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सिर्फ देश ही नहीं बदल रहा है...
जितना बड़ा जनसमर्थन होता है उससे बड़ी हो जाती हैं जनआकांक्षाएं। नरेंद्र मोदी के कामकाज का विश्लेषण करते समय इसका ख्याल रखना जरुरी है क्योंकि मोदी को सिर्फ असीमित जनआकांक्षाएं ही नहीं मिली हैं बल्कि उन्हें अनन्त वैविध्यपूर्ण जनआकांक्षाओँ को पूरा करना है। यह काम असंभव तो नहीं, पर मुश्किल जरुर है। अपनी जिंदगी में तमाम असंभव काम को संभव करने वाले नरेंद्र दामोदरदास मोदी खुद भी स्वभाव से अधीर हैं। ऐसे में अगर उनकी सरकार तय लक्ष्य हासिल नहीं करती है तो उनकी भी दिक्कत समझी जानी चाहिए। मोदी हमेशा एक साथ कई फ्रंट पर लड़ने वाले योद्धा हैं, लेकिन यह उनके लिए तसल्ली बक्श बात है कि विपक्ष का फ्रंट शून्य है। परंतु शून्य विपक्ष विरोध के लिए विरोध पर आमादा है।
ऐसे में नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों की फेहरिस्त बनाई जाय तो उनका विरोधी भी उसमें कुछ दर्ज किए बिना नहीं रह सकता। क्योंकि देश ही नहीं दुनिया में भी मोदी ने भारत का जो परचम फहराया है वह किसी देश के लिए गौरव का सबब हो सकता है। मोदी अब तक 44 देशों की यात्रा कर चुके हैं। विदेश में मोदी ने ढाई करोड़ भारतीयों का दिल जीता है। उन्होंने अफगानिस्तान में पाक समर्थित समूहों पर लगाम लगाने, नेपाल में भारत विरोधी शक्तियों को नियंत्रित करने की मुहिम में अपने कदम काफी आगे बढ़ा दिए हैं। मोदी जब सत्तारुढ हुए तो देश की जनता भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही थी रोज नए नए खुलने वाले भ्रष्टाचार लाख करोड़ रुपये से नीचे नहीं होते थे। मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन का अहम तोहफा दिया है। क्रोनी कैपिटलिज्म में गिरावट दर्ज हुई है। सीधे-सीधे सच्चे भारतीय की दिक्कत यह थी कि उसके करीब का आदमी बिना कुछ किए साउथ और नार्थ ब्लाक से निकलते ही किसी पांच सितारा होटल में करोड़ों का स्वामी बन बैठता था। रातोंरात बिना कुछ करने वालों के आर्थिक साम्राज्य ऐवरेस्ट बन रहे थे। मोदी ने कम से कम इन्हें देखकर संत्रास की जिंदगी जीने वाले सीधे-साधे इन भारतीयों को सुकून जरुर पहुंचाया है। देश में अभी सिर्फ 56 फीसदी राशन कार्डों का सत्यापन हुआ है इनमें 1 करोड़ 62 लाख फर्जी राशन कार्ड फर्जी पाए गये हैं। जनता को मिलने वाली 10 हजार करोड़ की सब्सिडी जो बिचौलियों के हाथ जाती थी उसे बचाने में मोदी कामयाब हुए हैं। मोदी ने अपने लाल किले में पहले भाषण में कहा था कि प्रधान सेवक है। उनका काम जनता के धन की पाई पाई की हिफाजत करना है। इस दिशा में मोदी के कदम सार्थक कहे जाएगे।
उनके प्रचार गीत मेरा देश बदल रहा है आगे बढ रहा है को महज रस्मी मान भी लें तो यह कैसे भूला जा सकता है कि दो किलोमीटर रोज बनने वाली सड़क अब तीस किलोमीटर रोज का हो गया है। 4341 मेगावाट की पनबिजली परियोजनाएं शुरु हुई हैं। बिजली की कमी का आंकडा अब 4.2 फीसदी की जगह आधा यानी 2.1 फीसदी रह गया है। बीते चार सालों में जितना कोयला उत्पादित नहीं हुआ उतना अकेले पिछले साल कोयले का उत्पादन हुआ यह आकंडा 3.1 करोड़ टन है। विदेशी निवेश हासिल करने में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और जीवन ज्योति योजना में 12.4 करोड़ लोगों ने पंजीकरण करवाया है। देश भर में जेनरिक दवाओं के 3000 स्टोर खोलने का भी काम जन औषधि कार्यक्रम के तहत चल रहा है। जनधन योजना ने भी नायाब कीर्तिमान रचे हैं। एलईडी बल्बों की बिक्री जो छह लाख सालाना थी वह छह लाख रोजाना हो गयी। इन बल्बों से बचने वाली बिजली ने देश को एक घंटे अतिरिक्त बिजली जलाने का मौका दिया है। देश में 16.5 करोड़ लोग एलपीजी उपभोक्ता हैं। इनमें 15 करोड़ लोग सब्सिडी पाते हैं। मोदी के आग्रह ने एक करोड़ 13 लाख लोगों को सब्सिडी छोडने को तैयार किया वहीं इसका लाभ मोदी सरकार ने करीब एक करोड़ नए कनेक्शन बांटकर गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दिया। नरेंद्र मोदी ने योजनाओं को परिणामोन्मुख बनाने पर जोर दिया है, अधिकार पर सशक्तिकरण को तरजीह दी है।
सरकार जीडीपी की दर को संभालने में कामयाब रही। भारत में यह दर 7.6 फीसदी है जो वैश्विक आकंडों से ज्यादा है। पूंजीगत सामान क्षेत्र में घरेलू उत्पादन का हिस्सा बढ़ा है। बजट में किसान और गरीबों के प्रति जो नज़रिया अपनाया गया है वह अर्थव्यवस्था को विकास की नई गति देता है। यह जरुर है कि मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में खरी नहीं उतरी। बीजेपी ने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था पर बीते दो साल में 50 लाख लोग भी रोजगार नहीं पा सके। श्रम ब्यूरो के आंकडे बताते हैं अधिक श्रमिक उपयोग करने वाले महत्वपूर्ण 8 क्षेत्रो में रोजगार की दर गिरी है। उनकी सरकार कालेधन की वापसी नहीं करा पाई हो पर घरेलू मोर्चे पर कालेधन के सृजन के रास्ते रोक दिए है। सिर्फ भ्रष्टाचार रोककर 36 हजार करोड़ बचा लिए गये हैं।
क्या इसे मोदी के कामकाज की सकारात्मक परिणति नहीं मानी जानी चाहिए कि भाजपा कच्छ से लेकर कामरुप तक पहुंच गयी। हिंदी भाषी क्षेत्र से बाहर अपनी दखल दर्ज कराने में कामयाब हुई है। मोदी ने व्यक्ति केंद्रित कूटनीति को एक नई पहचान दी यह उनपर विरोधी आरोप चस्पा करते हैं। उन्हें व्यक्तिवादी कहा जाता है। पर मोदी के कामकाज में दूर-दूर तक कहीं यह परिलक्षित नहीं होता है क्योंकि मोदी ‘माई जीओवी डॉट इन’ पोर्टल पर लोगों को सहभागी बनाते हुए निरंतर नज़र आते हैं और यह आभासी दुनिया का सिर्फ आभास नहीं है। इस पोर्टल पर आए कई बेहतर सुझावों को अमली जामा भी पहनाया है। निमेष बंसल ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 15 हजार तक के मेडिकल बिलों के लिए कागजी खानापूर्ति खत्म करने की राय दी थी। पुणें की ऋचा अभयंकर ने आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को सहेजने का सुझाव दिया था। आगरा के जग्गी ने कहा था कि स्वच्छता अभियान से जुड़ने वाली संस्थाओं को कर में छूट दी जाए। चेन्नई की सुचित्रा राघवाचारी ने डिजिटल हेल्थ स्मार्ट कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की बात कही थी। मोदी ने इस सबको अमली जामा पहनाया है। इन लोगों के नाम भी इन योजनाओं के साथ नत्थी कर दिए। अभी तक सरकारें पूरी की पूरी तरह से वन-वे ट्राफिक रही है। लेकिन मोदी ने इसे टू-वे किया है। मन की बात के लिए तमाम लोगों के सुझाव मोदी ने कुबूल किए हैं उनका जिक्र भी किया है।
इस लिहाज से देखा जाय तो मोदी अपने नारे सबका साथ-सबका विकास पर अमल करते दिख रहे हैं। मोदी के विरोधी भी उनके बारे में यह कुबूल करते हैं कि वह बेहद परिश्रमी हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है इस कहावत को मोदी उलट नहीं देते। मोदी गुजरात में भी अकेले थे। दिल्ली की यात्रा में भी अकेले थे। दिल्ली के पड़ाव में भी अकेले हैं। उन्होंने अपने एकला चलो से भी सबक लिया है वह ज्यादा रचनात्मक हुए हैं।
अनंत अकांक्षाएं अगर मोदी के लेकर यदा-कदा किसी संशय का शिकार हो जाती हैं तो उसे अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में अपार जनसमर्थन अब तक ठगा गया है। वह 1984 में राजीव गांधी के निर्णायक जनादेश का समय हो या फिर 1977 में जनता लहर के प्रचंड बहुमत का वक्त रहा हो। दोनों समय पर जनता ठगी गयी। निःसंदेह उसे अपने निर्णय पर उसे पछतावा हुआ। तभी उसने स्पष्ट बहुमत का जनादेश सुनाना बंद कर दिया था। तभी वह नरेंद्र मोदी के प्रचंड बहुमत को बहुत नुक्ताचीनी के साथ जांच परख रही है। विपक्ष की भी व्याकुलता इस लिहाज से जायज कही जाएगी क्योंकि विपक्षी दलों के सिकुड़ने के मद्देनज़र मोदी ने बेमिसाल काम किया है।
मोदी चुनौतियों को हमेशा अवसर में बदलते हैं। सिकुड़ता विपक्ष जो चुनौतियां खड़ी कर रहा है अथवा मोदी को पथ से भटकाने के लिए छद्म राष्ट्रवाद का अभियान चलाया जा रहा हो इस सबपर कान देना उनके लिए जरुरी नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी न केवल खुद लोकप्रियता की निरंतर सीढियां चढ़ रहे हैं बल्कि उनके पार्टी के जनाधार का फलक भी व्यापक हो रहा है। मोदी को पांच साल का समय मिला है। वह जिस गति से चल रहे हैं उसके मद्देनज़र कहा जा सकता है विकास ही नहीं देश का आख्यान, वृतान्त, कथा और विवरण भी बदल रहे हैं। विपक्ष की परेशानी का सबब यही है। यही वजह है कि कभी अपने ही जीएसटी के सामने अवरोध खड़ा कर देता है,कभी अपने ही आधार सरीखी तमाम योजनाओँ को खारिज करता दिखता है। वह यह कहते भी नहीं थकता कि मोदी की तमाम योजनाएं उसके अपने कार्यकाल की हैं पर क्या यह मोदी के हिस्से नहीं जाना चाहिए कि ये योजनाएं जनता के दिलोदिमाग तक लाने वाले नरेंद्र मोदी ही हैं। मोदी जो विकास की इबारत लिख रहे हैं। सुशासन का ताना बाना बुन रहे हैं उसमें निःसंदेह एक आम, इमानदार और गरीब आदमी के लिए सुकून देने वाले क्षण। उसे दवाई, पढाई के लिए परमुखापेक्षी नहीं होना होगा। बिजली, सड़क, पानी जैसी बुनियादी जरुरतों से इस तबके को महरुम नहीं रहना होगा। यही मोदी की चुनौतियों को अवसर में बदलने की कला है। मोदी खास नहीं आम लोगों के लिए काम कर रहे है। ऐसे ही देश बदलता है।
ऐसे में नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों की फेहरिस्त बनाई जाय तो उनका विरोधी भी उसमें कुछ दर्ज किए बिना नहीं रह सकता। क्योंकि देश ही नहीं दुनिया में भी मोदी ने भारत का जो परचम फहराया है वह किसी देश के लिए गौरव का सबब हो सकता है। मोदी अब तक 44 देशों की यात्रा कर चुके हैं। विदेश में मोदी ने ढाई करोड़ भारतीयों का दिल जीता है। उन्होंने अफगानिस्तान में पाक समर्थित समूहों पर लगाम लगाने, नेपाल में भारत विरोधी शक्तियों को नियंत्रित करने की मुहिम में अपने कदम काफी आगे बढ़ा दिए हैं। मोदी जब सत्तारुढ हुए तो देश की जनता भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही थी रोज नए नए खुलने वाले भ्रष्टाचार लाख करोड़ रुपये से नीचे नहीं होते थे। मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन का अहम तोहफा दिया है। क्रोनी कैपिटलिज्म में गिरावट दर्ज हुई है। सीधे-सीधे सच्चे भारतीय की दिक्कत यह थी कि उसके करीब का आदमी बिना कुछ किए साउथ और नार्थ ब्लाक से निकलते ही किसी पांच सितारा होटल में करोड़ों का स्वामी बन बैठता था। रातोंरात बिना कुछ करने वालों के आर्थिक साम्राज्य ऐवरेस्ट बन रहे थे। मोदी ने कम से कम इन्हें देखकर संत्रास की जिंदगी जीने वाले सीधे-साधे इन भारतीयों को सुकून जरुर पहुंचाया है। देश में अभी सिर्फ 56 फीसदी राशन कार्डों का सत्यापन हुआ है इनमें 1 करोड़ 62 लाख फर्जी राशन कार्ड फर्जी पाए गये हैं। जनता को मिलने वाली 10 हजार करोड़ की सब्सिडी जो बिचौलियों के हाथ जाती थी उसे बचाने में मोदी कामयाब हुए हैं। मोदी ने अपने लाल किले में पहले भाषण में कहा था कि प्रधान सेवक है। उनका काम जनता के धन की पाई पाई की हिफाजत करना है। इस दिशा में मोदी के कदम सार्थक कहे जाएगे।
उनके प्रचार गीत मेरा देश बदल रहा है आगे बढ रहा है को महज रस्मी मान भी लें तो यह कैसे भूला जा सकता है कि दो किलोमीटर रोज बनने वाली सड़क अब तीस किलोमीटर रोज का हो गया है। 4341 मेगावाट की पनबिजली परियोजनाएं शुरु हुई हैं। बिजली की कमी का आंकडा अब 4.2 फीसदी की जगह आधा यानी 2.1 फीसदी रह गया है। बीते चार सालों में जितना कोयला उत्पादित नहीं हुआ उतना अकेले पिछले साल कोयले का उत्पादन हुआ यह आकंडा 3.1 करोड़ टन है। विदेशी निवेश हासिल करने में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और जीवन ज्योति योजना में 12.4 करोड़ लोगों ने पंजीकरण करवाया है। देश भर में जेनरिक दवाओं के 3000 स्टोर खोलने का भी काम जन औषधि कार्यक्रम के तहत चल रहा है। जनधन योजना ने भी नायाब कीर्तिमान रचे हैं। एलईडी बल्बों की बिक्री जो छह लाख सालाना थी वह छह लाख रोजाना हो गयी। इन बल्बों से बचने वाली बिजली ने देश को एक घंटे अतिरिक्त बिजली जलाने का मौका दिया है। देश में 16.5 करोड़ लोग एलपीजी उपभोक्ता हैं। इनमें 15 करोड़ लोग सब्सिडी पाते हैं। मोदी के आग्रह ने एक करोड़ 13 लाख लोगों को सब्सिडी छोडने को तैयार किया वहीं इसका लाभ मोदी सरकार ने करीब एक करोड़ नए कनेक्शन बांटकर गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दिया। नरेंद्र मोदी ने योजनाओं को परिणामोन्मुख बनाने पर जोर दिया है, अधिकार पर सशक्तिकरण को तरजीह दी है।
सरकार जीडीपी की दर को संभालने में कामयाब रही। भारत में यह दर 7.6 फीसदी है जो वैश्विक आकंडों से ज्यादा है। पूंजीगत सामान क्षेत्र में घरेलू उत्पादन का हिस्सा बढ़ा है। बजट में किसान और गरीबों के प्रति जो नज़रिया अपनाया गया है वह अर्थव्यवस्था को विकास की नई गति देता है। यह जरुर है कि मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में खरी नहीं उतरी। बीजेपी ने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था पर बीते दो साल में 50 लाख लोग भी रोजगार नहीं पा सके। श्रम ब्यूरो के आंकडे बताते हैं अधिक श्रमिक उपयोग करने वाले महत्वपूर्ण 8 क्षेत्रो में रोजगार की दर गिरी है। उनकी सरकार कालेधन की वापसी नहीं करा पाई हो पर घरेलू मोर्चे पर कालेधन के सृजन के रास्ते रोक दिए है। सिर्फ भ्रष्टाचार रोककर 36 हजार करोड़ बचा लिए गये हैं।
क्या इसे मोदी के कामकाज की सकारात्मक परिणति नहीं मानी जानी चाहिए कि भाजपा कच्छ से लेकर कामरुप तक पहुंच गयी। हिंदी भाषी क्षेत्र से बाहर अपनी दखल दर्ज कराने में कामयाब हुई है। मोदी ने व्यक्ति केंद्रित कूटनीति को एक नई पहचान दी यह उनपर विरोधी आरोप चस्पा करते हैं। उन्हें व्यक्तिवादी कहा जाता है। पर मोदी के कामकाज में दूर-दूर तक कहीं यह परिलक्षित नहीं होता है क्योंकि मोदी ‘माई जीओवी डॉट इन’ पोर्टल पर लोगों को सहभागी बनाते हुए निरंतर नज़र आते हैं और यह आभासी दुनिया का सिर्फ आभास नहीं है। इस पोर्टल पर आए कई बेहतर सुझावों को अमली जामा भी पहनाया है। निमेष बंसल ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 15 हजार तक के मेडिकल बिलों के लिए कागजी खानापूर्ति खत्म करने की राय दी थी। पुणें की ऋचा अभयंकर ने आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को सहेजने का सुझाव दिया था। आगरा के जग्गी ने कहा था कि स्वच्छता अभियान से जुड़ने वाली संस्थाओं को कर में छूट दी जाए। चेन्नई की सुचित्रा राघवाचारी ने डिजिटल हेल्थ स्मार्ट कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की बात कही थी। मोदी ने इस सबको अमली जामा पहनाया है। इन लोगों के नाम भी इन योजनाओं के साथ नत्थी कर दिए। अभी तक सरकारें पूरी की पूरी तरह से वन-वे ट्राफिक रही है। लेकिन मोदी ने इसे टू-वे किया है। मन की बात के लिए तमाम लोगों के सुझाव मोदी ने कुबूल किए हैं उनका जिक्र भी किया है।
इस लिहाज से देखा जाय तो मोदी अपने नारे सबका साथ-सबका विकास पर अमल करते दिख रहे हैं। मोदी के विरोधी भी उनके बारे में यह कुबूल करते हैं कि वह बेहद परिश्रमी हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है इस कहावत को मोदी उलट नहीं देते। मोदी गुजरात में भी अकेले थे। दिल्ली की यात्रा में भी अकेले थे। दिल्ली के पड़ाव में भी अकेले हैं। उन्होंने अपने एकला चलो से भी सबक लिया है वह ज्यादा रचनात्मक हुए हैं।
अनंत अकांक्षाएं अगर मोदी के लेकर यदा-कदा किसी संशय का शिकार हो जाती हैं तो उसे अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में अपार जनसमर्थन अब तक ठगा गया है। वह 1984 में राजीव गांधी के निर्णायक जनादेश का समय हो या फिर 1977 में जनता लहर के प्रचंड बहुमत का वक्त रहा हो। दोनों समय पर जनता ठगी गयी। निःसंदेह उसे अपने निर्णय पर उसे पछतावा हुआ। तभी उसने स्पष्ट बहुमत का जनादेश सुनाना बंद कर दिया था। तभी वह नरेंद्र मोदी के प्रचंड बहुमत को बहुत नुक्ताचीनी के साथ जांच परख रही है। विपक्ष की भी व्याकुलता इस लिहाज से जायज कही जाएगी क्योंकि विपक्षी दलों के सिकुड़ने के मद्देनज़र मोदी ने बेमिसाल काम किया है।
मोदी चुनौतियों को हमेशा अवसर में बदलते हैं। सिकुड़ता विपक्ष जो चुनौतियां खड़ी कर रहा है अथवा मोदी को पथ से भटकाने के लिए छद्म राष्ट्रवाद का अभियान चलाया जा रहा हो इस सबपर कान देना उनके लिए जरुरी नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी न केवल खुद लोकप्रियता की निरंतर सीढियां चढ़ रहे हैं बल्कि उनके पार्टी के जनाधार का फलक भी व्यापक हो रहा है। मोदी को पांच साल का समय मिला है। वह जिस गति से चल रहे हैं उसके मद्देनज़र कहा जा सकता है विकास ही नहीं देश का आख्यान, वृतान्त, कथा और विवरण भी बदल रहे हैं। विपक्ष की परेशानी का सबब यही है। यही वजह है कि कभी अपने ही जीएसटी के सामने अवरोध खड़ा कर देता है,कभी अपने ही आधार सरीखी तमाम योजनाओँ को खारिज करता दिखता है। वह यह कहते भी नहीं थकता कि मोदी की तमाम योजनाएं उसके अपने कार्यकाल की हैं पर क्या यह मोदी के हिस्से नहीं जाना चाहिए कि ये योजनाएं जनता के दिलोदिमाग तक लाने वाले नरेंद्र मोदी ही हैं। मोदी जो विकास की इबारत लिख रहे हैं। सुशासन का ताना बाना बुन रहे हैं उसमें निःसंदेह एक आम, इमानदार और गरीब आदमी के लिए सुकून देने वाले क्षण। उसे दवाई, पढाई के लिए परमुखापेक्षी नहीं होना होगा। बिजली, सड़क, पानी जैसी बुनियादी जरुरतों से इस तबके को महरुम नहीं रहना होगा। यही मोदी की चुनौतियों को अवसर में बदलने की कला है। मोदी खास नहीं आम लोगों के लिए काम कर रहे है। ऐसे ही देश बदलता है।
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