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तेलंगाना में टीआरएस का गढ़ भेदने में जुटे कांग्रेस, भाजपा और ओवैसी

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव का मुकाबला इस बार पिछली बार से काफी अलग दिखायी दे रहा है। इस बार मुख्यमत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति जहां अकेले अपने दम पर मैदान में है। वहीं, कांग्रेस, तेलुगुदेशम और वामदलों सहित कई दल गठबंधन करके मैदान में हैं।

राम केवी
Published on: 3 Dec 2018 11:42 AM IST
तेलंगाना में टीआरएस का गढ़ भेदने में जुटे कांग्रेस, भाजपा और ओवैसी
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: तेलंगाना में विधानसभा चुनाव का मुकाबला इस बार पिछली बार से काफी अलग दिखायी दे रहा है। इस बार मुख्यमत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति जहां अकेले अपने दम पर मैदान में है। वहीं, कांग्रेस, तेलुगुदेशम और वामदलों सहित कई दल गठबंधन करके मैदान में हैं।

जबकि कथित रूप से भारतीय जनता पार्टी और एआईएमआईएम किंग मेकर बनने के लिए जूझ रही हैं। तेलंगाना का चुनावी समर अब काफी दिलचस्प हो चला है। जहां एक ओर राज्य के सीएम के. चंद्रशेखर राव दूसरी बार राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रहे हैं इसीलिए उन्होंने जल्द चुनाव कराने का एलान किया।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, टीडीपी, लेफ्ट और तेलंगाना एक्शन कमेटी ने आपस में हाथ मिलाकर चंद्रशेखर राव को मात देने की तैयारी कर रहे हैं। जबकि तेलंगाना में परंपरागत रूप से मजबूत जनाधार न रखने वाली भारतीय जनता पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुस्लिमीन या एआईएमआईएम या भारतीय मुस्लिम संघ किंग मेकर बनने के लिए भिड़े हैं।

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तेलंगाना की 119 सीटों वाली विधानसभा में चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति के 90 विधायक हैं। जबकि भाजपा के केवल पांच विधायक हैं। इसी तरह कांग्रेस के 13, टीडीपी के तीन, सीपीआई का एक विधायक है जबकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के सात विधायक हैं।

2014 में बने तेलंगाना राज्य की सियासत में तेलंगाना राष्ट्र समिति मजबूत स्थिति में है। पिछली लोकसभा में भी इस पार्टी के 11 सांसद हैं और चंद्रशेखर राव ने पांच साल में जिस तरह से अपनी पार्टी और संगठन का विस्तार किया है, वैसा भाजपा सहित दूसरी पार्टी नहीं कर सकी हैं। राव इसी का फायदा समयपूर्व चुनाव कराके उठाना चाहते हैं।

हालांकि उन्हें मात देने के लिए कांग्रेस ने तेलुगुदेशम पार्टी के साथ हाथ मिला लिया है। जबकि पूर्व में दोनो पार्टियों में 36 का आंकड़ा रहा है। कांग्रेस ने इसके अलावा वामपंथी संगठनों और तेलंगाना एक्शन कमेटी के साथ भी गठबंधन किया है।

हालांकि कांग्रेस यहां बड़े भाई की भूमिका ले कर चल रही है। गठबंधन में कांग्रेस 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बाकी बची 29 सीटें सहयोगी दल के खातें गई है।

तेलंगाना राज्य के गठन में चंद्रशेखर राव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। राज्य के गठन के समय इस राज्य में आंध्र प्रदेश के 23 जिलों में से दस जिले आए थे। ये थे हैदराबाद, आदिलाबाद, खम्मम, करीमनगर, महबूबनगर, मेडक, नलगोंडा, निजामाबाद, रंगारेड्डी व वारंगल।

इस राज्य को आंध्र की 294 में से 119 विधानसभा सीटें और 42 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें प्राप्त हुई हैं। बाद में इन दस जिलों को पुनर्गठित करके 21 नए जिले बना कर कुल जिलों की संख्या 31 कर दी गई।

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तेलंगाना में 84 फीसद हिंदू, 12.4 फीसद मुस्लिम और 3.2 फीसद अन्य धर्मों के अनुयायी हैं। तेलंगाना में साढें बारह फीसद मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद के भरोसे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम किंग मेकर बनने की कोशिश में है।

ओवैसी का एक ठोस वोट बैंक है जिसके चलते मौजूदा समय में उनके पास अभी सात विधायक हैं। हालांकि कांग्रेस सहित कई दल ओवैसी और चंद्रशेखर राव के बीच गठजोड़ का आरोप लगाती रही हैं।

भाजपा राज्य के चुनाव को पूरी तरह से हिंदू बनाम मुस्लिम करके 84 फीसद हिंदू मतों का बढ़ा हिस्सा समेट कर तेलंगाना में कमल खिलाने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है। लेकिन सचाई यह भी है कि तेलंगाना के लिए क्रांतिकारी पार्टी का रूप ले चुकी तेलंगाना राष्ट्रसमिति के गढ़ में सेंधमारी कर पाना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर है।

शायद इसी लिए यहां पार्टी का लक्ष्य तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कम से कम इतनी सीटें जीत लेना है जिसके दम पर वह किंगमेकर की भूमिका में आ जाए। भाजपा राज्य में 20 से ज्यादा सीटें जीत लेना चाहती है। फिलहाल यहां पार्टी के पांच विधायक हैं। यदि पार्टी अपनी सिंगल डिजिट को डबल में ले आती है तो उसे कामयाब कहा जाएगा।

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