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India Jurassic Park: ये है भारत का 'जुरासिक पार्क'! जहां डायनासोर के अंडों की होती है पूजा, ऐसे विलुप्त हुआ जीव
Indias Jurassic Park: मध्य प्रदेश के धार जिले में डायनासोर के अंडे और जीवाश्म मिले हैं। स्थानीय लोग इन अंडों की पूजा करते हैं वहीं तस्करों की नजर इन जीवाश्मों पर है।
India's Jurassic Park: डायनासोर की गिनती धरती के सबसे विशालकाय जीवों में होती रही। इस जीव के लिए जितने मुंह उतनी बातें। कुछ तथ्य के करीब तो कुछ कल्पनाओं की बातें। डायनासोर पर बीते तीन दशकों में दुनियाभर में खूब बातें हुईं। लेकिन, वैज्ञानिकों और आम आदमी के भीतर डायनासोर के बारे में जानने की जिज्ञासा कभी कम नहीं हुई। मशहूर अमेरिकी निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने तो 'जुरासिक पार्क' नाम से 1993 में एक फिल्म ही बना दी। जुरासिक पार्क ने मनोरंजन तो खूब किया। हमारे मन कौतूहल भी पैदा किया।
दुनियाभर में डायनासोर पर कई शोध किए गए। ये आगे भी जारी रहेंगे। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, कि वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल इन दिनों मध्य प्रदेश के धार जिले में जमीन पर घूमने वाले विशालकाय जीवों के जीवाश्म तलाश रही है।'सोसाइटी ऑफ अर्थ साइंसेज' की रिपोर्ट की मानें तो कालखंड में धरती के इस हिस्से पर जो कुछ हुआ था उसके सबूत यहां बिखरे पड़े हैं। धार के एक बड़े हिस्से में ऐसे ही जीवाश्म बिखरे पड़े हैं। ये वही समय था जब धरती पर डायनासोर घूमा करते थे।
धार क्यों है भारत का 'जुरासिक पार्क'?
धार के बड़े इलाके में करोड़ों साल पहले की वनस्पति के जीवाश्म बिखरे हैं। ये बात अभी इसलिए सुर्खियों में है कि मध्य प्रदेश के 'इको टूरिज्म बोर्ड की पहल पर जाने-माने वैज्ञानिक धार पहुंचे हैं। वैज्ञानिकों को पूरे इलाकी की शोध रिपोर्ट तैयार कर देनी है। इस रिपोर्ट को UNESCO को भेजा जाएगा। ताकि बाग और धार के बड़े इलाके को 'इको हेरिटेज' का दर्जा दिया जा सके। इको हेरिटेज का दर्जा मिलने के बाद इस इलाके की धरोहर को संरक्षित रखा जा सकेगा। आपको बता दें, धार जिले को भारत का 'जुरासिक पार्क' भी कहा जाता है।
कई वजहों से नष्ट हुई सृष्टि
भूगर्भ वैज्ञानिक और पृथ्वी विज्ञान से जुड़े जानकार बताते हैं कि, धार के जिस क्षेत्र में शोध चल रहा है वहां पता चला है कि धरती का विनाश कभी तेज भूकंप तो कभी ज्वालामुखियों के विस्फोट से हुआ। उसके बाद समुद्र का पानी धरती पर आ गया। तब एक बार फिर उसका विनाश हुआ और कई प्रजातियां विलुप्त हो गईं। इन्हीं प्रजातियों में डायनासोर भी थी। विशेषज्ञों का मानना है कि डायनासोर की कई प्रजातियां अलग-अलग समय में पैदा हुईं। फिर समाप्त भी हो गईं। जानकार ये भी बताते हैं कि सिर्फ़ डायनासोर ही नहीं बल्कि उनसे भी बड़े 'टाइटनोसोरस' इस इलाके में पाए जाने के सबूत जीवाश्म के रूप में मौजूद हैं। धार के अलावा इसके सुबूत नर्मदा घाटी के किनारे भी मौजूद हैं। जानकार बताते हैं कि, नर्मदा घाटी के हजार किलोमीटर के दायरे में डायनासोर सहित कई विलुप्त जीवों के जीवाश्म फैले हुए हैं।
2 से 3 लाख वर्षों तक रहा डायनासोर का जीवनकाल
अभी तक दुनियाभर हुए शोध में ये बात सामने आई है कि डायनासोर की सभी प्रजातियों का जीवनकाल लगभग दो से तीन लाख वर्षों तक रहा है। इस कालखंड में अन्य जीव भी हुए। डायनासोर के अलावा उन जीवों के जीवाश्म भी धार जिले के उस इलाके में बिखरे पड़े हैं। भूगर्भ वैज्ञानिक कई समुद्री जीवों के जीवाश्म मिलने से भी स्पष्ट हो गया कि ये इलाक़ा कभी गहरे समुद्र का हिस्सा रहा है.
खुदाई हुई तो कई रहस्य होंगे उजागर
एमपी के धार जिले में डायनासोर की अलग-अलग प्रजातियों के तकरीबन 300 अंडों और 30 घोसलों के जीवाश्म जमीनी सतह पर मिले हैं। ये हालात तब है जब इस इलाके में वैज्ञानिकों ने योजनाबद्ध तरीके से खुदाई का काम शुरू भी नहीं किया है। इतनी बड़ी संख्या में अंडे तब मिले हैं जब जमीन की खुदाई नहीं हुई है। ये जीवाश्म करोड़ों वर्षों की जानकारी दे रहे हैं। अगर, सिलसिलेवार तरीके से खोज की जाए तो पृथ्वी को लेकर कई और भी रहस्य उजागर हो सकते हैं। धार में हालात ये हैं कि, जीवाश्म खेत में काम कर रहे किसानों को यूं ही आसानी से मिल जाते हैं। मध्य प्रदेश 'इको टूरिज्म' विभाग की मुख्य कार्यपालक अधिकारी समिता राजौरा ने समाचार संस्था बीबीसी को बताया कि, 'इस रिपोर्ट को जमा कर यूनेस्को को भेजा जाएगा। ताकि, बाग और धार के बड़े इलाके को 'इको हेरिटेज' का दर्जा मिल सके। इससे इस इलाके की धरोहर को संरक्षित रखा जा सकेगा। जिससे शोध को आगे बढ़ाया जा सकेगा।'
ऐसे शुरू हुई जीवाश्म की पूजा
आपको बता दें, धार जिले के अलग-अलग इलाकों के गावों में गोलाकार बड़े आकार के पत्थर हमेशा से ही मिलते रहे थे। मगर, किसी को ये नहीं पता था कि वह कितना महत्वपूर्ण है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि, अक्सर बच्चे बड़े आकर के गोलाकार पत्थर उठाकर ले आते थे। वो उनसे खेलते रहते थे। ये बतेब यहां के लिए आम थी। लेकिन, धीरे-धीरे बाग इलाके में ग्रामीणों ने इन गोलाकार पत्थरों की पूजा शुरू कर दी। फिर ये परंपरा शुरू हो गई।
तस्कर भी हुए सक्रिय
समय के साथ ये बात तस्करों तक भी पहुंच गई। जब तक ये बात शोधकर्ताओं तक पहुंचती, उन्हें संरक्षित किया जाता, इस इलाके के कई जीवाश्म तस्करों के हाथ लग गए। इसी क्षेत्र में वेस्ता मंडलोई नामक शख्स की दुकान भी है। वो अब इस क्षेत्र में इन जीवाश्मों के संरक्षण का काम भी करते हैं। वो बताते हैं कि धीरे-धीरे बहुत सारे बाहरी व्यक्ति इस इलाके में आने लगे। वो ग्रामीणों को लालच देकर उनसे बड़े गोल आकार पत्थरों को खरीदने लगे। बाद में पता चला ये तो डायनासोर के अंडे थे।
पुरखों से करते आ रहे हैं पूजा
बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो डायनासोर के अंडों की पूजा की परंपरा आज भी धार जिले के कई ग्रामीण इलाकों में है। कई स्थानीय लोग इसे 'शिवलिंग' समझ कर पूजा करते रहे हैं। स्थानीय नागरिक बताते हैं, डायनासोर के अंडों की पूजा आज से नहीं बल्कि पुरखों के समय से हो रही है। कुछ लोग बताते हैं कि अपने जन्म के समय से ही वो इसकी पूजा होते देख रहे हैं। इसे ग्रामीण 'गुल दगड़ा' कहते हैं। मगर, ये तो डायनासोर का अंडा था। कई शिवलिंग समझकर इसे अपनी खेत की मेड़ पर रख देते हैं। बाद में पूजा-पाठ भी शुरू हो जाता है।
इस शख्स के प्रयास ने दिखाया रंग
अभी तक जो कुछ जीवाश्म या डायनासोर के अंडे बच पाए हैं, उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ एक शख्स को जाता है, जिनका नाम विक्रम वर्मा है। स्थानीय शोधकर्ता विक्रम वर्मा के प्रयास से ग्रामीणों को मालूम हुआ कि ये 'गोल दगड़ा' पत्थर नहीं, बल्कि बहुमूल्य डायनासोर अंडों के जीवाश्म हैं। ये अंडे धार के विभिन्न इलाकों की सतह पर बिखरे पड़े हैं। बाग और इसके आसपास के कई किलोमीटर के क्षेत्र में डायनासोर के घोंसलों के जीवाश्म भी चारों ओर बिखरे हैं। अलग-अलग घोंसलों में इन अंडों की अलग-अलग संख्या है। माना जा रहा ये जीवाश्म विभिन्न प्रजातियों के डायनासोर के हो सकते हैं। जब वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान की तो 'इको टूरिज्म' विभाग ने सभी पर नंबर लिखकर इन्हें सूचीबद्ध कर लिया। ये संख्या तस्करी रोकने के लिए अंकित किए गए हैं।
पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़े कई सवाल अभी भी दफ्न
डायनासोर से जुड़ी हर कहानी रोचक होती है। हर अपडेट एक खबर है। लोगों की जागरूकता इस ओर अधिक रही है। जांच की इसी प्रक्रिया में विलुप्त हो चुके डायनासोर की अंतिम चहल कदमी के निशान भी मिले हैं। बताया जाता है चट्टानों की ये श्रृंखला करीब 6.5 करोड़ साल पुरानी है। कुछ जीवाश्म अंडों की शक्ल में हैं। कहीं घोंसले तो कहीं हड्डियां मिली हैं। धार जिले में इतिहास और जीवन काल से जुड़ा ऐसा खजाना मिला है पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़े जवाब सामने ला रही है। उनमें कई बार विनाश होने की गवाही भी छुपी है।