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'असली-नकली दलित' पर घमासान, केशव मौर्या बोले- दलितों के रूझान से माया बेचैन

यूपी में चुनावी मौसम आते ही जातीय समीकरण हावी हो जाते हैं और इसको लेकर सियासी दलों में वाकयुद्ध शुरू हो जाता है। वर्तमान में बसपा और बीजेपी के बीच भी यही घमासान छिड़ा हुआ है। बसपा मुखिया मायावती ने शुक्रवार को बीजेपी की धम्म यात्रा को प्रायोजित (मैनेज) बौद्ध भिक्षुओं की यात्रा करार दिया था। अब बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा है कि दलितों का रूझान पार्टी की तरफ बढ़ रहा है। मायावती इससे बेचैन और परेशान हैं।

tiwarishalini
Published on: 15 Oct 2016 2:22 PM GMT
असली-नकली दलित पर घमासान, केशव मौर्या बोले- दलितों के रूझान से माया बेचैन
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लखनऊ: यूपी में चुनावी मौसम आते ही जातीय समीकरण हावी हो जाते हैं और इसको लेकर सियासी दलों में वाकयुद्ध शुरू हो जाता है। वर्तमान में बसपा और बीजेपी के बीच भी यही घमासान छिड़ा हुआ है। बसपा मुखिया मायावती ने शुक्रवार को बीजेपी की धम्म यात्रा को प्रायोजित (मैनेज) बौद्ध भिक्षुओं की यात्रा करार दिया था। अब बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा है कि दलितों का रूझान पार्टी की तरफ बढ़ रहा है। मायावती इससे बेचैन और परेशान हैं।

आरएसएस के लोगों को नकली दलित बनाकर बिठाया

मायावती ने बीजेपी के धम्म यात्रा के समापन पर तंज कसते हुए शुक्रवार को कहा था कि इसे अधिकांश बीजेपी और आरएसएस के लोगों को ही नकली दलित बनाकर बिठाया गया। यहां तक कि जिन बौद्ध भिुक्षुओं को सम्मानित किया गया। उनमें से भी ज्यादातर उनके कार्यकर्ता ही नकली भिक्षु बने हुए थे।

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मायावती ने किया बौद्ध भिुक्षुओं का अपमान: बीजेपी

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि मायावती का बयान न केवल बौद्ध भिक्षुओ का अपमान है बल्कि घोर निंदनीय है। इस समय दलितों का रूझान बीजेपी की तरफ बढ़ रहा है, समर्थन व्यापक हो रहा है इसलिए मायावती बेचैन और परेशान हैं। दलितों का भरोसा मायावती से उठ गया है।

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बहुजन से सर्वसमाज की पार्टी बनने से हो रहा नुकसान ?

बसपा के विधानसभा में नेता विरोधी दल रहे स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी छोड़ने के बाद से आर के चौधरी और बृजेश पाठक समेत दर्जनों नेताओं ने हाथी का साथ छोड़ा। दलित चिंतक डॉ. लालजी निर्मल कहते हैं कि डॉ. अंबेड़कर एक जाति विहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे, लेकिन बसपा ने उससे अलग हटकर जातियों को मजबूत करने का काम किया। जातीय भाईचारा कमेटी का गठन कर सजातीय नेताओं को उनका अगुवा बना दिया। फिर इन जातियों के अगुवा अपने प्रतीकों के साथ अलग हो गए। उनके बिखराव हुए। इससे लोगों को लगा कि डॉ. अंबेड़कर का मिशन दूसरी तरफ मुड़ गया यानि बसपा बहुजन से सर्वसमाज की पार्टी बन गई।

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