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पर्यावरण बचाना है तो दूध और नॉन वेज खाना छोड़ें

raghvendra
Published on: 8 Jun 2018 3:52 PM IST
पर्यावरण बचाना है तो दूध और नॉन वेज खाना छोड़ें
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नयी दिल्ली: पर्यावरण की आपको अगर जरा भी चिंता है तो मांसाहार और डेरी उत्पाद का सेवन त्याग दें। पृथ्वी पर फार्मिंग का क्या हानिकारक असर होता है इसके बारे में अबतक की सबसे बड़ी रिसर्च में ये बात निकल कर आयी है। इस नई रिसर्च से पता चला है कि अगर मीट और डेरी उत्पाद का उपभोग एकदम खत्म कर दिया जाये तो दुनिया में फार्मों का एरिया 75 फीसदी तक घट जाएगा। इतना इलाका जितना अमेरिका, चीन, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया को मिला कर है। लेकिन इतनी फार्मिंग घटने के बावजूद दुनिया को पर्याप्त भोजन मिलता रहेगा।

शोध के अनुसार मांस और डेरी प्रोडक्ट्स से मात्र 18 फीसदी कैलोरी और 37 फीसदी प्रोटीन मिलता है जबकि इसके लिए कुल फार्मों का 83 फीसदी इस्तेमाल किया जाता है। कृषि से जितनी ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं उसका 60 फीसदी सिर्फ मांस और डेरी प्रोडक्ट्स के उत्पादन से पैदा होता है। ये भी जान लेना चाहिए कि पृथ्वी पर आज जितने भी स्तनपाई जीव हैं उसका 86 फीसदी इनसान या दुधारू पशु हैं।

यह शोध 119 देशों के 40 हजार फार्मों और 40 खाद्य पदार्थों के अध्ययन का नतीजा है। शोध में जमीन के इस्तेमाल, गैसों के उत्सर्जन, जल और वायु प्रदूषण पर इन 40 खाद्य पदार्थों के इम्पैक्ट की स्टडी की गयी। इंसान जो भी खाता है उसका 90 फीसदी यही 40 खाद्य पदार्थ हैं। प्रतिष्ठित ‘साइंस’ पत्रिका में यह शोध प्रकाशित किया गया है।

ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोसफ पूर, जिनके नेतृत्व में यह शोध किया गया, उनका कहना है कि पृथ्वी पर आपका या किसी भी व्यक्ति का जो इम्पैक्ट पड़ रहा है उसे घटाने के लिये सबसे बड़ा कदम यही हो सकता है कि आप पूरी तरह शाकाहारी हो जायें। आज कृषि सेक्टर ही पर्यावरण की ढेरों समस्याओं का बहुत बड़ा कारण है। प्रोफेसर पूर ये भी कहते हैं कि दुनिया के सब लोग शाकाहारी हो जायें ये भी जरूरी नहीं है। सबसे ज्यादा जो प्रोडक्ट पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं उनका इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। उदहारण के तौर पर बीफ और जलीय प्राणियों का ही इस्तेमाल बंद कर दिया जाये तो भी बहुत असर पड़ेगा। जहाँ तक डेरी प्रोडक्ट्स की बात है तो दुधारू पशु पालने में पर्यावरण का जो नुकसान होता है उसके आगे डेरी प्रोडक्ट्स के फायदे नगण्य हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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