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नीतीश के पास जाएगी भाजपा!

Dr. Yogesh mishr
Published on: 26 July 2017 8:40 PM IST
कह रहीम कैसे निभे केर बेर कौ संग,
वे डोलत रस आपनो उनके फाटत अंग।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस दर्द से निजात पा गए। उनके इस्तीफे की पृष्ठभूमि उसी दिन तैयार हो गई थी, जब लालू प्रसाद यादव ने अपने उप-मुख्यमंत्री बेटे और हाल में भ्रष्टाचार के आरोपों के जद में आये तेजस्वी के  इस्तीफे की अटकलों को खारिज किया था। लालू के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों में केंद्रीय एजेंसियों के कार्रवाई के बाद नीतीश कुमार के सामने यह संकट खड़ा हो गया था कि वो सुशासन बाबू बने रहते हुए किस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अपनी छवि बरकरार रख पाते। यही वजह है कि इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार ने साफ तौर पर भ्रष्टाचार को लेकर लालू के राजद को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने इसके लिए कफन, महात्मा गांधी और ‘नीड’ और ‘ग्रीड’ को प्रतीक बनाया। यह भी संयोग नहीं कहा जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में नीतीश को साथ आने का आमंत्रण देने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को ही सेतु बनाया है।
इस्तीफे के बाद भी नीतीश सरकार चलाते नजर आएंगे। भाजपा सदन में अंदर और बाहर से किसी भी शर्त पर समर्थन देने की रणनीति पर काम कर चुकी है। यह नीतीश कुमार पर निर्भर है कि वह भाजपा से किस तरह के मदद की दरकार करते हैं। बिहार मध्यावधि चुनाव की ओर नहीं जा रहा है। अब बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के फ्रंट पर लड़ी जाएगी, जिसके निशाने पर लालू परिवार खुद-ब-खुद आ जाएगा।
लंबे समय से नीतीश यह मौका तलाश रहे थे। नोटबंदी के मसले पर नीतीश कुमार का स्टैंड और उसके समर्थन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का ट्वीट इन दोनों के बीच किसी अनकहे रिश्ते की कहानी कह रहा था।
बेमेल था नीतीश-लालू गठबंधन
बिहार की सियासत में नीतीश और लालू का गठबंधन बेमेल था। दोनों की सियासी जमीन और सियासी शैली अलग- अलग रही मगर पिछले विधानसभा चुनाव में प्रचार गुरू प्रशांत किशोर (पीके) की कोशिशों के चलते भाजपा से अलग हुए नीतीश कुमार ने लालू यादव से हाथ मिला लिया था। नीतीश लालू के गठबंधन की गणित बिहार में हमेशा सरकार बनाने की कूवत रखती है। लालू से हाथ मिलाने के बाद वह धुर मोदी विरोधी राजनीति के केंद्र बनते गए। लेकिन सरकार बनने के बाद भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए नीतीश कुमार जितनी सहजता महसूस कर रहे थे वह एहसास उनके लिए अब मुश्किल हो गया था। लालू यादव कई बार नीतीश सरकार को असहज कर चुके थे। बाहुबली शहाबुद्दीन के सवाल पर लालू समर्थन ने नीतीश की भद ही पिटवा दी थी। शहाबुद्दीन ने तो यहां तक कह दिया कि हमारे नेता लालू यादव हैं, नीतीश कुमार नहीं।
जदयू पर भारी राजद
ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर आयोग के पदों पर नियुक्ति तक पर लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीतीश के जनता दल यूनाइटेड (जद यू) पर कई बार भारी पड़ती दिखी। हत्यारोपी शहाबुद्दीन और दुराचार के आरोपी राज बल्लभ यादव के मामले में राज्य सरकार के कमजोर रुख के पीछे भी राजद का ही हाथ माना जा रहा है। और तो और सरकार के कामकाज में भी जद यू और राजद के बीच खींचतान है। राजद के विभाग वाले मंत्रियों के सचिव खुद मुख्यमंत्री को भी रिपोर्ट करने से हिचकते रहे हैं। नीतीश को रिपोर्ट करने में उन्हें विभागीय मंत्रियों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। यही वजह है कि नीतीश कुमार को अपने नेताओं के बीच कहना पड़ा था कि सहयोगी दल उन्हें या उनकी पार्टी को हल्के में लेंगे तो बर्दाश्त नहीं होगा। कांग्रेस से भी नीतीश कुमार के रिश्तों में कड़वाहट शुरू हो गयी थी। बीते दिनों जद यू की राजगीर में सम्पन्न हुई कार्यसमिति में नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बताया गया तो कांग्रेस नेता सीपी जोशी ने इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए इस दावेदारी को खारिज कर दिया था। तेजस्वी के मामले पर भी राहुल गांधी से नीतीश कुमार की बातचीत सार्थक नहीं रही।
नहीं बन पा रही सुशासन बाबू की छवि
लालू के साथ रहकर नीतीश अपनी सुशासन बाबू की छवि बरकरार रखने में कामयाब नहीं हो पा रहे थे। यह दिक्कत उन्हें बखूबी साल रही थी। भाजपा के साथ रहते हुए उन्होंने न केवल सुशासन बाबू की छवि गढऩे में कामयाबी हासिल कर ली थी बल्कि खुद को बिहार के लिए अपरिहार्य बना लिया था। हालांकि रणनीतिकार नरेंद्र मोदी के प्रति नीतीश कुमार के नरम पड़ते रुख को लालू पर अंकुश लगाने की एक चाल बताते रहे। विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने शराबबंदी और अपराध आदि को लेकर सीधे नीतीश पर हमला नहीं बोलने की रणनीति अपनाई थी।
गायत्री परिवार से जुड़े डॉ. प्रणव पांड्या के साथ मंच साझा करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि सीमापार की सॢजकल स्ट्राइक से लेकर देश के अंदर 1000 और 500 के नोटों का चलन रोकने तक वह प्रधानमंत्री के फैसले के साथ हैं। हालांकि उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि शराब बंदी पर पीएम भी मेरा साथ देंगे। नीतीश कुमार का उम्मीद जताना और शीतकालीन सत्र में भाजपा का विरोध न करना यह बता रहा था कि इन दोनों के बीच रिश्तों की कोई नई इबारत लिखी जा रही है क्योंकि यह महज संयोग नहीं हो सकता कि नीतीश के धुर विरोधी रामविलास पासवान उनकी सराहना करें, अमित शाह ट्वीट करके अभिनंदन और स्वागत करें और नीतीश कुमार भारत बंद की हवा निकालते हुए उसे आक्रोश मार्च तक सीमित करने के लिए मजबूर कर दें।
भाजपा के लिए यह सौदा इसलिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि बिहार में यह संभावित गठजोड़ बाकी सबके रास्ते बंद कर सकता है। गौरतलब है कि नीतीश जब राजग गठबंधन से अलग हो रहे थे तो संघ ने गठबंधन को टूटने से बचाने के लिए भरसक कोशिश की थी। बिहार एक ऐसा प्रांत है जो संघ के लिहाज से खासा अनुपजाऊ है। बिहार में संघ अपनी फसल बोना चाहता है। नीतीश के आने के बाद बिहार में संघ के लिए जमीन खासी उर्वर हो जाएगी।


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Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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