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कोरोना से नहीं है डरने की जरूरत

Dr. Yogesh mishr
Published on: 7 March 2020 8:27 AM GMT
दुनिया भर में कोरोना वायरस को लेकर जिस तरह हाय-तौबा मचा है। उससे डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि दुनिया में जितना कोरोना वायरस नहीं फैला है उससे ज्यादा इसकी खबरें और तरह तरह की जानकारियां सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रही हैं। लोग तरह तरहे के नुस्खे साझा कर रहे हैं। इस बीमारी के बारे में जानकारियों के ओवरडोज को भारी ‘इन्फोडेमिक’ जरूर घोषित कर दिया है। वैसे यह पहली बार नहीं है कि किसी विश्वव्यापी बीमारी के फैलाव के साथ सोशल मीडिया पर अधकचरी जानकारियों की बाढ़ आयी है। इसकी वजह साफ है  कि अब सोशल मीडिया के ढेरों प्लेटफार्म और अरबों यूजर हैं। पहले सिर्फ फेसबुक ही था। उसके यूजर भी बहुत ज्यादा नहीं हुआ करते थे। 2003 में जब दुनिया में ‘सार्स’ वायरस फैला था तब फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप अस्तित्व में ही नहीं आये थे। 2009 में स्वाइन फ्लू फैलने के वक्त सिर्फ फेसबुक और ट्विटर ही थे।फेसबुक के यूजर की संख्या 36 करोड़ थी।जबकि 2010 की शुरुआत में बाजार में आये ट्विटर के यूजर थे 3 करोड़। व्हाट्सअप नया नया मार्केट में आया था। इसके ग्राहक बहुत कम थे।

2014 में इबोला वायरस का प्रकोप हुआ।उस वक्त फेसबुक के यूजर बढ़ कर 1 अरब 39 करोड़ 30 लाख हो चुके थे। व्हाट्सअप के यूजर हो गए थे 60 करोड़। जबकि ट्विटर  पर अपनी बात साझा करने वाले लोगों की संख्या 28 करोड़ 80 लाख थी। 2019 में कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू हुआ जो अभी चल ही रहा है। आज के दौर में फेसबुक बढक़र 2 अरब 49 करोड़ 80 लाख यूजर का हो चुके हैं। व्हाट्सअप के यूजर हैं 1 अरब 50 करोड़ । ट्विटर के  यूजर्स की संख्या हैं 33 करोड़। 2009 से 2019 के बीच फेसबुक का यूजरबेस सात गुना और ट्विटर का 11 गुना बढ़ चुका है। हालत यह हो गई है कि सोशल मीडिया पर सही-गलत जानकारियों के बीच फंसे लोगों को सही सूचना पहुंचाने के लिए डब्लूएचओ को भी इसी सोशल मीडिया का ही सहारा लेना पड़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को अभी महामारी घोषित नहीं किया है ।


कोरोना वायरस कैसे शुरू हुआ यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस एकदम नया है । प्रकृति से आया है। यह भी कहा जा रहा है कि यह वायरस वन्य जीवन से उपजा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस वायरस का जीन चमगादड़ में पाए जाने वाले एक वायरस से मिलते जुलते हंै। एक थ्योरी यह भी है कि चीन की वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वाइरोलोजी में इस वायरस पर रिसर्च हो रहा था और वहीं से यह लीक हो गया। कोरोना का पहला मामला 29 दिसंबर, 2019 को सामने आया। चार तरह के कोरोना वायरस पाये गये।इसमें पहले बुख़ार होता है फिर सूखी खांसी। फिर  एक हफ़्ते बाद साँस लेने में दिक्कत होती है। कोरोना की बीमारी खासा समय लेती है। इसके लक्षण आपको बहुत पहले दिख जाते हैं। इन लक्षणों का हमेशा मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फ़ेल होना और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। उम्रदराज़ लोग और जिन लोगों को पहले से ही कोई बीमारी है (जैसे अस्थमा, मधुमेह, दिल की बीमारी) उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। कुछ और वायरस में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं जैसे ज़ुकाम और फ्लू में।
किस उम्र पर ज्यादा प्रभाव
चीन में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की मौतों का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि सबसे ज्यादा जोखिम वाले 60 से 79 आयु वर्ग के लोग हैं। इनमें भी 70 से 79 उम्र के लोगों के लिए कोरोना सबसे ज्यादा घातक सिद्ध हुआ है। कोरोना वायरस से मरने वालों की तादाद 3.8 फीसदी रही है। लेकिन इसमें वे केस भी शामिल हैं जो संक्रमण फैलने की शुरुआत में वूहान शहर में पाये गये थे। वूहान शहर हुबेई प्रांत में है। पूरे प्रांत में संक्रमण से मरने वालों की संख्या एक फीसदी से भी कम रही है। 10 साल से कम उम्र के किसी बच्चे की मौत नहीं हुई। 10 से 39 आयु वर्ग में मृत्यु दर 0.2 फीसदी रही है। 40 से 49 आयु वर्ग में मृत्यु दर 0.4  फीसदी। 50 से 59 आयु वर्ग में 1.3 फीसदी। 60 से 69 आयु वर्ग में 3.6 फीसदी। 70 से 79 आयु वर्ग में 8 फीसदी। 80 वर्ष से ज्यादा आयु वर्ग में 14.8 फीसदी मृत्यु दर रही है। सर्वाधिक 312 मौतें 70 से 79 आयु वर्ग के बीच के लोगों की हुई हैं।

सार्स वायरस से हुई थीं ज्यादा मौतें
कोरोना वायरस से पहले दुनिया भर में  सार्स और मार्स कहर बरपा चुके हैं। लेकिन कोरोना की तुलना में इन दोनों संक्रमणों से काफी कम मौतें हुईं हैं।  इसकी वजह इन वायरसों से मुकाबले के लिए तैयार होना था। कोरोना जैसी बीमारियों से निपटने के लिए बचाव की तैयारी सबसे जरूरी होती है। कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में मृत्यु दर 2 से 5 फीसदी पायी गई है। तमाम ऐसी बीमारियां है जिनमें मरने वालों की तादाद कोरोना से संक्रमित होकर मरने वालों की संख्या से अधिक होती है। मसलन मौसमी फ्लू को लें।  मौसमी फ्लू से 0.1 फीसदी रहती है। लेकिन मौसमी फ्लू से हर साल बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होते हैं और 4 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान स्पेनिश फ़्लू से दो करोड़ लोग मारे गये थे। यह सैन्य प्रशिक्षण शिविरों से शुरू हुआ था। वर्ष 2012 में सऊदी अरब से निकल कर 27 देशों में फैले मार्स वायरस से 2494 लोग संक्रमित हुए थे जिनमें से 858 की मौत हो गई। यानी मृत्यु दर 34 फीसदी रही। वर्ष 2002 में चीन के गुआंगडोंग प्रांत से निकल कर 30 देशों में फैले सार्स वायरस से 8473 लोग संक्रमित हुए । जिनमें से 813 लोगों की मौत हो गई। मृत्यु दर 9.5 फीसदी रही।

स्वाइन फ्लू या एच-1, एन-1 वायरस से 2009 में पूरे विश्व में लोग बीमार पड़े। एक साल में ही इस वायरस से करीब साढ़े पांच लाख लाग मरे गए थे। इससे मृत्यु दर 0.02 फीसदी रही। वर्ष 2017 में दुनिया भर में 5 करोड़ 60 लाख लोगों की मृत्यु हुई। इसमें 1 करोड़ 77 लाख लोगों की मौत हृदय रोग से हुई। कैंसर से 95 लाख मौतें हुईं। 39 लाख मौतें सांस की बीमारियों से हुईं। कोरोना से अभी तक दुनिया भर में 3 हज़ार मौतें हो चुकी हैं। 12 लाख लोग सडक़ एक्सीडेंट में मारे गए। सडक़ दुर्घटना में रोज  तकरीबन ५ सौ लोग अपनी जिन्दगी गंवाते हैं। लेकिन पिछले तीस-चालीस वर्र्षो से सिर्फ केन्द्र और राज्य सरकारें हेलमेट पहनकर दोपहिया वाहन चलाने और सीट बेल्ट लगाकर चार पहिया वाहन चलाने के लिए जागरूक कर रही हैं। तमाम नियम कानून बनाये गये हैं। जुर्माना वसूलने का प्रावधान किया गया है। परन्तु किसी भी मीडिया समूह या सोशल मीडिया पर हेलमेट पहन कर गाड़ी चलाने को लेकर अभियान नहीं चलाया गया। महज इसलिए क्योंकि इससे बाजार नहीं बनता है। कोरोना के शोर ने बाजार से मास्क गायब कर दिये हैं। सैनेटाइजर महंगे दामों में बिक रहा है। शोर शराबे के बीच भय घर तो कर ही गया है। हर किसी को अपनी दुकान चलाने का मौका भी मिल गया है। मेरा मतलब कोरोना के बचाव के तरीके अपनाने पर जोर देना है। अगर आप संक्रमित इलाक़े से आए हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जा सकती है। घर पर रहें ऑफि़स, स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर न जाएं सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, ऑटो या टैक्सी से यात्रा न करें घर में मेहमान न बुलाएं। 14 दिनों तक ऐसा करें ताकि संक्रमण का ख़तरा कम हो सके। इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस पार्सल, चिट्टियों या खाने के ज़रिए फैलता है। कोरोना वायरस जैसे वायरस शरीर के बाहर बहुत ज़्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह सकते। शोर शराबा करके हाथ पैर ठंडे कर देना नहीं। सरकार ने मुक्कमल तैयारी कर रखी है। टोल -फ्री नंबर जारी किया है। इन सबका फायदा उठाने की जरूरत है।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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