×

डिजिटल इंडिया; आसान नहीं है आई- हाईवे की यात्रा

Dr. Yogesh mishr
Published on: 9 July 2015 3:46 PM IST
प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी जब कम्प्यूटर की बात कर रहे थे तो वे अपनी पीढी और उनसे अगली पीढी के नेताओं के लिए हास्य और प्रहसन के पात्र बन गये थे। हद तो यह वामपंथियों और समाजवादियों ने यहां तक कह डाला कि कम्प्यूटर मशीन लोगों का रोजगार तक छीन लेगी। राजीव गांधी पर हमला करने का उस समय विरोधियों के पास कोई मुद्दा नहीं था। यह बात दीगर है कि बाद में बोफोर्स की गिरफ्त में मिस्टर क्लीन राजीव गांधी आये। पर जब वह कम्प्यूटर से आरक्षण, कम्प्यूटर से टिकट या फिर यूं कहें कि कम्प्यूटर क्रांति की बात कर रहे थे तब वह बोफोर्स जैसी तमाम चीजों से बहुत दूर खड़े थे। राजीव गांधी उन इकलौते प्रधानमंत्रियों में रहे हैं जिन्होंने हमेशा अपने से आगे के समय का सपना देखा। हमारे देश के प्रधानमंत्रियों ने या तो तात्कालिक समस्याओं पर ध्यान दिया या फिर दूरगामी और भविष्योन्मुखी समस्याओं पर ध्यान दिया। राजीव गांधी इकलौते प्रधानमंत्री ते जिन्होंने दोनों समस्याओं पर ध्यान दिया। यह बात और है कि तात्कालिक समस्याओं को लेकर उनके नजरिये को शहरी और भविष्योन्मुखी समस्या पर उनकी दृष्टि को उस समय आधारहीन करार दिया गया।
आज जब नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं तो भी उनकी और उनसे आगे की पीढी के तमाम नेता एकदम उसी तरह का हास्य कर रहे हैं, जैसे राजीव गांधी के समय में की थी। यह बात और है कि अब समय बदल चुका है। राजीव गांधी की कम्प्यूटर क्रांति के नतीजे लोगों को इतने अच्छे मिले हैं कि आज नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया का विरोध नहीं होना चाहिए था। बावजूद इसके देश में विरोध के लिए विरोध करने की परंपरा को हमारे सियासतदां राजीव गांधी से नरेंद्र मोदी तक जिंदा रखे हैं।
दरअसल, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का सबसे अहम उद्देश्य तकनीक के माध्यम से आम लोगों का जीवन सरल करना है। इस आधार इन्फारमेशल फार आल यानी सभी को जानकारी मुहैया कराना है। इसके नौ खंभे हर हाल में भारत के लोगों की जिंदगियों को सुखद मोड़ देने की ताकत रखते हैं। इन नौरत्नी खंभों के जरिये ब्रॉडबैंड हाइवे बनेंगे, जो सड़क हाइवे की तर्ज़ पर ब्रॉडबैंड हाइवे से शहरों को जोड़ेंगे। सभी नागरिकों की टेलीफ़ोन सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जाएगी। पीसीओ की तर्ज पर सार्वजनिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम के जरिये हर ग्रामीण तक इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी। ई-गवर्नेंस के मार्फत शासन प्रशासन में सुधार और ई-क्रांति के तहत विभिन्न सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप में लोगों को मुहैया कराने के साथ ही साथ आखिरी खंभे यानी अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम के जरिए वो स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों और शिक्षकों की हाज़िरी तक को मानिटर करके अपने पंक्चुअलिटी सिंड्रोम को गांव-गांव तक पहुंचाना चाहते हैं।
आज भारत के आयात में बड़ा हिस्सा इलेक्ट्रानिक सामानों का है। डिजिटल इंडिया का लक्ष्य आयात निर्भरता शून्य करना है। दरअसल, भारत के साफ्टवेयर टैलेंट ने दुनिया में धूम मचा रखी है। अगर हार्डवेयर यानी इलेक्ट्रानिक सामान बनाने में भारत आगे बढ़ता है, तो पूरी दुनिया में सुपर लीडर का तमगा भारतीयों को मिल सकता है। ऐसे में यह प्रोजेक्ट मोदी के मेक इन इंडिया की रीढ बन जाय तो आश्चर्य नहीं है। क्योंकि चार लाख करोड़ रुपये के निवेश और 18 लाख रोजगार की उम्मीद इससे है। इसमें एक लाख करोड़ का फंड केंद्र ने सुरक्षित किया है जबकि मुकेश अंबानी के रिलायंस ने इसके लिए 2 लाख करोड़ और कुमारमंगलम बिडला ने 44 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना का खुलासा किया है।
हांलांकि इसके लिए हाल फिलहाल 5 लाख पेशेवरों की जरुरत है जबकि भारत में एक लाख ही मौजूद है। बाकी रोजगार आईटी सेक्टर से लेकर छोटे कारोबारियों पर पसरा रहेगा।
अभी तक हम अपने मानव संसाधन के बूते पारंपरिक ढंग से विकास करते आए हैं लेकिन डिजिटल इंडिया तकनीकी के सहयोग से समावेशी विकास का गवाह बन सकता है। तकनीक का सीधा रिश्ता रफ्तार से है। पारदर्शिता से है। इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि रोजगार के साथ ही यह जीवन को आसान करने का जरिया बनेगा। क्योंकि गांव और इंटरनेट से जुडे तो लोग सभी काम आनलाइन काम कर सकेंगे। डिजिटल तिजोरी में आप अपने डॉक्यूमेंटस- पैन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य जरूरी दस्तावेज रख सकेंगे, जो कहीं भी और कभी एक क्लिक करते ही आपकी पहुंच में होगा। ई-बैग की सुविधा के जरिये छात्र अपने शिक्षा बोर्ड की किताब कहीं से भी डाउनलॉड और पढ़ सकेगें। इसमें सभी राज्यों के शिक्षा बोर्ड अपनी किताबें ऑनलाइन रखेंगे। यानी बच्चों को बैग के झंझट से मुक्ति और ई हेल्थ योजना के जरिये लोगों को ऑनलाइन मेडिकल सुविधाएं मिल जायेंगी। इस योजना के जरिये बड़े अस्पतालों में लोगों को लंबी लाइनें नहीं लगानी पड़ेंगी। दूर-दराज के गांव के मरीज देश के किसी भी कोने में बैठकर ऑनलाइन अप्लाई कर सकेंगे।
चकाचौंध लांच, विश्व से लेकर भारतीय सुपर बिजनेस लीडर्स की मौजूदगी और कई लाख करोड़ के फंड के बावजूद डिजिटल इंडिया की चुनौतियां कम नहीं है। जमीनी चुनौतियों का पार पाना बहुत जरुरी है। देश के आख़िरी घर तक ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाने का का वादा तो कर लिया गया है पर इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम, जो तीन-चार साल पीछे चल रहा है। 2011 में सरकार ने 2.5 लाख गांव तक आप्टिकल फाइबर बिछाने की घोषणा की थी। अभी तक सिर्फ 40 फीसदी ही काम हुआ है।  गांव-गांव तार बिछाने का काम वो नहीं कर सकते जो पिछले 50 साल से किसी और तरह के तार बिछा रहे हैं। इसमें वो लोग चाहिए जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की तासीर समझते हैं। सबके पास फोन तब होगा जब लोगों के पास फोन खऱीद पाने की न्यूनतम क्षमता और आवश्यकता हो। अभी हम हर दिन 26 रुपये से 32 रुपये तक कमाने वाले गरीब और अमीर मानने के झगड़े में पडे है तो ऐसे में सबके पास फोन खरीदने की क्षमता आ गई है ये सोचना थोड़ा मुंगेरीलाल होने जैसा हो। अभी हाल में आई आर्थिक जनगणना की रिपोर्ट यह बताती है कि 75 फीसदी ग्रामीणों की मासिक आमदनी 5000 रुपये से कम है। देश के 24.39 करोड़ परिवारों में से 17.91 करोड़ गांव में रहते हैं। इनमें 10 करोड़ परिवार वंचित श्रेणी के हैं। 23.52 फीसदी परिवारो में 25 साल से अधिक उम्र के शिक्षित लोग ही नहीं हैं। यही नहीं, फिक्स लाइन कनेक्टिवटी में भारत दुनिया में 125 वें पायदान और वायरलेस कनेक्टिविटी में 113वें पायदान पर है। भारत में कुल 14 फीसदी मोबाइल धारक इंटरनेट का उपयोग करते हैं।एक अमरीकी शोध के मुताबिक 80 फीसदी भारतीय इंटरनेट का प्रयोग नहीं करते।  पीसीओ के तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट बनाने की योजना और इसे गांव स्तर तक ले जाना एक बडी खाई पाटने जैसा है। ई-क्रांति के लिए हमारा दिमाग, हमारी सोच, हमारा प्रशिक्षण और उपकरण सबकुछ डिजिटल होना ज़रूरी है जो अब तक नहीं हो सका है।
चुनौतियां तो हर काम में होती हैं पर प्रधानमंत्री के दो पक्ष हर चुनौती पर भारी पड़ते हैं। अब तक भारी दिखते रहे हैं। पहला, ‘हौसला है तो विश्वास है वाला जज्बा।’ दूसरा, लोगों को समझाने और समझ होने की असीमित क्षमता। तभी तो मोदी ने इस बडे चकाचौंध वाले आयोजन में अपने भाषण की शुरुआत एक बच्चे की आदत से की। कहा पहले बच्चे आपका पेन, चश्मा खींचते थे अब सबसे पहले मोबाइल छीनते हैं। कहा बच्चे डिजिटल ताकत को समझते हैं, हमें समझना होगा। पर सबसे अहम बात यह है कि क्या डिजिटल इंडिया के नौ उद्देश्यों को पुराने दिमाग से चलाया जा सकता है। क्या ईंट-पत्थर तोड़ने वाले राज-मिस्त्री ज़मीनी स्तर पर इसके लिए काम करेंगें, क्या ये इन्फोहाइवे का काम कर पाने के लिए दक्ष हैं या फिर इस नई सोच के लिए हमें पूरी तरह से नया रवैया अपनाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री आने वाले समय में देश को 'एम-गवर्नेंस' में बदलने की बात कर रहे हैं। भले ही इस महत्वाकांक्षी योजना के लांच पर वो इसे मोदी गवर्नेंस के बजाय मोबाइल-गवर्नेंस से जोड़ते रहे पर डिजिटल इंडिया अगर सफल होता है तो ये मोदी गवर्नेंस की शक्ल बदलेगा और नहीं हो सका तो ये एम गर्वनेंस के खाते का ही घाटा माना जायेगा। इन सबके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट 2000 और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 में बदलाव जरुरी हो गया है क्योंकि जिस देश में कुत्ते का आधार कार्ड बन जाता हो, जहां पासपोर्ट जैसा अहम दस्तावेज छापने का काम निजी कंपनी को देना पड़े वहां सुरक्षा, सरंक्षण और डाटा की निजता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती भी है। डिजिटल इंडिया के लांच पर मोदी ने साइबर सिक्योरिटी का जिक्र किया। इसके लिए जरुरी यह भी है कि डाटा बेस देश की सीमा में रहे।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

Next Story