सुप्रीम कोर्ट ने Whatsapp के जरिए मुकदमा चलाने पर जताई नाराजगी- कहा, ‘ये क्या मजाक है’

Aditya Mishra
Published on: 9 Sep 2018 10:43 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने Whatsapp के जरिए मुकदमा चलाने पर जताई नाराजगी- कहा, ‘ये क्या मजाक है’
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नई दिल्ली: सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता से इनकार नहीं किया जा सकता है। इससे कई मामलों में लोगों तक राहत पहुंची है लेकिन क्या आपने कभी किसी आपराधिक केस में व्हाट्सऐप के माध्यम से मुकदमा चलाते सुना है। नहीं ना, ये सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा। पर यह सत्य है। ऐसा ही एक मामला सु्प्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जिस पर हैरानी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत की किसी अदालत में इस तरह के मजाक की कैसे अनुमति दी गई।

ये है पूरा मामला

समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, मामला झारखंड के पूर्व मंत्री और उनकी विधायक पत्नी से जुड़ा हुआ है। यह वाकया हजारीबाग की एक अदालत में देखने को मिला, जहां न्यायाधीश ने व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये आरोप तय करने का आदेश देकर इन आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा। झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपी हैं।

उन्हें शीर्ष अदालत ने पिछले साल जमानत दी थी। उसने यह शर्त लगाई थी कि वे भोपाल में रहेंगे और अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने के अतिरिक्त झारखंड में प्रवेश नहीं करेंगे। हालांकि, आरोपियों ने अब शीर्ष अदालत से कहा है कि आपत्ति जताने के बावजूद निचली अदालत के न्यायाधीश ने 19 अप्रैल को व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये उनके खिलाफ आरोप तय किया।

व्हाट्सऐप से आरोप तय करने की नहीं दी जा सकती अनुमति

सु्प्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल एन राव की पीठ ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए कहा, झारखंड में क्या हो रहा है। इस प्रक्रिया की अनुमति नहीं दी जा सकती है और हम न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं दे सकते।

आरोपियों ने की केस स्थानांतरित करने की मांग

पीठ ने झारखंड सरकार की ओर से उपस्थित वकील से कहा, हम यहां व्हाट्सऐप के जरिये मुकदमा चलाए जाने की राह पर हैं। इसे नहीं किया जा सकता। यह किस तरह का मुकदमा है। क्या यह मजाक है। पीठ ने दोनों आरोपियों की याचिका पर झारखंड सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर राज्य से इसका जवाब देने को कहा। आरोपियों ने अपने मामले को हजारीबाग से नयी दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है।

सरकारी वकील ने शीर्ष अदालत के सामने रखी ये दलील

झारखंड के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि योगेन्द्र साव जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और ज्यादातर समय भोपाल से बाहर रहे हैं, जिसकी वजह से मुकदमे की सुनवाई विलंबित हो रही है।

शीर्ष अदालत ने दिया ये जवाब

इसपर शीर्ष अदालत के न्यायधीश ने कहा, वह अलग बात है। अगर आपको आरोपी के जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने से समस्या है तो आप जमानत रद्द करने के लिये अलग आवेदन दे सकते हैं। हम साफ करते हैं कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले लोगों से हमें कोई सहानुभूति नहीं है।

आरोपी पक्ष के वकील ने पेश किया ये तर्क

दंपति की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि आरोपी को 15 दिसंबर 2017 को शीर्ष अदालत ने जमानत दी थी और उन्हें जमानत की शर्तों के तहत मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने का निर्देश दिया गया था। उन्होंने कहा, मुकदमा भोपाल में जिला अदालत और झारखंड में हजारीबाग की जिला अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये चलाने का निर्देश दिया गया था।

तन्खा ने कहा कि भोपाल और हजारीबाग जिला अदालतों में ज्यादातर समय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग संपर्क बहुत खराब रहता है और निचली अदालत के न्यायाधीश ने 'व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये 19 अप्रैल को आदेश सुनाया।

कोर्ट ने आरोपी पक्ष के वकील से पूछे ये सवाल

पीठ ने तन्खा से पूछा कि दोनों आरोपियों के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं। तन्‍खा ने बताया कि साव के खिलाफ 21 मामले जबकि उनकी पत्नी के खिलाफ नौ मामले लंबित हैं। उन्होंने कहा, दोनों नेता हैं और राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) द्वारा भूमि अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ विभिन्न प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है और इनमें से ज्यादातर मामले उन आंदोलनों से जुड़े हैं।

तन्खा ने कहा कि चूंकि दोनों ये मामले दायर करने के समय विधायक थे इसलिये उनके खिलाफ इन मामलों में मुकदमा दिल्ली की विशेष अदालत में अंतरित किया जाना चाहिये, जो नेताओं से संबंधित मामलों पर विशेष तौर पर विचार कर रही है।

साव और उनकी पत्नी 2016 में ग्रामीणों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प से संबंधित मामले में आरोपी हैं। इसमें चार लोग मारे गए थे। साव अगस्त 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बने थे।

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