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तू डाल-डाल तो हम पात-पात...

Dr. Yogesh mishr
Published on: 4 Oct 2016 1:30 PM IST
सियासत समाज और सेना के लिए बैर- प्रीत के रिश्ते निखालिस बैर के रिश्तों से बेहतर नहीं माने जाते। बैर-प्रीत के रिश्तो में साथ-साथ और सतर्क- सतर्क रहना पड़ता है। निखालिस बैर के रिश्तो में सिर्फ आप सतर्क रहते हैं । जब आप साथ नहीं होते तो सतर्क रहने की उम्दा संभावनाओं को भी अंजाम देते हैं। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच की सारी दिक्कत सिर्फ इसीलिए है क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते न तो खालिस बैर के हैं न ही अटूट प्रेम के।
बैर-प्रीत के इन रिश्तों के बीच दोनों देशों को साथ-साथ और सतर्क-सतर्क की स्थिति में जो भी उदार होगा, जो भी कायदे-कानून मानेगा, जिसे भी लोकभय होगा वह निरंतर दंश का भागी होगा । यह बात बात दीगर है कि कि ‘सोनार की सौ’ पर दंश के इस भागी के ‘लोहार की एक’ भारी पड़ती हैं। भारत साथ-साथ और सतर्क रहने की स्थिति में लोकभय, कानून पालक होने से लगातार सहता रहा है। हालांकि पानी जब जब सर से ऊपर होता है तब तक भारत भारी पड़कर पाकिस्तान को यह बता देता है कि ‘जो उससे टकराएगा..........।’ इसकी तमाम इबारती नजीरे वर्ष 1948, 1965,1971 के भारत पाक युद्ध और कारगिल में पढी जा सकती हैं।
बीते 29-30 सितंबर की रात भारत ने जो सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया वह भी इसी का विस्तार है। यह बात दीगर है कि पाकिस्तान जम्मू के उड़ी इलाके में आतंकी हमले में मारे 18 जवानों की प्रतिक्रिया में भारत की इस सर्जिकल स्ट्राइक पर मुंह घुमाकर ऐसे ही खड़ा हो गया है जैसे दिन मे कोई आंखंबद कर यह मान ले कि सूरज निकला ही नहीं है। पाक-अधिकृत कश्मीर के लीपा, तत्तापानी, केल और भीमबार इलाके में आतंकी ठिकानों को नष्ट करने की भारतीय जाबांजों की कार्रवाई पर पाकिस्तान की यह मुद्रा कोई अप्रत्याशित नहीं है। पाकिस्तान का इसे सीज फायर का उल्लंघन बताना कोई अनूठा नहीं है। पाकिस्तान को इस सर्जिकल स्ट्राइक को न कुबूल करने कोई नया नहीं है। यह उसकी कोई रणनीति भी नहीं है। यह उसकी विवशता है। पाकिस्तान के बारे मे कहा जाता है कि वहां लोकतंत्र आवाम से नहीं आर्मी और आतंकवाद के हाथों संचालित होता है। पाकिस्तान में इस समय सिर्फ आर्मी की ही आवाम में इज्जत है। अगर आर्मी यह मान लेती है कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी तो उसकी आवाम में प्रतिष्ठा को पलीता लग जाएगा। साथ ही सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पाकिस्तान में आर्मी देश का सबसे सशक्त शक्ति केंद्र है।  ऐसे में सियासत के लिहाज से भी यह पाकिस्तानी फौज को नहीं भाएगा कि उसका सबसे बड़ा दुश्मन उसके मुँह पर तमाचा जड़ गया। ऐसे में पाकिस्तान के शक्ति संतुलन में फौज का पलड़ा हल्का भी हो सकता है।
पाकिस्तान का यह स्टैंड भारत की सर्जिकल स्ट्राइक की तरह की नया नहीं है। इससे पहले भी पाकिस्तान ने 1948 के युद्ध से पहले यह कभी नहीं माना कि कश्मीर में कबीलाई उसके भेजे थे। उसने आपरेशन जिबराल्टर को 1965 में कभी नहीं अपनाया। पाकिस्तान आज भी अपने देश में खुद को 1965 के युद्ध का विजेता बताता है जबकि उसकी 1584 किलोमीटर भूमि पर भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया था। इसके अलावा पाकिस्तान ने कभी यह नहीं माना कि कारगिल घुसपैठ में उसकी फौज एक किरदार थी। पाकिस्तान ने यह भी नहीं माना कि कश्मीर के आतंकवाद से उसका कोई लेना देना है। पाकिस्तान ने तब तक यह भी नहीं माना था कि ओसामा बिन लादेन उसकी सरजमीं पर पनाह हासिल करता है। अमरीकी कमांडो टीम ने पाकिस्तान में घुसकर उसे मार दिया। पाकिस्तान तो यह भी नहीं मानता कि उसकी अर्थव्यवस्था को संभालने वाला भारत का मोस्टवांटेड डान दाउद इब्राहिम उसकी सरजमीं से आतंक का कारोबार संचालित करता है।
पठानकोट के बाद उड़ी की वारदात पाकिस्तान में आतंकवाद और सेना के गठजोड़ की कहानी कहती है। पाकिस्तानी सेना राहिल शरीफ का कार्यकाल अगले माह खत्म हो रहा है। कहा जाता है कि वह अपने कार्यकाल का विस्तार अथवा किसी बड़ी भूमिका की चाहत में हैं। सेना की बड़ी भूमिका तभी हो सकती है जब देश दिक्कत में हो। यह संयोग नहीं कहा जा सकता है कि उड़ी हमला राहिल शरीफ के मंसूबों को परवान चढाने में मददगार साबित होगा। इन हमलों की जरुरत पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों को इसलिए भी नज़र आ रही थी क्योंकि कश्मीर में स्थितियां बदल रही थीं। ढ़ांचागत बदलाव हो रहे थे। सरकार ने पूरे कश्मीर के लिए समेकित नीति पेश की। हुर्रियत के 21 नेताओं को अलग अलग नज़रबंद किया। सर्वदलीय बैठक बुलाई, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया। जहां हुर्रियत के नेताओं ने इस प्रतिनिधि मंडल से मिलने से मना कर दिया पर इसकी असली वजह यह थी कि अलग अलग नज़रबंद नेता किसी एक तरह की नीति पर सहमति नहीं बना पाए थे। ऐसे में प्रतिनिधि मंडल के बहिष्कार के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था।
भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर को खाली कराने की पहल कर दी थी। चीन झिनझियांग से पीओके तक 46 हजार करोड़ डालर खर्च कर एक आर्थिक गलियारा बना रहा है। चीन का झिनझियांग प्रांत मुस्लिम बाहुल्य है यहां मुस्लिम कट्टरपंथी चीन को दिक्कत करते हैं। वे दिक्कत पैदा कर वे पाकिस्तान ही शरण लेते है। चीन का इरादा इस आर्थिक गलियारे के मार्फत पाकिस्तान में चीन के कट्टरपंथियों के प्रवेश पर रोक लगाएगा।
पठानकोट और उड़ी के बाद भारत की भी मजबूरी यह थी कि घरेलू फ्रंट पर उठने वाली आवाजें और देश में शहीदों के परिजनों से लेकर आम आदमी के गुस्से को ठंडा करने के लिए कोई रास्ता चुनना था। सिंधु जल समझौता अगर भारत तोड़ता तो उसकी दिक्कत उस पानी का प्रबंधन तो था ही यह भी अंदेशा था कि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट से अगर पाकिस्तान को राहत मिल गयी तो सरकार के लिए दिक्कत पैदा होगी। अगर दोनों देश के बीच आर्थिक रिश्तों को खत्म किया जाय तो वह कोई प्रभावकारी कदम इसलिए नहीं है कि क्योंकि भारत पाकिस्तान के बीच सिर्फ 2.8 अरब डालर का व्यापार होता है। इसमें भी व्यापार का संतुलन पूरी तरह से भारत के पक्ष में है जिसमें भारत करीब 2.4 अरब डालर का निर्यात करता है और पाकिस्तान से आयात सिर्फ 0.4 अरब डालर का ही है। अप्रत्य़क्ष रुप से होने वाले व्यापार को जोड़ दिया जाय तो भी यह आंकडा 4.7 अरब तक हो सकता है। इसे तोड़ने से पाकिस्तान पर दबाव बनने वाला नहीं था।
युद्ध न तो अंतिम विकल्प है न ही अनिवार्य क्योंकि परमाणु हथियार संपन्न है। ऐसे में जब भारत के पास पाकिस्तान को बहुत ठीक से समझने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल हों तो पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए किसी घिसेपिटे अंदाज की जरुरत नही है। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि सर्जिकल स्ट्राइक शब्द का पहला प्रयोग पाकिस्तान के ही राजनीतिक विशेषज्ञ और सैन्य विश्लेष्णकर्ता हसन असकरी रिजवी ने ही दुनिया में किया था जब 1990 के खाडी युद्ध के समय अमरीकी वायुसेना के इराक पर बम बरसाए थे। नतीजतन, भारत ने इस फार्मूले को ही अपनाया । सर्जरी की तरह अंग विशेष का इलाज करने की रणनीति को अपनाते हुए भारत ने पीओके के आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत करने का लक्ष्य बनाया। उसकी रणनीति साफ थी कि पाकिस्तान आतंकी कैंप का नष्ट होना कुबूल करना मुश्किल होगा। भारत के हाथ शौर्य का तमगा भी लग जाएगा और यह भी संदेश दे दिया जाएगा कि बैर प्रीति के इस रिश्ते में भारत ने भी बैर की ओर कदम निकालने की अपनी हिचक दूर कर दी है।
हालांकि भारतीय सेना के कमांडो की इस कार्यवाही को लेकर कुछ प्रगतिशील लोग पाकिस्तान के कदम में कदम मिला रहे हैं, वह यह भूल रहे हैं कि भारत सुषमा स्वराज ने जान कैरी से बात की। भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने बाकयदा 22 देशों के राजदूतों को इसकी जानकारी दी थी। इस सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो भी मौजूद है। सेना मुख्यालय में इसे देखा गया है। पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस मसले पर वैसी ही खामोशी ओढ़े हैं जैसी कि कारगिल के समय थी। कारगिल उनकी जानकारी के बगैर परवेज मुशर्रफ ने कर दिया था। पूर्वी सीमा पर सेना की चहलकदमी और आतंकी वारदातें राहिल शरीफ की देन हैं। हालांकि पाकिस्तान की चाल उल्टी पड़ गयी। पहली बार वह राजनयिक रूप से एकदम अकेला खड़ा दिख रहा है। पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि थ्री ए- अल्लाह, आर्मी और अमरीका उसके सूत्रधार हैं। अल्लाह यानी धर्मांध ताकतें। इस घटना में अमरीका ने भी उसका साथ छोड़ दिया। अमेरिका की खानापूर्ति के लिए पाकिस्तान का हमकदम बना चीन खामोश हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर दुनिया भर में उसकी भद पिट गयी। वैश्वीकरण के इस युग में किसी राष्ट्र का अकेला पड़ जाना एक बड़ी पराजय है। पाकिस्तान के लिए यह पराजय झेल पाना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि आतंकवाद वैश्विक स्तर पर सिरदर्द हो गया है। दुनिया की सारी ताकतें उसे कुचलना चाहती हैं।
नरेंद्र मोदी ने अच्छा और बुरा आतंकवाद की बात छेड़कर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ में अगुवाई हासिल कर ली। सर्जिकल स्ट्राइक उस अगुवाई की बानगी है। पाकिस्तान को इससे संदेश और सबक दोनों लेने चाहिए।

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Dr. Yogesh mishr

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