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विधानसभा उपचुनाव: नामाकंन प्रक्रिया शुरू, ऐसी है सीटों की स्थिति

यूपी में विधानसभा की 07 सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव के लिए नामाकंन प्रक्रिया शुरू हो गई है। सभी दलों ने उपचुनाव के लिए कमर कस ली है। आइये जानते है अभी तक क्या रही है इन विधानसभा क्षेत्रों की सियासी स्थिति...

Newstrack
Published on: 11 Oct 2020 10:57 AM GMT
विधानसभा उपचुनाव: नामाकंन प्रक्रिया शुरू, ऐसी है सीटों की स्थिति
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विधानसभा उपचुनाव: नामाकंन प्रक्रिया शुरू, ऐसी है सीटों की स्थिति (social media)

लखनऊ: यूपी में विधानसभा की 07 सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव के लिए नामाकंन प्रक्रिया शुरू हो गई है। सभी दलों ने उपचुनाव के लिए कमर कस ली है। आइये जानते है अभी तक क्या रही है इन विधानसभा क्षेत्रों की सियासी स्थिति...

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नौगावां सादात विधानसभा सीट-

नये परसीमन के तहत आस्तित्व में आयी अमरोहा जिले की नौगावां सादात के विधायक व योगी सरकार के काबीना मंत्री चेतन चैहान के निधन से रिक्त हुई नौगावां सादात विधानसभा सीट पर पहला चुनाव वर्ष 2012 में हुआ जिसमे समाजवादी पार्टी के अशफाक अली खान ने बसपा के राहुल कुमार को 3 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। यहां रालोद तीसरे नंबर पर रही थी।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने यहां अपना प्रत्याशी बदल दिया और मौजूदा विधायक अशफाक अली खान के स्थान पर जावेद अब्बास को टिकट दिया जबकि भाजपा ने पूर्व क्रिकेटर व सांसद चेतन चैहान को मैदान में उतारा। चेतन चैहान ने सपा के जावेद अब्बास को 20 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। जबकि बसपा यहां तीसरे स्थान पर रही थी।

मल्हनी विधानसभा सीट-

नये परिसीमन में जौनपुर की रारी विधानसभा सीट मल्हनी बन गई। रारी सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा। कांग्रेस यहां 06 बार विजय पताका फहराने में कामयाब रही। वर्ष 1989 में आखिरी बार कांग्रेस के अरुण कुमार सिंह मुन्ना यहां चुनाव जीते थे, इसके बाद से कांग्रेस यहां जीत का मुंह नहीं देख पायी।

वर्ष 2012 में रारी से तब्दील हो कर बनी मल्हनी विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस का प्रदर्शन फीका ही रहा। सपा के कद्दावर नेता व वर्ष 2012 तथा 2017 विधानसभा चुनाव के विजेता पारसनाथ यादव की मृत्यु से रिक्त हुई यादव बाहुल्य इस सीट पर मुस्लिमों का साथ निर्णायक साबित होता है। सपा ने यहां से पारसनाथ कि पुत्र लकी यादव को उतारा है तो उपचुनाव में यहां से कांग्रेस के टिकट पर बाहुबली धनंजय सिंह के मैदान में आने की संभावना है। जबकि बसपा ने यहां से जयप्रकाश दुबे को प्रत्याशी बनाया है।

election election (social media)

बांगरमऊ विधानसभा सीट

बांगरमऊ विधानसभा सीट पर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा से आये कुलदीप सिंह सेंगर ने भाजपा को यहां जीत दिला कर उसकी बहुत पुरानी चाहत को पूरा किया था। दरअसल, इस सीट पर तमाम दमखम लगाने के बाद भी कभी भी भाजपा का कब्जा नहीं हो पाया था। लेकिन बहुचर्चित उन्नाव रेप केस में सजा होने के कारण विधायकी गंवाने वाले कुलदीप सेंगर की गैरमौजूदगी में अब एक बार फिर भाजपा के लिए यहां अपना कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी बदलू खां ने यहां बसपा के इरशाद खां को करीब 13 हजार मतों से हरा कर बाजी मारी थी।

देवरिया सदर विधानसभा सीट-

देवरिया सदर विधानसभा सीट पर दो बार से काबिज भाजपा के जन्मेजय सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर पिछले कुछ चुनावों से पिछड़ी जाति के प्रत्याशियों का बोलबाला रहा है। जन्मजेय सिंह भी पिछड़ी जाति से थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जन्मजेय सिंह ने सपा-कांग्रेस प्रत्याशी जेपी जायसवाल को 46 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। जबकि बसपा के अभय नाथ त्रिपाठी तीसरे स्थान पर रहे थे।

जबकि वर्ष 2012 में भाजपा के जन्मजेय सिंह ने बसपा के प्रमोद सिंह को करीब 23 हजार मतों से पराजित किया था। इस चुनाव में सपा के दीनानाथ कुशवाहा तीसरे स्थान पर रहे थे। परिसीमन में इस विधानसभा क्षेत्र के भूगोल में थोड़ा अंतर आया है। परिसीमन से पहले वर्ष 2012 तक यहां हर चुनाव में अलग-अलग मुद्दे हावी रहे। यहां दो बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा और एक बार सपा ने अपना परचम लहराया है। हालांकि यहां बसपा भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराती रही है।

बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट-

भाजपा विधायक वीरेंद्र सिंह सिरोही के निधन से रिक्त हुई बुलंदशहर सदर सीट पर 1950 से लेकर अब तक 04 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। पहली बार 1950 में हुए इस सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बाबू बनारसी दास ने बाजी मारी थी। 1985 में कांग्रेस के सइदुल हसन ने आखिरी बार यहां कांग्रेसी परचम लहराया था।

इसके बाद वर्ष 1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के डीपी यादव ने यहां जीत हासिल की और लगातार तीन बार यहां से विधायक बने। इसके बाद भाजपा के महेंद्र सिंह यादव ने डीपी सिंह के किले में सेंध लगाई और लगातार दो बार विधायक बने। वर्ष 2007 और 2012 में बसपा के हाजी अलीम ने भी दो बार इस सीट को फतेह किया। जबकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र सिंह एक बार फिर ये सीट भाजपा की झोली में डालने में सफल रहे।

election election (social media)

घाटमपुर विधानसभा सीट-

भाजपा विधायक व योगी सरकार की काबीना मंत्री कमल रानी वरुण के निधन से रिक्त हुई घाटमपुर विधानसभा सीट पर पिछले चार विधानसभा चुनावों में एक बार भाजपा, दो बार सपा तथा एक बार बसपा को जीत हासिल हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की कमल रानी वरुण ने बसपा की सरोज कुरील को करीब 45 हजार मतों से हराया था।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के इंद्रजीत कोरी ने बसपा की सरोज कुरील से हुए कड़े संघर्ष में बहुत ही कम मतों से जीत हासिल की थी। भाजपा यहां चैथे स्थान पर रही थी। जबकि वर्ष 2007 में यहां बसपा के रामप्रकाश कुशवाहा ने सपा के राकेश सचान को करीब दो हजार मतो के अंतर से हरा कर यह सीट छीन ली थी। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा के राकेश सचान ने बसपा के राजराम पाल को करीब 08 हजार मतों से हराया था।

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टूण्डला विधानसभा सीट-

सुहागनगरी के नाम से मशहूर फिरोजाबाद जिले की टूण्डला विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के एसपी बघेल ने बाजी मारी थी। उन्होंने बसपा से ये सीट छीनी थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बघेल आगरा से सांसद हो गये और यह विधानसभा सीट खाली हो गयी। इससे पहले वर्ष 1996 में भाजपा के शिव सिंह ने यहां पहली बार भगवा फहराया था।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा के राकेश बाबू ने सपा के अखलेश कुमार को करीब 07 हजार मतो से हराया जबकि वर्ष 2007 में राकेश बाबू ने भाजपा के शिव सिंह को करीब 21 हजार मतो के अंतर से हराया। जबकि वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा के मोहन देव शंखवार ने भाजपा के राम बहादुर को करीब 05 हजार मतों से पराजित किया।

मनीष श्रीवास्तव

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