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सिर्फ भूगोल ही नहीं, कई समीकरण भी बदल गए
भारत में आमतौर पर कोई बड़ा राजनैतिक फैसला, खासतौर पर जबकि वह द्विपक्षीय संबंधों से ताल्लुक रखता हो, लेना बहुत कठिन और तकरीबन असंभव सा माना जाता है। ऐसे फैसलों को न केवल घरेलू राजनीति के दांवपेंच प्रभावित करते हैं, बल्कि इससे राजनैतिक जमीन दरकने का खतरा भी होता है। लेकिन, आजाद भारत के इतिहास में यह पहला ऐसा मौका है। जब एक राजनैतिक पहल ने देश का भूगोल बदल दिया। नक्शा बदल दिया। लेकिन उसे घरेलू और राजनैतिक मोर्चों पर किसी तरह के विरोध या विरोध के आशंका की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ रहा है। इसे नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल और निर्णय लेने तथा उस पर कायम रहने की दृढता के एक बडे सबूत के तौर पर देखा जाना चाहिए। यहां भारत और पाकिस्तान के बीच कच्छ के रण उस पुराने विवाद को याद कर लेना जरुरी है, जिसके चलते दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रास्ते से गुजरते हुए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक पहुंच गये थे। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी जटिल परिस्थितियां थीं। यहां एक न्यायाधीश भारत के और दूसरे न्यायाधीश पाकिस्तान के पक्ष में थे। मुख्य न्यायाधीश के निर्णायक मत से यह मामला पाकिस्तान के पक्ष में गया। भारत को यह भूमि पाकिस्तान को देनी पड़ी। यह उदाहरण इसलिए याद करने की जरुरत है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जैसी सर्वमान्य संस्था के फैसले के बावजूद इस भूमि हस्तांतरण पर भारत की तत्कालीन सरकार को घरेलू मोर्चे पर मुखर आलोचनाएं झेलनी पड़ीं थीं। लेकिन 5 जून,2015 को नरेंद्र मोदी ने जो फैसला किया है, उसे इस प्रकार की किसी आलोचना का सामना अब तक नहीं करना पड़ा है। एक और याद रखने वाली बात यह भी है कि एक साल पहले बांग्लादेश के साथ ही एक महत्वपूर्ण समझौते के लिए गये तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह को अपने कदम अपनी एक राजनैतिक सहयोगी ममता बनर्जी के मुखर विरोध और बांग्लादेश ना जाने जैसी तल्ख फैसले के चलते वापस खींचने पड़े थे। मौजूदा वक्त में राजनैतिक जमीन पर ममता-मोदी के खिलाफ खड़ी हैं। लेकिन 4 जून, 2015 को ही वह बांग्लादेश पहुंच गयीं और इस ऐतिहासिक समझौते के समय प्रधानमंत्री के साथ मौजूद थीं। इसे भी मोदी की राजनैतिक व रणनैतिक कुशलता के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका प्रमाण इन दिनों मोदी विरोध के नायक बनने की कोशिश में खडे राहुल गांधी के बयान से मिलता है जिसमें उन्होंने करीब-करीब तिलमिलाते हुए सवाल किया, ‘‘ममता और मोदी की दोस्ती का राज क्या है।’’
मोदी ने भारत के भूगोल बदलने की जिस इबारत पर अपना हस्ताक्षर दर्ज कर अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक फलक पर अपनी कूटनैतिक उपस्थिति दर्ज कराई है, वहीं यह भी जता दिया है कि अनिर्णय की स्थिति में रहने से अच्छा होता है, निर्णय लेना और यही वजह है कि 41 साल से भारत और बांग्लादेश के बीच एक उस रुके हुए फैसले को अमली जामा पहनाया ‘जिसका कमिटमेंट’ उनके राजनैतिक दल से नहीं था। 41 साल पहले इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के बीच दोनों देशों की सरजमीं पर बने एनक्लेव्स (छितमहल) के वाशिंदों की नागरिकता को लेकर एक समझौता हुआ था। जिसमें तकरीबन 50 हजार लोगों को लाभ पहुंचना था। इस इलाके के लोग मौलिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित थे। शायद यही वजह है कि इन इलाकों के लोग इस समझौते के बाद दूसरी आजादी का जश्न मना रहे हैं।
कहा जाता है कि महाराजा कूच विहार और रंगपुर के फौजदार के बीच शतरंज के खेल के कारण ये इनक्लेव बने। दोनों खिलाड़ी अपने अपने इलाके के 2 एकड़, 5 एकड़ जमीन को दांव पर लगाते थे। इसी हार-जीत में इन छितमहलों का निर्माण हो गया और यहां के लोग आगे चलकर किसी भी देश की नागरिक और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह गये तकरीबन 162 छितमहल दोनों देशों के बीच में हंै। बांग्लादेश का भारत में 51 और भारत का बांग्लादेश में 111 छितमहल है। इनमें 24 बेहद काउंटर किस्म के एनक्लेव हैं, जिनका इलाका भारत और बांग्लादेश के बीच कई बार पड़ता है। मसलन, भारत का दहला खगडाबाडी एनक्लेव बांग्लादेश में है। फिर भारत में आता है फिर बांग्लादेश जाता है, फिर भारत आता है और खत्म बांग्लादेश में होता है। भूखंड के लिहाज से देखा जाय तो भारत को सिर्फ 500 एकड़ जमीन मिलेगी जबकि उसे 10,000 एकड़ भूमि देनी होगी।
भारत और बांग्लादेश के रिश्तों के लिहाज से देखा जाय तो दोनों देशों के बीच कोई विवाद (डिस्प्यूट) नहीं है, बल्कि मुद्दे (इश्यू) हैं। इनमें ही छितमहल भी था। इसके अलावा ‘प्रापर्टी इन एडवर्स पजेशन’ का भी एक सवाल है। लोगों को याद होगा कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ जब भारत आए थे, तो अपना घर देखने गये थे। जिस देश से युद्ध हो जाता है, उस देश की ‘एडवर्स पजेशन की प्रापर्टी’ शत्रु संपत्ति हो जाती है। पर भारत और बांग्लादेश के बीच युद्ध नहीं हुआ है। नतीजतन, इन्हें ‘वेस्टेड प्रापर्टी’ का नाम दिया गया है।
वर्ष 2011 में मनमोहन सिंह ने इसे हल करने की दिशा में कदम बढाया था, पर उस समय भाजपा ने महज इस आधार पर इसका विरोध किया था कि इस लेन-देन में भारत को ज्यादा जमीन बांग्लादेश को देनी होगी। यह बात दीगर है कि डाॅ. मनमोहन सिंह ने इसे अमली जामा पहनाने से पहले इस अनुबंध का संसद से अनुमोदन नहीं कराया था, नियम कानून के मुताबिक इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के बीच हुए अनुबंध का संसद से अनुमोदन कराना था, जिसे नरेंद्र मोदी ने किया। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि इन इलाकों से हमारी सीमा थोड़ी असुरक्षित थी। हांलांकि भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा को लेकर यह अनुबंध है कि सीमा सुरक्षा के सवाल पर दोनों देशों में आपस में गोली तक नहीं चलेेगी। गौरतलब कि किसी भी देश से ज्यादा भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा बांग्लादेश से साझा करता है। यह दूरी 4096 किलोमीटर है, जो किसी भी देश से जुडी सीमा से ज्यादा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना हकीकत लगता है, “इस समझौते से न केवल सीमाएं सुरक्षित होंगी बल्कि हमारे लोगों के जीवन में स्थायित्व आयेगा।” इस समझौते के बाद तकरीबन 6.1 किलोमीटर अधिचिंहित सीमा के निर्धारण पर मोहर लग गयी। मोदी और शेख हसीना ने मिलकर जो फैसला लिया है, उससे बडा ही भारत का बड़ा हिस्सा चला गया हो लेकिन हमारी सरहद सुरक्षित हुई है। बांग्लादेश को पूर्वोत्तर भारत और करीब-करीब पूरे भारत में सक्रिय आतंकवाद का पनाहगाह माना जाता था। इससे निजात मिलना तय है, क्योंकि शेख हसीना ने खुद आतंकवाद को लेकर साझी रणनीति पर काम करने की इच्छा जताई है। वैसे भी इससे पहले हूजी से जुडे आतंकवाद और उल्फा के करीब-करीब सफाए में बांग्लादेश भारत की मदद कर चुका है। यही नहीं, बांग्लादेश से संपर्क बढ़ने से दक्षिण पूर्व एशिया से संपर्क बढाने में मदद मिलेगी।
सीमा को लेकर इस विवाद के चलते भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या सुरसा की मुंह की तरह बढी पर इसकी एक सच्चाई यह भी है कि इस समस्या को हवा देने में हमारे राजनैतिक दलों ने कम मेहनत- मशक्कत नहीं की। शुरुआती दौर में पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने घुसपैठियों की सरपरस्ती की। बाद में ममता बनर्जी ने इसे और हवा दे दी। असम में घुसपैठ की समस्या को कांग्रेस के हाथ का साथ मिला। लेकिन इस सच्चाई से भी आंख नहीं मूंदना चाहिए कि तकरीबन 5 लाख भारतीय बिना कानून दस्तावेजों के बांग्लादेश में रोजी-रोटी कमा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के दस्तावेज इस बात की चुगली करते हैं कि विदेशों से भारत को आने वाली धनराशि में बांग्लादेश पांचवे स्थान पर हैं। यानी बांग्लादेश वह सबसे बडा पांचवा देश है, जिससे भारत को विदेशी मुद्रा मिलती है।
भारत और बांग्लादेश के बीच इस समय 6.5 बिलियन डालर का व्यापार होता है, जिसमें भारत 6 बिलियन डालर और बांग्लादेश महज आधा बिलियन डालर का निर्यात करता है। इसके साथ ही बांग्लादेश ने अपने ‘स्पेशल इकोनामिक जोन’ भारतीय कंपनियों के लिए खोल दिये हैं। इसके साथ ही भारतीय कंपनियों रिलायंस पावर और अडानी पावर ने समझौता कर 32 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने का हक हासिल किया है। जिसमें दोनों ग्रुप मिलकर बांग्लादेश के लिए 4600 मेगावाट बिजली बनायेंगे। ऐसे में इससे अर्जित विदेश मुद्रा भी भारत ही आयेगी।
मोदी ने बांग्लादेश की सरकार और खासकर बांग्लादेश के आवाम को अपनी ‘चेक डिप्लोमैसी’ से जीत लिया है। भारत ने 2 बिलियन डालर का कर्ज देकर यह साबित कर दिया कि भारत को अपने पड़ोसियों की चिंता है और नेपाल के बाद एक बार फिर मोदी ने बांग्लादेश में भी ‘बिग ब्रदर’ की हैसियत हासिल कर ली है। यह ‘चेक डिप्लोमेसी’ इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने इससे पहले एक बिलयन डालर का कर्ज दिया था, अब यह दोगुना हो गया है। भारत के पड़ोसी देश अब चीन और भारत को बराबर के पलड़े में तौलेंगे। मालद्वीप से म्यांमार तक और अफगानिस्तान से नेपाल तक अब भारत को एक सोहदर की तरह देखने में ज्यादा सहज होंगे। चीन की अपेक्षा भारत के प्रति उम्मीद भरी निगाहें भारत को क्षेत्र में ज्यादा मजबूत करेंगी। वियतनाम को भी इसी ‘चेक डिप्लोमेसी’ के तहत 100 मिलयन डालर का कर्ज दिया गया। अब तक भारत के दिये इस सबसे बड़े कर्ज ने न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि आस-पास के सभी पडोसियों को प्रभावित किया है। यह रणनीति तौर पर और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय बांग्लादेश समेत 50 देशों के लिए अति महत्वाकांक्षी ‘सिल्क रुट’ के लिए चीन 50 बिलियन डालर खर्च करने को तैयार है।
भारत ने बांग्लादेश के जन्म से अब तक कि इतिहास में पहली बार अपने सभी जमीनी और सामुद्रिक सीमा विवाद को हल कर लिया है। इस समझौते के बाद अब मालद्वीप से लेकर श्रीलंका, म्यांमार के जरिये चीन की भारत को चुटकी काटने के रवैये पर पुनर्विचार करेंगे, ऐसा तय माना जा रहा है।
वहीं पाकिस्तान को भी एक साफ संदेश मिल गया है कि अब नकली नोट से लेकर इस्लामिक आतंकवाद तक के लिए बांग्लादेश उसकी ‘बी-टीम’ नहीं है। बांग्लादेश की जमीन अब साजिशें रचने, उस पर अमल के लिए तैयार नहीं। सबसे बडा संदेश यह कि समय रहते नहीं चेते, तो सार्क में बीबिन फोरम (भूटान, बांग्लादेश, भारत और नेपाल) इतना हावी हो सकता है कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ जाय।
भूगोल के बदलाव के लिए दस्तखत किए गये समझौते के बाद अचानक कोलकाता, अगरतला और ढाका के बीच की पंद्रह सौ किलोमीटर की दूरी सिमट कर 600 किलोमीटर रह गयी। यह नई बस सेवा के चलते हुआ। अब इन दोनों देशों के बीच पानी का एक मुद्दा रह गया है। दोनों देशों के बीच 54 नदियां बहती हैं। इनमें 51 भारत से बांग्लादेश जाती हैं। 3 नदी बांग्लादेश से भारत आती हैं। सिर्फ एक गंगा नदी पर एक फरक्का अनुबंध...हुआ है। इन दोनों देशों के बीच ब्रह्मपुत्र और तीस्ता बड़ी नदियां हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र यमुना हो जाती है। तीस्ता के जल प्रवाह को लेकर ममता बनर्जी ने कल्याण रुद्र की अगुवाई में एक कमेटी गठित की है। इसकी रिपोर्ट के बाद ममता तीस्ता विवाद पर अपना पक्ष साफ करेंगी। बांग्लादेश इस नदी का 50 क्यूसेक पानी मांगता है। जबकि अगर इतना पानी बांग्लादेश को दे दिया गया, तो पश्चिम बंगाल की तीस्ता सिंचाई परियोजना और तीस्ता जल परियोजना ठप हो जायेगी। पर बांग्लादेश का दावा भी अंतरराष्ट्रीय मानको के तहत ही है। वैसे इस नदी को लेकर भारत बांग्लादेश के बीच संयुक्त जल आयोग तो बना है पर आज तक इस पर बैठक नहीं शुरु हो सकी है। जिस इच्छाशक्ति से नरेंद्र मोदी ने छितमहलों की समस्या का समाधान किया है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि तीस्ता को लेकर तार्किक चिंतन शुरु हो गया है। इसके बिना छित महलों के अदला-बदली के प्रयास में उस तरह फलीभूत नहीं होंगे जैसा की होना चाहिए।
मोदी ने भारत के भूगोल बदलने की जिस इबारत पर अपना हस्ताक्षर दर्ज कर अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक फलक पर अपनी कूटनैतिक उपस्थिति दर्ज कराई है, वहीं यह भी जता दिया है कि अनिर्णय की स्थिति में रहने से अच्छा होता है, निर्णय लेना और यही वजह है कि 41 साल से भारत और बांग्लादेश के बीच एक उस रुके हुए फैसले को अमली जामा पहनाया ‘जिसका कमिटमेंट’ उनके राजनैतिक दल से नहीं था। 41 साल पहले इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के बीच दोनों देशों की सरजमीं पर बने एनक्लेव्स (छितमहल) के वाशिंदों की नागरिकता को लेकर एक समझौता हुआ था। जिसमें तकरीबन 50 हजार लोगों को लाभ पहुंचना था। इस इलाके के लोग मौलिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित थे। शायद यही वजह है कि इन इलाकों के लोग इस समझौते के बाद दूसरी आजादी का जश्न मना रहे हैं।
कहा जाता है कि महाराजा कूच विहार और रंगपुर के फौजदार के बीच शतरंज के खेल के कारण ये इनक्लेव बने। दोनों खिलाड़ी अपने अपने इलाके के 2 एकड़, 5 एकड़ जमीन को दांव पर लगाते थे। इसी हार-जीत में इन छितमहलों का निर्माण हो गया और यहां के लोग आगे चलकर किसी भी देश की नागरिक और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह गये तकरीबन 162 छितमहल दोनों देशों के बीच में हंै। बांग्लादेश का भारत में 51 और भारत का बांग्लादेश में 111 छितमहल है। इनमें 24 बेहद काउंटर किस्म के एनक्लेव हैं, जिनका इलाका भारत और बांग्लादेश के बीच कई बार पड़ता है। मसलन, भारत का दहला खगडाबाडी एनक्लेव बांग्लादेश में है। फिर भारत में आता है फिर बांग्लादेश जाता है, फिर भारत आता है और खत्म बांग्लादेश में होता है। भूखंड के लिहाज से देखा जाय तो भारत को सिर्फ 500 एकड़ जमीन मिलेगी जबकि उसे 10,000 एकड़ भूमि देनी होगी।
भारत और बांग्लादेश के रिश्तों के लिहाज से देखा जाय तो दोनों देशों के बीच कोई विवाद (डिस्प्यूट) नहीं है, बल्कि मुद्दे (इश्यू) हैं। इनमें ही छितमहल भी था। इसके अलावा ‘प्रापर्टी इन एडवर्स पजेशन’ का भी एक सवाल है। लोगों को याद होगा कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ जब भारत आए थे, तो अपना घर देखने गये थे। जिस देश से युद्ध हो जाता है, उस देश की ‘एडवर्स पजेशन की प्रापर्टी’ शत्रु संपत्ति हो जाती है। पर भारत और बांग्लादेश के बीच युद्ध नहीं हुआ है। नतीजतन, इन्हें ‘वेस्टेड प्रापर्टी’ का नाम दिया गया है।
वर्ष 2011 में मनमोहन सिंह ने इसे हल करने की दिशा में कदम बढाया था, पर उस समय भाजपा ने महज इस आधार पर इसका विरोध किया था कि इस लेन-देन में भारत को ज्यादा जमीन बांग्लादेश को देनी होगी। यह बात दीगर है कि डाॅ. मनमोहन सिंह ने इसे अमली जामा पहनाने से पहले इस अनुबंध का संसद से अनुमोदन नहीं कराया था, नियम कानून के मुताबिक इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के बीच हुए अनुबंध का संसद से अनुमोदन कराना था, जिसे नरेंद्र मोदी ने किया। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि इन इलाकों से हमारी सीमा थोड़ी असुरक्षित थी। हांलांकि भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा को लेकर यह अनुबंध है कि सीमा सुरक्षा के सवाल पर दोनों देशों में आपस में गोली तक नहीं चलेेगी। गौरतलब कि किसी भी देश से ज्यादा भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा बांग्लादेश से साझा करता है। यह दूरी 4096 किलोमीटर है, जो किसी भी देश से जुडी सीमा से ज्यादा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना हकीकत लगता है, “इस समझौते से न केवल सीमाएं सुरक्षित होंगी बल्कि हमारे लोगों के जीवन में स्थायित्व आयेगा।” इस समझौते के बाद तकरीबन 6.1 किलोमीटर अधिचिंहित सीमा के निर्धारण पर मोहर लग गयी। मोदी और शेख हसीना ने मिलकर जो फैसला लिया है, उससे बडा ही भारत का बड़ा हिस्सा चला गया हो लेकिन हमारी सरहद सुरक्षित हुई है। बांग्लादेश को पूर्वोत्तर भारत और करीब-करीब पूरे भारत में सक्रिय आतंकवाद का पनाहगाह माना जाता था। इससे निजात मिलना तय है, क्योंकि शेख हसीना ने खुद आतंकवाद को लेकर साझी रणनीति पर काम करने की इच्छा जताई है। वैसे भी इससे पहले हूजी से जुडे आतंकवाद और उल्फा के करीब-करीब सफाए में बांग्लादेश भारत की मदद कर चुका है। यही नहीं, बांग्लादेश से संपर्क बढ़ने से दक्षिण पूर्व एशिया से संपर्क बढाने में मदद मिलेगी।
सीमा को लेकर इस विवाद के चलते भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या सुरसा की मुंह की तरह बढी पर इसकी एक सच्चाई यह भी है कि इस समस्या को हवा देने में हमारे राजनैतिक दलों ने कम मेहनत- मशक्कत नहीं की। शुरुआती दौर में पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने घुसपैठियों की सरपरस्ती की। बाद में ममता बनर्जी ने इसे और हवा दे दी। असम में घुसपैठ की समस्या को कांग्रेस के हाथ का साथ मिला। लेकिन इस सच्चाई से भी आंख नहीं मूंदना चाहिए कि तकरीबन 5 लाख भारतीय बिना कानून दस्तावेजों के बांग्लादेश में रोजी-रोटी कमा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के दस्तावेज इस बात की चुगली करते हैं कि विदेशों से भारत को आने वाली धनराशि में बांग्लादेश पांचवे स्थान पर हैं। यानी बांग्लादेश वह सबसे बडा पांचवा देश है, जिससे भारत को विदेशी मुद्रा मिलती है।
भारत और बांग्लादेश के बीच इस समय 6.5 बिलियन डालर का व्यापार होता है, जिसमें भारत 6 बिलियन डालर और बांग्लादेश महज आधा बिलियन डालर का निर्यात करता है। इसके साथ ही बांग्लादेश ने अपने ‘स्पेशल इकोनामिक जोन’ भारतीय कंपनियों के लिए खोल दिये हैं। इसके साथ ही भारतीय कंपनियों रिलायंस पावर और अडानी पावर ने समझौता कर 32 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने का हक हासिल किया है। जिसमें दोनों ग्रुप मिलकर बांग्लादेश के लिए 4600 मेगावाट बिजली बनायेंगे। ऐसे में इससे अर्जित विदेश मुद्रा भी भारत ही आयेगी।
मोदी ने बांग्लादेश की सरकार और खासकर बांग्लादेश के आवाम को अपनी ‘चेक डिप्लोमैसी’ से जीत लिया है। भारत ने 2 बिलियन डालर का कर्ज देकर यह साबित कर दिया कि भारत को अपने पड़ोसियों की चिंता है और नेपाल के बाद एक बार फिर मोदी ने बांग्लादेश में भी ‘बिग ब्रदर’ की हैसियत हासिल कर ली है। यह ‘चेक डिप्लोमेसी’ इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने इससे पहले एक बिलयन डालर का कर्ज दिया था, अब यह दोगुना हो गया है। भारत के पड़ोसी देश अब चीन और भारत को बराबर के पलड़े में तौलेंगे। मालद्वीप से म्यांमार तक और अफगानिस्तान से नेपाल तक अब भारत को एक सोहदर की तरह देखने में ज्यादा सहज होंगे। चीन की अपेक्षा भारत के प्रति उम्मीद भरी निगाहें भारत को क्षेत्र में ज्यादा मजबूत करेंगी। वियतनाम को भी इसी ‘चेक डिप्लोमेसी’ के तहत 100 मिलयन डालर का कर्ज दिया गया। अब तक भारत के दिये इस सबसे बड़े कर्ज ने न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि आस-पास के सभी पडोसियों को प्रभावित किया है। यह रणनीति तौर पर और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय बांग्लादेश समेत 50 देशों के लिए अति महत्वाकांक्षी ‘सिल्क रुट’ के लिए चीन 50 बिलियन डालर खर्च करने को तैयार है।
भारत ने बांग्लादेश के जन्म से अब तक कि इतिहास में पहली बार अपने सभी जमीनी और सामुद्रिक सीमा विवाद को हल कर लिया है। इस समझौते के बाद अब मालद्वीप से लेकर श्रीलंका, म्यांमार के जरिये चीन की भारत को चुटकी काटने के रवैये पर पुनर्विचार करेंगे, ऐसा तय माना जा रहा है।
वहीं पाकिस्तान को भी एक साफ संदेश मिल गया है कि अब नकली नोट से लेकर इस्लामिक आतंकवाद तक के लिए बांग्लादेश उसकी ‘बी-टीम’ नहीं है। बांग्लादेश की जमीन अब साजिशें रचने, उस पर अमल के लिए तैयार नहीं। सबसे बडा संदेश यह कि समय रहते नहीं चेते, तो सार्क में बीबिन फोरम (भूटान, बांग्लादेश, भारत और नेपाल) इतना हावी हो सकता है कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ जाय।
भूगोल के बदलाव के लिए दस्तखत किए गये समझौते के बाद अचानक कोलकाता, अगरतला और ढाका के बीच की पंद्रह सौ किलोमीटर की दूरी सिमट कर 600 किलोमीटर रह गयी। यह नई बस सेवा के चलते हुआ। अब इन दोनों देशों के बीच पानी का एक मुद्दा रह गया है। दोनों देशों के बीच 54 नदियां बहती हैं। इनमें 51 भारत से बांग्लादेश जाती हैं। 3 नदी बांग्लादेश से भारत आती हैं। सिर्फ एक गंगा नदी पर एक फरक्का अनुबंध...हुआ है। इन दोनों देशों के बीच ब्रह्मपुत्र और तीस्ता बड़ी नदियां हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र यमुना हो जाती है। तीस्ता के जल प्रवाह को लेकर ममता बनर्जी ने कल्याण रुद्र की अगुवाई में एक कमेटी गठित की है। इसकी रिपोर्ट के बाद ममता तीस्ता विवाद पर अपना पक्ष साफ करेंगी। बांग्लादेश इस नदी का 50 क्यूसेक पानी मांगता है। जबकि अगर इतना पानी बांग्लादेश को दे दिया गया, तो पश्चिम बंगाल की तीस्ता सिंचाई परियोजना और तीस्ता जल परियोजना ठप हो जायेगी। पर बांग्लादेश का दावा भी अंतरराष्ट्रीय मानको के तहत ही है। वैसे इस नदी को लेकर भारत बांग्लादेश के बीच संयुक्त जल आयोग तो बना है पर आज तक इस पर बैठक नहीं शुरु हो सकी है। जिस इच्छाशक्ति से नरेंद्र मोदी ने छितमहलों की समस्या का समाधान किया है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि तीस्ता को लेकर तार्किक चिंतन शुरु हो गया है। इसके बिना छित महलों के अदला-बदली के प्रयास में उस तरह फलीभूत नहीं होंगे जैसा की होना चाहिए।
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