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यहां बना है देश का पहला मकड़ालय, रखीं हैं 150 तरह की मकड़ियां, और भी है बहुत कुछ...
मध्यप्रदेश के जबलपुर में देश का पहला स्पाइडर इंटरप्रिटेशन सेंटर अरेकनेरियम (मकड़ालय) शुरू हो गया है। सेंटर में मकड़ियों की 150 से अधिक प्रजातियां संरक्षित की गई हैं।
जबलपुर: जुबान पर मकड़ी का नाम आते ही बहुत से लोग नाक और मुंह सिकोड़ने लगते है। उन्हें छुना तो दूर लोग देखना भी पसंद नहीं करते है लेकिन आज हम आपको भारत में मौजूद एक ऐसी जगह के बारें में बता रहे है जहां पर न केवल लोग दूर-दूर से मकड़ियों को देखने के लिए आते है बल्कि उनके साथ फोटोग्राफी कराने में आनंद की अनुभूति भी करते है।
ये जगह कही और नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के जबलपुर में है। यहां देश का पहला स्पाइडर इंटरप्रिटेशन सेंटर अरेकनेरियम (मकड़ालय) शुरू हो गया है। सेंटर में मकड़ियों की 150 से अधिक प्रजातियां संरक्षित की गई हैं। यहां पेड़-पौधों के पत्तों पर, घास के तिनकों पर, चट्टानों पर.. यहां-वहां-जहां-तहां, चारों ओर अलग-अलग रंग-रूप और आकार-प्रकार की मकड़ियां दिखाई देती हैं। कोई डरावनी है, तो कोई बेहद खूबसूरत। कोई इतनी छोटी कि आसानी से नजर भी न आए, तो कोई इतनी बड़ी कि देखकर आंखें फटी की फटी रह जाएं। हाथ के नाखून से लेकर पंजे के आकार तक की, अनेक मकड़ियां यहां मौजूद हैं।
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मकड़ियों की प्रजातियों को जुटाने में लगे 20 साल
जबलपुर स्थित उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान (ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, टीएफआरआइ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.सुमित चक्रवर्ती ने 20 साल की मेहनत से देश के अलग-अलग हिस्सों से इन प्रजातियों को जुटाया है। तीन साल की रिसर्च के बाद सेंटर में इनका प्रजनन और सरंक्षण संभव हो पाया है। डॉ. सुमित चक्रवर्ती के मुताबिक मकड़ियों के वेनम (जहर) से कई दवाएं बनाई जा सकती हैं। इस पर काम शुरू हो गया है।
मकड़ियों को संरक्षित करने के प्रयास के बाद अब टीएफआरआइ के वैज्ञानिक जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। धान की फसल पर मकड़ियों के प्रभाव पर शोध किया जा रहा है।
जहां यह देखा जाएगा कि धान की फसल में लगने वाले कीटों को मकड़ी के उपयोग से कैसे कम या खत्म किया जा सकता है। अगर यह प्रयोग सफल होता है तो धान की फसल में कीटनाशक का प्रयोग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
तीन भागों में बना मकड़ालय
मकड़ालय में पहले एक लैब बनाया गया है, जहां मकड़ियों की ब्रीडिंग और पहचान का कार्य किया जाता है। दूसरे हिस्से में इंटरप्रिटेशन सेंटर है। तीसरे भाग को स्पाइडर गार्डन नाम दिया गया है। यहां तरह-तरह की मकड़ियों को उनके प्रकार के अनुसार चट्टानों, पेड़ों, झाड़ियों जैसा माहौल देकर संरक्षित किया जा रहा है। मकड़ालय स्कूल-कॉलेज के स्टूडेंट्स के साथ अन्य लोगों के लिए भी खोला गया है।
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काम की बात
दुनिया में मकड़ियों की लगभग 46572 प्रजातियां हैं। भारत में 63 परिवारों की 1500 प्रजातियों की मकड़ियां पाई जाती हैं।कुछ मकड़ियां जाला बनाती हैं तो कुछ जाला नहीं बनाती। जो जाला बनाती हैं वो जाले के माध्यम से शिकार करती हैं और जाला नहीं बनातीं वो घात लगाकर शिकार करती हैं।
मकड़ियों की लंबाई 0.5 मिलीमीटर से लेकर 7 इंच तक हो सकती है। इनका वजन लगभग 0.2 ग्राम से 50 ग्राम तक हो सकता है। एक मकड़ी की उम्र 6 से 7 माह होती है लेकिन कुछ मकड़ियां 42 से 45 वर्ष तक भी जीवित रहती हैं।
एक मकड़ी के आठ पैर, आठ आंखें और पेट के आठ भाग होते हैं। सभी मकड़ियां जहरीली नहीं होतीं, लेकिन टेरंटूला, इंडियन रेड बैक स्पाइडर बहुत जहरीली होती है। पूरी दुनिया में अभी तक 100 लोगों की मौत मकड़ी के काटने से हो चुकी हैं। इसमें 2009 में दो केस पश्चिम बंगाल में हुए थे।
मकड़ी के जाले से बनी बुलेट प्रूफ जैकेट
नेफिला कुहली प्रजाति की जायंट वुड स्पाइडर जो जाला बनाती है, उसके जाले के धागे को सिल्क कहते हैं। जो मुख्यत: अमीनो एसिड के स्ट्रक्चर से बना हुआ प्रोटीन ही है। जाले का एक तार उतने ही पतले स्टील के किसी तार से दस हजार गुना अधिक मजबूत होता है। मकड़ी के जाले की इसी मजबूती को देखते हुए अमेरिका में सेना के लिए इससे बुलेट प्रूफ जैकेट तक बनाई गई है। इस युक्ति को अमेरिका पेटेंट करा चुका है। इस प्रक्रिया में मकड़ी के प्रोटीन को जेनेटिकली मॉडीफाइड करके उपयोग किया जा रहा है।
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