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Shri Jagannath Temple: अद्भुत है भगवन जगन्नाथ की रसोई और महाप्रसाद
Shri Jagannath Temple: ओडिशा में पूरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद या छप्पन भोग पहले भगवान जगन्नाथ को और उसके बाद मां बिमला को चढ़ाए जाते हैं।
Shri Jagannath Temple: ओडिशा में प्रसाद सिर्फ एक मानक लड्डू तक ही सीमित नहीं है। ओडिशा में भुवनेश्वर और पुरी दोनों जगह कुल 56 पवित्र व्यंजन दैनिक आधार पर पकाए जाते हैं। पूरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद या छप्पन भोग पहले भगवान जगन्नाथ को और उसके बाद मां बिमला को चढ़ाए जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को उत्तर भारत (बद्रीनाथ), दक्षिण भारत (रामेश्वरम), पूर्वी भारत (श्री जगन्नाथ मंदिर) और पश्चिम भारत (द्वारका) में स्थित चार धाम या 4 पवित्र तीर्थस्थल बहुत प्रिय हैं।
26 पुराणों हिंदू शास्त्रों में किया
जगन्नाथ पुरी मंदिर के महाप्रसाद का उल्लेख 26 पुराणों या प्राचीन हिंदू शास्त्रों में किया गया है। श्रद्धालुओं का मानना है कि महाप्रसादम को स्वीकार करना भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के समान है। महाप्रसाद भेदभाव नहीं करता। महाप्रसाद का सेवन सभी लिंग, जाति और पंथ के लोग कर सकते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को उनके दर्शन, अनुष्ठान करने, उनकी पूजा करने, उनके प्रसाद को स्वीकार करने और उन्हें उपहारों से नहलाने की अनुमति देकर उनका उद्धार करते हैं। मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद खाने से न केवल आपके पाप धुल जाते हैं, बल्कि यह आपको जन्म और मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति दिलाता है। कहा जाता है कि महाप्रसाद खाने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जगन्नाथ मंदिर प्रसाद पकाने की विधि सैकड़ों वर्ष पुरानी
श्रद्धालुओं का दृढ़ विश्वास है कि देवी महालक्ष्मी स्वयं भोजन की देखरेख करती हैं। इसलिए भोजन बनाने की प्रक्रिया को बहुत ही पवित्र माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर प्रसाद पकाने की विधि सैकड़ों वर्ष पुरानी है। आज तक कोई भी कभी भी जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद के मूल स्वाद की नकल नहीं कर पाया है जो कि रसोई के अंदर पकाया जाता है। भगवान जगन्नाथ भोग के व्यंजनों को सदियों से संरक्षित किया गया है।
मंदिर की पवित्र रसोई की आग सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। पुजारियों का कर्तव्य है कि वह हमेशा अग्नि को जलाए रखें। चूंकि भोजन भगवान विष्णु को भी परोसा जा रहा है, इसलिए इसे वैष्णवग्नि के नाम से जाना जाता है। पुरी और भुवनेश्वर में मंदिरों की पवित्र रसोई के अंदर किसी बहरी व्यक्ति के प्रवेश की अनुमति नहीं है। इस जगह की पवित्रता की रक्षा करने के अलावा, यह रसोई को स्वच्छ और बाहरी कीटाणुओं से मुक्त रखने में मदद करता है। यही वजह है कि हर दिन इतना भोजन पकाने के बावजूद यहां कभी भी फूड पॉइजनिंग का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
इन पवित्र मंदिर की रसोई के अंदर अनुशासन और सख्त नियमों का पालन किया जाता है। रसोइया को तब तक रसोई के अंदर जाने की अनुमति नहीं है जब तक कि वह स्नान न कर ले। यहां पूरी तरह से पुरुषों की रसोई है। जगन्नाथ मंदिर प्रसाद पकाने की प्रक्रिया बहुत सख्त है।
जगन्नाथ मंदिर में 32 कमरों वाली विशाल रसोई
32 कमरों वाली इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाये जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल में लाए जाते हैं। लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। ये सारा प्रसाद मिट्टी की जिन सात सौ हंडियों में पकाया जाता है, उन्हें 'अटका' कहते हैं। यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में विख्यात है। भोजन सिर्फ ब्राह्मण रसोइये ही बनाते हैं।
आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मन्दिर में नहीं होता। जो भी व्यंजन यहाँ तैयार किये जाते हैं, उनके 'जगन्नाथ वल्लभ लाडू', 'माथपुली' जैसे कई अन्य नाम हैं। भोग में प्याज व लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है। यहाँ रसोई के पास ही दो कुएं हैं, जिन्हें 'गंगा' व 'यमुना' कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। रसोई में पूरे वर्ष के लिए भोजन पकाने की सामग्री रहती है। रोज़ कम से कम 10 तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। आठ लाख़ लड्डू एक साथ बनाने पर इस रसोई का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हो चुका है। रसोई में एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है।
सात कलश
रसोई में एक के ऊपर एक सात मिट्टी के कलशों में चावल पकाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे ऊपर रखे बर्तन में रखा भोजन पहले पकता है। फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। प्रतिदिन नये बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं। भगवान् जगन्नाथ को महाप्रसाद, जिसे 'अब्धा' कहा जाता है, निवेदित करने के बाद माता बिमला को निवेदित किया जाता है। भगवान् श्री जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में दैनिक प्रसाद की सूची
- पाहिली भोग: सूर्य के धनु राशि में रहने के अवसरों पर सूर्योदय से ठीक पहले एक अतिरिक्त नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
- गोपाल बल्लभ भोग: सुबह 8:30 बजे नाश्ते के रूप में परोसा जाता है।
- सकला धूप: सुबह 10 बजे परोसा जाता है। इसमें मंथा पुली और एंडुरी केक जैसे 13 व्यंजन शामिल हैं।
- भोग मंडप भोग: सुबह 11 बजे परोसा जाता है। इसमें दही और कांजी पायस के साथ ज्यादातर 'पाखला भात' होता है।
- मध्यन्ना धूप: दोपहर 12:30 बजे से एक बजे के बीच दोपहर के भोजन के रूप में परोसा जाता है।
- संध्या धूप: शाम के नाश्ते के रूप में शाम 7 बजे से 8 बजे तक के बीच परोसा जाता है।
- बड़ा सिंघाड़ा भोग: रात 11 बजे मध्यरात्रि भोजन के रूप में परोसा जाता है। यह देवताओं को दिया जाने वाला अंतिम प्रसाद है।