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हर किसी की जुबां पर एक ही नाम, हे राम! दो आराम

पहले भी तमाम कालखंड इससे खराब आये। पर ऐसा नहीं। जिसमें आप अपने प्रियजन की मदद नहीं कर सकते।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Dharmendra Singh
Published on: 26 April 2021 8:35 AM GMT
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कोरोना वायरस की जांच करता स्वास्थ्यकर्मी (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

लखनऊ: मैंने बचपन में पहाड़ टूटना। कहावतों, मुहावरों में पढ़ा व सुना था। पिछले कई दिनों से देख रहा हूं। मौन गवाह हूं। पहाड़ कैसे टूटता है। कैसे पहाड़ के नीचे हम दबते हैं। कैसे दब कर मर जाते हैं। बीते कई दिनों में कई लोग कई-कई साल बूढ़े हो गये। उनकी यह बुजुर्गियत चेहरे पर अचानक उभर आयी रेखाओं में पढ़ी जा सकती हैं। जैसे-जैसे लोगों के कोरोना से संक्रमित होने व मरने की सूचनाएं सोशल मीडिया पर आ रही हैं। उसके बाद लगने लगा कि भारत की 130 करोड़ जनसंख्या में बिरले ही ऐसे भाग्यशाली होगें जिनके दूर-दराज कहीं न कहीं मातम न पसरा हो। इतनी लाचारी, इतनी बेबसी का कालखंड शायद ही जिंदगी में आया हो। प्रभु करें आये भी नहीं। लोगों के सेहत के बारे में पूछने और बताने के लिए फोन पर बात कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। लोग नि:शब्द हैं। केवल मैसेज के जरिये हाल-चाल चल रहा है।

पहले भी तमाम कालखंड इससे खराब आये। पर ऐसा नहीं। जिसमें आप अपने प्रियजन की मदद नहीं कर सकते। हमेशा परेशानी व दिक्कत में अपने लोगों का हाथ, हाथ में होता था। साथ, साथ में होता था। इस बीमारी में अपनों का हाथ व साथ दोनों गया। अकेला हो जाना बीमारी पर भारी पड़ रहा है। इससे पहले भी कई घातक बीमारियां हमारे आसपास पसरी हैं। पर उनमें अकेलापन का दंश नहीं है।
तमाम कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गई, वक्त ने कैसा सितम ढाया कि दूरियां ही दवा हो गई। सोचा भी नहीं था कि वक्त ऐसा भी आयेगा। फुरसत होगी सबके पास पर कोई मिल न पायेगा। यह संदेश, यही अंदेशा बिमारी को भारी बना रहा है। मानव मौत से नहीं डरता। हर आदमी अपनी छोटी या बड़ी जिंदगी में मौत के बारे में कुछ बार जरूर सोचता है। हमारे दर्शन, धर्म व अध्यात्म में जीवन को नश्वर बताया गया है। पर कोई भी बेबसी व लाचारी की मौत नहीं मरना चाहता। लेकिन आज हम इसी तरह की मौत को अभिशप्त हैं। यह बेचारगी, यह लाचारी किसके कारण आई इस पर विचार करें तो बस ब्लेम गेम चलेगा। पर यह तो साफ पढ़ा जा सकता है कि हमारे नेताओं के लिए लोक से ज्यादा तंत्र जरूरी है। इसलिए ही बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी,असम में न केवल जनता को चुनाव में झोंक दिया। बल्कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी पंचायत चुनाव कराने से परहेज नहीं किया। जिस देश में अदालत, कार पर चलते हुए मास्क लगाये रखने के बाबत फैसला देती है। उसी देश में उसी कालखंड में बड़ी बड़ी रैलियां की जा रही थीं। जहां लोगों के चेहरे पर मास्क होता है, न ही सोशल डिस्टेंसिंग।

कोरोना की दूसरी लहर में गांव के गांव प्रभावित

इस समय उत्तर प्रदेश कोरोना के सबसे अधिक चपेट में है। यहां पंचायत चुनाव हो रहे हैं। गांव में जाकर देखिये तो दारू व नानवेज की दावतों का दौर दिख जायेगा। उम्मीदवारों ने गांव छोड़कर शहर में बसे लोगों को अपने खर्चे पर बुला लिया है। पहली लहर में तो गांव महफूज थे। पर दूसरी लहर में ऐसा नहीं है। गांव के गांव प्रभावित हैं। इस लहर में कोरोना वायरस का दो म्युटेशन हुआ है। E 484 Q एवं E 484 K जो प्रतिरोधक क्षमता नष्ट करने में कोविड वायरस की मदद करता है। भारत में इस वैरिएंट का पहला मामला पिछले साल अक्टूबर में आया था। यह वैरिएंट दुनिया के सत्रह देशों व अमेरिका के पंद्रह राज्यों तक पसर गया है। 1.87 लाख लोग अब तक कोरोना के चलते काल के गाल में समा गये हैं। इनमें 780 डॉक्टर भी हैं।
यह भी एक सच्चाई है कि ऐसे हालात को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। हमारी स्वास्थ्य सेवाएं ऐसी नहीं हैं। पर हमारे राजनेताओें को जले पर नमक छिड़कने का काम तो नहीं करना चाहिए । उत्तर प्रदेश त्राहिमाम कर रहा है। ऑक्सीजन के अभाव में निजी अस्पतालों ने मरीजों को ले जाने की तख्ती लगा दी। बेड मरीजों को नहीं मिल रहे हैं। दवाएं बाज़ारों से नदारद हैं। दूसरी लहर जिस तरह फैली है ऑक्सीजन, बेड व दवाइयों की कमी के चलते लोग दम तोड़ेंगे ही। पर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ यह बयान दे रहे हैं, ''ऑक्सीजन, बेड व दवाओं की किल्लत नहीं।'' इसे आपदा में अवसर भी कह सकते हैं।
ऐसे में जनता के पास भगवान से यह प्रार्थना करने के अलावा क्या रास्ता बचता है कि काश कोरोना भी कोई सरकारी फंड होता। जनता तक पहुंचता ही नहीं। केवल नेता तक ही सीमित रहता। क्योंकि हर समस्या की जड़ में किसी न किसी पार्टी का कोई न कोई नेता जरूर होता है। मसलन, भारत में कोरोना संक्रमण के एक साल हो चुके हैं। पिछले साल अक्टूबर में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के 162 प्रस्तावों को मंजूरी मिली, लेकिन 33 ही लग पाये। लिक्विड ऑक्सीजन हल्के नीले रंग की काफी ठंडी होती है। यह क्रायेजनिक गैस होती है। जिसका तापमान -183 डिग्री सेंटिग्रेड होता है। इसे खास सिलिंडर व टैंकरों में रखा व ले जाया जा सकता है। देश में 500 फ़ैक्टरियां ऑक्सीजन का काम करती हैं।
वाणिज्य विभाग के ऑक्सीजन निर्यात के आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीनों के दौरान दुनिया को दोगुना ऑक्सीजन निर्यात किया। भारत ने अप्रैल 2020 और जनवरी 2021 के बीच दुनिया भर में 9,301 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था। इसकी तुलना में, देश ने वित्त वर्ष 2015 में केवल 4,502 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था।
सरकार यह कह रही है कि फरवरी तक कोविड काफी हद तक नियंत्रित हो गया था। ऑक्सीजन की मांग भी इतनी नहीं थी। लेकिन गौरतलब है कि कोविड-19 की पहली लहर के दौरान, तरल चिकित्सा ऑक्सीजन (LMO) की मांग प्रति दिन 700 मीट्रिक टन (MTPD) से बढ़कर 2,800 MTPD हो गई थी। यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि दूसरी लहर में ऑक्सीजन का संकट गहरा सकता है। अगर इस तथ्य पर ध्यान देकर निर्यात रोक दिया गया होता तो दूसरी लहर के दौरान, आक्सीजन की मांग जब 5,000 MTPD तक पहुंची तो उससे निपटा जा सकता था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग में पांच गुना उछाल देखा गया। ऐसे में तथ्य यह है कि देश प्रति दिन 7,000 मीट्रिक टन से अधिक तरल ऑक्सीजन का उत्पादन करता है जो कि मांग से वर्तमान में भी कहीं अधिक है। यह दर्शाता है कि समस्या कहीं और है।

रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में कालाबाजारी

कोरोना संक्रमित गंभीर रोगियों के लिए जरूरी दवा रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में कालाबाजारी हो रही है। देश में हर रोज दो लाख रेम‍डेसिविर इंजेक्‍शन तैयार हो रहे हैं। अप्रैल अंत तक तीन लाख इंजेक्‍शन प्रतिदिन तैयार होने लगेंगे। पर हर ओर हाहाकार मचा है। लोग एक अदद इंजेक्‍शन के लिए ऐसे गिड़गिड़ा रहे हैं कि कठोर दिल वाले को भी रोना आ जाए। अपनों की जान बचाने के लिए लोग बाजार के हैवानों को मुंह मांगी रकम देने को तैयार है। राजधानी लखनऊ में बीस हजार रुपये में इंजेक्‍शन मिल रहा है तो देश के कई हिस्‍सों में लोगों ने इसके लिए पचास हजार से लेकर एक लाख रुपये तक चुकाए हैं। इस हाल के बावजूद सरकारी मशीनरी चुप बैठी हुई है। चुनावी राज्‍यों में इनकम टैक्‍स और ईडी के छापे देखने वाले तरस रहे हैं कि देश में कहीं उन जमाखोरों और कालाबाजारियों पर भी कार्रवाई हो जो इंजेक्‍शन का ब्‍लैक कर रहे हैं। आश्‍चर्य है कि पिछले दस दिन के दौरान अब तक सरकार ने कहीं भी ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं की है।
देश में रेमडेसिविर इंजेक्‍शन बनाने वाली सात दवा कंपनियां हैं। इनकी प्रतिमाह उत्‍पादन क्षमता 38 लाख इंजेक्‍शन की है। जनवरी-फरवरी में मरीजों की तादाद घटने के बाद पांच कंपनियों ने उत्‍पादन बंद कर दिया था। केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक राज्‍य मंत्री मनसुख मंडाविया के अनुसार छह अप्रैल को केवल दो कंपनियां उत्‍पादन कर रही थीं और देश की कुल उत्‍पादन क्षमता का बीस प्रतिशत उत्‍पादन हो रहा था। उन्‍होंने सभी कंपनियों ने पूरी क्षमता के अनुसार उत्‍पादन करने को कहा और सभी को दोगुना उत्‍पादन बढाने की अनुमति भी दे डाली। मंत्री का दावा है कि तीस अप्रैल से पहले देश में प्रतिदिन तीन लाख इंजेक्‍शन यानी हर माह 90 लाख इंजेक्‍शन का उत्‍पादन शुरू हो जाएगा। उनका कहना है कि उत्‍पादन शुरू करने में 21 दिन लगते हैं।
मंत्री के अनुसार छह अप्रैल को बीस प्रतिशत यानी सात लाख 60 हजार इंजेक्‍शन रोज तैयार हो रहे थे जबकि इस दिन कोरोना मरीजों के 96982 नए मामले सामने आए थे। कुल संक्रमित जिनका उपचार किया जा रहा था उनकी संख्‍या 7,88,223 थी। सरकार के विशेषज्ञों के अनुसार, 80 प्रतिशत लोग होम आइसोलेशन में ठीक हो रहे हैं। दस से 15 प्रतिशत लेवल वन हॉस्पिटल से ठीक होकर लौट रहे हैं यानी सरकार के लेवल टू और लेवल थ्री अस्‍पतालों में कुल पांच प्रतिशत ऐसे मरीज पहुंचते हैं जिन्‍हें रेमडेसिविर की जरूरत पड सकती थी।
यानी छह अप्रैल को देश में कुल 70 या 80 हजार ऐसे मरीज थे जिन्‍हें रेमेडेसिविर की जरूरत थी। ध्‍यान रहे इस दिन तक देश में रेमडेसिविर का उत्‍पादन सात लाख 60 हजार वॉयल प्रतिदिन था। यानी आवश्‍यकता से भी कई गुना ज्‍यादा। इसके बावजूद अगले पांच दिनों में हालात बेकाबू हो गए। दस अप्रैल तक गुजरात के सूरत में इंजेक्‍शन के लिए मारामारी की खबरें सामने आईं और यह भी पता चला कि गुजरात भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष के पास पांच हजार रेमडेसिविर इंजेक्‍शन मौजूद हैं। इसी दिन के बाद इंजेक्‍शन की कालाबाजारी और किल्‍लत की खबरें तेजी से सामने आईं ।

कोरोना ने बताया जिन्दा रहने के लिये फेफड़ा भी कितना जरुरी

सोमवार 19 अप्रैल को देश में कोरोना संक्रमित रोगी 19 लाख हैं। प्रतिदिन डेढ़ लाख इंजेक्‍शन का उत्‍पादन किया जा रहा है। हर रोज जबकि एक लाख की दर से मरीज बढ़ रहे हैं तो जाहिर है कि इंजेक्‍शन की जरूरत आने वाले दिनों में बढ़ेगी। लाॅकडाउन की जगह हम चुनाव में जुटे हैं। ऐसी अनगिनत गलतियां हो रही हैं, हुई हैं।आंकड़ों का खेल खेलना जायज नहीं है। कुछ ऐसा होना चाहिए कि कोविड की जांच रिपोर्ट चौबीस घंटे में आ जाये। ताकि जो पॉजिटिव निकल आये वह अपनी दवाएं शुरू कर दे। निजी लैब जैसे जांच कर रहे थे वैसे ही करें। यह समय सरकार को अपनी हनक जता कर रूपये कम कराने का नहीं है। रूपये खर्च करने के बाद भी अगर जान बचाई जा सके तो वह ज्यादा फायदेमंद सौदा होगा। जिन भी कंपनी की दवाओं का भारत में ट्रायल हुआ है। उन सबके लिए दरवाजे खोल दिये जाने चाहिए। मसलन, फाइजर बिना लाभ कमाये भारत को वैक्सीन देने को तैयार। मोर्डना व जानसन एंड जानसन के लिए भी दरवाजे खुलें।
हम सारी उम्र दिल की बात करते रहे, कम्बख्त इस कोरोना ने बताया जिन्दा रहने के लिये फेफड़ा भी कितना जरुरी है। समुद्र मंथन सा लग रहा है यह साल। बहुत विष निकल रहा है। जाने कब अमृत निकलेगा। करोना हम सभी के धैर्य व दुख बर्दाश्त करने की सीमा की परीक्षा ले रहा है। कहने को हम लोग हाड़ मास के इंसान हैं, लेकिन बुरा वक्त हमको पत्थर भी बना देता है।
लेकिन इसमें भी उम्मीद नहीं छोड़ना है- लौट आयेगी खुशियां, अभी कुछ गमों का शोर है। जरा संभलकर रहो मेरे अज़ीज़ों/अब फिर से इम्तिहान का दौर है। खैरियत से हूं मैं मेरे शहर में...तुम/अपने शहर में अपनी हिफाजत रखना। किसी का हाथ छूना नहीं पर/किसी का साथ छोड़ना नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


Dharmendra Singh

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