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लीक छांड़ि तीनहि चलैं...
नरेंद्र मोदी के जीवन को लेकर कई वाकये ऐसे हैं जो चौंकाते हैं। मसलन घडियाल को पकड़ लाना। आपातकाल के दौरान काम भी करना और गिरफ्तार न होना। कम वय में घर छोड़कर एक अबुझ और अनजान यात्रा पर निकल जाना यह सब ऐसी नज़ीरें हैं जो बताती हैं कि मोदी अपने जीवन में तमाम ऐसे फैसले लेते हैं जो शुरु में रहस्य भरे दिखते हैं। चौंकाते हैं। लेकिन बाद में इन फैसलों का जो नतीजा आता है वह सिर्फ मोदी के ही जीवन में नहीं आसपास और समाज के लिहाज से भी सकारात्मक परिवर्तनगामी होता है। आज जब नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान की सरजमीं पर धमकते हैं तब भारतीय प्रतिपक्ष, सपा नेता आज़म खां और पाकिस्तान के आतंकवादियों को छोड़कर कहीं से भी विरोध के स्वर सुनाई नहीं पड़ते। वाशिंटगटन से बर्लिन तक और इस्लामाबाद से लेकर शहीद हेमराज की पत्नी धर्मवती तक मोदी की इस अनौपचारिक यात्रा का स्वागत कर रहे हैं। गौरतलब है कि शहीर हेमराज की सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों ने निमर्म हत्या कर दी थी और उसका सर तक काट दिया था। मोदी विरोध के स्वर भी बेसुरे हैं। क्योंकि कांग्रेस के विरोध का बड़ा हिस्सा इस बात को लेकर है कि मोदी और शरीफ की नज़दीकियां एक उद्योगपति के मार्फत हो रही हैं। सज्जन जिंदल नाम का यह उद्योगपति खानदानी कांग्रेसी है। मई,2014 में जब नवाज शरीफ भारत आए थे तो जिंदल के घर मुंबई में चाय पीने भी गए थे। काठमांडू के सार्क सम्मेलन में नवाज शरीफ और मोदी की मुलाकात जिंदल के ही एक होटल में हुई थी। यह संयोग ही है कि जब मोदी नवाज के घर पहुंचे तो सज्जन जिंदल अपने परिवार सहित वहां उपस्थित थे। यह भी तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि नवाज शरीफ भी मूलतः बड़े औद्योगिक घराने के स्वामी हैं। आज़म खां दाउद के जन्मदिन का जिक्र करके अपने विरोध के स्वर की धार को भोथरा कर देते हैं।
पाकिस्तान में भले ही जनतंत्र हो कि पर कहा जाता है कि पाकिस्तान तीन ‘ए’ यानी आर्मी, अल्लाह और आतंकवादी सरगानों की इच्छा से संचालित होता है। मोदी की यात्रा पर आंतकी संगठन जमात-उद-दावा के हाफिज सईद की बौखलाहट यह पुष्ट करती है कि मोदी ने इन तीनों के गठजोड़ में कोई नई दरार ड़ाल दी है। लंबे समय से पाकिस्तानी आतंकवाद का शिकार भारत के लिए यह एक बड़ी बात नहीं कही जानी चाहिए। पाकिस्तान में अगर आर्मी से आतंकवादी सरगना अलग हो जायें तो निःसंदेह भारत से रिश्तों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है।
सैन्य विशेषज्ञ इसे दूसरे नज़रिये से देखते हैं । उनका कहना है कि अमरीका अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी तय कर चुका है। लेकिन अफगानिस्तान को वह वैसी स्वतंत्रता देने को तैयार नहीं है जैसी अफगानिस्तान चाहता है। क्योंकि वहां भी सत्ताशीर्ष की गर्दन आतंकियों के हाथ जा सकती है। ऐसे में अगर वहां आसपास पाकिस्तानी सेना हो तो अमरीका राहत की सांस ले सकता है। पाकिस्तान अपनी सेना भारतीय सीमा से तभी इधर-उधर कर सकता है जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते एक नई इबारत लिख रहे हों उनमें घुसपैठ की जगह विश्वास हो। आतंकवाद की जगह संवाद हो। जम्मू-कश्मीर और पाक-अधिकृत कश्मीर के वाशिंदों में भरोसा हो।
पिछले दिनों जिस तरह पाक-अधिकृत कश्मीर में भारत के समर्थन में लोग उतरे उससे निःसंदेह पाकिस्तान के आतंकी संगठन को यह संदेश मिल गया होगा कि अब वहां के बाशिंदों का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए कर पाना मुश्किल होगा। यही नहीं जम्मू-कश्मीर में भी वह भारतीय जनता पार्टी सत्ता की हिस्सेदार है जिसके प्रतीक पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एजेंडे का अहम हिस्सा जम्मू-कश्मीर था। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों का भी इस्तेमाल कर पाना आतंकवादियों के लिए टेढी खीर हो गया है। आयातित आतंकवादी बिना स्थानीय समर्थन के किसी भी देश में कामयाब हो सकते। एक ऐसे माहौल में काबुल से अचानक लाहौर पहुंचना मोदी समर्थकों को भले ही उत्साह से भर देता हो पर मोदी विरोधियों को भी उन पर चलाने के लिए उनके तरकश में कोई ऐसा तीर नहीं देता जो उन्हें भेद सके।
भाजपा नीत सरकार जब भी केंद्र में रही है तो उसके एजेंडे में पाकिस्तान मैत्री महत्वपूर्ण रही है। अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर अमन की बस लेकर गए थे। मोदी टू-टैक डिप्लोमैसी से आगे निकलते हैं वह इनोवेटिव डिप्लोमैसी पर आकर ठहरते है। इस इनोवेटिव डिप्लोमैसी में प्रोटोकाल की सीमाएं तोडना भी उन्हें भाता है। नवाज शरीफ के निजी कार्यक्रम में शामिल होकर यह बताना चाहते हैं जन्मदिन का मौका हो या नातिन मेहरुन्निसा की शादी का अवसर, भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच ऐसे निजी अवसरों पर हर्ष-उल्लास साझा करने का खुला अवसर होना चाहिए। यह इस लिहाज से सच भी है क्योंकि जो पाकिस्तान गए उनमें बहुत से लोग भारत में परिजन छोड़ गये है। राही मसूम राजा का आधा गांव इसकी तस्दीक करता है। उन्हें जब तक एक दूसरे से मिलने मिलाने का अवसर नहीं होगा तब तक रिश्तों में गर्मजोशी नहीं आएगी।
भारत पाकिस्तान की समस्या का समाधान दोनों देश की सरकारें नहीं कर सकतीं। उन्हें लोग करेंगे तभी किसी अहम और स्थाई मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा। तकरीबन साढे तीन युद्ध झेल चुके दोनों देशों के लोगों के नासूर बन चुके जख्म पर तभी मरहम लग सकेगा जब उन्हें करीबी की गर्माहट मिलेगी। मोदी का यह कहना कि अब तो आऩा जाना लगा रहेगा और शरीफ उवाच- यह तो आपका ही घर है- इसे और आगे बढ़ाता है।
यह भी कम गौर करने वाली बात नहीं है कि मोदी की यात्रा के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी पाकिस्तान को लेकर अपने नज़रिए में बड़ा बदलाव किया है। संघ प्रवक्ता राम माधव ने भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश को मिलाकर एक नया महासंघ बनाने की तान छेड़ी है। हालांकि यह बात शुरुआती दौर से समाजवादी चिंतक डा राममनोहर लोहिया कहते आ रहे हैं। मोदी की इस यात्रा को भाजपा के हर युग का साथ मिल रहा है। मोदी की यात्रा को पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सकारात्मक संदेश वाली यात्रा करार दिया। मोदी की इस हैरतअंगेज पाकिस्तान यात्रा का समर्थन कर आडवाणी ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल को आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के अन्य नेताओं को योगदान देना चाहिए। वहीं देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि इस तरह की डिप्लोमेसी दुनिया में अभी तक कहीं नहीं देखी गई। योग के सहारे पहले ‘कल्चरल डिप्लोमेसी’ का संदेश देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के साथ ‘इनोवेटिव डिप्लोमेसी’से यह साबित कर दिया है कि हम पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते रखना चाहते हैं।
पाकिस्तान को लेकर ऐसा नहीं कि मोदी आत्मसमर्पण की मुद्रा में हो। जब जरुरत पड़ी तो किसी नए पक्ष की उपस्थिति में बातचीत करने के प्रस्ताव को ठोकर मार दी। जब पाकिस्तान ने विदेश सचिव स्तर से पहले हुर्रियत को न्यौता दिया तो बिना देरी किए मोदी ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद कर दी। संयुक्त राष्ट्र संघ में मोदी सरकार ने नवाज शरीफ को निरुत्तर कर दिया था। मोदी सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र संघ में नवाज शरीफ के भाषण के बाद उन्हें करारा जवाब देते हुए बताया कि नवाज शरीफ ने बातचीत के लिए चार सूत्रों का जिक्र किया है, उसके लिए चार सूत्रों की नहीं बल्कि सिर्फ एक सूत्र की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आप आतंकवाद को छोड़ दीजिए और आकर बात कीजिए। आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती। मोदी ने सुषमा के इस ऐतिहासिक भाषण के जरिए संयुक्त राष्ट्र संघ में नवाज पर भारी पड़ने की जमकर तारीफ की थी। बाकयदा उनके भाषण को अटैच कर ट्वीट भी किया था। ।
मोदी ने पूरी दुनिया में गुड टेरेरिज्म और बैड टेरेरिज्म के अंतर को खत्म करने की मुहिम छेड रखी है। इस यात्रा के ठीक पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुस और अफगानिस्तान की यात्रा पर गए थे। मोदी ने इस मौके पर रूसे के साथ 16 हस्ताक्षर कर साबित कर दिया कि भारत दोस्त बदलने की नहीं बल्कि दोस्त बढ़ाने की नीति पर काम कर रहा है। मोदी सरकार की हालिया विदेश नीति देख यह लग रहा था कि मोदी अमरीका-जापान-भारत की धुरी पर काम कर रहे हैं जिससे चीन और रुस को परेशानी हो सकती है। पर अपनी रूस में अपनी सफल यात्रा कर मोदी ने साबित कर दिया कि भारत अपने उस दोस्त को खोने को तैयार नहीं जो हर वक्त उसके साथ खड़ा रहा हो। यह बात और है कि भारत अपने दोस्तो की सूची को सीमित नहीं रखना चाहता। मोदी ने जहां 10 नए परमाणु रिएक्टर के जरिए भारत की बिजली समस्या को हल करने की दिशा में मजबूत कदम उठाया वहीं सामरिक तौर पर रुस से कई समझौते कर उसके कम पड़ते विश्वास को ताकत दी।
काबुल में आधिकारिक तौर पर अघोषित यात्रा कर मोदी ने अटल ब्लाक का उद्घाटन भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके जरिए न सिर्फ अपने गुरु का जन्मदिन पर मान बढाया बल्कि अमरीकी सेनाओं की वापसी के बाद बन रहे शून्य को भरने में भारत की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की दावेदारी पेश कर दी।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एजेंडा देश की सीमा पर शांति, देश में सुरक्षा और विकास का माहौल है। मोदी की इन यात्राओं में यह साबित कर दिया कि मोदी की इस इनोवेटिव डिप्लोमैसी के महत्वपूर्ण तत्व रिश्ते, मोहब्बत, भाईचारा और अमन की आशा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में मेड इन इंडिया की यात्रा को मेक इऩ इंडिया तक ले जाना चाहते है और यह तभी संभव है जब देश की सीमा सुरक्षित और मौहाल में अमन कायम हो।
पाकिस्तान में भले ही जनतंत्र हो कि पर कहा जाता है कि पाकिस्तान तीन ‘ए’ यानी आर्मी, अल्लाह और आतंकवादी सरगानों की इच्छा से संचालित होता है। मोदी की यात्रा पर आंतकी संगठन जमात-उद-दावा के हाफिज सईद की बौखलाहट यह पुष्ट करती है कि मोदी ने इन तीनों के गठजोड़ में कोई नई दरार ड़ाल दी है। लंबे समय से पाकिस्तानी आतंकवाद का शिकार भारत के लिए यह एक बड़ी बात नहीं कही जानी चाहिए। पाकिस्तान में अगर आर्मी से आतंकवादी सरगना अलग हो जायें तो निःसंदेह भारत से रिश्तों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है।
सैन्य विशेषज्ञ इसे दूसरे नज़रिये से देखते हैं । उनका कहना है कि अमरीका अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी तय कर चुका है। लेकिन अफगानिस्तान को वह वैसी स्वतंत्रता देने को तैयार नहीं है जैसी अफगानिस्तान चाहता है। क्योंकि वहां भी सत्ताशीर्ष की गर्दन आतंकियों के हाथ जा सकती है। ऐसे में अगर वहां आसपास पाकिस्तानी सेना हो तो अमरीका राहत की सांस ले सकता है। पाकिस्तान अपनी सेना भारतीय सीमा से तभी इधर-उधर कर सकता है जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते एक नई इबारत लिख रहे हों उनमें घुसपैठ की जगह विश्वास हो। आतंकवाद की जगह संवाद हो। जम्मू-कश्मीर और पाक-अधिकृत कश्मीर के वाशिंदों में भरोसा हो।
पिछले दिनों जिस तरह पाक-अधिकृत कश्मीर में भारत के समर्थन में लोग उतरे उससे निःसंदेह पाकिस्तान के आतंकी संगठन को यह संदेश मिल गया होगा कि अब वहां के बाशिंदों का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए कर पाना मुश्किल होगा। यही नहीं जम्मू-कश्मीर में भी वह भारतीय जनता पार्टी सत्ता की हिस्सेदार है जिसके प्रतीक पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एजेंडे का अहम हिस्सा जम्मू-कश्मीर था। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों का भी इस्तेमाल कर पाना आतंकवादियों के लिए टेढी खीर हो गया है। आयातित आतंकवादी बिना स्थानीय समर्थन के किसी भी देश में कामयाब हो सकते। एक ऐसे माहौल में काबुल से अचानक लाहौर पहुंचना मोदी समर्थकों को भले ही उत्साह से भर देता हो पर मोदी विरोधियों को भी उन पर चलाने के लिए उनके तरकश में कोई ऐसा तीर नहीं देता जो उन्हें भेद सके।
भाजपा नीत सरकार जब भी केंद्र में रही है तो उसके एजेंडे में पाकिस्तान मैत्री महत्वपूर्ण रही है। अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर अमन की बस लेकर गए थे। मोदी टू-टैक डिप्लोमैसी से आगे निकलते हैं वह इनोवेटिव डिप्लोमैसी पर आकर ठहरते है। इस इनोवेटिव डिप्लोमैसी में प्रोटोकाल की सीमाएं तोडना भी उन्हें भाता है। नवाज शरीफ के निजी कार्यक्रम में शामिल होकर यह बताना चाहते हैं जन्मदिन का मौका हो या नातिन मेहरुन्निसा की शादी का अवसर, भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच ऐसे निजी अवसरों पर हर्ष-उल्लास साझा करने का खुला अवसर होना चाहिए। यह इस लिहाज से सच भी है क्योंकि जो पाकिस्तान गए उनमें बहुत से लोग भारत में परिजन छोड़ गये है। राही मसूम राजा का आधा गांव इसकी तस्दीक करता है। उन्हें जब तक एक दूसरे से मिलने मिलाने का अवसर नहीं होगा तब तक रिश्तों में गर्मजोशी नहीं आएगी।
भारत पाकिस्तान की समस्या का समाधान दोनों देश की सरकारें नहीं कर सकतीं। उन्हें लोग करेंगे तभी किसी अहम और स्थाई मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा। तकरीबन साढे तीन युद्ध झेल चुके दोनों देशों के लोगों के नासूर बन चुके जख्म पर तभी मरहम लग सकेगा जब उन्हें करीबी की गर्माहट मिलेगी। मोदी का यह कहना कि अब तो आऩा जाना लगा रहेगा और शरीफ उवाच- यह तो आपका ही घर है- इसे और आगे बढ़ाता है।
यह भी कम गौर करने वाली बात नहीं है कि मोदी की यात्रा के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी पाकिस्तान को लेकर अपने नज़रिए में बड़ा बदलाव किया है। संघ प्रवक्ता राम माधव ने भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश को मिलाकर एक नया महासंघ बनाने की तान छेड़ी है। हालांकि यह बात शुरुआती दौर से समाजवादी चिंतक डा राममनोहर लोहिया कहते आ रहे हैं। मोदी की इस यात्रा को भाजपा के हर युग का साथ मिल रहा है। मोदी की यात्रा को पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सकारात्मक संदेश वाली यात्रा करार दिया। मोदी की इस हैरतअंगेज पाकिस्तान यात्रा का समर्थन कर आडवाणी ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल को आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के अन्य नेताओं को योगदान देना चाहिए। वहीं देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि इस तरह की डिप्लोमेसी दुनिया में अभी तक कहीं नहीं देखी गई। योग के सहारे पहले ‘कल्चरल डिप्लोमेसी’ का संदेश देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के साथ ‘इनोवेटिव डिप्लोमेसी’से यह साबित कर दिया है कि हम पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते रखना चाहते हैं।
पाकिस्तान को लेकर ऐसा नहीं कि मोदी आत्मसमर्पण की मुद्रा में हो। जब जरुरत पड़ी तो किसी नए पक्ष की उपस्थिति में बातचीत करने के प्रस्ताव को ठोकर मार दी। जब पाकिस्तान ने विदेश सचिव स्तर से पहले हुर्रियत को न्यौता दिया तो बिना देरी किए मोदी ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद कर दी। संयुक्त राष्ट्र संघ में मोदी सरकार ने नवाज शरीफ को निरुत्तर कर दिया था। मोदी सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र संघ में नवाज शरीफ के भाषण के बाद उन्हें करारा जवाब देते हुए बताया कि नवाज शरीफ ने बातचीत के लिए चार सूत्रों का जिक्र किया है, उसके लिए चार सूत्रों की नहीं बल्कि सिर्फ एक सूत्र की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आप आतंकवाद को छोड़ दीजिए और आकर बात कीजिए। आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती। मोदी ने सुषमा के इस ऐतिहासिक भाषण के जरिए संयुक्त राष्ट्र संघ में नवाज पर भारी पड़ने की जमकर तारीफ की थी। बाकयदा उनके भाषण को अटैच कर ट्वीट भी किया था। ।
मोदी ने पूरी दुनिया में गुड टेरेरिज्म और बैड टेरेरिज्म के अंतर को खत्म करने की मुहिम छेड रखी है। इस यात्रा के ठीक पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुस और अफगानिस्तान की यात्रा पर गए थे। मोदी ने इस मौके पर रूसे के साथ 16 हस्ताक्षर कर साबित कर दिया कि भारत दोस्त बदलने की नहीं बल्कि दोस्त बढ़ाने की नीति पर काम कर रहा है। मोदी सरकार की हालिया विदेश नीति देख यह लग रहा था कि मोदी अमरीका-जापान-भारत की धुरी पर काम कर रहे हैं जिससे चीन और रुस को परेशानी हो सकती है। पर अपनी रूस में अपनी सफल यात्रा कर मोदी ने साबित कर दिया कि भारत अपने उस दोस्त को खोने को तैयार नहीं जो हर वक्त उसके साथ खड़ा रहा हो। यह बात और है कि भारत अपने दोस्तो की सूची को सीमित नहीं रखना चाहता। मोदी ने जहां 10 नए परमाणु रिएक्टर के जरिए भारत की बिजली समस्या को हल करने की दिशा में मजबूत कदम उठाया वहीं सामरिक तौर पर रुस से कई समझौते कर उसके कम पड़ते विश्वास को ताकत दी।
काबुल में आधिकारिक तौर पर अघोषित यात्रा कर मोदी ने अटल ब्लाक का उद्घाटन भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके जरिए न सिर्फ अपने गुरु का जन्मदिन पर मान बढाया बल्कि अमरीकी सेनाओं की वापसी के बाद बन रहे शून्य को भरने में भारत की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की दावेदारी पेश कर दी।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एजेंडा देश की सीमा पर शांति, देश में सुरक्षा और विकास का माहौल है। मोदी की इन यात्राओं में यह साबित कर दिया कि मोदी की इस इनोवेटिव डिप्लोमैसी के महत्वपूर्ण तत्व रिश्ते, मोहब्बत, भाईचारा और अमन की आशा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में मेड इन इंडिया की यात्रा को मेक इऩ इंडिया तक ले जाना चाहते है और यह तभी संभव है जब देश की सीमा सुरक्षित और मौहाल में अमन कायम हो।
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