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BJP Chunav Chinah : जनसंघ का 'दीपक' ऐसे बना बीजेपी का 'कमल', चुनाव चिन्ह बदलने की रोचक कहानी
BJP Chunav Chinah : 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नींव रखी थी। यही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में स्थापित हुई।
BJP Chunav Chinah : क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिन्ह (Chunav Chinah) की व्यवस्था क्यों की गई थी। इसका मूल मकसद उन मतदाताओं की मदद करना रहा है जो साक्षर नहीं है। ऐसे वोटर चुनाव चिन्हों के जरिए पहचान कर अपनी पसंदीदा पार्टी और नेता को वोट दे सकें। इसी से समझ सकते हैं कि चुनाव चिन्ह पार्टियों के लिए कितना मायने रखता है। आजादी के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने अब तक तीन बार अपने चुनाव चिन्ह को बदला है तो बीजेपी भी इससे अछूती नहीं रही है।
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Shyama Prasad Mukherjee) ने जनसंघ की नींव रखी थी। यही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रूप में स्थापित हुई। बीजेपी की औपचारिक स्थापना साल 1980 में हुई थी। 1951 में जनसंघ के वक्त उसका चुनाव चिन्ह 'दीपक' हुआ करता था जो अब 'कमल' हो गया है।
तो ऐसे 'दीपक' बना 'हलधर किसान'
दरअसल, 1977 में इंदिरा गांधी सरकार (Indira Gandhi government) ने देश में आपातकाल खत्म करने की घोषणा की। इसके बाद देश में बड़े राजनीतिक बदलाव की सुगबुगाहट हुई। आम जनता में कांग्रेस पार्टी और इंदिरा सरकार के खिलाफ गुस्सा था। जनता कांग्रेस के विकल्प के तौर पर किसी को भी चुनने को बेताब थी। देश में एक बार फिर आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसी दौरान 'जनसंघ' को 'जनता पार्टी' बनाने की कवायद तेज हुई। जनता पार्टी में कई छोटी पार्टियों का विलय हुआ। तब चुनाव चिन्ह 'दीपक' से बदलकर 'हलधर किसान' हो गया।
मकसद में सफल रहा जनता पार्टी
उस वक्त जनता पार्टी का मुख्य मकसद इंदिरा गांधी सरकार को सत्ता से बेदखल करना था। इस मकसद के साथ जनता पार्टी को चुनाव में जीत मिली। मोरारजी देसाई देश के नए प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में जनसंघ से आए नेताओं को अच्छी बड़ी कामयाबी मिली, तो वहीं कांग्रेस पार्टी को मुंह की खानी पड़ी।
कमल के फूल को मिली मान्यता
इसके बाद 6 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के नाम से एक नए राजनीतिक दल की स्थापना हुई। पार्टी का पहला सत्र मुंबई में संपन्न हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने। इस दौरान एक बार फिर पार्टी का चुनाव चिन्ह बदला। 'कमल का फूल' को बीजेपी का चुनाव चिन्ह घोषित किया गया। जानकार बताते हैं कि 'कमल का फूल' अनायास ही बीजेपी का चुनाव चिन्ह नहीं बन गया। कमल को हिन्दू परंपरा और मान्यताओं से भी जोड़कर देखा जाता है।
कमल के पीछे ऐतिहासिक तथ्य भीजानकार बताते हैं कि कमल के फूल के पीछे एक अन्य ऐतिहासिक कहानी भी छुपी है। बात है, 1987 के सिपाही विद्रोह की। उस दौरान चपाती और कमल के फूल का इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए किया जाता था। इसके बाद जब अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह हुआ तो कमल के फूल का इस्तेमाल खुले तौर पर चिन्ह के रूप में होने लगा। इन विद्रोहियों में अधिकतर ब्राह्मण जाति के थे, जो जानवरों के खाल से बने सामानों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे। हालांकि, बीजेपी के संस्थापक सदस्यों का कहना रहा है कि यह चिन्ह उनके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भी वर्णित करता है।