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Konark Surya Mandir: कोणार्क सूर्य मंदिर पौराणिकता और आस्था के लिए विश्व भर में है मशहूर, जानें इसके बारे में सबकुछ
Konark Surya Mandir: कोणार्क मंदिर अपनी पौराणिकता और आस्था के लिए विश्व भर में मशहूर है। सन् 1984 में यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।
Konark Surya Mandir: भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी जिले में समुद्र तट से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Surya Mandir) है। कोणार्क मंदिर अपनी पौराणिकता और आस्था के लिए विश्व भर में मशहूर है। सन् 1984 में यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। कोणार्क का अर्थ कोण यानि कोना और अर्क का मतलब सूर्य होता है। मंदिर का ऊंचा टावर काला दिखाई पड़ने के कारण इस प्राचीन मंदिर को ब्लैक पैगोडा (black pagoda) नाम से भी जाना जाता है।
इस मंदिर में लगभग 52 टन का चुंबक लगा हुआ था जिसका प्रभाव इतना अधिक था कि समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते भटक जाया करते थे और इसकी ओर खींचे चले आते थे। इन जहाजों में लगा कम्पास (दिशा सूचक यंत्र) गलत दिशा दिखाने लग जाता था। इसलिए उस समय के नाविकों ने उस बहुमूल्य चुम्बक को हटा दिया और अपने साथ ले गये।
मध्यकाल में गंगवंश के प्रथम नरेश नरसिंह देव ने मंदिर का निर्माण करवाया था
इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ई. के मध्यकाल में गंगवंश के प्रथम नरेश नरसिंह देव ने करवाया था। इस मंदिर के निर्माण में मुख्यतः बलुआ, ग्रेनाइट पत्थरों व कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर का निर्माण 12 वर्षों के लगभग 1200 मजदूरों के दिन-रात अथक मेहनत से हुआ था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है इसमें एक ही पत्थर से निर्मित भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां स्थापित की गई है। जो दर्शकों को बहुत ही आकर्षित करती है। मंदिर में सूर्य के उगने, ढलने व अस्त होने से सुबह की स्फूर्ति, सायंकाल की थकान और अस्त होने जैसे सभी भावों को समाहित करके सभी चरणों को दर्शाया गया है।
यह मंदिर अपनी भव्यता और अद्भुत शिल्पकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है कुछ लोग इसको भारत का आठवां अजूबा भी कहते हैं। यह मंदिर एक बहुत बड़े और भव्य रथ के समान है जिसमें 12 जोड़ी पहिया हैं और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे हैं। ऐसा लगता है मानों इस रथ पर स्वयं भगवान सूर्यदेव ( Lord Suryadev) बैठे हैं। मंदिर के 12 चक्र साल के बारह महीनों और प्रत्येक चक्र, आठ अरों से मिलकर बने हैं, जो हर एक दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। रथ के सात घोड़ें हफ्ते के सात दिनों को दर्शाते हैं। इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि मंदिर के लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से हम समय का सही और सटीक अनुमान लगा सकते हैं।
मनभावन सूर्य का उदय व अस्त
वहीं मंदिर के उपरी छोर से मनभावन सूर्य का उदय व अस्त देख जा सकता है । ऐसे लगता है मानों सूरज की लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल रंग बिखेर के प्रांगण को लाल सोने से मढ़ दिया हो। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन महत्वपूर्ण हिस्से –देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही दिशा में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में वह द्वार है जहां से प्रवेश किया जा सकता है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर है।
प्राचीन कथा के अनुसार श्री कृष्ण का पुत्र साम्ब कोढ़ रोग से श्रापित था। सूर्यदेव ने उसके उस रोग का निवारण किया था तब साम्ब ने सूर्य देव की पूजा करने के लिए कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। कोणार्क समुद्र के किनारे बसा शहर है इसीलिए सर्दियों के दौरान उसे देखने का सबसे अच्छा समय है। सितंबर से मार्च के बीच मौसम बहुत सुहावना रहता है तब पर्यटक इसका आनंद उठा सकते हैं।