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भस्मासुर गढ़ रहे हैं हम...

Dr. Yogesh mishr
Published on: 16 Aug 2015 1:58 PM IST
पहले बड़े बुजुर्ग शरारती बच्चे को देखकर यह तंज कसना नहीं भूलते थे कि यह लड़का मशीन हो गया है। अब जब आदमी ने अपने कामकाज और अपनी मदद के लिए आदमी की तरह गढ़ना शुरु किया तो हम, हमारा समाज और हमारे वैज्ञानिक इस बात के लिए बहुत खुश थे कि उन्होंने उपलब्धियों का एक नया मुकाम हासिल कर लिया है। क्लोन और रोबोट दो ऐसी उपलब्धियां थी जिस पर इतराता हुआ आदमी यह सोच नहीं पा रहा था कि वह समाज को और खुद को किस दिशा में लेकर जा रहा है। ऐसा इसलिए था कि उसे लग रहा था कि जीवन और मृत्यु के दो अनसुलझे सवाल उसने हल कर लिए हैं। यही दो ऐसे सवाल थे जिसने इंसान की जिंदगी में, समाज में किसी भी देशकाल परिस्थिति में जो आदमी को भगवान की उपस्थिति स्वीकार करने के लिए मजबूर करते थे। आदमी भगवान को निराकार या साकार ब्रह्म की ही दो स्थितियों में स्वीकार करता है पर जब उसने क्लोन बनाने की तरफ एक बड़ीसफलता हासिल कर ली, उसने रोबोट बना लिया तो उसे लगने लगा कि भगवान की उपस्थिति को इनकार करने की ताकत उसमें पर्याप्त ढंग से आ गयी है। नतीजन उसे परमतत्व, आत्मा, परमात्मा और आत्मतत्व के रिश्तों के खिलाफ खड़े होने का साहस आ गया। इस साहस ने उसमें यांत्रिक मानव बनाने, यांत्रिक मानव को जनने, जगह देने की परंपरा की शुरुआत की। यह शुरुआत मूलतः तब से हुई जबसे ग्लोबलाइजेशन के दौर में आदमी मल्टीलेवल पर बहुआयामी स्तर पर काम करने लगा। एक समय था जब एक वक्त में एक ही काम करता था।  जब वह काम करता था तो वह दिल और दिमाग से वहीं होता था। उसकी उपस्थिति होती थी। उपस्थिति होती थी तो उसकी भावनाएं होती थीं। भावनाएं बनती थी। भावनाएं उसे वहां पर बांधकर रखती थीं। पर हालात बदले, आदमी एक समय पर कई काम करने लगा। वह एक ही समय में मलटीटास्कर बन गया। आदमी के इस स्थिति से ही संवेदनाओं के मरने की शुरुआत भी हुई।
हम पहले खत लिखते थे तो उसका चेहरा सामने होता था। उसकी पसंद-नापसंद, उससे जुड़ी चीजें सामने होती थी। हम उनसे जुड़कर खत लिखते थे। अब हम मेल लिखते हैं। हम मोबाइल पर बात भी करते हैं और टीवी भी देखते हैं। हम खाना भी खाते हैं और पेपर भी पढ़ते हैं। हम म्यूजिक भी सुनते हैं और प्रोजेक्ट भी बनाते हैं। एक साथ कई काम करते हैं। हम बहुस्तरीय मल्टीटास्कर बन गये हैं। हम इतरा तो सकते हैं कि हम बहुत काम कर रहे हैं। पर मल्टीटास्कर के साथ भावना के संवेग का वह रिश्ता स्थापित नहीं हो पाता जो जीवन के उत्तरार्ध में जरूरी होता है। परिवार के लिए, समाज के लिए, खुद के लिए और जीवन के लिए।
कुछ ऐसे ही सवाल आज मौजूं हो गये हैं जब रोबोट लोगों को मार रहा है। जब क्लोन पर आदमी की विजय उसे पराजय की तरफ फुसलाती हुई ले जा रही है। बदलाव बता रहा है कि आदमी कैसे मशीनी हो रहा है। आदमी का मशीन होना पहले तंज जरुर था पर जब यथार्थ में मशीन में परिवर्तित हो रहा है तो उसका आवेग, सवेंग और उसकी वह भावनाएं मर रही हैं जो उसे जानवर से इतर करती रही हैं। जो उसकी अहमियत स्थापित करती हैं, जो उसे प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बनाती है। सर्वश्रेष्ठ होने की परंपरा का विराम है रोबोट का बन जाना। क्लोन का बन जाना।
अगर रोबोट बर्तन मल सकता है तो हमें इतराना नहीं चाहिए क्योंकि बर्तन मलने में, खाना बनाने आदि कामों में सिर्फ यंत्र नहीं होते भाव भी प्रधान होता है। अगर भाव नहीं होता तो एक ही मसाले, एक ही अनाज, एक ही विधि से बनाए जाने वाले हर व्यंजन का स्वाद हर रसोई में अगल नहीं होता। स्वाद का अंतर बताता है कि आदमी यंत्र नहीं है। अगर यंत्र को आदमी और आदमी को यंत्र बनाया गया तो इसे परिणाम दूरगामी किंतु दुष्प्रभावी होंगे।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय ‘टर्मिनेटर स्टडीज’ के लिए अपना एक केंद्र खोल रहा है। यहीं मानव प्रजाति के सामने मौजूद चार सबसे बड़े खतरों कृत्रिम बुद्धि, जलवायु परिवर्तन, परमाणविक युद्ध और खतरनाक जैवप्रौद्योगिकी का अध्ययन किया जाएगा। इस सेंटर से जुडें हैं विश्व के जाने माने ब्रह्मांडवेत्ता लॉर्ड रीस। अपनी वर्ष 2003 में आई किताब ‘आवर फाइनल सेंचुरी’ ने रीस ने यह चेताया था कि रोबोट और अब उनमें मानवीय चेतना के विकास का अर्थ है कि प्रजातियों का सफाया वर्ष 2100 तक हो सकता है। इस समय के आंइस्टीन कहे जाने वाले स्टीफन हाकिंस ने साल 2014 में रोबोटिक समझदारी को दुनिया में इंसानी नस्ल के खत्म होने की प्रक्रिया को रफ्तार देने वाला बताया। बीबीसी को दिये गये साक्षात्कार में हाकिंस ने कहा कि ये इन्सान की सबसे बड़ी किंतु आखिरी सफलता होगी।
मानव प्रजाति पर अधिकार कर लेने का विचार विज्ञान की कई काल्पनिक किताबों और फिल्मों में दर्शाया गया है। चाहे वो हालीवुड की टर्मिनेटर सिरीज या फिर बालीवुड की रजनीकांत स्टारर रोबोट। इसकी शुरुआत के तौर पर ना भी देंखे तो आप गुडगांव या फिर बर्लिन की घटना को आप नज़रअंदाज भी नहीं कर सकते। गुडगांव के मनेसर की घटना में एक इन्सान को रोबोट ने तब मार दिया जब वह वेल्डिंग की प्लेट को उसे पकड़ा रहा था। रोबोट के पंजों से पहले ही एक मेटल प्लेट नीचे गिर गई। रामजीलाल ने प्लेट को नीचे से उठाने की कोशिश की लेकिन तब तक पहले से प्रोग्राम की हुई रोबोटिक आर्म ने उन्हें पकड़ लिया। रोबोट की वेल्डिंग रॉड रामजी लाल के पेट में धंस गई और वेल्डिंग के करीब 10 हजार वोल्ट के करंट ने उनकी जान ले ली। रोबोट द्वारा किसी इंसान की जान लेने की पहली घटना जर्मन की राजधानी बर्लिन में घटी थी। यह घटना कार निर्माता कंपनी फॉक्स वैगन के संयंत्र में घटी। रोबोट तैयार करने वाली टीम में २२ वर्षीय ठेकेदार काम में जुटा था, तभी रोबोट ने उसे पकड़ लिया और वहीं पटककर मार डाला। हत्यारा यांत्रिक मानव है,इसलिए पुलिस कार्रवाई भी संभव नहीं हो पा रही है। हादसे के बाद तर्क दिया जा रहा है कि मशीन ने प्रोग्राम्ड काम किया। अब सवाल ये है कि आखिर गलती किसकी थी। उससे बडा सवाल ये कि क्या विकेक और आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस वाले रोबोट इसे जानबूझ कर सकते हैं। क्योंकि इन रोबोट्स को बुद्धि और विकेक का इस्तेमाल करना सिखाया जायेगा। दुबई में रोबोट की अगली पीढ़ी जीबोट तैयार किया गया है। जीबोट में तेज और खुद से सीखने वाले सॉफ्टेवेयरों को लगाया जायेगा। यही वजह है कि तर्क दिया जा रहा है कि घरों में नौकरों को साल 2050 तक गायब कर उनकी जगह लेंगे रोबोट्स। होंडा कंपनी का असीमो नामक रोबोट समझदारी के साथ कई काम निपटाने में माहिर है। घर साफ करने से लेकर कपड़े सुखाने तक का काम यह रोबोट कर सकता है। दावा है कि भविष्य में रोबोट तकनीक में काफी सुधार होगा। चार दशक बाद अधिकतर दुकानें मशीनों से ही संचालित होंगी जैसे आज चाय या कॉफी वेंडिंग मशीन का संचालन होता है। मानवीय श्रम लगभग गायब हो चुका होगा। वर्तमान श्रमिक रोबोट संचालक के रूप में नजर आएंगे। रोबोट अब अपनी इस नयी बुद्धि विवेक के जरिए स्थापित प्रतिमानों को बदलने में लगा है। भारत में ‘सेतु‘ नाम से कंप्युटर इंजीनियर एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित करने में लगे हैं,जो लेख एवं कई विधाओं में रचनाएं लिखने का काम करेगा। हैदराबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी में बन रहा यह सॉफ्टवेयर विकसित हुआ तो कम्प्यूटर,मोबाइल और रोबोट बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के लेख लिखने की क्षमता विकसित कर लेंगे। सॉफ्टवेयर में डाली गई यह कृत्रिम बुद्धि ५ से १० सेकेंड के भीतर लगभग एक हजार की शब्द संख्या का आलेख तैयार कर देगी। यह सॉफ्टवेयर हिंदी,गुजराती,मराठी जैसी गैर अंग्रेजी ७० भाषाओं को सपोर्ट करेगा।
इतना ही नहीं ये भी हो सकता है कि आप खरीदारी के लिए जाएं और दुकानों को पहले से ही पता हो कि आपकी खरीदने की आदतें कैसी हैं. हार्वर्ड के कुछ प्रोफेसरों  के मुताबिक अब व्यक्तिगत निजता जैसी कोई धारणा नहीं रह जायेगी। इंसान की व्यक्तिगत जेनेटिक सूचना का सार्वजनिक क्षेत्र में जाना अब अपरिहार्य हो गया है। सरकारों या इंश्योरेंस कंपनियों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले मच्छर के आकार वाले रोबोट लोगों और राजनेताओं का डीएनए जुटाएगें या चुराएंगे।  नेताओं की बीमारियों और जिंदा रहने के समय के बारे में पताकर राजनीति को निर्धारित किया जायेगा। क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना की बीमारी के बारे में पता होता तो शायद भारत का विभाजन नहीं होता।
भारत में तो अभी रोबोट का काम सीमित है,लेकिन चीन और जापान में रोबोट कारखानों से लेकर सड़कों और घरों के निर्माण कार्य में भी जुटे आसानी से दिख जाते हैं। भारत में वाहन निर्माता कंपनियां रोबोट का इस्तेमाल कर रही हैं। गुजरात के साणंद में स्थित फोर्ड फैक्ट्री में कार्यरत ४३७ रोबोट ने ९५ फीसदी मजदूरों का काम हाथिया लिया है। वैज्ञानिक रोबोट की बिक्री लगातार बढ़ रही है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के अनुसार 2014 में 2.30 लाख रोबोट बेचे गए जो २०१३ की तुलना में २७ गुना ज्यादा है। वर्तमान में चीन में १.८० लाख और भारत में १२ हजार रोबोट हैं।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भगवान शिव और राक्षस-राज भस्मासुर की बड़ी रोचक कथा है। अविवेकी रोबोट अब मानव निर्मित यही रोबोट हिंसक प्रवृत्ति अपनाने के साथ मानवीय दखल वाले अनेक क्षेत्रों में अतिक्रमण करने लग गया है। रोबोट में चेतना आ जाती है उसमें होशियारी,समझदारी और एक हद तक विवेक भी विकसित हो जाएगा,ऐसी उम्मीद वैज्ञानिक कर रहे हैं। ऐसे में गुडगांव से लेकर बर्लिन के हादसे सिर्फ घटना रहें, इसके विस्तार पर अंकुश लगाने की जरूरत है या फिर मनुष्य जाति के लिए यह भस्मासुरी साबित होगा।


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Dr. Yogesh mishr

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