायम है। भारत को इस बात का भी इल्म है कि रुस और भारत शीतयुद्ध के जमाने से काफी आगे निकल चुके है। ऐसे में रिश्तों की नफासत नजाकत में पड़ने के बजाय अब व्यवहारिकता पर ध्यान देना होगा। तभी तो नेपाल से चीन तक और जापान से अमरीका तक घूमकर विदेश नीति का मोदी ने लोहा मनवाया। दिल्ली में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की तब भी मोदी ने रूस को बेहद अहम बताया पर उस बयान में भी अपनी कूटनीतिक चपलता का परिचय दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ किया कि दोस्तों के विकल्पों के बावजूद रूस भारत के लिए बेहद अहम है। दरअसल, प्रधानमंत्री ने पुतिन को सबसे अच्छा दोस्त बताने के साथ यह भी जता दिया कि भारत से रुस का बराबरी का रिश्ता है। जाहिर है और पुरानी कहावत भी है कि दोस्ती बराबरी में ही होती है। मोदी का विकल्पों के बावजूद का जुमला इसी बराबरी की दरकार था। साथ ही यह भी साफ संदेश था कि रुस का पाक परस्त होना भारत को बहुत परेशान नहीं कर रहा है।
अभी स्थिति यह है कि रूस के अधिकांश विश्वविद्यालयों में हिंदी के अलावा तमिल, गुजराती, मराठी, बांग्ला, संस्कृत और पालि पढ़ाई जाती है। वहां के लोगों में भारतीय नृत्य विशषेकर भारतनाट्यम, योग और आयुर्वेद के प्रति गहरा झुकाव है। रूस के दस देशों में भारतीय संस्कृति का विराट महोत्सव पिछले वर्ष ही मनाया गया और भारत के कलाकार, विशेषकर फिल्में वहां अपार लोकप्रिय हैं। वहां के मेडिकल कॉलेजों में साढ़े चार हजार से अधिक भारतीय आसान शर्तों और कम पैसे में पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि बीच में भगवद्गीता और इस्कॉन (हरे कृष्णा) पर प्रतिबंध के मामले उठे, लेकिन रूस सरकार ने उसे बुद्धिमता से भारतीय पक्ष में सुलझाया। चेचन्या में इस्लामी आतंकवादियों पर रूस की कड़ी कार्रवाई का भारत में सामान्यतः स्वागत ही हुआ था और यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप के बाद भले ही समूचा पश्चिमी विश्व रूस के विरुद्ध हो गया हो तथा अमेरिका के नेतृत्व में प्रतिबंधों की आक्रामकता रूस के विरुद्ध शुरू हुई, पर भारत ने असाधारण स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय देते हुए रूस के विरुद्ध पश्चिमी खेमे से स्वयं को संबद्ध नहीं किया। साथ ही भारत ने क्रीमिया और उक्रेन मसले पर रूस पर प्रतिबंध के समर्थन में हामी नहीं भरी।
रूस ने भी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में भारत का सहयोग करने का वायदा किया है। राष्ट्रपति पुतिन के इस दौरे के दौरान भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाने के लिए 16 करारों पर हस्ताक्षर किए गये हैं। पुतिन की इस यात्रा के दौरान हुए करार के तहत रूस भारत को 20 साल में 12 नए न्यूक्लियर रिएक्टर देगा। इसके अलावा तमिलनाडु के कुडनकुलम में लगाई जाने वाली तीसरी और चैथी परमाणु ऊर्जा यूनिट के लिए भी रूस और भारत के बीच करार हुए हैं। भारत में रूस द्वारा हेलीकॉप्टर बनाए जाने के लिए भी एक करार किया गया है। पुतिन की भारतीय यात्रा के दौरान रूस से हीरा खरीद के लिए 130 अरब का करार, एस्सार-रोसनेट के बीच 1 करोड़ टन क्रूड एक्सपोर्ट करार और नेषनल माइनिंग डेवलपमेन्ट काउंसिल (एनएमडीसी) और एक्रान के साथ पोटाश खनन समझौता भी हुआ है।
अगर भारत और रूस के संबंधों को कारोबारी नजरिए से देखें तो इसमें अपार संभावनाएं हैं। भारत और रूस के बीच 2011 में 8.87 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था, जो 2013 में बढ़कर 10.01 अरब डॉलर हो गया। वहीं 2013 में अमेरिका के साथ भारत का 63.7 अरब डॉलर का और चीन के साथ 65.47 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। तुलनात्मक रुप से देखें तो भारत और रूस के बीच बहुत कम स्तर पर कारोबार होता है। खासकर तब, जब भारत-रूस के बीच 2.1 अरब डॉलर के खान से निकले हीरे की आपूर्ति, बारह एटमी बिजलीघरों को स्थापित करने, पांचवीं पीढ़ी के रूस के लड़ाकू हेलिकॉप्टर और उसके द्वारा निर्यात किए जाने वाले सैन्य साजो-सामान अब भारत में बनाए जाने पर समझौते हो रहे हों। पुतिन के बयानों से लगता है कि गैस, तेल और नाभिकीय ऊर्जा विपणन के क्षेत्र में उन्हें यूरोप से अधिक भरोसेमंद और टिकाऊ बाजार एशिया लगने लगा है।
रूस पहली बार आयुध प्रौद्योगिकी और आयुध उद्योग के क्षेत्र में संयुक्त रूप से उत्पादन के लिए राजी हुआ है। पिछले पांच वर्षों से भारत इस तरह का प्रस्ताव देता आया है। 18 जून, 2014 को रूसी उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज से भेंट के बाद स्पष्ट किया कि हम साझा सैन्य उत्पादन भारत में करने को तैयार हैं। ऐसा नहीं है कि रूसी हथियार कंपनियां पहली बार किसी देश में संयुक्त उत्पादन के लिए तैयार हुई हों। अक्टूबर, 2013 में ईरान और रूस हवाई सुरक्षा के क्षेत्र में साझा उपक्रम लगाने के वास्ते समझौता कर चुके थे। ईरान में रूस को बवार-373 मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करना था, जिसे रोकने के लिए अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्रों ने काफी दबाव बना रखा था।
‘मनमोहनॉमिक्स’ से ‘मोदीनॉमिक्स’ की ओर स्थानांतरित होती हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ की ओर एकतरफा न चल पड़े, इसके खतरे मंडराते रहेंगे। यों, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस पर जो प्रतिबंध लगा है, उस कूटनीति में वह पड़ना नहीं चाहता। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? वर्ष 2014 में भारत को 1.9 अरब डॉलर की सैन्य सामग्री निर्यात कर ‘नंबर वन सप्लायर’ बनने वाला अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि उसके निवाले को रूस छीन ले जाए। रूस को भारत को किए जाने वाले हथियार निर्यात के क्षेत्र में इजराइल से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है।
दक्षिण एशिया में रूस की अभी जो रणनीति बन रही है, वह 2015 को दृष्टि में रख कर बन रही है। अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों के हटने के बाद 2015 में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान की धुरी कितनी सशक्त होगी, और इसमें भारत कितना फिट बैठेगा, इस बात को अभी से ध्यान में रखने की जरूरत है। फरवरी 1989 में सोवियत सेना की अफगानिस्तान से वापसी के बाद भी मास्को चुप नहीं बैठा रहा। तब रूस लगातार अहमद शाह मसूद, अब्दुल रशीद दोस्तम, हाजी अब्दुल कादिर जैसे ‘नार्दर्न अलायंस’ के नेताओं की जमीन पुख्ता करने के लिए रणनीति बनाता रहा। सितंबर, 1996 में अफगानिस्तान में ‘नार्दर्न अलायंस’ के सक्रिय होने के बाद रूस ने तुर्की, भारत, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, चीन की एक धुरी तैयार की थी, जिसका मकसद तालिबान की सत्ता को समाप्त करना था। उन दिनों अलकायदा तालिबान की मदद कर रहा था, जिसके गढ़ पाकिस्तान के कबीलाई इलाके थे। अमेरिका की अपनी रणनीति थी, जिसमें वह परोक्ष रूप से पाकिस्तान को अपने पाले में किए हुए था। यही कारण था कि वर्ष 1989 में जलालाबाद पर कब्जा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को आदेश देने पड़े थे। इस कार्रवाई के लिए इस्लामाबाद में उन दिनों तैनात अमेरिकी राजदूत राबर्ट बी. ओक्ले ने सारी रणनीति बनाई थी।
पाकिस्तान को अमेरिकी दबदबे से बाहर निकालना रूस के लिए बड़ी चुनौती रही है। यह वर्ष 1990 के दिनों की बात है, जब सोवियत संघ ने पाकिस्तान में एक हजार मेगावाट के एटमी बिजलीघर लगाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे बेनजीर भुट्टो और बाद में वर्ष 1992 में नवाज शरीफ ने ठुकरा दिया। पर कुछ दशक बाद यानी वर्ष 2011 रूस-पाकिस्तान संबंधों के प्रगाढ़ होने का साल रहा। उस साल सेंट पीटर्सबर्ग में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक हुई, जिसमें रूस ने पाकिस्तान को पूर्ण सदस्यता दिए जाने का प्रस्ताव रखा था। वर्ष 2011 में ही रूस ने पाक सीमाओं पर नाटो हमले की भर्तसना की। पश्चिमी देशों को लग गया कि मास्को और इस्लामाबाद के बीच बिरयानी पक रही है। रूस ने पाकिस्तान को हथियार बिक्री पर प्रतिबंध आयद किया था, जिसे हटा लिया। इससे इस्लामाबाद को एमआइ-35 मल्टीरोल हेलिकॉप्टर की बिक्री आसान हो गई। यह संभव है कि रूस, भारत पर दबाव बनाने के वास्ते पाकिस्तान की तरफ मुखातिब हुआ हो। 20 नवंबर को रूसी रक्षामंत्री सर्गे शोइगू इस्लामाबाद आए और पाकिस्तान से ऐतिहासिक रक्षा समझौता कर गए। रूस, पाक एयरलाइंस ‘पीआइए’ को सुखोई व्यावसायिक विमान लीज पर दे चुका है। थार और मुजफ्फराबाद के गुड्डू बिजली संयंत्रों की उत्पादन-क्षमता बढ़ाने में रूस लगा हुआ है।वह पाकिस्तान के इस्पात कारखानों का उत्पादन दस लाख टन से बढ़ा कर तीस लाख टन करने के लिए तकनीकी सहयोग दे रहा है। वॉयस ऑफ रशिया के अनुसार, वर्ष 1996 से 2010 तक रूस पाकिस्तान को सिर्फ सत्तर एमआइ-17 ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर दे पाया था। जबकि भारत में तोप से लेकर पोत तक, और सैनिक साज-सामान पचहत्तर प्रतिशत रूस से आयात हुआ है। पुतिन जानते हैं कि पाकिस्तान को इतना सहयोग देने के बावजूद रूस के खजाने में कुछ आना नहीं है। मुफ्तखोरी पाकिस्तान की फितरत बन चुकी है, इसलिए रूस अधिक से अधिक इस सहयोग का रणनीतिक इस्तेमाल कर सकता है। तभी तो वर्ष 2012 में पुतिन ने घोषणा की कि चुनाव के बाद मैं पाकिस्तान की यात्रा करूंगा। लेकिन पुतिन अब तक पाकिस्तान नहीं पधारे। पुतिन को पता है कि रूस का असल व्यापार तो भारत से होना है। तभी वो भारत को भी शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनाना चाहते हैं। चाहते ही नहीं, यह कहते भी है कि अब भारत सदस्य बन जाय, हमने बाधाएं दूर कर दी हैं।
पुतिन ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ को यूरोपीय संघ के मुकाबले खड़ा करना चाहते हैं। क्या इसके लिए पुतिन दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर भी देख रहे हैं? यह पुतिन की विवशता है कि उन्हें एशिया में व्यापार और शक्ति के विस्तार के लिए भारत का साथ चाहिए। शायद इसलिए रूस, ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के तराने को भूल नहीं पाता!
भारत में इस समय सत्रह परमाणु बिजलीघर चालू हैं। वर्ष 2030 तक पच्चीस से तीस परमाणु बिजलीघर बनाने का कार्यक्रम संप्रग सरकार तय कर चुकी थी। इस साल अप्रैल में कूडनकूलम की तीसरी और चैथी इकाई के लिए मुंबई में हस्ताक्षर किए गए। अब पुतिन ने कहा है कि हम भारत में एटमी बिजलीघर की पच्चीस यूनिटें लगा सकते हैं। तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान - पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन (तापी) में रूस की सरकारी कंपनी गाजप्रोम के जुड़ जाने से पुतिन अपनी ऊर्जा कूटनीति का इस इलाके में विस्तार करेंगे।
अभी भारत रूस के बीच प्रतिवर्ष करीब 10 अरब डालर का व्यापार होता है, जो रूस और चीन के बीच होने वाले व्यापार का बारहवां हिस्सा है। ऐसे में दोनों देशों की कोशिश आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने की होनी चाहिए और ऐसा हो भी रहा है। दोनों देशों के बीच तेल, गैस, रक्षा, निवेश, स्वास्थ्य क्षेत्र आदि के लिए महत्वपूर्ण 16 समझौते हुए। दोनों देशों ने तेल व गैस शोधन में साझेदारी बढ़ाने का फैसला किया है। भारत में औद्योगिक नगरों व स्मार्ट सिटी बसाने में रूस सहयोग करेगा। इसके अलावा रूस 30 से 50 लाख टन तेल भारत को बेचेगा, ऐसा प्रस्ताव भी आया है। हाइड्रोकार्बन व हीरों के व्यापार को बढ़ाने के लिए दोनों देश नए पथ पर आगे बढ़े हैं। लेकिन इस बीच कहानी में ट्विस्ट भी आ गया है। पुतिन की षिष्ट मंडल (डेलिगेशन) में सर्गेई एक्सिनोव नाम के एक व्यक्ति शामिल थे, जो रूस के हड़पे हुए क्रिमिया के नेता हैं। भारत में इनकी मौजूदगी ने दुनिया भर में हेडलाइन बटोरी और अमेरिका को नाराज भी कर दिया है। क्रीमिया के नेता सर्गेई अक्सयोनोव ने इस वर्ष मार्च में यूक्रेन को छोड़कर रूसी संघ में शामिल होने का फैसला किया था। वह भारतीय निवेश पाने की लालसा से पहली विदेश यात्रा पर आए थे। क्रीमिया के रूसी संघ में शामिल होने के बाद पश्चिमी देशों ने दोनों के खिलाफ विभिन्न प्रतिबंध लगा दिए हैं।
कुल मिलाकर बात यह सामने आ रही है कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार व आर्थिक सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, जिनका अधिकतम लाभ उठाना भारत और रूस दोनों के लिए हितकारी होगा। पश्चिम से प्रतिबंध का सामना कर रहे रूस को भारतीय सहयोग की आवश्यकता है, वहीं भारत को भी कई क्षेत्रों में रूसी सहयोग की जरूरत होती ही रहती है। पुतिन को रुसी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का वाला फौलादी नेता माना जाता है। मोदी को भारत के दूसरे सुधार कार्यक्रम लागू करने हैं, वहीं उन्हें देश को नयी तरक्कियों की तरफ ले जाना है। रुबल का दाम लगातार गिर रहा है और रुसी अर्थव्यवस्था अभी भी पूरी तरह स्थिर नहीं है। ऐसे में दोनो नेताओं को पास ही नहीं लाती, एक दूसरे का स्वाभाविक हामी भी बनाती है।
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