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विरोध बड़ा या जनादेश

Dr. Yogesh mishr
Published on: 28 March 2017 4:33 PM IST
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। लेकिन प्रकृति के इस नियम की ग्राह्यता को जब खेमेबाजी की नैतिकता और विरोध के स्वर से टकराना पड़े तो साफ है कि हम प्रकृति को, उसके नियम को सहज अंगीकार करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि प्रकृति के परिवर्तनकामी नियम में न्यूटन के क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धांत लागू नहीं होता।
उत्तर प्रदेश में प्रचंड जनादेश की सरकार के साथ इन दिनों यही हो रहा है। सहजता से लोकतंत्र का यह परिवर्तन कामी परिणाम तमाम शक्तियों के गले नहीं उतर रहा है। इसी का नतीजा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए पूजा-पाठ दूध और गंगाजल से की गयी अर्चना के खिलाफ प्रतिक्रिया देने से नहीं चूके। उन्होंने तंज कसा और कह उठे कि अगली बार जब वह मुख्यमंत्री बनेंगे तो फायर ब्रिगेड की गाडियो में गंगाजल डालकर शुद्धिकरण कराएंगे।
अवैध बूचड़खाने बंद करने के ऐलान पर कोहराम मच गया है। छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ एंटी रोमियो स्क्वायड के गठन ने प्रेम को सार्वभौम सत्ता के खिलाफ अतार्किक विद्रोह करार दिया गया। विद्रोह इस हद तक कि यह बताया गया कि शेक्सपियर की रचना रोमियो-जूलियट का पात्र रोमियो प्रेम विरोध का प्रतीक नहीं है, वह प्रेम, पवित्र प्रेम का पर्याय है।ऐसे में छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ कार्यवाही के लिए गठित बल का नाम रोमियो से जोड़ा जाना गलत है।
शेक्सपियर की महान ट्रेजेडी रचना रोमियो-जूलियट की रचना 1594-95 की है। यह इटली के वेरोना शहर के ट्रैजिक लव स्टोरी है। भाजपा सरकार ने अपने संकल्प-पत्र में अवैध बूचड़खाने बंद कराने और एंटी-रोमियो स्कवायड के गठन का ऐलान किया था। राज्य के विधानसभा चुनाव में उसके तकरीबन 41 फीसदी वोट मिले हैं। 325 विधायक उसके और सहयोगी दलों के मिलाकर जीत कर आए हैं। आमतौर पर लोकतंत्र में जनादेश घोषणापत्र पर मुहर भी माना जाता है।
यही नहीं भाजपा गाय और गंगा की बात अपने जनसंघ काल से करती आ रही है। लवजेहाद पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उसके प्रचार एजेंडे का हिस्सा रहा है। ऐसें यह सोचना कि भाजपा उस पर अमल नहीं करेगी, वाजिब नहीं है। राज्य की भाजपा सरकार के फैसलों के खिलाफ उठ रही आवाजों की पड़ताल उसके संकल्प पत्र और उसकी सियासी रीति नीति के मद्देनज़र जरुरी है। सरकार को अवैध बूचड़खाने बंद करने और एंटी रोमियो स्क्वायड के गठन को लेकर सफाई पेश करनी पड़ी। इन दोनों की वजह बेवजह नहीं है।
तकरीबन 14 साल से सपा और बसपा के पाले में खेलती आ रही नौकरशाही त्रिशंकु विधानसभा के सपने देख रही थी। त्रिशंकु विधानसभा के सपनों के बीच उन्हें छोटे दलों के विधायकों की तरह अपने आनंद का भी एहसास हो रहा था। बसपा के कुछ अफसर तो तैनाती भी करने लगे थे। सपा के अफसरों ने अखिलेश यादव को उनके बिना सरकार न बनने के ऐसे ख्वाब दिखाए थे कि उनके लोग अबकी बारी में कौन कहां होगा इसकी गोट बिछाने लगे थे। जनादेश ने सबके ख्वाबों पर पानी फेर दिया।
ऐसे में जब सरकार के मुंह से कुछ भी निकला तो नौकरशाही में अपनी बदली हुई वफादारी सही साबित करने की होड़ लग गयी। यही वजह है कि सरकार को सफाई देनी पड़ी। कोई भी सरकार यह कैसे कह सकती है कि अवैध असलहे रखे जाएं, अवैध दवा की दुकानें चलाई जायें, अवैध कामकाज किए जाएं। ऐसे में  भाजपा सराकर भी यही कह रही है कि अवैध बूचड़खाने बंद किए जा रहे है। सूबे का कोई ऐसा शहर नहीं जहां अवैध बूचड़खाने दो से चार की संख्या में कम से कम न चल रहे हों। अवैध बूचड़खानों की स्थिति यह है कि जब नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल ने उत्तर प्रदेश के के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर रिपोर्ट मांगी तो बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि सूबे में चल रहे 126 बूचड़खानों में सिर्फ एक के पास संचालन की अनुमति है। सूबे में कुल 44 यांत्रिक बूचड़खाने हैं जो स्थानीय निकाय के कानूनों के अनुसार संचालित हैं। इनसे हर साल दो हजार करोड़ का मांस विदेश निर्यात किया जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो बीमार जानवरों का मांस खाकर लोग कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का शिकार हो रहे हैं। पशुओं की चर्बी घी में मिलाकर बेचने के प्रमाण मिले हैं। इसे लेकर कोई शोर-शराबा नहीं है। हंगामा बरपाया जा रहा है कि बूचड़खाने बंद कराए जा रहे हैं। मांसाहारियों का क्या होगा। इसे विस्मृत किया जा रहा है कि जो मांसाहारी है उसका शाकाहार से काम चल सकता है। चिकन और मटन की दुकानों पर बंदी की कोई तलवार नहीं है। सरकार की जिम्मेदारी बच्चों को दूध मुहैया कराना भी है। जिस गति और नीति से जानवर काटे गये हैं उससे यह सत्य किसी से नहीं छिपा है। निरंतर दुधारु जानवरों भी काटे जाते रहे हैं। लखनऊ का प्रसिद्ध टुंडे कबाब की दुकान एक दिन बंद हो जाती है तो हंगामा बरपा हो जाता है। पर इस बात पर शोर-शराबा क्यों नहीं होता कि आखिर टुंडे कबाब की दुकान अवैध बूचड़खानों के जानवरी के मांस के व्यंजन से ही क्यों बनती रही है।
अवैध बूचड़खानों के बंद होने से सिर्फ मीट की उपलब्धता की मात्रा कम हो सकती। मांसाहारियों को अपने खानपान के संस्कार बदलने की कोई विवशता नहीं उत्पन्न की गयी है। फिर भी बूचड़खानों के लेकर कपटी धर्मनिरपेक्ष ताकतें सक्रिय हो उठी हैं। एंटी रोमियो दल के गठन में पुलिसिया सक्रियता को लेकर उठाई जा रही आपत्तियां जायज हैं तभी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ सुथरे शब्दों में पुलिस को यह संदेश दिया कि सहमति से घूम रहे, बात कर रहे युवक-युवतियों का उत्पीड़न न किया जाय। परंतु इस तरह के सिर्फ मुट्ठी भर लोग ही हैं। व्यापक पैमाने पर लकडियों से छेड़छाड़ की वारदातें निरंतर बढ़ गयी हैं। बरेली की तकरीबन 100 लड़कियों ने छेडछाड़ से आजिज आकर स्कूल जाने से इनकार कर दिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तकरीबन एक दर्जन जिलों में ऐसी वारदातें आम हैं। अखिलेश यादव सरकार ने महिला सशक्तिकरण अभियान के तहत 1090 हेल्पलाइन शुरू की थी। जिसमें 15 नवंबर 2012 से लेकर 14 मार्च 2017 तक महिलाओँ से छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और उत्पीडन की 710299 शिकायतें प्राप्त हुईं। इस साल के जनवरी महीने से अब तक औसतन 9821 लड़कियां रोज अपनी शिकायत दर्ज कराती हैं। लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस और आगरा शहर ऐसे हैं जहां से सबसे अधिक शिकायतें मिलती है। नवनीत सिकेरा इस विमेन पावर लाइन को देखते हैं। ये तो वे आकंडे जो पुलिस तक पहुंच गये। हर रोज छेड़छाड़ से आजिज आ रही लड़कियों की आत्महत्या की खबरें निरंतर बढ़ रही हैं। क्या इस सरकार को भी पिछली सरकार की तरह इन मामलों पर आंख बंदकर बैठना चाहिए। वह भी तब जब उसके संकल्प पत्र का यह हिस्सा हो।
नौकरशाही अगर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अति उत्साहित और अतिसक्रिय होती है तो उसका ठीकरा सरकार पर सिर्फ क्यों फोड़ा जाना चाहिए। कैलाश मानसरोवर यात्रियों की एक लाख की सब्सिडी के ऐलान को भी धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें इसे सांप्रदायिक बता रही हैं। पर इसका निर्मम विश्लेषण किया जाय तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि वह भी तुष्टीकरण था और यह भी तुष्टीकरण है। वह 20 फीसदी लोगों का था यह 80 फीसदी लोगों का है।
इसे धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। तुष्टीकरण को देश में साठ साल तक सत्ता की सियासत करने वाली राजनैतिक पार्टी ने एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। मोदी युग ने उसे उलट दिया है। योगी युग ने उसे सक्रियता दी है। यह क्रिया और प्रतिक्रया के नियम की परिणति है। प्रकृति के परिवर्तनकारी नियम की परिणति है। इस परिवर्तन को भी अंगीकार करना चाहिए। क्योंकि इसमें जनादेश है। ऩुक्ता-ऩुक्ता हर्फ़-हर्फ़ लिखित संकल्प पर अमल है। विरोध को जनादेश से बड़ा नहीं बनाना चाहिए।

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Dr. Yogesh mishr

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