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मन मैला और मंदिर धोए...

Dr. Yogesh mishr
Published on: 31 Jan 2016 1:40 PM IST
भारत इकलौता ऐसा देश है जहां परमसत्ता के रूप में देवियों के स्वरुप में महिलाएं भी हैं। जहां देवताओं को भी सारे अस्त्र-शस्त्र आदि शक्ति रुपी नारी शक्ति से प्राप्त होते हैं। जिस समाज में कहा जता हो कि- बिन घरनी घर भूत के डेरा। जिस देश की संस्कृति में यह धारणा दृढ़ हो कि – यत्रः नार्यन्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्रः देवता। उस देश काल समाज और संस्कृति में महिला की पहुंच देवता तक न हो। महिला को वंचित वर्ग में ररखी जाय और यह भी धर्म के क्षेत्र में हो तो देश के संस्कृति और समाज को प्रगतिगामी नहीं कहा जा सकता।
5000 वर्ष साल का इतिहास का दावा करने वाली सभ्यता और संस्कृति का धर्म दुनिया में सबसे पुराना है। सारे धर्म इसके बाद आए। बावजूद इसके हमने धर्म के क्षेत्र में भी प्रगति के वे सोपान तय नहीं किए जो हमें प्राचीन और सार्वभौम होने का दावे को मजबूत बना सके। पिछले साल नवंबर महीने में शनि शिंगणापुर मंदिर के चबूतरे पर एक महिला के प्रवेश और तेल चढाने पर उपजे विवाद ने धर्म के उन तंतुओं को बुरी तरह आहत किया है जो हमें हमारे धर्म के प्रति गौरवांवित होने का अहसास कराते हैं। हिंदू धर्म के बारे में यह धारणा है कि यह विरोध का समुच्च्य है। यहां विशिष्टाद्वैत और अद्वैत समांतर ढंग से चलते हैं। यहां परंपरा और पोथी दोनों को जगह है। यहां ‘एकोंहम् द्वयम् नास्ति’ और ‘ए
कोहम्
 बहुस्याम्’  जैसे सिद्धांत दोनो ही स्वीकार्य हैं। जहां कण-कण में भगवान माना गया है, आत्मा परमात्मा का अंश है तो क्या वहां किसी भी स्त्री को उसके आराध्य की पूजा करने से रोकना आत्मा के परमात्मा से सम्पर्क तोड़ने जैसा अधार्मिक कृत्य नहीं कहा जाना चाहिए।
विकास और समृद्धि हमें सिर्फ जीवन शैली बदलने की नसीहत नहीं देते वे निरंतर नई परंपराएं गढ़ने और उन्हें स्वीकार करने का देश काल परिस्थितियों के लिहाज से अवसर उत्पन्न करने की बात भी समझाते हैं। बावजूद इसके हम मध्ययुगीन मानसिकता में जीने को अपनी परंपरा मान रहे हों महिलाओं के शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश के अधिकार से बड़ा परंपरा से बड़ा बता रहे हों तो यह लीक पीटने से बड़ा कुछ नहीं है। यह आम धारणा है कि शनि भगवान की पूजा महिलाओं को नहीं करनी चाहिए। बहुत पहले तक यह धारणा भी प्रचलित थी राम भक्त हनुमान जी और शिवलिंग की पूजा महिला को नहीं करनी चाहिए पर बिना किसी बड़े विद्रोह के ये मिथ टूटे। महिलाएं हनुमान जी की भी पूजा कर रही हैं और शिवलिंग की भी। कितना अच्छा होता कि शनि शिंगणापुर मंदिर का यह मिथ भी चुपके से टूट जाता क्योंकि देश भर के अन्य मंदिरों में अब महिलाएं शनि की पूजा करने लगी हैं। जब शनि के ही दूसरे मंदिरों में महिलाओं के जाने से पवित्रता भंग होने का खतरा नहीं होता है तो शनि शिंगणापुर मे क्यों और कैसे?
शास्त्र के मुताबिक शनि की उन्ही मंदिरों में पूजा होनी चाहिए जो नदी या जलाशय के किनारे हो और जिनके समीप पीपल का पेड़ हो। शनि सूर्य के पुत्र माने जाते है। पिता-पुत्र में रिश्ते अच्छे नहीं है। इसलिए जब तक सूर्य आकाश में देदीप्यमान रहते हैं तब तक शनि की पूजा नहीं की जाती। पंरपरा बनाम अधिकार के इस पूरी लडाई में सिर्फ दो महीने बाद एक सुखद मोड़ यह आया कि अंनीता चंद्रहास शेटे को मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया। मंदिर के 400 साल के इतिहास में ये पहला मौका था जब 6 जनवरी को अनिता समेत दो महिलाओं को ट्रस्ट का मेंबर बनाया गया था। मंदिर प्रबंधन ने 11 ट्रस्टियों में अनिता चंद्रहास शेटे के साथ ही शालिनी लांडे को भी जगह दी थी। तब उम्मीद की जा रही थी कि परंपरा बनाम अधिकार की लडाई में अधिकार जीत जाएगा। क्योंकि अधिकार देने और मांगने वाली दोनों महिलाएँ थी पर इनके होने के बाद भी अधिकार का पराजित होना दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा।
अधिकार और परंपरा की यह लड़ाई ऐसा नहीं कि सिर्फ हिंदू धर्म में ही है। जिस समय अधिकार की यह लडाई  शिंगणापुर में महिलाएं लड़ रही थी उसी समय महाराष्ट्र के मुंबई की दरगाह हाजी अली में प्रवेश को लेकर भी अधिकार बनाम परंपरा की यह जंग चल रही थी। मुस्लिम महिलाओं ने भी हाजी अली की दरगाह में अनुमति के लिए इस बाबत विरोध प्रदर्शन भी किया । विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहीं इस्लामिक स्टडीज की प्रोफेसर जीनत शौकत अली के मुताबिक महिलाओं पर बंधन कोई धर्म नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक समाज लगाता है। मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाला संगठन हाजी अली दरगाह के ट्रस्टी के साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। भारतीय मुस्लिम महिला ओन्दोलन (बीएमएमए) ने दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है. संगठन का कहना है कि महिलाओं को दरगाह में जाने से रोकना असंवैधानिक है। वहीं दरगाह के ट्रस्टी कहते हैं कि चूंकि यह एक सूफी संत की कब्र है इसलिए यहां महिलाओं को एंट्री देना एक गंभीर गुनाह होगा। ट्रस्ट का कहना है कि इस्लाम के नियमों के मुताबिक महिलाओं को पुरुष संतों के करीब नहीं जाना चाहिए। इतना ही नहीं इस विवाद के बाद अब देवबंद के उलेमा ने तो यहां तक कह दिया है कि सिर्फ हाजी अली ही नहीं मुस्लिम महिलाओ को किसी भी मजार के पास नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह इस्लाम के खिलाफ है।
कहीं धर्म के नाम पर, कहीं परंपरा के नाम पर महिलाओं के सामने खड़े किए जा रहे यह अवरोध हमारे प्रगति के दावे को कटघरे में खड़ा करते है क्योंकि केरल के सबरीमाला मंदिर में भी मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर भी प्रतिबंध है। तकरीबन 1500 साल पुराने इस मंदिर में प्रवेश के खिलाफ महिलाओं के अदालत का दरवाजा खटखटा रखा है। शनि शिंगणापुर के लिए महिलाएं राज्य सरकार से प्रवेश की अनुमति लेकर भी परंपरा के सामने अधिकार को पराजित होते देख रही हैं।
शनिमंदिर तो सिर्फ पांच सौ साल पुराना है। सबरीमाल तो इससे 1000 साल पुराना है मतलब साफ है कि तकरीबन 1500 साल से हमारी दृष्टि में कोई बदलाव नहीं हुआ है। परंपराएं हमारे ऊपर बेताल की तरह लदी हुई हैं लेकिन हकीकत यह है कि हम यह चाहते हैं कि परंपराएं दूसरे पालन करें हम पर कोई बंधन न हो। इन सब विषंगतियों के बीच उत्तराखंड से इसी दौर में एक अच्छी और राहत देने वाली खबर आई कि वहां के गढ़वाल के जौनसार के बावर क्षेत्र स्थित प्रसिद्ध परशुराम मंदिर में महिलाओँ के प्रवेश पर 400 साल से लगी पाबंदी हटा ली गयी है। वहां के प्रबंधन ने इस पाबंदी को हटाते हुए जो कुछ कहा है वह शनिशिंगणापुर और सबरीमाला मंदिर प्रबंधकों के लिए नसीहत भी है और नजीर भी। परशुराम मंदिर क प्रबंधन ने यह एलान किया कि हम तरक्की कर रहे हैं, शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है ऐसे में बदले हुए वक्त के साथ सबको बदलना चाहिए इसलिए मंदिर में किसी के प्रवेश पर पाबंदी नहीं होगी। सिर्फ इसका ही अर्थ ग्रहण कर लिया जाय तो अधिकार और परंपरा की लड़ाई में पराजय किसी की नहीं होगी। नई परंपराएं बन जाएंगे और अधिकार जीत जाएगा।
ऐसा नहीं कर अपने जिद पर अड़े लोग समाज को ही नहीं धर्म को भी बांटने का काम कर रहे हैं। ऐसे ही तमाम लोगों की गलती से दुनिया का सबसे पुराना हिंदू धर्म तीसरे नंबर का धर्म है। इससे पहले ईसाइयत और इस्लाम हैं। इसी तरह की जिद के चलते धर्म परिवर्तन की शुरुआत हुई। इसी तरह की जिद के चलते हिंदू धर्म लोग बौद्ध और जैन बन गए। बाद में हमने अपना मुंह छिपाने के लिए हिंदू धर्म की एक शाखा स्वीकार कर लिया। यह तर्क हमें आस्था के लिए आधार तो देता है पर गर्वोक्ति के लिए ठोस जमीन मुहैया नहीं करता।
अगर कोई धर्म यह कहे कि गंगा स्नान किया हुआ कोई ब्राह्मण मंदिर में प्रवेश कर सकता है और गंगा स्नान किया हुआ दलित नहीं तो उस धर्म की गति का थमना लाजमी हो जाता है। अगर कोई धर्म यह कहे कि पुरुष पवित्र होता है स्त्री अपवित्र तो भी ऐसा ही है। जिसे अपवित्रता कहा जाता है वह एक शारीरिक रासायनिक प्रक्रिया है। पवित्रता अपवित्रता मन का बोध नहीं होता तो रैदास को रामानंद नहीं मिलते। कबीर कालजयी नहीं होते। धर्म के सारे सवालों पर मन को धोने की जरुरत है।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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