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मोदी ने फिर बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
एक झूठ सौ बार बोला जाता है तो सच हो जाता है यह बाजार का फंडा है। हमारी राजनीति ने भी बाजार की ड़गर पकड़ ली है। राजनीति की इस ड़गर पर उसका हमराही इन दिनों मीडिया है। गुजरात के चुनाव और उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव के नतीजों में इसकी बानगी साफ दिखी। मीडिया निकाय चुनाव में भाजपा की जीत के दावे पेश कर रहा था जबकि अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को 41-35 फीसदी वोटों की थाती भेंट की थी जो नगर निकाय चुनाव के नतीजों के मद्देनजर देखी जाय तो सिर्फ 28 फीसदी के आसपास रह गयी है।
यह भी सच्चाई है कि मेयर के 16 में से 14 सीटें बीजेपी ने जीती हैं पर जिस तरह उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे बहुजन समाज पार्टी ने अलीगढ़ और मेरठ की जीत के साथ ही सहारनपुर, झांसी सरीखे शहरों में परेशान किया वह बताता है कि सचमुच थाती बचाने में वह करिश्मा नहीं दिखाया जा सका जो जरुरी था। 36 जिला मुख्यालयों पर कमल खिल ही नहीं पाया। हालांकि मेयर के चुनाव वाले इलाकों में जरुर भाजपा 41 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही है। पर नगर पालिका अध्यक्ष के 198 में से 77 पदों पर 5261 पालिका सदस्यों में से 922, 438 नगर पंचायत अध्यक्ष{ाो में से केवल 100 और 5437 नगर पंचायत सदस्यों में से केवल 664 पद जीत पाई है।
जैसे जैसे नतीजे बड़े से छोटे शहरों में गये है भाजपा नेपथ्य में चलती चली गयी है। योगी आदित्यनाथ अपना वार्ड नहीं जीत पा,। राष्ट्रपति की बहु निर्दल प्रत्याशी के रुप में लड़ी गयी। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपना पूरा जिला हार गये। इसलि, उत्तर प्रदेश के नगर निकाय के नतीजों को गुजरात के बरअक्स नहीं देखा जाना चाहि, । हालांकि जी,सटी के बाद पहला चुनाव था नोटबंदी के बाद भी पहला चुनाव यूपी में ही हुआ था उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने नोटबंदी के प{ा में प्रचंड जनादेश सुनाया था पर यह जनादेश मोदी के उस साख का नतीजा भी था जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री किसी का चेहरा पेश नहीं किया था। लड़ाई मोदी बनाम अखिलेश यादव बनाम मायावती थी। गुजरात में भी लड़ाई मोदी बनाम राहुल है।
नरेंद्र मोदी चुनावी राजनीति के इस समय के सबसे मंझे हु, खिलाड़ी हैं वे हमेशा हर राजनैतिक दल को अपने मैदान पर लड़ने को विवश कर देते हैं। विपक्ष के मुद्दे भी मोदी ही तय करते हैं। यूं कह सकते हैं कि विप{ा उन्हीं मुद्दों को हाथ में लेता है जिसमें लडाई मोदी बनाम विपक्ष हो जाय। गुजरात में बहुत खूबसूरती से नरेंद्र मोदी ने बाहरी सेनापतियों के भरोसे लड रही कांग्रेस को लड़ाई भाजपा के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी बनाम उसके किसी उम्मीदवार की जगह मोदी बनाम राहुल गाँधी कराने में कामयाबी हासिल कर ली है। तभी तो उन्होंने गुजरात की अस्मिता के मुद्दे पर चुनाव को चटक सियासी रंगो में रख दिया है।
गुजरात गौरव और गुजरात की अस्मिता के सवाल पर मोदी अव्वल पायदान पर खड़े हैं। यही वजह है कि निरंतर मजबूत हो रही कांग्रेस, धीमी गति से ही सही परिपक्व हो रहे राहुल गाँधी दलित नेता जिग्नेश मेवानी, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के ,कजुट होने का बाद मोदी की पराजय की भविष्यवाणी कराना किसी के लि, भी मुश्किल हो रहा है। मोदी ने राहुल गाँधी को लड़ाई हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व के चैसर पर लड़ने के लि, मजबूर किया है। वे हर पांचवी सीट पर ,क सभा कर रहे हैं। उनके भावुक अपीलों का करिश्मा सभा में भले न दिख रहा हो पर वोटों में दिखने वाला लगता है।
शंकर सिंह वा?ोला कांग्रेस से अलग होकर भाजपा की मदद कर रहे हैं। केशूभाई पटेल की सक्रियता भी कुछ यही करती दिख रही है। राहुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही उनकी पहली अग्निपरी{ाा भी मोदी के ही मैदान पर हो रही है। मोदी का कद पार्टी से बड़ा दिख रहा है, राहुल कांग्रेस के पर्याय बनते दिख रहे हैं। हकीकत यह है कि गुजरात के चुनाव में मोदी के सामने गरीबों की आस और युवाओं के सपने बरकरार रखने की चुनौती है।
लोग गुजरात में मुख्यमंत्री रूपाणी से मोदी काल की अपेक्षा करने लगे हैं। 9-6 फीसदी आबादी वाले मुसलमान 37 फीसदी आबादी वाले ओबीसी, 8 फीसदी आबादी वाले दलित, 16 फीसदी आबादी वाले पाटीदार वाले गुजरात में कांग्रेस खाप समीकरण गढ़कर मोदीकाल से अधिक सीटें जीतने का करिश्मा कर दिखाया था। कुछ जातीय समीकरण को आग पीछे कर कांग्रेस भाजपा के पराजय की कहानी लिखना चाह रही थी पर मोदी राजनीतिक समीकरण के केंद्र में खुद आकर कांग्रेस की मंशा पर पलीता लगते दिख रहे हैं। जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें फेल होती दिख रही हैं। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे गौरव और अस्मिता के प्रश्न चटख हो रहे है। नरेंद्र मोदी यह तक कह रहे हैं कि कांग्रेस ने ही मोरारजी देसाई को भी जेल भेजा था। मोरारजी देसाई पहले ,ऐसे गुजराती थे जो प्रधानमंत्री बने थे।
मोदी ने गुजरात की राजनीति के भाषिक व्यवहार और विमर्श दोनों ही बदल दि, हैं। अगर यह मैदान नरेंद्र मोदी का न होता तो राहुल की मेहनत और राजनीति जरुर रंग लाती। पर, मैदान तो मोदी का ही है। मुद्दे भी उन्होंने अपने आसपास सेट कर लि, हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी ने सभी 115 सीटों पर तकरीबन 53 फीसदी वोट हासिल किया था।
2014 के लोकसभा चुनाव में वोटों की संख्या 15 फीसदी बढ़कर 1 करोड़ 5 लाख हो गयी। यह कह सकते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट 65 फीसदी से ज्यादा हो गया। हालांकि 31 सीटें ,ऐसी थी जहां 10 हजार से कम वोटों के अंतर से जीत हुई थी। यही अंतर कांग्रेस के उम्मीद का सबब है। लेकिन चुनाव गुजरात की अस्मिता और गौरव पर हु, तो कांग्रेस के लि, नाउम्मीद होना लाजमी है। उत्तर प्रदेश में भी मोदी की जगह कोई और चेहरा होता तो अखिलेश की साइकिल पंचर नहीं होती, मायावती का हाथी बैठ नहीं जाता, कांग्रेस के हाथ से अखिलेश की साइकिल फिसल नहीं जाती पर गुजरात में कसौटी पर मोदी ने ,क बार फिर खुद को रखा है। यही उनकी राजनीति है। यही उनकी ताकत है।
यह भी सच्चाई है कि मेयर के 16 में से 14 सीटें बीजेपी ने जीती हैं पर जिस तरह उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे बहुजन समाज पार्टी ने अलीगढ़ और मेरठ की जीत के साथ ही सहारनपुर, झांसी सरीखे शहरों में परेशान किया वह बताता है कि सचमुच थाती बचाने में वह करिश्मा नहीं दिखाया जा सका जो जरुरी था। 36 जिला मुख्यालयों पर कमल खिल ही नहीं पाया। हालांकि मेयर के चुनाव वाले इलाकों में जरुर भाजपा 41 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही है। पर नगर पालिका अध्यक्ष के 198 में से 77 पदों पर 5261 पालिका सदस्यों में से 922, 438 नगर पंचायत अध्यक्ष{ाो में से केवल 100 और 5437 नगर पंचायत सदस्यों में से केवल 664 पद जीत पाई है।
जैसे जैसे नतीजे बड़े से छोटे शहरों में गये है भाजपा नेपथ्य में चलती चली गयी है। योगी आदित्यनाथ अपना वार्ड नहीं जीत पा,। राष्ट्रपति की बहु निर्दल प्रत्याशी के रुप में लड़ी गयी। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपना पूरा जिला हार गये। इसलि, उत्तर प्रदेश के नगर निकाय के नतीजों को गुजरात के बरअक्स नहीं देखा जाना चाहि, । हालांकि जी,सटी के बाद पहला चुनाव था नोटबंदी के बाद भी पहला चुनाव यूपी में ही हुआ था उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने नोटबंदी के प{ा में प्रचंड जनादेश सुनाया था पर यह जनादेश मोदी के उस साख का नतीजा भी था जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री किसी का चेहरा पेश नहीं किया था। लड़ाई मोदी बनाम अखिलेश यादव बनाम मायावती थी। गुजरात में भी लड़ाई मोदी बनाम राहुल है।
नरेंद्र मोदी चुनावी राजनीति के इस समय के सबसे मंझे हु, खिलाड़ी हैं वे हमेशा हर राजनैतिक दल को अपने मैदान पर लड़ने को विवश कर देते हैं। विपक्ष के मुद्दे भी मोदी ही तय करते हैं। यूं कह सकते हैं कि विप{ा उन्हीं मुद्दों को हाथ में लेता है जिसमें लडाई मोदी बनाम विपक्ष हो जाय। गुजरात में बहुत खूबसूरती से नरेंद्र मोदी ने बाहरी सेनापतियों के भरोसे लड रही कांग्रेस को लड़ाई भाजपा के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी बनाम उसके किसी उम्मीदवार की जगह मोदी बनाम राहुल गाँधी कराने में कामयाबी हासिल कर ली है। तभी तो उन्होंने गुजरात की अस्मिता के मुद्दे पर चुनाव को चटक सियासी रंगो में रख दिया है।
गुजरात गौरव और गुजरात की अस्मिता के सवाल पर मोदी अव्वल पायदान पर खड़े हैं। यही वजह है कि निरंतर मजबूत हो रही कांग्रेस, धीमी गति से ही सही परिपक्व हो रहे राहुल गाँधी दलित नेता जिग्नेश मेवानी, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के ,कजुट होने का बाद मोदी की पराजय की भविष्यवाणी कराना किसी के लि, भी मुश्किल हो रहा है। मोदी ने राहुल गाँधी को लड़ाई हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व के चैसर पर लड़ने के लि, मजबूर किया है। वे हर पांचवी सीट पर ,क सभा कर रहे हैं। उनके भावुक अपीलों का करिश्मा सभा में भले न दिख रहा हो पर वोटों में दिखने वाला लगता है।
शंकर सिंह वा?ोला कांग्रेस से अलग होकर भाजपा की मदद कर रहे हैं। केशूभाई पटेल की सक्रियता भी कुछ यही करती दिख रही है। राहुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही उनकी पहली अग्निपरी{ाा भी मोदी के ही मैदान पर हो रही है। मोदी का कद पार्टी से बड़ा दिख रहा है, राहुल कांग्रेस के पर्याय बनते दिख रहे हैं। हकीकत यह है कि गुजरात के चुनाव में मोदी के सामने गरीबों की आस और युवाओं के सपने बरकरार रखने की चुनौती है।
लोग गुजरात में मुख्यमंत्री रूपाणी से मोदी काल की अपेक्षा करने लगे हैं। 9-6 फीसदी आबादी वाले मुसलमान 37 फीसदी आबादी वाले ओबीसी, 8 फीसदी आबादी वाले दलित, 16 फीसदी आबादी वाले पाटीदार वाले गुजरात में कांग्रेस खाप समीकरण गढ़कर मोदीकाल से अधिक सीटें जीतने का करिश्मा कर दिखाया था। कुछ जातीय समीकरण को आग पीछे कर कांग्रेस भाजपा के पराजय की कहानी लिखना चाह रही थी पर मोदी राजनीतिक समीकरण के केंद्र में खुद आकर कांग्रेस की मंशा पर पलीता लगते दिख रहे हैं। जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें फेल होती दिख रही हैं। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे गौरव और अस्मिता के प्रश्न चटख हो रहे है। नरेंद्र मोदी यह तक कह रहे हैं कि कांग्रेस ने ही मोरारजी देसाई को भी जेल भेजा था। मोरारजी देसाई पहले ,ऐसे गुजराती थे जो प्रधानमंत्री बने थे।
मोदी ने गुजरात की राजनीति के भाषिक व्यवहार और विमर्श दोनों ही बदल दि, हैं। अगर यह मैदान नरेंद्र मोदी का न होता तो राहुल की मेहनत और राजनीति जरुर रंग लाती। पर, मैदान तो मोदी का ही है। मुद्दे भी उन्होंने अपने आसपास सेट कर लि, हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी ने सभी 115 सीटों पर तकरीबन 53 फीसदी वोट हासिल किया था।
2014 के लोकसभा चुनाव में वोटों की संख्या 15 फीसदी बढ़कर 1 करोड़ 5 लाख हो गयी। यह कह सकते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट 65 फीसदी से ज्यादा हो गया। हालांकि 31 सीटें ,ऐसी थी जहां 10 हजार से कम वोटों के अंतर से जीत हुई थी। यही अंतर कांग्रेस के उम्मीद का सबब है। लेकिन चुनाव गुजरात की अस्मिता और गौरव पर हु, तो कांग्रेस के लि, नाउम्मीद होना लाजमी है। उत्तर प्रदेश में भी मोदी की जगह कोई और चेहरा होता तो अखिलेश की साइकिल पंचर नहीं होती, मायावती का हाथी बैठ नहीं जाता, कांग्रेस के हाथ से अखिलेश की साइकिल फिसल नहीं जाती पर गुजरात में कसौटी पर मोदी ने ,क बार फिर खुद को रखा है। यही उनकी राजनीति है। यही उनकी ताकत है।
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