×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

मीडिया से मिशिगन तक हैशटैग मोदी...

Dr. Yogesh mishr
Published on: 20 March 2016 10:19 AM IST
अमरीकी विद्वान विल्बर स्श्रैम ने मीडिया को मैजिक मल्टीप्लायर कहा है। विल्बर पश्चिमी देशों में मीडिया के जाने माने हस्ताक्षर हैं आज भी इनकी किताब ‘मास मीडिया एंड नेशनल डेवलपमेंट-द रोल आफ इन्फार्मेशन इन डेवलपिंग कंट्रीज’ में साफ किया गया है कि मीडिया किसी भी घटना, परिघटना अथवा विचार को द्विगुणित अथवा बहुगुणित कर सकता है। उनकी लोकप्रिय किताब में यह स्थापना की गयी है मीडिया जादूगर नहीं है। जादूगर होते हैं राजनेता, नौकरशाह और घटनाएं लेकिन भारत में इस पश्चिमी विचारक के इस सिद्धांत को वैश्वीकरण के दौर के बाद तेज झटका लगा। भारतीय मीडिया जादूगर बन गया। उसने जादू को द्विगुणित और बहुगुणित करने के काम को हाशिये पर रख दिया। जब मीडिया जादूगर बना तो उसने छवियां गढने की जिम्मेदारी ओढ़ ली। छवि को प्रचारित प्रसारित करने की जिम्मेदारी से इतर जब से भारतीय मीडिया ने यह भूमिका अपनायी तब से मीडिया को लेकर न केवल सवाल उठने लगे बल्कि मीडिया के अपने अपने नेता, अपने-अपने संत, अपने अपने विचार और अपने अपने लोग भी बन गये। गढे गये।
मीडिया की इस खेमेबाजी की नैतिकता के निर्वाह का सबसे अधिक शिकार नरेंद्र मोदी हुए हैं। पूरे तकरीबन 13 साल के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मीडिया ट्रायल झेला। हद तो यह हो गयी थी कि नरेंद्र मोदी के पक्ष में बोलना सांप्रदायिकता थी और विपक्ष में खड़ा होना धर्मनिरपेक्षता। इन दोनों शब्दों के मायने बदल दिए गए थे। दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र वाले देश में इन हालातों से रुबरू होते हुए निरंतर जनसमर्थन हासिल करके प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले नरेंद्र मोदी का पीछा आज भी पुरानी स्थितियों ने नहीं छोडा है। शायद यही वजह रही होगी कि मोदी ने अपने प्रधानमंत्री बनने के अभियान में उस पारंपरिक मीडिया को किनारे रखा जो विल्बर के निष्कर्षों को अलग झटक कर खड़ा हो गया था।
वास्तविक और आभासी मीडिया का असली युद्ध भारत में नरेंद्र मोदी के इर्द गिर्द ही लड़ा गया। वास्तविक अथवा पारंपरिक मीडिया से परहेज की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने अपने दिल्ली फतेह यात्रा में की। मोदी उस आभासी मीडिया को भारतीय जनमानस के केंद्र में ला रहे थे जो संपादकीय कतर-ब्यौंत से अलग होने की वजह से परंपरिक मीडिया के कटघरे में खड़ा था। नरेंद्र मोदी जिस तरह पारंपरिक मीडिया- टीवी चैनल, अखबार , पत्र पत्रिका के निशाने पर थे उस समय उनके पास दो ही विकल्प थे। एक, वह मीडिया के इस संजाल के सामने आत्मसमर्पण कर देते। दूसरा, वैकल्पिक मीडिया की ओर कदम बढाते। जो पहली स्थिति थी उसमें नरेंद्र मोदी का जाना इसलिए उचित नहीं था क्योंकि उनका समर्पण खांचों में बंटे मीडिया को रास नहीं आता। समर्पण करने के बाद भी नरेंद्र मोदी को तमाम अस्पृश्य विशेषणों से नवाजने का सिलसिला रुकता नहीं क्योंकि नरेंद्र मोदी सिर्फ खबर नहीं थे। वह अमरीकी विद्वान की धारणा को झटक देने का माध्यम भी बन गये थे। शायद यही वजह है कि मोदी ने हालात को ठीक से समझते हुए वैकल्पिक मीडिया की ओर अपने हाथ बढ़ा दिए। मोदी पारंपरिक मिडिया से ज्यादा सोशल मीडिया पर दिखने लगे।
आभासी मीडिया को सोशल मीडिया का नाम दिया गया तो यह बात प्रहसन की भले थी पर बहुत ताकतवर ढंग से रखी गयी कि क्या पारंपरिक मीडिया अनसोशल, एंटीसोशल है। भले ही इस सवाल का जवाब अभी तक न आया हो पर यह एक कठोर सच्चाई है कि सोशल मीडिया आज की तारीख में छविया गढने की पारंपरिक मीडिया के दावे को चुनौती देता नज़र आ रहा है। यही वजह है कि भारत में 691262 वेबसाइट हैं। भारत में 2.8मिलियन गुगल प्लस के विजिटर है जो दुनिया में नंबर दो पर है। जीमेल अकाउंट के 62 फीसदी यूजर्स भारतीय हैं। किसी भी देश से ज्यादा। दुनिया में दूसरे सबसे ज्यादा 125 मिलियन फेसबुक यूजर्स भारतीय हैं।इसके साथ ही देश में ट्विटर इस्तेमाल करने की संख्या करीब 18 मिलियन है जो 2019 बढ़ कर 23.2 मिलियन हो जाएगी।
सोशल मीडिया की इसी ताकत का अंदाजा लगाकर नरेंद्र मोदी ने अपने दिल्ली फतेह अभियान में पारंपरिक मीडिया के समाने नई चुनौतियां पेश की थीं। यही वजह है पाकिस्तान के साथ बर्फ पिघलाने के लिए उन्होंने ट्वीट किया। परंपरागत तौर पर प्रेस कांफ्रेंस नहीं। इस साथ ही यह पहली बार था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी क्रिकेट टीम को शुभकामना का ट्वीट किया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक पाकिस्तान जाने की ब्रेकिंग न्यूज भी ट्विटर पर ही दी थी। उन्होंने व्हाइट हाउस को अपनी यात्रा के बाद धन्यवाद देने के लिए भी ट्विटर को ही चुना था। मोदी के सोशल मीडिया पर भरोसे को इसी बात से समझा जा सकता है कि मोदी ने अपनी सरकार के पहले साल पूर्ण होने पर कोई परंपरागत प्रेस कांफ्रेंस नहीं की, बस ट्वीट किया।
मोदी और उनकी टीम ट्विटर एक एक ट्वीट पर कितना सोचती है इसकी बानगी लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद16 मई 2014 को मिली जब मोदी ने अपने ट्वीट पर लिखा “इंडिया हैज वन”। गौरतलब है कि यह अब तक के ट्वीटर इतिहास में भारत का सबसे ज्यादा रीट्वीटेड मैसेज है।  यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोदी सरकार के आने के बाद दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत में अब नीति निर्धारण और उसकी घोषणा अब कई मायनों में 140 शब्दो के ट्विटर बाक्स में सबसे पहले होने लगी है। मोदी अपनी राजनैतिक सफलता और सरकारी योजनाओं के लिए भी ट्विटर का  बखूबी इस्तेमाल करते हैं। चुनाव के दौरान सेल्फी विद मोदी और बेटी बचाओ सेल्फी विद डाटर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इतना ही नहीं मोदी दुनिया भर के सोशल मीडिया में सक्रिय है। फेसबुक, पिनटरेस्ट और यूट्यूब के साथ ही मोदी ने चीन की यात्रा से पहले ही वहां के सबसे बड़े सोशल मीडिया वीबो में भी मुकाम हासिल कर लिया। मोदी के चीन के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्म में वीबो में मोदी के अकाउंट खोलने के 24 घंटे के भीतर ही 33000 फालोवर मिल गये थे। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे को चुनाव जीतने पर मोदी ने ट्विटर पर बधाई दी थी। शिंजो जो पूरी दुनिया में सिर्फ मोदी जी समेत 6 लोगों को फालो करते हैं ने उनका जवाब भी ट्विटर पर ही दिया था।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट पर बाकयदा मिशिगन स्टेट यूनीवर्सिटी में एक शोध किया गया है। स्कूल आफ इन्फार्मेशन के सहायक अध्यापक जोयोजीत पाल नामक शोधकर्ता के नेतृत्व मे एक टीम ने पांच साल में मोदी के 6000 से ट्वीट पर शोध किया। इस शोध का परिणाम है-‘ ट्वीट मैसेज पर सोच-समझ कर बनाए गये मैसेज ने एक सशक्त आनलाइन ब्रांड के तौर पर स्थापित किया है। ऐसा ब्रांड जिसे अपने कठिन अतीत से निकल कर एक टेक्नोसैवी ऐसे विश्व नेता के तौर पर स्थापित होने में कोई दिक्कत नही हुई ,जो अपनी जनता से सीधे बात कर करता है।’ मोदी को देश के इतिहास में  सबसे ज्यादा संवाद स्थापित करने वाले वाले प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित किए जाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है। यह तब और हैरत की बात है जब मोदी ने परंपरागत मीडिया को एक तरह से किनारे कर दिया है।



    -t
  • मोदी के 2000-2014 के पांच साल के ट्वीट को चार चरणों में बांट कर यह शोध अध्ययन किया गया। ये चार चरण थे शुरुआती ट्वीट्स, गुजरात चुनाव के दौरान ट्वीट्स, आमचुनाव और प्रधानमंत्री के तौर पर किए गये ट्वीट्स। इस अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ कि मोदी अपने ट्वीटर अकाउंट को एक राजनैतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते है। वो विरोधियों के हमले से निपटने के लिए कई बार अपने ट्विटर पर कई ऐसी तस्वीरें डालते हैं जो मुद्दे को हल्का करती हैं। इस अध्ययन के मुताबिक मोदी ट्विटर और सोशल मीडिया पर ज्यादा भरोसा कर एक तरफ तो परंपरागत मीडिया की निर्भरता कम करते है वहीं दूसरी ओर अपने तरफ से ट्वीट कर वो किसी गलतबयानी, गलत समझे जाने या समझाये जाने जैसी भारतीय राजनीति की इस पुरानी बीमारी का इलाज कर अपनी सकारात्म छवि में किसी तरह की सेंध नहीं लगने देते हैं। मोदी के ट्विटर प्रयोग का ही असर था कि इस बार चुनाव में पार्टी विद डिफरेंस भाजपा की चर्चा मोदी की चर्चा लोकसभा चुनाव में ज्यादा थी। वो पार्टी जहां पर व्यक्ति छोटा और पार्टी बड़ी होती है।


  • -t
  • दरअसल 18.7 मिलियन फालोअर्स के साथ मोदी दुनिया में दूसरे सबसे बड़े नेता हैं जिनके फालोअर्स की इतनी संख्या है। सिर्फ ओबामा ही मोदी से आगे हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यिप इरगोगन के 6.3 मिलियन फालोअर्स, पोप फ्रांसिस के 6 मिलियन फालोअर्स हैं। चीन के राष्ट्रपति का कोई ट्विटर अकाउंट नहीं है वहीं चीनी माइक्रोब्लागिंग साइट वीबो पर भी उनका कोई आधिकारिक अकाउंट नहीं है। मोदी ट्विटर पर पहले ऐसे राजनैतिक नेता हैं जो ट्विटर मिरर का इस्तेमाल करते है। आम तौर पर मोदी ट्विटर मिरर हालीवुड सेलिब्रिटी इस्तेमाल करते हैं। इसका इस्तेमाल कर आटोग्राफ वाली सेल्फी भेजी जाती है।


  • -t
  • मोदी की इस ट्वीट प्रक्रिया को चुस्त दुरुस्त और धारदार बनाए रखने के लिए उनकी 20 लोगों की युवक युवतियों की टीम है जो 24 घंटे कीबोर्ड लैपटाप पर उनकी प्रेस रिलीज और स्पीच को ट्वीट में बदलती हैं। मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान मोदी इन फ्रांस हैशटैग बनाया गया जो काफी सफल हुआ। इसके अलावा उनके समर्थकों की करोड़ों की तादाद इस काम को आसान करती है। इससे न सिर्फ ट्वीट बनाए जाते हैं बल्कि फीडबैक लेकर उसे लगातार सुधारा जाता है। जैसा कि भूमि अधिग्रहण बिल के दौरान किया गया। शुरुआती विफलता का विश्लेषण कर सोशल मीडिया पर ब्रांडिंग सुधारी गयी और विरोधियों को जवाब दिया गया।




सोशल मीडिया का निरंतर बढ़ रहा उपयोग पारंपरिक मीडिया के लोगों को भले ही अखर रहा हो पर पैठ और खर्च के लिहाज से उसकी गति को रोकपाना संभव नहीं है। क्योंकि वह छवियों को गढने के दंभ को तोड़ता है और प्रसार और पहुंच  के बड़े बडे दावे को पलीता लगाता है। मोदी अभी भी पारंपरिक मीडिया के लिए उस तरह उस तरह प्रिय नहीं हैं जैसे पहले कई प्रधानमंत्री रहे हैं। दूध का जला छांछ फूंक-फूंक कर पीता है, यही वजह है कि नरेंद्र मोदी निरंतर इस कोशिश में रहते हैं कि पारंपरिक मीडिया सोशल मीडिया के पीछे भागता


\
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

Next Story