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बज रहा बाजा, धूमधाम से सज रही बारात लेकिन दूल्हा अब भी नदारद

aman
By aman
Published on: 17 March 2017 8:00 AM GMT
बज रहा बाजा, धूमधाम से सज रही बारात लेकिन दूल्हा अब भी नदारद
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eye creamy posts योगेश मिश्र

लखनऊ: बीते 11 तारीख को ही सज-धज कर लक-दक बारात आ गई। सत्ता नाम की कन्या वरमाला लेकर खड़ी हो गई पर यही तय नहीं हो पा रहा है कि वर है कौन। यह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हालिया दौर के लिए अनोखी बात लगती है क्योंकि 2014 के बाद पार्टी उस दौर में है, जहां सब कुछ ‘क्लीयर’ है।

सत्ता का केंद्र क्लीयर है- नरेंद्र मोदी और अमित शाह, तीसरा कोई नहीं। जनादेश क्लीयर है। तो भी 200 घंटों का रहस्य चुनाव परिणाम के रहस्य से भारी पड़ रहा है। कौन बनेगा मुख्यमंत्री की अटकल बताती है कि अनिश्चय में है बीजेपी। वह बीजेपी जो महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में तुरंत नाम दे पाई थी। मणिपुर और गोवा में नाम खोजने में दिक्कत नहीं हुई, उसे उत्तर प्रदेश में क्यों दिककत हो रही है?

बीजेपी की जीत में कई मिथक टूटे

इस सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत में छिपा है। ऐसा जनादेश बीजेपी क्या किसी पार्टी को अब तक नहीं मिला। इसे हासिल करने में जाति की दीवारें टूटीं, कई स्तर पर ‘रिवर्स पोलेराइजेशन’ हुआ। नरेंद्र मोदी का प्रभामंडल, मेहनत, ईमानदारी, हिंदुत्व, विकास और कमिटमेंट काम आया है। समूची अगड़ी जातियों ने पहली बार बहुत दिनों बाद एक साथ वोट दिया। पिछड़ों में यादव अलग-थलग पड़े, अति पिछड़े बीजेपी के पक्ष हुए खड़े। दलितों में गैर जाटवों ने मोदी पर मुहर लगाई।

गढ़नी पड़ रही सियासत की नई इबारत

कल तक जातियों को साधने की सियासत करने वाले राजनीतिक दलों को अब सियासत की नई इबारत गढऩी पड़ रही है। जिसमें जाति कुछ भी हो, दूसरी जातियों को ‘ऐड्रेस’ करने की कूवत हो, विकास का जुनून हो, मोदी का प्रतिरूप हो, अथक मेहनत और अटूट ईमानदारी हो। हालांकि, एक जगह इन विशेषणों का मिलना दुर्लभ है। यही बीजेपी की मुख्यमंत्री न चुन पाने की परेशानी है। यही वजह है कि दर्जन भर नाम- राजनाथ सिंह, दिनेश शर्मा, मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, उमा भारती, श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थनाथ सिंह, महेश शर्मा, सुरेश खन्ना, सतीश महाना, योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी सरीखे तमाम नाम हवा में तैर रहे हैं। अटकलें तेज हैं।

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सीएम ब्राह्मण का होगा या ओबीसी का होना चाहिए

उत्तर प्रदेश में ब्राहमण मतदाताओं की संख्या 11 फीसदी से कम नहीं बताई जा सकती। सभी अगड़े तकरीबन 25 फीसदी हैं। 19 फीसदी मुसलमान और 22 फीसदी दलित हैं। इस लिहाज से पिछड़े मतदाताओं की संख्या 34 फीसदी बैठती है। हालांकि सियासतदां इन्हें 40 से 60 फीसदी तक बताते हैं। लेकिन उनके लिए दलित, अगड़े और अल्पसंख्यकों की संख्या घटाना मुश्किल होता है।

सबसे तेज चला राजनाथ का नाम

325 विधायकों के जनादेश को कमांड करने की कूवत पुराने अनुभव के आधार पर रखने वालों में राजनाथ सिंह का नाम सबसे ऊपर है। वह शीर्ष पदों पर रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार भी चला चुके हैं। केंद्र में दूसरे नंबर की हैसियत में हैं। खासा सांगठनिक अनुभव है। चुनाव के दौरान तमाम सियासी पंडित त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगा रहे थे। तब यह दावे से कहा जा रहा था कि संतुलन साधने के लिए राजनाथ सिंह ही मुख्यमंत्री होंगे। अब जब प्रचंड जनादेश है, तब उनके मुख्यमंत्री होने के दूसरे तर्क हैं। कहा जा रहा है कि वही कमांड कर सकते हैं। हालांकि बीते दिनों उन्होंने मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों को फालतू बताकर खारिज कर दिया।

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दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा दस साल से मेयर हैं। मोदी के गुजरात के प्रभारी हैं। उपलब्धता और विनम्रता में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मानिंद हैं। सदस्यता अभियान के श्रेय के हिस्सेदार हैं। अमित शाह की टीम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर सदस्य हैं। पर्यटन निगम के अध्यक्ष के तौर पर प्रदेश में काम कर चुके हैं।

मनोज सिन्हा

मनोज सिन्हा, उच्च शिक्षा प्राप्त पार्टी के पुराने कैडर हैं। बीएचयू से आईआईटी पास मनोज सिन्हा वहीं के छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं। मोदी की पसंद हैं। डिजिटल इंडिया के लिए देश भर की पंचायतों की कनेक्टिविटी का काम उनके पास है। रेल मंत्रालय भी उनके पास है। रेलवे के अफसर लखनऊ आने को तैयार हैं।

केशव प्रसाद मौर्य

केशव प्रसाद मौर्य, विधानसभा चुनाव में सुनामी के एक हिस्सेदार हैं। विहिप के मार्फत राजनीति में आए। पहली बार विधायक बने, पहली बार सांसद बने और पहली बार प्रदेश अध्यक्ष। संगठन में इससे पहले इनके पास कोई पद नहीं था। अध्यक्ष बनने के बाद उत्तर प्रदेश से अपरिचित नहीं रह गए पर अब तक प्रशासनिक अनुभव नहीं मिला।

जारी ...

उमा भारती

उमा भारती, मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। अटल सरकार में उनके पास युवा कल्याण एवं खेल मंत्रालय था, अब जल संसाधन मंत्रालय के साथ नरेंद्र मोदी के नमामि गंगे परियोजना का काम देखती हैं। मंडल, कमंडल और महिला, तीनों ताकतों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

श्रीकांत शर्मा

श्रीकांत शर्मा, उत्तर प्रदेश के हैं, यह मथुरा चुनाव के दौरान उजागर हुआ है। पहली बार विधायक हुए हैं। भाजपा के अच्छे प्रवक्ता हैं। मोदी और शाह के प्रिय हैं।

महेश शर्मा

महेश शर्मा, पहली बार विधायक, पहली बार सांसद और पहली बार मंत्री हैं। सियासत में आने से पहले लोग उन्हें उनके कैलाश हास्पिटल की वजह से जानते हैं।

सिद्धार्थनाथ सिंह

सिद्धार्थनाथ सिंह, पहली बार विधायक का चुनाव लड़ने गए तब पता चला कि वह इलाहाबाद के हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निकट परिजन हैं। पार्टी के प्रवक्ता हैं। शास्त्री जी से मोदी की अभिन्नता इनकी अहमियत जताती है।

अन्य नाम अगली स्लाइड में ...

सुरेश खन्ना

सुरेश खन्ना, आठवीं बार विधायक बने सुरेश खन्ना अपनी धुन के मालिक हैं। अविवाहित हैं। यह उनकी उम्मीद की बड़ी वजह है।

सतीश महाना

कार्यकर्ताओं के पक्षधर महाना भी छह बार से जीत रहे हैं। विधानसभा में पार्टी का पक्ष मजबूती से रखने के लिए जाने जाते हैं।

योगी आदित्यनाथ

पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के 'पोस्टर बॉय' योगी चार बार से सांसद हैं। 1992 वाली भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधि चेहरे हैं।

स्मृति ईरानी

कांग्रेस के गढ़ में ढहाने ताबूत में कील की तरह घुसने की कोशिश में जुटी ईरानी की लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद उत्तर प्रदेश में सक्रियता उनके नाम की लौ जलाए हुए हैं।

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प्रचंड जनादेश में उम्मीदें भी वैसी ही

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहें तो इनके अलावा किसी के सिर पर भी मुख्यमंत्री का ताज बंध सकता है। किसी के हाथ बटेर लग सकती है। 2012 के विधानसभा चुनाव में जनादेश मुलायम सिंह यादव को मिला था लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री का ताज अपने बेटे अखिलेश यादव के सिर बांध दिया। अखिलेश की अगुवाई में सपा ने लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में अपने जीवन का सबसे खराब प्रदर्शन किया।

उत्तर प्रदेश की जनता ने अब जनादेश नरेंद्र मोदी को दिया है। जनता उनका सटिप्पण और संस्करण चाहती है। नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक जीवन का अब तक का मुश्किल काम यही होगा क्योंकि वह खुद मानते हैं कि प्रचंड जनादेश में उम्मीदें भी प्रचंड होती हैं। जो 325 लोग जीते हैं, उनमें 100 से अधिक ऐसे लोग हैं जहां उनका ट्रैक रिकार्ड बेहद खराब रहा है। तमाम ऐेसे सीनियर लीडर हैं, जो जूनियर के कहे पर कान नहीं देने के आदी हैं। क्योंकि उनके साथ के नेता राष्ट्रीय हो गए हैं। इन सबके बीच मोदी और शाह की जोड़ी गंभीर परीक्षा की कसौटी पर है। जनता ने तो उत्तर प्रदेश में अगली लोकसभा के दरवाजे मोदी के लिए खोल दिए हैं। मुख्यमंत्री का चयन बताएगा कि जनता के खुले दरवाजे से पैठकर निकल पाने को वह कितने तैयार हैं।

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मंत्रियों के नाम स्पष्ट

भले ही मुख्यमंत्री के चयन को लेकर हो रहा विलंब दुविधा का संदेश देता है पर मोटे तौर पर मंत्रियों के नाम साफ हो गए हैं। 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 60 मंत्री हो सकते हैं। एक दो जगहें तकनीकी कारणों से खाली रखी जाती हैं। अगले अप्रैल तक विधान परिषद से भी किसी के नामित होने की भी गुंजाइश नहीं है। बिना किसी सदन का सदस्य रहे छह महीने तक मंत्री रहा जा सकता है। पर अगली अप्रैल तक तकरीबन 13 महीने हैं। बीजेपी को सहयोगी दलों अपना दल और भारतीय समाज पार्टी दोनों को मंत्रिमंडल में कम से कम एक एक सीट तो देनी ही होगी। दूसरे दलों से आए दिग्गजों और पूर्व मंत्रियों को भी एडजस्ट करना होगा।

इनमें रीता जोशी, स्वामी प्रसाद मौर्य, फतेह बहादुर सिंह, धर्मसिंह सैनी, दीनानाथ भास्कर, चौधरी लक्ष्मी नारायण, दलबीर सिंह, फागू चौहान, दारासिंह चौहान, भासपा के ओम प्रकाश राजभर को मंत्रिमंडल में जगह देना अनिवार्यता होगी। पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, स्वतंत्र देव सिंह, कई बार के विधायक राजेश अग्रवाल, पूर्व मंत्री रहे रामकुमार वर्मा, वीरेंद्र सिंह सिरोही, मोती सिंह, रमापति शास्त्री, धर्मपाल सिंह, नंद गोपाल गुप्ता, पूर्व सांसद चेतन चौहान, श्रीराम चौहान और बैजनाथ रावत, संघ से जुड़े लक्ष्मण आचार्य, भूपेंद्र चौधरी और मुकुट बिहारी भी मंत्री पद से नवाजे जा सकते हैं।

इनके अलावा सुरेश राणा, हृदय नारायण दीक्षित, गोपाल टंडन, पंकज सिंह, अनुपमा जायसवाल, राधा मोहन दास अग्रवाल, स्वाति सिंह, जय प्रकाश निषाद, अल्का राय, कृष्णा पासवान, अनुराग सिंह, महेंद्र सिंह, श्रीराम सोनकर, अक्षयवर लाल गौड़, बिहारी लाल आर्य, रामचंद्र यादव, जय प्रताप सिंह, मनीष असीजा, सत्य प्रकाश जायसवाल, एसपी बघेल, रवि शर्मा, शशांक त्रिवेदी, दल बहादुर कोरी, गुलाब देवी, रवींद्र जायसवाल, देवमणि दुबे, संजय शर्मा को भी मंत्रिमंडल में जगह मिलनी की उम्मीद करनी चाहिए। मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ जाने वालों के लिए भी कैबिनेट में सीट सुरक्षित रहेगी। हृदय नारायण दीक्षित को विधानसभा में विधायकों के नियंत्रण की जिम्मेदारी मिल सकती है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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