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कांग्रेस हुई चिंतित: 'आप' ने बढ़ाई चिंता, अब इस प्रदेश में हुई एंट्री
दिल्ली में बड़ा नुकसान उठा चुकी कांग्रेस कतई नहीं चाहती कि उत्तराखंड में तीसरे दल की घुसपैठ हो और उसकी राजनीतिक जमीन पर फसल कोई और काटे। कई बदलाव और प्रयोग के बाद भी खोई जमीन वापस नहीं ला पाई है।
नई दिल्ली: दिल्ली को फतह करने के बाद अब आम आदमी पार्टी यानि कि 'आप' अब अपनी राजनीतिक दायरा बढ़ाने में लगी हुई है। जिसके लिए उत्तर प्रदेश के बाद अब आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड की ओर अपना रूख किया है। यह देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के एक दर्जन दिग्गज नेताओं के भाजपा में चले जाने के बाद उसे 2022 के चुनाव में भी अपने कुछ अन्य नेताओं को बचाए रखने की चुनौती है। जिन पर आम आदमी पार्टी डोरे डाल रही है। कांग्रेस दिल्ली की तरह उत्तराखंड में अपना जनाधार कतई शिफ्ट नहीं होने देना चाहती है।
आप ने देवेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाकर भेजा
बता दें कि पार्टी ने दिल्ली के पूर्व विधायक देवेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाकर भेजा है। वहीं प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से लगातार फीडबैक मांगा जा रहा है। भाजपा ने 2017 में उत्तराखंड जीतने के लिए कांग्रेस के ही दिग्गज नेताओं और चेहरों को आगे किया, जिनकी जमीनी हैसियत थी। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की राजनीतिक रेकी के बाद कांग्रेस ने अपनी सतर्कता बढ़ा दी है।
कांग्रेस को उत्तराखंड में तीसरे दल की घुसपैठ मंजूर नहीं
दिल्ली में बड़ा नुकसान उठा चुकी कांग्रेस कतई नहीं चाहती कि उत्तराखंड में तीसरे दल की घुसपैठ हो और उसकी राजनीतिक जमीन पर फसल कोई और काटे। कई बदलाव और प्रयोग के बाद भी खोई जमीन वापस नहीं ला पाई है। नेतृत्व की ओर राज्य इकाई को आगाह किया गया है। कोई चूक न हो इसके लिए हर विधानसभा में चुनाव के संभावित चेहरों और मजबूत विकल्प भी रखने को कहा जा रहा है।
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उत्तराखंड के लोगों ने हमेशा दो दलों के बीच फैसला दिया-प्रीतम सिंह
वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह कतई नहीं मान रहे कि आप के आने से पार्टी को कुछ नुकसान होगा। उनका कहना है कि दिल्ली और उत्तराखंड में फर्क है। वह आश्वस्त हैं कि उत्तराखंड के लोगों ने हमेशा दो दलों के बीच फैसला दिया तीसरे विकल्प के तौर पर यूकेडी, बसपा जैसे दलों ने पांव जमाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभा में उम्मीदवार मिलना मुश्किल है।
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