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Ram Manohar Lohia: जानिए कैसे थे राममनोहर लोहिया, पहले गोरों फिर नेहरू के लिए बने मुसीबत

Ram Manohar Lohia Wikipedia: फैजाबाद में 23 मार्च 1910 को गांधीवादी अध्यापक हीरालाल के घर एक शिशु जन्मा जिसे नाम मिला राममनोहर। महात्मा गांधी का उनपर काफी असर हुआ।

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Newstrack Network / Shreya
Published on: 12 Oct 2022 4:57 AM GMT (Updated on: 12 Oct 2022 4:58 AM GMT)
जानिए कैसे थे राममनोहर लोहिया, क्या है उनका समाजवाद, पहले गोरों फिर नेहरू के लिए बने मुसीबत
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राममनोहर लोहिया (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Ram Manohar Lohia Wikipedia: हमारा वो नेता जिसे पहले अंग्रेजों ने जेल में डाला और जब देश आजाद हुआ तो सरकार ने जेल में डाल दिया। हम बात कर रहे हैं राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) की... लोहियावादी होने का दम भरने वाले आज के नेता उनके नाम पर वोट पाते हैं। सदन जाते हैं। मंत्री मुख्यमंत्री बन जानते हैं। लेकिन कभी हिम्मत न जुटा सके लोहियावाद को आत्मसात करने की। कैसे थे लोहिया और क्या थे उनके विचार, जिन्होंने आज भी नेताओं और दलों को राजनैतिक खाद पानी देना जारी रखा है।

फैजाबाद में 23 मार्च 1910 को गांधीवादी अध्यापक हीरालाल के घर एक शिशु जन्मा जिसे नाम मिला राममनोहर। पिता के साथ राममनोहर अक्सर महात्मा गांधी से मिलने जाते थे। इसका उनपर काफी असर हुआ। बनारस व कोलकता से के बाद उच्च शिक्षा के लिए बर्लिन गए। यहां उन्होंने सिर्फ 3 महीने में जर्मन लैंग्वेज ऐसी आत्मसात की कि सभी हैरत में पड़ गए। सिर्फ इतना ही नहीं सिर्फ 2 साल में अर्थशास्र के डॉक्टर भी बने थे अपने राममनोहर।

राम मनोहर लोहिया से जुड़ीं रोचक बातें

वर्ष 1933 में कांग्रेस (Congress) में शामिल हो गए। 1935 में कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पार्टी महासचिव बना दिया।

लोहिया नहीं चाहते थे कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो, उनके ये विचार नेहरू से उलट थे।

अगस्ता 1942 को गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रीय भूमिका अदा की। जेल गए और फरार हुए, फिर जेल गए और 1946 में रिहा हुए।

1947 में स्वतंत्रता मिली देश को प्रधानमंत्री मिले जवाहरलाल नेहरू।

नेहरू के साथ मतभेद के कारण 1948 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी।

नेहरू जब बीमार हुए तो उन्होंने कहा कि बीमार देश के बीमार पीएम को इस्तीफा दे देना चाहिए।

वर्ष 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए और 1955 में इस्तीफ़ा दे दिया। और सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया।

वर्ष 1962 के आम चुनाव में फूलपुर में नेहरू के खिलाफ मैदान में उतर गए।

जब जन्मदिन मानने से किया इंकार

क्रांतिकारी भगत सिंह की जब शहादत हुई तो लोहिया ने प्रण लिया कि आजीवन जन्मदिन नहीं मनाएंगे।

महात्मा गांधी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गांधी ने कहा सिगरेट छोड़ दो

महात्मा गांधी ने एक बार लोहिया से कहा सिगरेट पीना छोड़ दो। आपको अंदाजा भी नहीं होगा कि लोहिया ने क्या जवाब दिया होगा! उन्होंने गांधी से कहा 'सोच कर बताऊंगा'।

सरकार और नेताओं की नीतियों के प्रखर विरोधी

पीएम जवाहरलाल नेहरू के पालतू कुत्ते पर उस समय प्रतिदिन 3 रु का खर्च आता था। वहीं नेहरू पर प्रतिदिन 25 से 30 हजार रु खर्च होते थे। ये बात लोहिया को काफी बुरी लगी और उन्होंने इसका विरोध किया।

इंदिरा गांधी जब पीएम बनी तो लोहिया विपक्ष के बड़े नेता थे। इंदिरा सदन में काफी खामोश और चुप-चुप सी रहती थीं। जहां उनको लगता कि यहां बोलना पड़ेगा वो ऐसे कार्यक्रम में शामिल ही नहीं होती थी। एक बार लोहिया ने इसके लिए उन्हें गूंगी गुड़िया बोल दिया था।

लोहिया ने 1967 भविष्यवाणी की थी कि कांग्रेस जाने वाली है। इसके बाद कांग्रेस नौ सूबों में सत्ता से बेदखल हो गई।

जनवरी 1947 में लोहिया ने नेपाली राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने और देश में लोकतंत्र के लिए सत्याग्रह प्रारंभ किया।

25 जनवरी 1948 को लोहिया ने गांधी से हड़ताल का समर्थन मांगा। 1949 को लोहिया के नेतृत्व में नेपाली कांग्रेस के समर्थन और राणाशाही के खिलाफ जुलूस नेपाली दूतावास की ओर बढ़ा तो लाठी चार्ज हुआ और लोहिया गिरफ्तार कर जेल भेजे गए।

3 जून 1951 को गरीबी के मुद्दे पर लोहिया के नेतृत्व में दिल्ली में प्रदर्शन हुआ। 14 जून 1951 लोहिया गिरफ्तार फिर गिरफ्तार कर लिए जाते हैं।

11 नवम्बर 1962 में लोहिया ने तिब्बत की आजादी के लिए भी पहल की थी।

सीता नहीं द्रोपदी बनो

लोहिया महिला सशक्तिकरण के पक्षकार थे। वो चाहते थे कि देश कि महिला सीता नहीं द्रोपदी बने और अपने हक़ की लड़ाई मुखरता से लड़ें।

राइट टू रिकॉल

राममनोहर लोहिया चाहते थे कि देश में राइट टू रिकॉल का सिद्धांत जल्द से जल्द लागु किया जाए। क्योंकि उनका कहना था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं।

राम मनोहर लोहिया (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लोहिया का समाजवाद

सभी को हिस्सेदारी मिले।

सार्वजनिक धन और संपत्ति देश के हर नागरिक की हो।

शस्त्रों का विरोध।

स्त्री-पुरूष समानता।

रंगभेद की समाप्ति।

विश्व सरकार का निर्माण।

व्यक्तिगत अधिकारों का अतिक्रमण समाप्त हो।

इसके बाद आप समझ गए होंगे कि देश में जो नेता लोहियावादी होने का दम भर रहे हैं, वो सिर्फ लोहिया को वोट के लिए प्रयोग कर रहे। उनका लोहिया के समाजवाद से कोई लेना देना नहीं है। लोहिया ने कभी संपत्ति अर्जित नहीं की लेकिन उनके भक्त होने का दावा करने वाले अकूत संपत्ति के मालिक हैं।

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