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अमरमणि त्रिपाठी के परिवार की सियासत पर लगा ग्रहण, एक दशक से चुनाव में खा रहे हैं मात

आज अमनमणि अपने पिता के इतिहास को दुहराते नजर आ रहे हैं। उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में अरेस्ट हुए और अदालत से सजा भी पाई।

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Published on: 24 Jan 2017 6:57 AM GMT
अमरमणि त्रिपाठी के परिवार की सियासत पर लगा ग्रहण, एक दशक से चुनाव में खा रहे हैं मात
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गोरखपुरः पत्नी सारा की हत्या के आरोप में सीबीआई द्वारा बेटे अमनमणि त्रिपाठी के अरेस्ट होने के बाद अमरमणि त्रिपाठी और उनके परिवार के सियासी भविष्य पर एक बार फिर ग्रहण लग गया है। करीब एक दशक से इस परिवार के सदस्य चुनावों में लगातार मात खा रहे हैं। सपा ने नौतनवा से अमनमणि को प्रत्याशी जरूर बना दिया था लेकिन अब उनके जेल जाने के कारण उनका टिकट कट जाने के बाद अब सारी उम्मीदें भी धुमिल हो चुकी है।

अमनमणि भी पिता के नक्शे कदम पर

आज अमनमणि अपने पिता के इतिहास को दुहराते नजर आ रहे हैं। उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में अरेस्ट हुए और अदालत से सजा भी पाई। अब उनके साथ उसी तरह की घटनाएं घट रही हैं। अमरमणि त्रिपाठी और उनके परिवार को मधुमिता हत्याकांड के बाद लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं और उन्हें अपना सियासी रसूख बनाए रखने में दिक्कत हो रही है। मधुमिता हत्याकांड में जेल जाने के बाद 2009 लोकसभा का चुनाव में सपा ने अमरमणि के भाई अजीतमणि को टिकट दिया था लेकिन वह हार गए।

2012 में चुनाव हारे थे अमनमणि

इसके बाद 2012 में इस परिवार को बड़ा झटका तब लगा जब अमनमणि नौतनवां विधानसभा से चुनाव हार गए और उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी पूर्व सांसद अखिलेश सिंह के भाई कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना सिंह चुनाव जीत गए। दो साल बाद 2014 की लोकसभा में अमरमणि अपने परिवार के किसी सदस्य को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। साल 2015 में फरेन्दा विधानसभा के उपचुनाव में सपा ने उनके चाचा पूर्व मंत्री श्याम नारायण तिवारी को टिकट न दे उनके विरोधी विनोदमणि को दे दिया और वह जीत भी गए।

पत्नी सारा के मर्डर का लगा आरोप

एक तरफ सियासी जमीन पर यह परिवार मात पर मात खा रहा था तो उसी दौरान अमनमणि लगातार अपनी हरकतों के कारण सुर्खियों में आते रहे। पिछले साल लखनउ में ठेकेदार ऋषि कुमार पांडेय के अपहरण और धमकी देने के मामले में उनके ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ और अमन को जेल भी जाना पड़ा अभी ये सब मामला चल ही रहा था कि नौ जुलाई 2015 को पत्नी सारा की फिरोजाबाद में एक संदिग्ध वाहन दुर्घटना में मौत हो गई। सारा की मां सीमा सिंह ने अमन मणि और उनके परिवार पर सारा की सुनियोजित हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की।

सारा मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई

प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी और अक्टूबर 2015 में केस दर्ज कर लिया। अब सीबीआई भी अमनमणि के खिलाफ जांच में जुटी है। जांच के क्रम में सीबीआई की टीम गोरखपुर भी पहुंची और चार दिनों तक गोरखपुर में रहकर अमनमणि के दोस्तों से पूछताछ में लगी रही। इतना ही नहीं अमनमणि द्वारा सारा की काल डिटेल निकालने के मामले में एक सिपाही भी सीबीआई की रडार पर है। सीबीआई ने एसएसपी से पत्र के माध्यम से पूछा है कि ये काल डिटेल किसने और क्यों निकाली थी। इस मामले की जांच एसएसपी ने सीओ कैंट को सौंपी है और एक हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है।

मुकदमा हार गए अमरमणि

अमरमणि त्रिपाठी पर लगा ग्रहण यही समाप्त नहीं हुआ। गोरखपुर स्थित उनका आवास भी हाथ से जाने से बचा। इस जमीन पर अवैध कब्जे का आरोप था और मुकदमा चल रहा था। मुकदमें में अमरमणि हार गए और जमीन खाली कराने का आदेश हो गया। आवास बचाने के लिए आखिरी क्षणों में उन्होंने भाजपा से जुड़े एक ताकतवर नेता की मदद ली। आवास तो बच गया लेकिन उन्हें इसकी बाजार दर पर कीमत चुकानी पड़ी। इतना ही नहीं अमर मणि के रसूख को तब सबसे बड़ा झटका लगा जब कोर्ट के आदेश पर नौतनवा( महाराजगंज) स्थित के उनके कार्यालय से भारी फ़ोर्स के साथ कब्जा जबरिया हटाया गया।

अमरमणि ने नौतनवां में 80 के दशक में की थी इंट्री

बता दें की अमरमणि की नौतनवां में 80 के दशक में इंट्री हुई थी। तब उनकी पहचान बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के गोल में रहने वाले एक नौजवान की थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी और दूसरे बाहुबली नेता वीरेन्द्र प्रताप शाही के बीच सियासी घमासान के साथ-साथ गैंगवार भी चल रहा थे। गोरखपुर और आस-पास के जिले इसके चपेट में थे। अमरमणि ने पहला चुनाव भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी से लड़ा लेकिन इसके बाद वह अपनी जरूरतों के मुताबिक कांग्रेस, बसपा, सपा में जाते-आते रहे। साल 1980 में वह निर्दल चुनाव लड़े। साल 1989 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ पहली बार विधायक बने। लेकिन अगले 1996 और 2002 के विधानसभा का चुनाव वह अपने घोर राजनीतिक विरोधी अखिलेश सिंह से हार गए।

जेल में हैं अमनमणि और उनकी पत्नी

अमरमणि 2003 तक अपने राजनीतिक जीवन के उत्कर्ष पर थे। बुरे दिनों की शुरूआत तब हुई जब कवयित्री मधुमिता शुक्ला की लखनऊ में हत्या हुई। उस समय मधुमिता सात महीने की गर्भवती थीं। हत्या में उनका नाम आया और मामले की जांच सीबीआई की सौंप दी गई। आखिरकार उन्हें दिसंबर 2003 में अरेस्ट होना पड़ा। देहरादून की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें, उनकी पत्नी मधुमणि और दो अन्य को मधुमिता की हत्या, षडयंत्र में दोषी पाया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी। तभी से अमरमणि और उनकी पत्नी गोरखपुर जेल में हैं।

जेल में जाने के बाद भी उनके रौब में कोई कमी नहीं आई। लेकिन 2015 में हाईकोर्ट के सख्त रूख के बाद उनके जैसे कई अन्य प्रभावशाली कैदियों को जेल वापस आना पड़ा। जो बीमारी का बहाना बना मेडिकल कालेज में भर्ती हो गए थे। लगातार दो चुनावों में हार, बेटे का कानूनी शिकंजे में फंसने पर यह सवाल उठने लगा है कि आने वाले दिनों में अमरमणि का परिवार अपना सियासी वजूद पूरी तरह खो देगा।

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