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कसौटी पर सत्यमेव जयते

Dr. Yogesh mishr
Published on: 12 May 2015 2:54 PM IST
‘सत्य के परीक्षण में झूठ की दलील, जो जितना दे सके वो ऊंचा वकील।’ कभी वकालत पेशे में काम कर रहे लोगों को आइना दिखाने के लिए इस जुमले का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बालीवुड स्टार सलमान खान के तेरह साल पुराने मुकदमें में सत्र न्यायालय से उच्च न्यायालय तक की याचिका की यात्रा और उस पर आये फैसले इस बात की चुगली करने के लिए पर्याप्त हैं कि कभी-कभी हास्य और व्यंग्य में कही गयी बात भी यथार्थ ही होती है। कोई बात हकीकत है, अफसाना, हास्य है व्यंग्य है, या फसांना। यह देश, काल और परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है। सलमान खान के ‘हिट एंड रन’ केस को देश-काल और परिस्थितियों के मद्देनजर देखा जाय तो अफसाना, हास्य, व्यंग्य और फसांना सब हकीकत में तब्दील होते दिखते हैं।

इस पूरे प्रकरण से जुडे हुए सभी पक्ष दिगम्बर की ओर यात्रा करते नजर आ रहे हैं। जिस तरह सलमान खान 13 साल तक इस केस के साथ आंख मिचैली खेलने में कामयाब हुए। एक दशक बाद उनका ड्राइवर अशोक खुद को ड्राइविंग सीट पर होने की इकबालिया बयान की स्थिति में आया, उससे बड़े बजट की तमाम फिल्मों में अपकर्म करने वाले खलनायक को हर बार परास्त कर देने और फिल्मों को सुखांत मोड़ देने वाले सलमान खान की यह छवि दरकी है। क्योंकि ‘हिट एंड रन’ की पटकथा में उन्होंने अपने लिए जो भूमिका कुबूल की वह उनकी फिल्मों में बार-बार पराजित होने वाले खलनायक के चरित्र के ठीक उलट है। क्योंकि सत्र न्यायालय से उच्च न्यायालय तक की अदालती यात्रा में उनके वकील और उनके शुभचिंतक इस बात की दलील दे रहे थे कि सलमान खान ने अपनी संस्था ‘बींइंग ह्यूमन’ से 600 बच्चों का इलाज कराया है। उन्होंने 42 करोड़ रुपये परमार्थ कार्य पर खर्च किया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इस परमार्थ कार्य के चलते उन्हें किसी को सड़क पर मारने का हक हासिल हो जाता है।

यह तर्क कुछ उसी तरह है जैसे संस्कृति और समाज के विकास की यात्रा में पता नहीं कब और कहां जातियां ‘कर्मणा’ की जगह ‘जन्मना’ हो गयीं और पता नहीं कहां और किस मुकाम पर पाप और पुण्य के कर्म का घालमेल कर दिया गया। यह प्रतिस्थापित कर दिया गया कि बड़े से बडे पाप कीजिए पर यज्ञ हवन, जप-तप, पूजा-पाठ और दान कीजिए पाप खत्म हो जायेगा। इसी स्थापना ने समाज में पुण्य से पाप की संख्या और मात्रा में इजाफा कर दिया। हर आदमी सोचने लगा कि पाप कर लीजिए फिर तो खत्म करने के तरीके हैं ही। वैसे पाप से पुण्य का यह मोड़ चाहे जिस मुकाम पर और चाहे जिस भी तरह आया हो पर इसके लिए मेरी समझ में वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था जिम्मेदार हंै, जिस पर समाज की नीति नियंता शक्तियों के निर्माण की जिम्मेदारी थी। कुछ इसी तरह की गलती सलमान के परमार्थ और ‘बीइंग ह्यूमन’ के पक्षधारी भी कर रहे हैं।
बावजूद इसके लाख टके का यह सवाल भी शेष रह जाता है कि परमार्थ कार्य करने वाली उनकी संस्था में मरे नूरुल्लाह महबूब शरीफ के परिजनों की सुधि लेना जरुरी क्यों नहीं समझा ? आज उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में मुफलिसी से दो-दो हाथ कर रहे कलीम पठान के हिस्से में पैंतालिस करोड़ में से एक भी आना पाई क्यों नहीं आयी ? जबकि इसी केस में कलीम पठान अपना दाहिना पैर गवां चुके है। बाकी किसी घायल तक ‘बीइंग ह्यूमन’ की किरण क्यों नहीं पहुंची ? सलमान के परमार्थ की ओट लेकर ‘हिट एंड रन’ मामले में उनके पीछे खडे फिल्म उद्योग के लोग और सेलीब्रिटी उन्हें जिस तरह दोषमुक्त करार देने का स्वांग कर रहे थे ?, क्या उन्हें इस दुर्घटना में मारे गये नूरुल्लाह महबूब शरीफ के परिजनों के प्रति सहानुभूति का भाव नहीं रखना चाहिए था। यही लोग नहीं, जो सलमान के सलामती के दुआएं मांग रहे थे उन्हें यह भूल जाना चाहिए कि यह वही सलमान खान हंै, जिनसे ऐश्वर्या राय एक समय बेहद परेशान थीं। फिल्म उद्योग में उनकी हरकतें क्या परमार्थ की ओट में छिप जानी चाहिए ? जिनसे गाहे बगाहे फिल्म उद्योग न केवल नकारात्मक खबरों को लेकर सुर्खियो में रहा है, बल्कि कई दिग्गज परेशान भी रहे हैं। आम तौर पर फिल्में तीन घंटें की होती हैं। सलमान खान की ‘हिट एंड रन’ घटना के

दृश्य इसी समय की कालावधि में घटित हुए है। इस तीन घंटे और 13 साल के बीच सलमान खान ने जैसे-जैसे चाल चरित्र और चेहरा बदला है उससे यह बात निर्मूल साबित होती है कि फिल्मी नायक हमारे आदर्श हो सकते हैं। पर यह बात सच भी साबित होती है कि फिल्में उनकी पटकथायें और उनके दृश्य- संवाद हमारे समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं। तभी तो इस पूरे घटनाक्रम में कानून सबके लिये बराबर है, यह मिथक टूटता है। कानून को लेकर देश में पसरा खौफ पिघलता है, क्योंकि देश में 2.78 लाख लोगों पर मुकदमा चल रहा है। इन पर उतने गंभीर आरोप भी नहीं हैं। लेकिन वे जेलों में सालों से सड़ रहे हैं। सलमान पूरे ट्रायल के दौरान लगभग पूरे 13 साल जमानत पर रहे। शायद वह अकेले शख्स हैं, जिन्हें पांच साल की सजा हुई और वो एक मिनट भी जेल में नहीं रहे हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि सलमान पर बालीवुड के 600-700 करोड़ रूपए का दांव लगा है, देखा जाना चाहिए। तो क्या अब देश में फैसलों को नफा-नुकसान की कसौटी पर कस कर देखा जायेगा। क्या फैसले के निरपेक्षता को अर्थ की सत्ता प्रभावित करेगी।

ऊपरी अदालत ने सिर्फ इस आधार पर जमानत पर स्थगन आदेश लेने गये सलमान के वकील को बड़ी राहत देते हुए सजा पर रोक लगा दी। आधार भी कितना ठोस चुना कि आरोपी को दोषसिद्धि के आदेश के सिर्फ दो पन्ने मुहैया कराये गये हैं। यदि प्रति तैयार नहीं थी, तो आदेश नहीं सुनाया जाना चाहिए था। सलमान के सुरक्षा में तैनात महाराष्ट्र पुलिस के कर्मी रवींद्र पाटिल के बयान को सच नहीं माना गया। पाटिल ने अपने बयान में कहा था, ‘‘गाड़ी सलमान खान खुद चला रहे थे।’’ इस बयान के चलते पाटिल को जेल, नौकरी, परिवार, समाज सबसे हाथ धोना पड़ा। जिंदगी तो सबकी जाती है। पर पाटिल की जिंदगी जिस मुफलिसी, बीमारी और तनहाई में गुजरी वह इस बात की चुगली करता है कि ‘सत्यमेव जयते’ अपनी आभा और कांति खो रहा है। इसके अर्थ बदल गये हैं।
हर फिल्म को सुखांत मोड़ पर लाकर असत्य पर सत्य की विजय, खलनायक पर नायक के प्रभुत्व के दृश्यों और घटनाओं से लबरेज करके परोसने और देखने वाले लोगों को ‘हिट एंड रन’ फिल्म को देखकर यह जरुर लगा होगा कि हमारी फिल्मों में सत्य की स्थापना बेहद बनावटी, कृत्रिम और अस्वीकार्य है। हकीकत मे सत्य के साथ जीते हुए समाज के पात्र परेशान, परास्त और पराजित दिखते हैं। कुत्ते की मौत को बेहद खराब माना गया है। मौत का सबसे खराब तरीका है कुत्ते की मौत मरना। पर सलमान के साथ उनकी सहानुभूति में खडे उनके समर्थक जब देश के फुटपाथ पर सोने वाले लोगों के कुत्ते की मौत मरने को लाजमी बता रहे हों तो कहा जा सकता है कि महल वाले लोग फुटपाथ वाले से इतर अब मौत भी चुन लेना चाहते हैं। अब तक उन्होंने सिर्फ जिंदगी चुनी थी।

किसी भी परिघटना, समाज, व्यक्ति के निर्माण और संचालन के लिए चार तरह के लोग- तत्व जरुरी होते हैं। कच्चे, पक्के, सच्चे और लुच्चे। ‘हिट एंड रन’ की इस तीन घंटे की फिल्म में ये चारांे तत्व अपनी भूमिका के ठीक उल्टे नजर आये। सच्चे झूठे हो गये। पक्के कच्चे हो गये। कच्चे पक गये और लुच्चे समझे जाने वाले तत्व और व्यक्ति सच्चे हो गये। यह इस घटना का सबसे दुखद पहलू है क्योंकि जब कोई अपने गुण-धर्म बदलता है तो चिंता का होना लाजमी है। क्योंकि यह बदलाव किस मुकाम तक जायेगा यह तय कर पाना मुश्किल होता है।


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Dr. Yogesh mishr

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