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अगस्ता हेलीकॉप्टर डील; डूबी डील के उतरते सवाल

Dr. Yogesh mishr
Published on: 1 Jan 2016 2:06 PM IST
आजादी  के बाद सुराज की स्थापना में हमारी विफलता का ही नतीजा है कि बीते 68 साल में रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका खत्म करने में हम कामयाब नहीं हो पाए हैं। सेना के लिए वर्ष 1948 जीप खरीद में भ्रष्टाचार के मामलों के खात्मे की उम्मीद बोफोर्स कांड के समय आम भारतीय कर रहा था। लेकिन जिस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स के भ्रष्टाचार की बात कहकर दिल्ली का तख्त हासिल किया और फिर खामोशी ओढ़ ली लोगों को लगा कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार एक झूठ को सौ बार बोलकर सच साबित करने सरीखा है। पर इटली की मिलान कोर्ट ने जब अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के हेलीकाप्टरों की खरीद-फरोख्त को लेकर तमाम हालिया खुलासे किए हैं तब फिर एक बार जनता को लगने लगा है भ्रष्टाचार का यह खेल खत्म होने की जगह खरीद-फरोख्त के दस्तूर का हिस्सा हो गया है। यह बात दूसरी है कि खऱीद-फरोख्त के इस खेल में निशाने पर कौन और कब होता है। हलांकि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार एक वैश्विक परिघटना है। लेकिन भारत में यह सरकार बनने, बदलने का एक बड़ा हथियार तक है।
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर डील में गड़बड़ी की बात तब पुख्ता हुई जब 2012 में इटली की खुफिया एजेंसी ने गुइडो राल्फ हाश्के को स्विटजरलैंड में गिरफ्तार किया गया। उस पर आरोप था कि उसे अगस्ता के लिए डील हासिल करने के बदले  51 मिलियन यूरो मिले है। इसके बाद फरवरी 2013 इटली की कंपनी फिनमेकैनिका के सीईओ और चेयरमैन गुइसिप्पी ओर्सी को गिरफ्तार किया गया। इन पर 360 करोड़ रुपये बिचौलियों के बीच बांटने का आरोप था जो अगस्ता के हक में डील को करवाने के लिए बांट गये थे। दरअसल 1999 में सबसे पहले सोवियत एमआई-8 हेलीकाप्टरों को हटाकर नए हेलीकाप्टर खरीदने की बात की गयी थी।  सोवियत हेलीकाप्टरों को रात में उडाने में दिक्कत होती और उनकी उडान की उंचाई भी बहुत कम होती थी। इस रेस में अगस्ता वेस्टलैंड के ए डब्ल्यू-101 हेलीकाप्टर और अमरीकी कंपनी सिकोर्स्की के एस-92 सुपरहाक के बीच लडाई थी। 12 हेलीकाप्टरों की खेप में से आठ वीवीआईपी मूवमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाना था।
इन गड़बड़ियो के उजागर होने के बाद खरीद फरोख्त को भले ही मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में रद कर दिया गया हो उनके तीन हेलीकाप्टर भारत में आने के बाद सीज कर दिए गए हो। इस रक्षा सौदे की जांच के लिए सीबीआई लगा दी गयी हो पर इटली की मिलान कोर्ट ने जो खुलासे किए है उससे यह पता चलता है कि अगस्ता वेस्टलैंट कंपनी के प्रमुख ओर्सी और हेलीकाप्टर बनाने वाली कंपनी फिनमेकैनिका को रिश्वत देने तथा पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी को रिश्वत लेने का दोषी पाया है। फैसले में सिग्नोरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके सुरक्षा सलाहकार एम के नारायण सहित एपी का जिक्र है। भारतीय में एपी का पाठ अहमद पटेल और सिग्नोरा गांधी का पाठ सोनिया गांधी पढा जा रहा है।
यूपी सरकार ने भले ही इस डील पर विराम लगा दिया गया हो पर डील को लेकर हो रहे खुलासे कई ऐसे चौकाने वाले सत्य उद्घाटित करते हैं जिससे यह भरोसा होना आसान हो जाता है कि हमारी व्यवस्था के चारो खंभों में भ्रष्टाचार का दीमक बुरी तरह घर कर गया है। क्योंकि जिस तरह बचाव में खडे कांग्रेसी तन कर इस सौदे के रद करने और भुगतान किए गये 1600  करोड़ से ज्यादा सीज करने की बात कहकर सौदे की पारदर्शिता पर अपनी पीठ थपथपाते नज़र आ रहे हैं वहीं इस पूरे मामले का रहस्योद्घाटन करने वाले भाजपा सांसद सुब्रह्मणयम स्वामी यह कहते हों कि 45 करोड़ रुपये सौदे के लिए माहौल बनाने के वास्ते मीडिया के लोगों को भी दिया गया। उनके इस दावे में बहुत हद तक इस डील को अपने पक्ष मे के लिए क्रिस्टिएन मिशेल नाम के ब्रिटिश नागरिक की भूमिका बल देती है। इस डील के लिए अगस्ता ने उसका उपयोग किया। वह भारतीय रक्षा  क्षेत्र में पिछले की साल से सक्रिय है। उसे भारतीय मिडिया को मैनेज करने के लिए 51 मिलियन यूरो करीब 45 करोड़ रुपये दिए गए। हालांकि इस सत्य से पर्दा उठने के बाद मीडिया में बेचैनी लाजमी है। पर नीरा राडिया कांड सुब्रह्मण्यम स्वामी के बयान यह बताने के पर्याप्त हैं कि मीडिया ने अपनी भूमिका लिखने और दिखने से अलग तमाम जगहों पर तय कर ली है।  मीडिया में आचार संहिता अब अंदर से नहीं आ सकती है। उसे बाहर से कठोरता पूर्वक लागू ही करना होगा। यह तब और पुष्ट हो जाता है जब देश से पलायन कर कटघरे में खड़े विजय माल्या ने 10 मार्च को यह ट्वीट करते हों कि मीडिया हाउस के बड़े बड़े संपादकों मालिकों यह मेरी की सहायता नहीं भूलनी चाहिए चाहे वह मदद हो, उपकार हो या फिर रुकने आदि की व्यवस्था। माल्या ने ट्वीट में यह सवाल भी उठाया कि क्या मीडिया अब टीआरपी के लिए झूठ भी बोलेगा।

इस पूरे प्रकरण में भारत के पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी को अभियुक्त बनाया जा रहा हो पर इसकी परत दर परत पलटें तो यह चौंकाने वाला तथ्य हाथ लगता है कि वर्ष 2006 में जो दूसरी बार हेलीकाप्टर खरीद के लिए जो टेंडर आमंत्रित किए गये थे उसमें हेलीकाप्टर के उडने की उंचाई 4500 मीटर तय की गयी जबकि 2005 के टेंडर में यह उंचाई 6000 मीटर थी। त्यागी पर इस बदलाव का ठीकरा फोड़ा जा रहा है पर इटली की कोर्ट ने अपने फैसले में त्यागी को इस बदलाव के लिए जिम्मेदार नहीं माना है। उसने अपनी जांच में पाया कि यह बदलाव त्यागी के एयर चीफ मार्शल बनने से ऐन पहले प्रधानमंत्री कार्यालय के एक पत्र पर किया गया है। त्यागी को अभियुक्त इसलिए बनाया गया है क्योंकि पैसा उनके परिजनों संजीव, राजीव और संदीप त्यागी के जरिए पहुंचाया गया। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर इस सौदे को लेकर कांग्रेस को घेर रहे लोगों की नजर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक क्यों नहीं जा रही है। अगर उनके कार्यालय द्वारा हेलीकाप्टर के उड़ने की उंचाई को कम कर अगस्ता वेस्टलैंड को टेंडर में क्वालीफाई कराने का मार्ग प्रशस्त किया गया वह भी  तब जबकि अमरीकी कंपनी सिकोर्स्की के एस-92 सुपरहाक हेलीकाप्टर ज्यादातर मायनों में अगस्ता से बेहतर साबित हो रहा था। मसलन सिकोर्स्की आयल एंड गैस दोनों पर चल सकता है। जबकि अगस्ता के 101 हेलीकाप्टर में यह सुविधा नहीं है। सिकोर्स्की की कीमत 17.7 मिलियन डालर है जबकि अगस्ता की 18.2 मिलियन डालर। उसकी क्रूज स्पीड 151 नाट्स है जबकि अगस्ता की 150 नाट्स। इसकी अल्टीट्यूड सीलिंग 6500 है जबकि अगस्ता की कहीं कम है। यह जरुर है कि अगस्ता में पैसेंजर कैपेसिटी 30 की है जबकि सिकिर्स्की की महज 18 लोगों को एक बार में यात्रा कर सकता है। इस सबके के बावजूद यह भी एक सच है कि डील के दौरान ही त्यागी अपनी पत्नी के साथ मिलान गये वहां के महंगे होटल में खाना खाया और वहां के विश्व प्रसिद्ध ओपरा का लुत्फ भी अगस्ता के पैसों से उठाया था।
इसी डील में दिल्ली में रहनेवाले वकील गौतम खेतान को ईडी ने 23 सितंबर 2014 को गिरफ्तार किया था. उस पर अगस्ता वेस्टलैंड डील में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप था. खेतान का नाम पनामा पेपर लीक्स में भी था. ईडी के मुताबिक खेतान चंडीगढ़ स्थित एक कंपनी एयरोमैट्रिक्स में शामिल हैं. इस कंपनी ने अगस्ता वेस्टलैंड डील में बड़ी रकम की हेरफेर की थी. सितंबर 2014 में इसे फिर गिरफ्तार किया गया था, लेकिन नौ जनवरी 2015 को यह जमानत पर रिहा हो गया. पुलिस को इसके घर से मिली ब्लू डायरी में घूस की रकम बांटे जाने की जानकारी मिली. डायरी में दर्ज कुछ कोडवर्ड को ईडी ने सुलझाने का भी दावा किया है
आमतौर पर रक्षा खरीद सौदों में गुणवत्ता का हमेशा ख्याल रखा जाता है। बोफोर्स तोप के मामले में यह बात साबित भी हुई। कारगिल युद्ध में बोफोर्स की तोपों ने अपनी गुणवत्ता साबित की थी। लेकिन अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में भले ही खरीद को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका हो पर गुणवत्ता को नज़रअंदाज किया गया यह टेंडर में भाग लेने वाली दोनो कंपनियो सिकोर्स्की और अगस्ता के हेलीकाप्टर से परखी जा सकती है। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का यह आरोप मौजूं हो जाता है कि आखिर गुणवत्ता की उपेक्षा क्यों की गई, खऱीद के शर्तो में बदलाव क्यों किए गये।
अगस्ता खरीद मामले की जांच कर रही इटली की खुफिया एजेंसी ने स्विटजर लैंड की यात्रा कर रहे  ग्युडो राल्फ हैश्के और कार्लोस गेरोसा नाम के दो बिचौलियों की बातचीत की रिकार्डिंग की थी जिसमें हैश्के ने भारत में दिए जाने वाले रिश्वत के पैसों को ट्यूनिशा और मारिशस के रास्ते भेजने का प्लान बनाया था जिससे पैसा कहां से आया यह पता करना भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए मश्किल हो। इतना ही नहीं हैश्के ने भारतीय खुफिया एजेंसियों को मूर्ख और मंदबुद्धि बताते हुए मोरोन का विशेषण दिया था। इस मामले की जांच कर रही सीबीआई की तफ्तीश पर गौर करें तो लगता है कि वह हैश्के के बयान पर खरी उतरने की होड़ में है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी भारतीय जनमानस को मोरोन मान चुके हैं।


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Dr. Yogesh mishr

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