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मूडबिद्री : जैनियों की काशी
Moodbidri: न धर्म में बसदी शब्द संस्कृत के वसति शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ठहरने का स्थान। मूडबिद्री में 18 मुख्य जैन मंदिर अथवा बसदी हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध सहस्त्र-स्तंभ मंदिर जिसमें 1,000 खंभे विशिष्ट नक्काशीदार और मूर्तियों से सजाए गए है।
Moodbidri: देश के कर्नाटक राज्य में दक्षिण कन्नड़ जिले का शहर मूडबिद्री जैनकाशी के नाम से मशहूर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। कर्नाटक के तुलुनाडू का एक भाग, मूडबिद्री मैंगलोर-कारकला मार्ग पर स्थित एक शांत वातावरण वाला शहर है।
यहां कई जैन मंदिर सदियों पुराने हैं। जो दिगंबर संस्कृति को दर्शाते हैं । जिससे इस स्थान का विशिष्ट महत्व बढ़ जाता है। यह शहर जैन शैक्षणिक संस्थानों का घर है। जहां जैन धर्म के विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। इन संस्थानों ने जैन धर्म और इसकी संस्कृति को बढ़ावा देने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। मुदबिद्री दो तुलु शब्दों से बना है जिसमें मुदु का मतलब ‘पूर्व’और बिदिरु का मतलब ‘बांस’ होता है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां उगाये जाने वाले बांस के कारण इस स्थान का नाम मूडबिद्री पड़ा।
मूडबिद्री जैन धर्म के केंद्र के रूप में मशहूर है, जहां कई जैन मंदिर हैं। ऐसा माना जाता है कि मूडबिद्री में 14वीं शताब्दी में भैररासा वंश के जैन राजाओं के शासनकाल में जैन धर्म का प्रचार प्रसार हुआ। भैररासा राजा कट्टर जैन थे। उनके शासनकाल में यहां कई जैन मंदिरों और स्मारकों का निर्माण हुआ। यह शहर जैन कला और संस्कृति का केंद्र बन गया। यहां के प्रत्येक जैन मंदिर के सामने, ऊंचा पत्थर का स्तंभ जिसे मानस्तंभ कहते हैं, देखने को मिल जाएगा।
यहां देखने लायक कई जैन मंदिर हैं। इसके अलावा यहां का प्राकृतिक दृश्य, झरने आदि भी पर्यटकों को खूब लुभाते हैं। यहां के कुछ मशहूर जगहों में देखने लायक निम्नलिखित स्थान हैं:
साविरा कंबदा बसदी या सहस्त्र-स्तंभ मंदिर
जैन धर्म में बसदी शब्द संस्कृत के वसति शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ठहरने का स्थान। मूडबिद्री में 18 मुख्य जैन मंदिर अथवा बसदी हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध सहस्त्र-स्तंभ मंदिर जिसमें 1,000 खंभे विशिष्ट नक्काशीदार और मूर्तियों से सजाए गए है। इस 1000 स्तंभ वाले मंदिर में धार्मिक और वास्तुकला का एक अनोखा उदाहरण देखने को मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि नेपाली, होयसला और ओरिएंटल वास्तुकला तर्ज पर बना यह मंदिर 600 साल से भी ज़्यादा पुराना है। इन स्तंभों पर नक्काशीयुक्त लकड़ी के तख्तों का भी इस्तेमाल किया गया है।
वर्ष 1430 में भैररासा राजा देवराय वोडेयार द्वारा निर्मित यह सहस्त्र स्तंभ जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से एक भगवान चंद्रनाथ को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में कुल 31 साल लगे और उस जमाने में करीब 10 करोड़ रुपये की लागत आई थी।
मूडबिद्री में 18 मंदिर हैं, जिनमें 10 मंदिर एक ही मार्ग पर स्थित हैं। यह मार्ग जैन मंदिर मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। जैन साहित्यों में मूडबिद्री के 18 मंदिरों, 18 तालाबों व गावों को आपस में जोड़तीं 18 मार्गों का भी वर्णन है।
यहां के नक्काशीदार स्तंभ आकर्षक एवं अत्यंत प्रशंसनीय होते हुए धर्म निरपेक्ष होने का भी सबूत देते हैं। मंदिरों के स्तंभों पर कई हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं। इन बसदियों के स्तंभों पर जैन तीर्थंकर की धातु एवं पत्थरों की बनी 3 से 9 फीट की ऊंचाई वाले कई मूर्तियां भी शामिल हैं।
इस मंदिर में आन्ध्र प्रदेश के लेपाक्षी मंदिर में लटकते स्तंभ के जैसा एक स्तंभ है, जो कला और तकनीक का एक आश्चर्यजनक नमूना प्रस्तुत करता है। यहां के प्रत्येक स्तंभ के आधार पर बना ज्यामितीय आकार गणितीय समीकरण का उदाहरण देता दिखाई देता है।
श्री देवी अन्नपूर्णेश्वरी मंदिर
मूडबिद्री से 9 किमी दूर कोडयाडका में करीब 6 एकड़ क्षेत्र में श्री देवी अन्नपूर्णेश्वरी मंदिर फैला हुआ है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण 61 फीट ऊंची भव्य भगवान हनुमान की प्रतिमा है। इसके अलावा यहां कई अन्य भगवान जैसे श्री देवी, गणेश, हनुमान, अयप्पा और साईं बाबा के भी मंदिर हैं। इस मंदिर के आसपास सुंदर वनस्पतियों और जीवों की भरमार है, जो पर्यटकों को आकर्षित करती है।
गुंड्याडका झरना
मूडबिद्री से करीब 10 किमी दूर गुंड्याडका झरना प्रकृति प्रेमियों की पसंदीदा जगह है। शहरी भागदौड़ से दूर एकांत में जंगल के बीच स्थित इस मनमोहक जगह तक एक छोटा सा ट्रेक कर सैलानी पहुंच सकते हैं। वैसे तो इस जगह पर घूमने का सबसे अच्छा समय मानसून के दौरान होता है, लेकिन आप अपने हिसाब से कभी भी समय निकालकर यहां आकर आनंद ले सकते हैं।
त्रिभुवन तिलक चूड़ामणि बसदी
जैन धर्म के एक अन्य तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में जैन राजा इम्मादी भैरव प्रथम ने कराया था। अपनी उत्कृष्ट नक्काशी, मूर्तियों और भित्तिचित्रों के लिए यह मंदिर मशहूर है। तीन मंजिले इस मंदिर में जैन पौराणिक कथाओं के दृश्यों को पर्यटक देख सकते हैं।
पार्श्वनाथ मंदिर या गुरु बसदी
मूडबिद्री का यह पहला जैन मंदिर जिसे गुरु बसदी भी कहा जाता है। इस मंदिर का वर्णन 8वीं सदी के तांबे की पट्टिका में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की काले पत्थर की बनी यह ऊंची प्रतिमा हजारों साल पुरानी है। इस प्रतिमा की खोज 8वीं सदी में जैन भिक्षुओं ने की थी और उसी समय से यह प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस प्रतिमा की खोज और स्थापना गुरु के हाथों हुई थी जिससे इसका नाम गुरु बसदी पड़ा। अभी भी जैन भट्टारकों का इस मंदिर में राज्याभिषेक करने की परंपरा है। प्राचीन काल से यह मंदिर जैन गुरुओं का आध्यात्मिक केंद्र रहा है।
सोन्स फार्म
यह फार्म करीब 100 एकड़ क्षेत्र में फैला विदेशी फलों और फूलों वाले पेड़ों का एक अभयारण्य है, जो नवीन कृषि केंद्र के रूप में मशहूर है। यह जगह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां आपको आम, चीकू, काली मिर्च, दालचीनी, जायफल, कोको, काजू, नारियल, अनानास और वेनिला के पेड़ देखने को मिल जाएंगे जिस पर साल भर फल आते हैं। इसके अलावा केला, मैंगोस्टीन, डूरियन, चेरी के कई प्रकार, पैशन फ्रूट, बांस, कटहल, स्टार एप्पल, स्टार फ्रूट, रोज एप्पल, शरीफा, एग फ्रूट, शहतूत, सुपारी, लौंग, ब्रेडफ्रूट, बटर फ्रूट जैसे कई अन्य पेड़ भी देख सकते हैं।
कैसे पहुंचे ?
हवाई मार्ग से मूडबिद्री पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां से यह शहर लगभग 35 किमी दूर है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस के द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए मडगांव स्टेशन निकटतम है। यहां से सुरथकल के लिए हर 4 घंटे में ट्रेन उपलब्ध है।
सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। कर्नाटक के हर शहर से मूडबिद्री अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। बस , टैक्सी या निजी वाहन से यहां पर्यटक पहुंच सकते हैं।
यहां घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च तक का रहता है। अभी छुट्टियों के दिनों में परिवार या दोस्तों के साथ यहां घूमने का प्लान बना सकते हैं।
12 वर्षों में एक बार आयोजित होने वाले जैन धर्म का महामस्तकाभिषेक उत्सव एक खास आयोजन होता है जिसमें दुनिया भर से हज़ारों की तादाद में भक्त और पर्यटक यहां आते हैं। इस उत्सव में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र भगवान बाहुबली की मूर्तियों को दूध, जल और अन्य शुभ तरल पदार्थों से स्नान कराया जाता है, जिसे अभिषेक कहते हैं। इसमें जैन संस्कृति की भव्य परंपराओं को देखने का अवसर मिलता है।