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सपा और बसपा के आपसी झगड़े से बीजेपी की हो रही बल्ले बल्ले
लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और चुनाव के बाद सरकार बनाने का जोर शोर से दावा करने वाली बसपा में चल रही आपसी खींचतान और झगड़े से यदि कोई खुश हो रहा हे तो वो है बीजेपी। जो चुनाव के बाद सत्ता में आने का तीसरा कोण बनाने में लगी है।
बसपा में दूसरे सबसे ताकतवर नेता ने छोड़ा पार्टी का साथ
पहला झटका बसपा को लगा जब पार्टी में मायावती के बाद सबसे ताकतवर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने बसपा का दामन छोड़ दिया। इस बात की किसी को कानो कान खबर नहीं हुई। चालाक राजनीतिज्ञ के तहत उन्होंने पार्टी तो छोड़ी लेकिन विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद नहीं त्यागा।
उनका दावा था कि मायावती से नाराज विधायक और नेता उनके साथ आएंगे। उनकी इस चाल ने मायावती को सावधान कर दिया और उन्होंने अपने उन विधायकों को मनाना शुरू कर दिया जिसे उन्होंने निकाल दिया था। मायावती ने एक-एक कर सभी को वापस लेना शुरू कर दिया। ये उनका डैमेज कंट्रोल था।
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स्वामी प्रसाद मौर्या के पहले सपा में शामिल होने की चर्चा हुई। बसपा से त्यागपत्र देने के तुरंत बाद सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान ने उनको बधाई दी, तो सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्या के साथ उनके अच्छे तालुक्कात थे। विधानसभा में वो मेरे एकदम सामने बैठा करते थे।
दो दिन बाद ही स्वामी प्रसाद का सपा के विरोध में बयान आया और उन्होंने इसे अपराधियों और गुंडों की पार्टी करार दिया। चर्चा हुई कि स्वामी प्रसाद अब बीजेपी में जाएंगे। उनकी बीजेपी के यूपी के मामले के प्रभारी ओम माथुर से दिल्ली में बात भी की। बातचीत की में ये उभर कर सामने आया कि बीजेपी मौर्या को तो बड़ा पद देने को तैयार है लेकिन उनके बेटे बेटी के एडजेस्टमेंट से एतराज है। हालांकि बीजेपी से मौर्या के समझौते पर बात अभी खत्म नहीं हुई है।
बीजेपी में जाने के पहले मौर्या अपनी ताकत को तौल लेना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने अपने समर्थक बसपा नेताओं की 1 जुलाई को बैठक बुलाई है। मायावती पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगाकर उन्होंने खुद को हास्य का पात्र बना लिया। मायावती ने भी ये कह कर अपनी हंसी उड़वाई कि उनके मां बाप ने उनका नाम माया रखा हे इसलिए उनके पास तो माया रहेगी ही।
कौएद के सपा में विलय के बाद उठा तूफान
दूसरा झटका सपा को लगा। माफिया से राजनीतिज्ञ बने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय होने के साथ ही पार्टी में तूफान खड़ा हो गया। विलय के सूत्रधार पार्टी के वरिष्ठ नेता और यूपी के प्रभारी शिवपाल यादव थे।
ये बात सीएम अखिलेश यादव को नागवार गुजरी। उन्होंने तुरंत एतराज किया और कहा कि मुख्तार जैसे व्यक्ति का सपा में स्वागत नहीं हो सकता। वो 2012 में भी पश्चिमी यूपी के ताकतवर नेता लेकिन दागी छवि वाले डी पी यादव को पार्टी में लेने से मना कर चुके थे।
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मामला संसदीय बोर्ड तक पहुंचा और शिवपाल के विलय के फैसले को नकार दिया गया। शिवपाल यादव ने खुलकर तो विरोध नहीं किया लेकिन वो सीएम से अपनी नाराजगी दिखाते रहते हैं। पहले विलय और बाद में मना करने पर जनता के बीच मैसेज ये गया कि मुलायम ने बेटे का कद और बड़ा करने के लिए भाई के साथ कुश्ती का चरखा दांव खेल दिया ।
विलय खत्म होने पर कौमी एकता दल भी नाराज हुआ और उसके अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने कहा कि सपा ने विधान परिषद और राज्यसभा में वोट लेने के लिए उनका इस्तेमाल किया। अब विधानसभा चुनाव में सपा पूर्वी यूपी में अपना बुरा समय देखने के लिए तैयार रहे।
क्या मानना है राजनीति के जानकारों का
राजनीति के जानकार मानते हैं कि विलय को लेकर सपा में घमासान और बसपा से स्वामी प्रसाद के जाने से दोनों पार्टी कमजोर हुई है। चुनाव के पहले इस राजनीतिक हलचल से बीजेपी की बांछे खिली हुई हैं। दोनों दलों को चुनाव में होने वाला नुकसान बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा।