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झूठ की सियासत
- लोगों का बड़ा समूह छोटे झूठ की अपेक्षा बड़े झूठ का आसानी से शिकार बन जाता है।
- एक झूठ एक हजार बार बोला जाए तो सच हो जाता है।
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हिटलर और उसके प्रचार प्रमुख गोएबेल्स के इन विचारों पर हमारे तमाम राजनेताओं ने कदम बढ़ा दिये हैं। हालांकि देश में सोशल मीडिया का आधार ही यही विचार हैं। लेकिन जब राजनेताओं ने इस विचार की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं तब यह समाज और देश के लिए चिंता का सबब हो जाता है। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुसलमीन पार्टी के चीफ और हैदराबाद के सांसद असदउद्दीन ओवैसी के 13 जुलाई, 2019 को मुंबई के चांदीवली में दिये गए भाषण और कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद की हालिया किताब से इस चिंता का सीधा रिश्ता है। अपने भाषण में उन्होंने दावा किया कि इंडिया गेट पर 95 हजार तीन सौ लोगों के नाम लिखे गये हैं। उसमें 61 हजार 945 मुसलमानों के नाम हैं। भाजपा, संघ और शिवसेना का कोई आदमी यदि मुसलमानों की देशभक्ति देखना चाहता है तो उसे इंडिया गेट जाना चाहिए। यू-ट्यूब चैनल पर उनके इस भाषण को लाखों बार देखा जा चुका है। उनका यह दावा सोशल मीडिया पर लगातार जगह बनाये हुए है।
सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे इस झूठ और ओवैसी के इस झूठ की ताकीद इसलिए जरूरी हो जाती है क्योंकि यह हिटलर और गोएबेल्स के विचारों को न केवल आगे बढ़ाता है, बल्कि मजबूत करने का भी काम कर रहा है। सच्चाई यह है कि इंडिया गेट पर 13 हजार 516 भारतीय सैनिकों के नाम हैं। जबकि कॉमन वेल्थ वार ग्रेब्ज कमीशन की सूची की मानें तो 13 हजार 220 सैनिकों के नाम इंडिया गेट पर लिखे हुए हैं। जिन्होंने 1914 से 1919 के बीच ब्रितानी शासन के लिए प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में लड़ाई लड़ते हुए शहीद हुए। कमीशन रिपोर्ट यह भी कहती है कि इन सैनिकों के बीच उनके पद, नस्ल और धर्म के आधार पर कोई विभेद नहीं किया गया। गुलामी के दिनों में हमने जो नहीं किया, हमें जो नहीं करना पड़ा, जो हमारे साथ करने से अंग्रेज भी बचे उसे ओवैसी जैसे लोग आजाद भारत में स्वतंत्रता के नाम पर करते हुए रंच मात्र भी दुख का एहसास नहीं करते? तभी तो इंडिया गेट पर उनकी आंखें 8050 सिख, 14480 पिछड़े, 10777 दलित और 598 सवर्ण सैनिकों का नाम पढ़ लेती है।
14 फरवरी, 1921 को इंडिया गेट की आधाशिला रखी गई। यह 12 फरवरी, 1931 को बन कर तैयार हुआ। लाल और बलुआ पत्थरों से बना यह स्मारक पेरिस के ऑर्क डे ट्रायम्फ से प्रेरित है। सर यडवर्ड लुटियन इसके डिजाइनर हैं। लुटियन वार मेमोरियल बनाने के हुनरमंद माने जाते हैं। उन्होंने यूरोप में 66 वार मेमोरियल डिजाइन किया है। 42 फीट ऊंचा इंडिया गेट स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय स्मारक है जिसे किंग्सले कहा जाता है। हकीकत यह भी है कि 2019 में औवैसी ने जो कहा वह समूचा कंटेंट 2017 और 2018 में सोशल मीडिया पर उतने ही पैनेपन के साथ मौजूद हैं। ओवैसी ने इसे जांचने-परखने को कोशिश नहीं की। हालांकि ओवैसी ने सोशल मीडिया पर मौजूद इस तथ्य से अनभिज्ञ रहने की बात कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद की नई किताब ‘विज़िबल मुस्लिम, इन विज़िबल सिटीजन‘ से पढ़कर कही है। यह सच भी है कि सलमान खुर्शीद ने अपनी इस किताब के 55वें और 56वें पन्ने पर यह बात लिखी है। खुर्शीद कांग्रेस के बड़े नेता हैं, बड़े वकील हैं। सिमी जैसे आतंकी संगठन के लिए अदालत में वकालतनामा भी लगा चुके हैं।
यह बात समझ से परे है कि खुर्शीद को इंडिया गेट पर मुसलमान, अगड़ा, पिछड़ा, दलित किस आधार पर नजर आये। उनके लिखने का प्रमाण और तर्क क्या है। ऐसी बातें लिखकर वह क्या स्थापित करना चाहते हैं? उनकी पार्टी ने कई दशक राज किया। वह खुद कई दशक मंत्री रहे। तब उन्हें यह क्यों नहीं दिखा? तब लोगों को धर्म और जाति के चश्में से बांटकर देखने के चलन का उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया। एक धर्म निरपेक्ष देश में जहां कोई हिंदू एक दिन का भी रोजा न रखता हो, वहां रोज इफ्तार सरकारी चलन में क्यों होना चाहिए? किसी भी धार्मिक यात्रा के लिए सब्सिडी क्यों होनी चाहिए? किसी एक धर्म, जाति और संप्रदाय पर सरकार बनाने का सेहरा क्यों बांधा जाना चाहिए? दंगा निरोधक बिल क्यों लिखा जाना चाहिए? कांग्रेस सरकार ने ही अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट बनाकर बांटने का काम किया है। किसी भी शोषण और उत्पीड़न करने वाले के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन वोट लेने के लिए नये कानून बनाते हुए किसी को संतुष्ट करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। सलमान और ओवैसी जैसे अनगिनत लोग इंडिया गेट को जिस चश्मे से देख रहे हैं। वैसे ही देश और समाज के तमाम चीजों के प्रति उनका नजरिया है। नतीजतन, संप्रदायों के बीच खाई गहरी होती जा रही है। हिटलर और गोएबेल्स भले ही झूठ के सच होने का दावा करते हो पर उनका भी झूठ सच हो नहीं पाया। झूठ, झूठ होता है। सच, सच ही होता है। हमारे मुंडक उपनिषद में सत्यमेव जयते कहा गया है। यह हमारा ध्येय वाक्य भी है। सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं। इसीलिए सत्य को ओवैसी और सलमान खुर्शीद को छोड़िये हिटलर, गोएबेल्स भी पराजित नहीं कर पाये। आगे भी जो लोग इसे पराजित करने की कोशिश करेंगे। उन्हें परेशान होना होगा। क्योंकि संचार माध्यमों ने इस तरह करने वालों को पकड़ने की लिए तमाम यांत्रिक नेटवर्क बिछा रखा है। यह पारदर्शिता का युग है इसलिए एक झूठ को एक हजार बार बोल कर सच बनाने की बात तो छोड़िये उसे एक हजार बार बोलने का अवसर ही नहीं मिलने वाला है। क्योंकि कोई ने कोई सिरफिर, बुद्धिजीवी, देशभक्त, राष्ट्रप्रेमी बीच में ही आपके झूठ के खिलाफ सही तर्क और तथ्य का परचम लेकर लहराता हुआ खड़ा मिल जाएगा। इसलिए अब इस तरह की मंशा तजिये।
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