×

अब गोवा की बारी!

Dr. Yogesh mishr
Published on: 27 Aug 2018 1:39 PM IST
प्रकृति ने हमें जो भी उपहार में दिया है। यदि हम उसका उपयोग करते रहें तो अनंत पीढ़ियों तक प्रकृति का दिया हुआ कोई भी उपहार खत्म होने वाला नहीं। लेकिन हम प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं का उपयोग की जगह उपभोग करने लगते हैं। उपयोग का भी पैमाना और फार्मूला-‘सस्टेनेबल कंजमशन’ है। लेकिन उपभोग की स्थिति में हम किसी भी फार्मूले को मानने को तैयार नहीं होते हैं। पर प्रकृति के साथ किये गये छेड़छाड़ का हमें खामियाजा भुगतना पड़ता है। केरल का जल प्रलय इसी का नतीजा हैै। ऐसा  नहीं की यह अचानक फाट पड़ा बल्कि यह प्राकृतिक  संसाधनों के बेतहाशा दोहन का परिणाम है।  रत्नगर्भा हमारी धरती माता की कोख हमने सूनी कर दी है। केरल ही क्यों-गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात भी अगर केरल सरीखी तबाही से गुजरें तो कोई हैरत नहीं होना चािहए।

पश्चिमी घाट के इन छह राज्यों के परिस्थितिक अध्ययन के लिए केन्द्र सरकार ने मनमोहन सिंह के कार्यकाल में डा. माधव गाडगिल की अध्यक्षता में ‘वेस्टर्न घाट इकोलाॅजी एक्सपर्ट कमेटी’ का गठन किया। इस कमेटी का काम अरब सागर की ओर 1500 किलो मीटर वर्ग क्षेत्रफल वाले घाट की स्थिति का अध्ययन करके इलाके के संवेदनशीलता पर रिपोर्ट देना था। गाडगिल ने सुझाव दिया कि छह राज्यों में फैले घाट को ‘इकोलाॅजिकली सेंस्टिव’ घोषित कर दिया जाये। इस क्षेत्र में औद्योगिक और खनन गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाये। इस इलाके में जेनेटिकली माॅडिफाइड फसलों की खेती पर प्रतिबंध हो, रसायनिक कीटनाशकों, प्लास्टिक के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया जाये, नई रेल लाइनों-सड़कों, ताप  बिजली घरों, नये बांध और खनन आदि पर प्रतिबंध हो। इस कमेटी के गठन का एलान उस समय पर्यावरण मंत्री रहे जयराम रमेश ने ‘सेव दि वेस्टर्स घाट्स’ नामक तामिलनाडु के एक स्वयंसेवी संगठन के कार्यक्रम में शिरकत करते हुए किया था। पश्चिम घाट में 500 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है। क्षेत्र के घने जंगल और मिट्टी को संरक्षित कर लेते हैं। बाकी पानी नदियों में मिल जाता है। दक्षिण की अधिकांश नदियां इसी पश्चिमी घाट से निकलती हैं। जिसमें करेल की सभी 44 नदियां शामिल हैं।

लेकिन जिस सरकार ने इस गाडगिल कमेटी का गठन किया। उसी को उस कमेटी की सिफारिशें इसलिए रास नहीं आईं, क्योंकि उससे सरकार की अवैध आमदनी पर बट्टा लगता था। उसके विकास के दावें थमते थे। नतीजतन, जब जयंती नटराजन पर्यावरण मंत्री बनी तो उन्होंने गाडगिल कमेटी की सिफारिशों को खारिज करने के लिए आंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक दूसरी कमेटी गठित कर दी। इस कमेटी की भाषा और स्वर वही थे। जो सरकार चाहती थी। कस्तूरीरंगन कमेटी का काम गाडगिल कमेटी के सिफारिशों की परख करना था। वर्ष 2013 में इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी। मोटे तौर पर यह कमेटी गाडगिल कमेटी के सिफारिशों को खारिज तो नहीं कर पाई। लेकिन उसने यह जरूर कहा कि पश्चिमी घाट के सिर्फ एक तिहाई हिस्से को ‘इकोलाॅजिकली सेंस्टिव’ माना जाये। इस कमेटी का निष्कर्ष था कि पश्चिमी घाट का सिर्फ 35 फीसदी  यानी 60 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका ही वानस्पतिक रूप से समृद्ध है। इसी इलाकों को ‘इकोलाॅजिकली संेंस्टिव एरिया’ माना जाये। इसी इलाके मंे खनन पर प्रतिबंध लगाय जाये। नये ताप बिजलीघर न बनाये जायें। नये उद्योग न लगाये जायें। नई टाउनशिप न बसायी जाये। जबकि गाडगिल कमेटी ने तकरीबन 1,031,08 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र को खतरनाक माना था। सरकार तो इससे आगे जाकर कस्तूरीरंगन कमेटी की सिफारिश को भी अपने हिसाब ले लागू किया। पश्चिमी घाट के केवल 57 हजार वर्ग किलोमीटर एरिया को नोटिफाई किया जिनमें खनन गतिविधियों, बड़े निर्माण, थर्मल पाॅवर प्लान्ट, अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को प्रतिबंधित किया गया।

सरकार की इसी अनदेखी का नतीजा है कि हम केरल में जलप्रलय झेल रहे हैं। क्योंकि 1973 से 2016 के बीच केरल में 9,06,440 हेक्टयेर क्षेत्र खत्म हो गया। राज्य में 2007 में  7,66,066 हेक्टेयर जलीय भूमि अब घटकर 1,65,486 हेक्टेयर रह गई है। कस्तूरीरंगन कमेटी ने केरल के जिस इलाके को ‘इकोलाॅजिकली सेंस्टिव’ एरिया कहा था उसमें कुन्नूर जिले को कोट्टियूर गांव भी शामिल था जो भीषण भूस्खलन से तबाह हो गया।  गोवा में पश्चिमी घाट की ऊंचाई केरल जैसी नहीं है। ऐसे में यह कैसे माना जाये कि केरल की तबाही का मंजर लेटलतीफ गोवा को नहीं झेलना होगा। यहां भी वैध खनन की तुलना में अवैध खनन अधिक होता है। यहां के अवैध खनन को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता समूहों ने जो पर्दाफाश किया। उसके अध्ययन के लिए एमबी शाह आयोग का गठन किया गया। इस कमेटी ने पाया कि खनन माफियाओं की हरकतों से जंगल का व्यापक विनाश हुआ है। वन्य जीवों का सफाया हुआ है। प्रदूषण स्तर हैरतअंगेज स्तर तक पहुंच गया। इंडियन ब्यूरो आॅफ माइंस के अनुसार गोवा में लौह अयस्क  भंडार 12 मिलियन टन का है। सर्वोच्च अदालत ने हस्तक्षेप करके सिर्फ 20 मिलियन टन सालाना खनन का आदेश दिया है। पर सवाल यह उठता है कि अकूत संपदा कमाने की लोभ में पड़े व्यापारी इस प्रतिबंध को क्यों मानेंगे। वह भी तब जबकि सरकार खुद ही अपने द्वारा गठित गाडगिल और कस्तूरीरंगन कमेटी की सिफारिशों को पूरी तरह मानने को तैयार नहीं हो पायी। उसने मनचाहा जोड़ा, अनचाहा घटाया। जिस काम को सरकारें नहीं कर रही हैं उसे हम बाजार और व्यापार से करने की उम्मीद करें जिसकी पृष्ठभूमि ही धन और लाभ है। वह लाभ को भी शुभ देखता और मानता है। अगर हमने पृथ्वी को दोहन रोकने के खिलाफ कड़े फैसले नहीं लिये तो केरल की तबाही का मंजर पश्चिमी घाट के छह राज्यों में भी लेटलतीफ कभी इससे भयावह स्थिति में देखा जा सकता है। इससे बचने के लिए हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को सिर्फ उपयोग करें।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

Next Story